उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में दलित परिवार में जन्मी 49 वर्षीय रीता कौशिक आज लाखों विद्यार्थियों के लिए एक मिसाल हैं। रीता कौशिक को अपने गांव की पहली साक्षर महिला होने का गौरव प्राप्त है। अपने अंदर शिक्षा की अलख जगाकर न सिर्फ उन्होंने अपने अंदर से अशिक्षा को दूर किया बल्कि लाखों विद्यार्थियों के जीवन से अशिक्षा को दूर किया है।
रीता के पिता रिक्शा चालक थे। रीता के परिवार में 4 भाई बहन हैं। रीता के पिता बमुश्किल 2 भाइयों की फ़ीस जुटा पाते थे। लेकिन रीता को स्कूल नहीं भेजा गया। लेकिन एक दिन जब रीता अपने भाइयों को स्कूल छोड़ने गई थीं तो उस स्कूल के प्रिंसिपल ने रीता को देखा और उनके माता-पिता से रीता को पढ़ाने के लिए अनुरोध किया। हालांकि, यह काम उतना आसान नहीं था। पिता की अनिच्छा और प्रिंसिपल के समझाने के बाद रीता को पढ़ने के लिए स्कूल भेजा गया। लेकिन चुनौतियां अभी खत्म नहीं हुई थी बल्कि यहां से रीता के कठिन संघर्ष की कहानी शुरू होती है।
इस जातिवादी समाज में दलित वर्ग से आने वाली रीता को अनेकों चुनौतियों का सामना करना पड़ा। फेमिनिज़म इन इंडिया से बातचीत करते हुए रीता कौशिक बताती हैं कि जिस स्कूल से उन्होंने पढ़ाई की वहां पर दलित वर्ग से आने के कारण उन्हें अत्यधिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। लेकिन वहां सिर्फ उनके साथ ही नहीं बल्कि दलित और पिछड़े वर्ग से आनेवाले तमाम अन्य बच्चों के साथ भी भेदभाव होता था। इन वर्गों से आने वाले बच्चों को हमेशा ही क्लास की पिछली बेंच पर बिठाया जाता था। छोटी सी गलती होने पर पढ़ाने वाले मास्टर पीट दिया करते थे। इस वजह से दलित और पिछड़े वर्ग से आने वाले बच्चे डर कर ही पढ़ाई करने से वंचित रह जाते थे।
दलित फाउंडेशन में फेलोशिप मिलने के बाद रीता कौशिक ने तय किया कि वह अपना एनजीओ बनाएंगी। उन्होंने साल 2002 में अपने गैर सरकारी संगठन ‘सामुदायिक कल्याण एवं विकास संस्थान’ (SKVS) की स्थापना की।
आगे रीता बताती हैं, “यह भेदभाव देखकर ही मैंने यह तय किया कि जब भी स्कूल जाऊंगी सब कुछ याद करके ही जाऊंगी। हालांकि मुझे अच्छे से याद है कि मुझे कम मार पड़ी है लेकिन जब भी मौका मिला मुझे भी अपमानित करने का काम जरूर किया गया।”
रीता कौशिक बताती हैं कि घर की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं होने के कारण उनकी पढ़ाई छूट गई। हालांकि 4 साल की नौकरी के बाद ही उन्होंने तुरंत फैसला किया वह अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करेंगी। इसके बाद उन्होंने अपना ग्रेजुएशन भी पूरी की और साथ ही साथ सोशियोलॉजी में मास्टर्स की डिग्री भी ली। उन्होंने गैर-सरकारी संगठन गोरखपुर एनवायरमेंट ऐक्शन ग्रुप में 10 सालों तक नौकरी भी की। समाज के कल्याण के लिए उन्होंने दलित फाउंडेशन में 3 साल तक की फेलोशिप भी हासिल की।
बनाया अपना एनजीओ
दलित फाउंडेशन में फेलोशिप मिलने के बाद रीता कौशिक ने तय किया कि वह अपना एनजीओ बनाएंगी। उन्होंने साल 2002 में अपने गैर सरकारी संगठन ‘सामुदायिक कल्याण एवं विकास संस्थान‘ (SKVS) की स्थापना की। बाद में रीता के एनजीओ सामुदायिक कल्याण एवं विकास संस्थान पर तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने भरोसा जताया जिसमें से यूएस एड (US AID) प्रमुख था। उन्होंने बताया कि साल 2004 से अब तक 25 हजार से ज्यादा लड़कियों को स्कूल में भर्ती करवा चुकी हैं।
वर्ष 2018 में सामुदायिक कल्याण एवं विकास संस्थान के अच्छे कार्यों को देखते हुए विश्व प्रसिद्ध मलाला फाउंडेशन भी रीता कौशिक के एनजीओ से जुड़ा। वर्ष 2018 में मलाला फाउंडेशन ने रिता कौशिक के एनजीओ सामुदायिक कल्याण एवं विकास संस्थान को एक करोड़ का अनुदान दिया था। वह बताती हैं, “जबसे हमें यह फंड मिला तब से हमारे लिए काम करना आसान हो गया हालांकि कोरोना के वजह से बहुत सारे प्रोजेक्ट अधर में लटके हुए थे जिनके अब पूरे होने की संभावना है।: साथ ही उन्होंने बताया कि अभी हमारे पास एक सरकारी प्रोजेक्ट भी है जो कि चाइल्ड लाइन से जुड़ा हुआ है जिसके लिए सरकार से हमें बजट प्राप्त होता है। इसके कारण हम बेहतर कार्य कर पाते हैं।”
साथ ही उन्होंने बताया, “जमीनी हकीकत हमारी कल्पना से बहुत ज्यादा अलग होती है। जब हम ग्राउंड पर जाते हैं तो हमें पता चलता है कि अभी बहुत कुछ बदलना बाकी है। शुरुआती दिनों में लोगों को समझाना कठिन था। हालांकि, अब हालात बेहतर हो चुके हैं।” परिवारिक सहयोग के बारे में वह कहती हैं उनके पति और सास-ससुर ने अत्यधिक सहयोग किया। अगर वे लोग साथ नहीं होते तो उनके लिए इतना लंबा सफर तय करना मुश्किल था।