समाजख़बर औरतें और बच्चे चुका रहे हैं बढ़ती असमानता की बड़ी कीमत: रिपोर्ट

औरतें और बच्चे चुका रहे हैं बढ़ती असमानता की बड़ी कीमत: रिपोर्ट

निम्न आय वाले देशों के बच्चों की औसत जीवन प्रत्याशा लगभग 63 साल है, जबकि उच्च आय वाले देशों में यह 80 साल है। साल 2020 में पांच मिलियन बच्चे अपने जन्म के पांच साल की भीतर ही मर गए।

कोविड-19 महामारी का पूरी दुनिया पर बहुत बुरा असर पड़ा है। कोरोना महामारी ने दुनिया में मौजूद असमानताओं को और भी गहरा कर दिया है। पुरुषों की तुलना में कमज़ोर सामाजिक, शारीरिक और आर्थिक स्थिति होने की वजह से महिलाएं और बच्चे इससे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। दुनियाभर में महिलाओं और बच्चों के बीच स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं, भूख, हिंसा और मानसिक अवसाद जैसे मामलों में वृद्धि हुई है। हाल में जारी संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बढ़ती विषमताओं की वजह से महिलाएं और बच्चे ज्यादा कीमत चुका रहे हैं। महामारी के असर की वजह से वैश्विक स्तर पर महिलाओं और बच्चों का स्वास्थ्य कहीं अधिक प्रभावित हुआ है। 

‘प्रोटेक्ट द प्रॉमिस’ के नाम से जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सतत विकास लक्ष्यों के अहम संकेतकों और बाल कल्याण में कटौती की वजह से महिला और बच्चों के विकास में गंभीर गिरावट देखी गई है। साल 2020 में जारी रिपोर्ट की तुलना में भूख, बाल विवाह, खाद्य असुरक्षा, इंटिमेट पार्टनर वायलेंस और किशोर उम्र में अवसाद जैसे सभी मामलों में बढ़त हुई है। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र संगठन, यूनिसेफ, यूएनएफपीए, पार्टनरशिप फॉर मैटरनल, न्यूबोर्न एंड चाइल्ड हेल्थ और अन्य सहयोगी संगठनों द्वारा मिलकर प्रकाशित की गई है। यूएन महासचिव द्वारा महिलाओं, बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य की प्रगति का आकलन करने के लिए यह द्विवार्षिक अध्ययन जारी किया गया है।

रिपोर्ट में एक अनुमान के मुताबिक़ साल 2021 तक 25 मिलियन बच्चों को आंशिक रूप से वैक्सीन मिली है या पूरी तरह से उनका टीकाकरण नहीं हुआ है। इस वजह से बच्चों में जानलेवा बीमारी होने का खतरा बढ़ा है। यहीं नहीं, महामारी की वजह से लाखों बच्चों की स्कूली शिक्षा प्रभावित हुई है। 104 देशों के लगभग 80 फीसदी बच्चे ने तालाबंदी की वजह से स्कूल बंद होने से पढ़ाई-लिखाई और सीखने की प्रक्रिया में नुकसान का अनुभव किया। जब से कोविड-19 महामारी शुरू हुई है तब से 10.5 मिलियन बच्चे अपने अभिभावक या देखभाल करनेवाले व्यक्ति को खो चुके हैं। 

‘प्रोटेक्ट द प्रॉमिस’ के नाम से जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सतत विकास लक्ष्यों के अहम संकेतकों और बाल कल्याण में कटौती की वजह से महिला और बच्चों के विकास में गंभीर गिरावट देखी गई है। 2020 में जारी रिपोर्ट की तुलना में भूख, बाल विवाह, खाद्य असुरक्षा, इंटीमेट पार्टनर वायलेंस और  किशोर उम्र में अवसाद एवं बैचेनी जैसे सभी मामलों में वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  • निम्न आय वाले देशों के बच्चों की औसत जीवन प्रत्याशा लगभग 63 साल है, जबकि उच्च आय वाले देशों में यह 80 साल है। साल 2020 में पांच मिलियन बच्चे अपने जन्म के पांच साल के भीतर ही मर गए। अधिकतर बच्चों की मौत उन कारणों से हुई जिनका रोकथाम और इलाज संभव था।
  • बच्चों, किशोरों की मौत और स्टिलबर्थ के मामले सबसे अधिक सब-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में सामने आए हैं।
  • साल 2020 में 45 मिलियन से अधिक बच्चे गंभीर कुपोषण से ग्रसित थे जिस वजह से उनकी मौत, बीमारी और शारीरिक विकास में बाधा का खतरा बना हुआ है। इनमें से लगभग तीन-चौधाई बच्चे निम्न-मध्यम आय वाले देशों के हैं। 
  • 149 मिलियन बच्चों की लंबाई वृद्धि में कमी देखी गई। अफ्रीका दुनिया का ऐसा क्षेत्र है जहां बच्चों की कम लंबाई की सबसे ज्यादा शिकायत देखी गई। पिछले दो दशक में इस क्षेत्र में यह संख्या 54.4 मिलियन (2000) से 61.4 मिलियन (2020) बढ़ गई है।
  • यूरोप और उत्तरी अमेरिका के मुकाबले सब-सहारा अफ्रीका में गर्भावस्था या प्रसव के दौरान जान का 130 गुना अधिक खतरा बना रहता है। 
  • मानवीय आपदाओं की वजह से अफगानिस्तान, इथोपिया, पाकिस्तान, सोमालिया, यूक्रेन और यमन के लाखों बच्चे और उनके परिवारों ने कमज़ोर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का अनुभव किया है। 

