संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ओर से जारी मानव विकास सूचकांक 2021-22 की रिपोर्ट में कहा गया है कि लगातार दो सालों में वैश्विक स्तर पर मानव विकास का सूचकांक नीचे गिरा है। 32 सालों में पहली बार इस तरह की लगातार गिरावट देखी गई है। यह रिपोर्ट ‘अनसर्टेन टाइम्स, अनसर्टेन लाइव्सः शेपिंग अवर फ्यूचर इन ए ट्रांसफॉरमिंग वर्ल्ड’ के नाम से जारी की गई है। इस रिपोर्ट में दुनिया के 191 देशों की एक सूची के तहत मानव विकास सूचकांक तैयार किया गया है।
भारत की स्थिति भी चिंताजनक बताई गई है। रिपोर्ट में भारत को मध्य मानव विकास की श्रेणी में रखा गया है। वर्तमान में भले ही देश में तमाम विकास के दावों के शोर के बावजूद भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी रिपोर्ट में बेहतर नहीं कर रहा है। मानव विकास इंडेक्स में गिरावट इस बात का संकेत देती नज़र आती है कि भारत शिक्षा, स्वास्थ्य और आय तीनों मामलों में सुधार करने में नाकामयाब साबित हो रहा है।
हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक हाल में जारी मानव विकास सूचकांक की रिपोर्ट में 90 प्रतिशत देशों के मानव विकास सूचकांक में 2020 या 2021 में गिरावट देखी गई है। इन दोंनो सालों में 40 फीसदी से अधिक देशों में गिरावट दर्ज की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध इस गिरावट की मुख्य वजहों में से एक है।
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रिपोर्ट के मुताबिक नारीवादी लामबंदी बढ़ने की वजह से मानव विकास सूचकांक में बढ़ोतरी हुई है। निम्न और मध्य आय वाले देशों में समय के साथ नारीवादी आंदोलनों की हलचल ज्यादा देखी गई है। इसमें मध्य मानव विकास सूचकांक वाले देशों में भारत, बांग्लादेश, मोरेक्को जैसे देशों के नाम शामिल हैं। दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिकी देशों में 1995 के बाद से फेमिनिस्ट मोबिलाइजेशन इंडेक्स स्कोर औसतन अधिक रहा है।
साल 2021-22 की रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- इस पूरी रिपोर्ट में कुल 191 देशों की स्थिति का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट तैयार करने में मुख्य तौर पर जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, औसत स्कूली शिक्षा का समय और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू आय पर ध्यान दिया गया है।
- भारत को सूचकांक में 0.633 स्कोर मिला है जिसमें देश को कुल देशों में 132वीं रैंक मिली है। पिछले साल के मुकाबले भारत की इस वर्ष की रैंक एक पायदान नीचे दर्ज की गई है। अध्ययन में इस गिरावट की वजह जीवन प्रत्याशा (69.7 से 67.2) में कमी को बताया गया है।
- भारतीय उप-महाद्वीप के मुल्कों में श्री लंका ने 73वीं रैक के साथ सबसे बेहतर प्रदर्शन किया है। इसके बाद 79 रैंक चीन ने हासिल की है। भूटान ने 127, बांग्लादेश ने 129 के बाद भारत को रैंक मिली है। नेपाल को 143 और पाकिस्तान 161वें नबंर पर है।
- सूची के शीर्ष दस में से आठ देशों में यूरोप के देशों के नाम शामिल है। इसमें स्विजरलैंड, नॉर्वे और आइसलैंड शीर्ष तीन नंबर पर है।
- शुरू के दस देशों में केवल हांगकांग और ऑस्ट्रेलिया ही यूरोप से बाहर के देश हैं जिन्होंने शीर्ष में जगह बनाई है।
महामारी और युद्ध को माना गिरावट की मुख्य वजह
दुनिया में मानव विकास होने की धीमी गति की मुख्य वजह कोविड-19, युद्ध और जलवायु संकट को बताया गया है। इन स्थितियों ने मनुष्य के जीवन में अनिश्चिता पैदा की है। मनुष्य लंबे समय से आपदाओं, हिंसा, युद्ध, बाढ़ और सूखे को लेकर चिंतित है। रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 ने मानवीय विकास को पूरी तरह प्रभावित किया है। लोगों तक ऊर्जा, भोजन, वस्तुओं और अन्य सामान पहुंचने में बाधा पहुंची है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने युद्ध, महामारी और बढ़ते तापमान की वजह से वैश्विक स्तर पर खाद्य संकट की चेतावनी दी है।
रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 से उभरने में भी असमानता बनी हुई है। वैक्सीन वितरण में अनेक स्तर पर असमानता बनी हुई है। 27 जुलाई 2022 तक उच्च आय वाले देशों में चार में से तीन या 72 प्रतिशत आबादी को ही कम से कम एक वैक्सीन डोज लगी है। वहीं निम्न आय वाले देशों में पांच में से एक या केवल 21 फीसदी लोगों में वैक्सीन की एक डोज लग पाई है।
