ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के अनुसार महिलाओं के जीवन को शादी, बच्चे पैदा करना और उनकी परवरिश तक सीमित रहना चाहिए। अगर कोई महिला शादी और बच्चे से इतर अपनी पहचान और अपनी आर्थिक स्वतंत्रता के लिए काम करना चाहती है तो आज भी समाज और परिवार उसके ख़िलाफ़ खड़े हो जाते हैं। यही नहीं, अक्सर हमने अपने आसपास कभी न कभी यह भी सुना है कि शादी के वक्त बहुत से मर्द कहते हैं कि वे नहीं चाहते कि उनकी पत्नी नौकरी करें। उनका ख्याल होता है कि पत्नी सिर्फ घर के काम और बच्चों की देखभाल करे।
भारत से जुड़ी एक स्टडी में भी यह बात सामने आ चुकी है कि नौकरीपेशा लड़कियां भारतीय मर्दों की शादी के लिए पहली पसंद नहीं होती हैं। किसी परिस्थिति में महिला अगर शादी के बाद काम करने की इच्छा रखती है तो केवल इस आधार पर पति उसे तलाक की मांग भी कर सकता है। हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने ऐसा ही एक फैसला सुनाया है जिसमें एक महिला से उसके पति ने नौकरी करने इच्छा को आधार बनाकर उससे तलाक की मांग की। वहीं, अदालत ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा है कि एक महिला की शादी के बाद नौकरी करने की इच्छा और बच्चा नहीं होने को पति के प्रति क्रूरता नहीं कहा जा सकता है। कोर्ट ने कहा है काम करने की इच्छा रखने वाली पत्नी को हिंदू मैरिज ऐक्ट के अनुसार क्रूरता नहीं माना जाता।
हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने ऐसा ही एक फैसला सुनाया है जिसमें एक महिला से उसके पति ने नौकरी करने इच्छा को आधार बनाकर उससे तलाक की मांग की। वहीं, अदालत ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा है कि एक महिला की शादी के बाद नौकरी करने की इच्छा और बच्चा नहीं होने को पति के प्रति क्रूरता नहीं कहा जा सकता है।
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी ख़बर के मुताबिक़ जस्टिस अतुल चंदुकर और उर्मिला जोशी की डिवीज़न बेंच ने एक पति की तलाक की अपील को खारिज करते हुए कहा है, “एक योग्य पत्नी अगर नौकरी करने की इच्छा रखती है तो वह क्रूरता नहीं है। पति को एक विशिष्ट मामला बनाना चाहिए कि पत्नी का व्यवहार ऐसा था जो उसके साथ जीवन जीना मुश्किल कर देता। याचिकाकर्ता ने जैसा अपनी पत्नी का व्यवहार बताया है जिसका उसने सामना किया है, वह क्रूरता नहीं है।”
तलाक मांगने के लिए पति ने तर्क दिया था कि उसकी पत्नी शादी के बाद से ही नौकरी करने की इच्छा पर उससे झगड़ती है और उसे प्रताड़ित कर रही है। पति ने आरोप में यह भी कहा कि उसने उसकी सहमति के बिना पत्नी ने अबॉर्शन करवाया था। साथ ही यह भी आरोप लगाया कि बिना किसी ठोस कारणों के पत्नी ससुराल छोड़कर अपने माता-पिता के घर रहने लगी और उसके साथ क्रूरता की।
महिलाओं पर शादी और परिवार की जिम्मेदारी के नाम पर उन्हें अक्सर घर से बाहर जाकर पैसा कमाने के लिए रोका जाता है। आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर होने के लिए महिलाएं अपने शादीशुदा जीवन में हिंसा का सामना करने पर मज़बूर रहती हैं। अगर महिलाएं आर्थिक रूप से निर्भर होगी तो वह अपने जीवन के फैसले आसानी से ले सकती है। यह केस महिलाओं की आर्थिक आज़ादी और उनके यौन एवं प्रजनन अधिकार से ही जुड़ा है। बता दें कि इनकी शादी 8 अगस्त 2001 में हुई थी। शादी के एक साल बाद उनके एक बेटा हुआ। पत्नी जो परास्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी कर चुकी है और नौकरी करने की भी इच्छा रखती है। शुरू में, उसने ट्यूशन क्लास लेना सोचा था लेकिन बच्चे की देखभाल के कारण यह विचार भी छोड़ दिया था।
साल 2014 में महिला दोबारा गर्भवती हुई लेकिन पति की इच्छा के ख़िलाफ़ उसने अबॉर्शन करवाया। इस बात पर दोंनो के बीच विवाद हो गया। इसके बाद वह अपने माता-पिता के घर चली गई और दोबारा लौटकर नहीं आई। तब उसके पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक का केस दायर किया, जिसे खारिज कर दिया गया। उसके बाद फैसले को चुनौती देने को उसने हाई कोर्ट में पत्नी के छोड़ने, उसकी सहमति के बिना अबॉर्शन और नौकरी करने की जिद को अपने साथ क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग की।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, “अगर जैसे पति ने तर्क दिए है वैसे ही स्वीकार कर लिए जाए तो भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन करने का विकल्प महिला के पास उसकी निजी स्वतंत्रता का हिस्सा है। उसे बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। जब पति ने आरोप लगाया है कि उसने गर्भावस्था को खत्म कर दिया और वह बच्चा नहीं चाहती तो इन आरोपों को साबित करना भी पति को ही होगा।“
लाइव लॉ की ख़बर के अनुसार पत्नी ने अदालत में प्रस्तुत किया कि उसने मातृत्व स्वीकार कर लिया। दूसरा अबॉर्शन करवाने का फैसला बीमारी की वजह लिया था। इसके अलावा, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि पति ने पत्नी और अपने बेटे को वापस घर लाने का प्रयास किया। पति ने उनकी आजीविका के लिए किसी भी तरह का कोई प्रबंध नहीं किया। उसने दावा किया है कि उसने ससुराल छोड़ दिया, क्योंकि उसका पति और उसकी बहनों को उसके चरित्र पर संदेह था।
तलाक को इनकार करते हुए कोर्ट के द्वारा की गई महत्वपूर्ण बातें
- पति को यह साबित करना होगा कि अगर पत्नी का व्यवहार के कारण उसके साथ जीवन जीना कठिन होगा।
- जिस तरह के व्यवहार की वजह से पति ने क्रूरता को सहन करने की बात कही है वह उसके द्वारा उसका वर्णन नहीं किया गया।
- पति ने महिला के गर्भावस्था को खुद समाप्त कराने के कोई सबूत नहीं पेश किए।
- केवल महिला अपने पति से अलग रह रही है इस वजह से उसे हमेशा के लिए छोड़ा नहीं जा सकता है।
- महिला के पास अपनी निजी स्वतंत्रता के तहत प्रजनन करने का पूरा अधिकार है।
अदालत ने कहा कि पति ने एक भी घटना का हवाला नहीं दिया, जिससे पता चलता है कि पत्नी की नौकरी करने की इच्छा को लेकर उनके बीच कुछ झगड़ा है। आरोप सिर्फ इतना है कि पत्नी यह कहकर परेशान कर रही है कि वह नौकरी करना चाहती है। जज ने कहा है, “अगर जैसे पति ने तर्क दिए है वैसे ही स्वीकार कर लिए जाए तो भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन करने का विकल्प महिला के पास उसकी निजी स्वतंत्रता का हिस्सा है। उसे बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। जब पति ने आरोप लगया है कि उसने गर्भावस्था को खत्म कर दिया और वह बच्चा नहीं चाहती तो इन आरोपों को साबित करना भी पति को ही होगा।“