रिपोर्ट में अलग-अलग देश की सरकारों से स्वास्थ्य सेवाओं में अधिक निवेश, खाद्य असुरक्षा समेत सभी संकटों से निपटने के लिए कहा गया है। वैश्विक समुदाय को इस खतरे से उभरने और सतत विकास लक्ष्य के तहत महिलाओं, बच्चों और किशोर की सुरक्षा के लिए किए गए वादों को पूरा करने का आह्वान किया है। सुझाव के तौर पर बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं में सभी बच्चों, महिलाओं और किशोर को शामिल करने पर ज़ोर देना को कहा गया है।

बहु-क्षेत्रीय सहयोग कार्यक्रमों को बेहतर करने का सुझाव दिया गया है जिससे प्रत्येक महिला, बच्चे और किशोर तक बेहतर सुविधाएं पहुंचें। महिला सशक्तिकरण के साथ महिलाओं और किशोर लड़कियों को नेतृत्व में शामिल करने की बात कही गई है। सरकारों को अपने सहयोगियों द्वारा महिलाओं, बच्चों और किशोर के स्वास्थ्य कल्याण के लिए बनाई गई नीतियों में अधिक आर्थिक निवेश करने को कहा गया है। 

यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के लिए यूएनएफपीए की कार्यकारी निरदेशक डॉ. नतालिया कानेम ने कहा है कि अनेक देशों में यौन प्रजनन एवं अधिकारों के लिए राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी परिस्थितियों में महिलाओं, बच्चों और किशोरों के पास सुरक्षा के वे उपाय नहीं हैं, जो उन्हें एक दशक पहले उपलब्ध थे।

आंकड़ों के अनुसार भारत में महिलाओं और बच्चों की क्या है स्थिति

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में महिलाओं तक स्वास्थ्य सुविधाओं तक की पहुंच में असमानता को खत्म करने के प्रयास पर जोर देने के लिए कहा है। भारत में कोविड-19 वैक्सीन लेने में भी महिलाओं और पुरुषों के बीच बड़ा अंतर है। डीडब्ल्यू् में प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार भारत में कोविन की ऑफिशियल वेबसाइट्स के मुताबिक़ कुल 1.63 बिलियन वैक्सीन लगी। कुल संख्या में से 830 मिलियन पुरुषों को और 792 मिलियन महिलाओं को लगे ंहै। दोंनो के बीच 38 मिलियन खुराक का अंतर है। लैंगिक भेदभाव, भौगोलिक, सामाजिक कारणों को इस अंतर की मुख्य वजह बताया गया है। 

104 देशों के लगभग 80 फीसदी बच्चे ने तालाबंदी की वजह से स्कूल बंद होने से पढ़ाई-लिखाई और सीखने की प्रक्रिया में नुकसान का अनुभव किया। जब से कोविड-19 महामारी शुरू हुई है तब से 10.5 मिलियन बच्चे अपने अभिभाव या देभभाल करने वाले व्यक्ति को खो चुके हैं। 

स्वास्थ्य से अलग महिलाएं भूख के मामले में भी पुरुषों से पीछे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ कोविड-19 में महिलाओं ने ज्यादा खाद्य असुरक्षा का सामना किया है। इससे महिलाओं में कुपोषण की समस्या बढ़ी है। मां बनने वाली महिलाओं में कुपोषण फैलने की वजह से यह न केवल उनकी सेहत और कल्याण बल्कि उनके बच्चों को भी प्रभावित कर रहा है। द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 18 लाख बच्चे गंभीर तौर पर कुपोषण से ग्रस्त हैं। यही नहीं, भारत में बड़ी संख्या में बच्चे एनीमिया यानी खून की कमी से जूझ रहे हैं। 

दुनियाभर में महिलाओं और बच्चों को अपनी सामाजिक स्थिति की वजह से अनेक तरह की असमानताओं को सामना करना पड़ता है। महिला हो या बच्चे दोंनो के ही समान विकास के लिए बहुत से कदम उठाने की आवश्यकता है। अगर एक महिला स्वस्थ्य होगी और समान अधिकारों और सुविधाओं के साथ जीवन व्यतीत करेगी है तो यह आनेवाली पीढ़ी और उसके बच्चों के लिए भी बेहतर होगा। मां और बच्चे के स्वस्थ्य होने से ही एक बेहतर दुनिया की कल्पना की जा सकती है।


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