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मानव विकास सूचकांक की रिपोर्ट में 90 प्रतिशत देशों के मानव विकास सूचकांक में 2020 या 2021 में गिरावट देखी गई है। इन दोंनो सालों में 40 फीसदी से अधिक देशों में गिरावट दर्ज की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध इस गिरावट की मुख्य वजहों में से एक है।
रिपोर्ट में मानव विकास को बढ़ाने के लिए इंवेस्टमेंट, इंश्योरेंस और इनोवेशन पर जोर दिया है। स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी वैश्विक मौलिक सुविधाओं में ज्यााद निवेश करने को कहा गया है। लोगों को अक्षय ऊर्जा में निवेश और महामारी के लिए तैयारियों का आह्वान किया है। लोगों को आकस्मिक मुसीबत से बचने के लिए बीमा से अनिश्चित उतार-चढ़ाव से समाज को तैयार रहने के लिए सुझाव दिए गए हैं। अनेक तरह के सामाजिक बदलाव के बाद हर तरह से मानव विकास को बेहतर किया जा सकता है।
भारत के मानव विकास सूंचकाक की स्थिति पर एनडीटीवी.कॉम से बातचीत करते हुए भारत में यूएनडीपी रेजीडेंट रिप्रेजेंटेटिव शोको नोडा ने कहा है कि भारत को मानव विकास सुधारने के लिए जेंडर पर काम करने की बहुत आवश्यकता है। नोडा के अनुसार, “महिला श्रम भागीदारी में दुनिया में भारत की दर सबसे कम है। जेंडर रेसपोंसिव पॉलिसी और समस्याएं अपनी जगह है लेकिन मुझे लगता है कि महिला सशक्तिकरण से अलग और बेहतर करने की आवश्यकता है। असमानता को कम करने के लिए सामाजिक सुरक्षा में विस्तार करना महत्वपूर्ण है और मौजूदा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में न केवल महिलाओं बल्कि अन्य वंचित समुदाय को भी शामिल करने की ज़रूरत है। तीसरा हमारे पास मानव विकास सूचकांक जैसे शिक्षा और आय को सुधारने के लिए स्वस्थ आबादी होनी आवश्यक है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में अधिक निवेश की बहुत आवश्यकता है।”
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असमानता खत्म करने के लिए नारीवादी आंदोलनों को बताया महत्वपूर्ण
मानव विकास सूचकांक 2021-22 की रिपोर्ट में असमानता को खत्म करने के लिए नारीवादी आंदोलनों को बहुत महत्वपूर्ण बताया है। महिलाएं और नारीवादी आंदोलनों ने राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर विभिन्न मुद्दों पर महिलाओं के अधिकारों को उन्नत किया है। नारीवादी मोबिलाइजेशन की वजह से आर्थिक जीवन, बेहतर कानूनी अधिकार, राजनीति में बड़ा प्रतिनिधित्व, घरेलू कामगारों के लिए बेहतर वेतन और स्थिति बनाने की कोशिश की गई है। नारीवादी आंदोलनों नें यौन हिंसा से बेहतर सुरक्षा और हिंसा के प्रति जागरूकता बढ़ाई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन देशों में कम नारीवादी आंदोलन हुए हैं उनमें लैंगिक समानता और महिलाओं के ख़िलाफ़ अधिक पूर्वाग्रह हैं। महिलाओं की सामाजिक आंदोलनों में भागीदारी पारंपरिक लैंगिक धारणाओं को बदलने का काम करती है।
रिपोर्ट के मुताबिक नारीवादी लामबंदी बढ़ने की वजह से मानव विकास सूचकांक में बढ़ोतरी हुई है। निम्न और मध्य आय वाले देशों में समय के साथ नारीवादी आंदोलनों की हलचल ज्यादा देखी गई है। इसमें मध्य मानव विकास सूचकांक वाले देशों में भारत, बांग्लादेश, मोरेक्को जैसे देशों के नाम शामिल हैं। दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिकी देशों में 1995 के बाद से फेमिनिस्ट मोबिलाइजेशन इंडेक्स स्कोर औसतन अधिक रहा है।
इसमें आगे कहा गया है कि जिन देशों में कम नारीवादी आंदोलन हुए हैं उनमें लैंगिक समानता और महिलाओं के ख़िलाफ़ अधिक पूर्वाग्रह हैं। महिलाओं की सामाजिक आंदोलनों में भागीदारी पारंपरिक लैंगिक धारणाओं को बदलने का काम करती है। महिलाओं के बीच आधिकारों की सजगता और आंदोलनों में भागीदारी को आय, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक भागीदारी को मानव विकास सूचकांक में सुधार की वजह बताई गई है जिससे पारंपरिक पूर्वाग्रहों को खत्म कर समानता लाई जा सकती है।
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