पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मोघपुर गाँव के प्राथमिक विद्यालय में कक्षा पांच में पढ़नेवाली अविका के पिता बताते हैं, “कोरोना ने बच्चों की पढ़ाई पर बहुत बुरा असर डाला है। स्कूल बंद थे उस दौरान ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर जो कुछ भी हुआ है वह खानापूर्ति के अलावा कुछ नहीं था। हम खेती करनेवाले लोग हैं, खुद पढ़े नहीं है लेकिन बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। अब मेरे सारे बच्चे गाँव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। प्राइवेट स्कूल के मुकाबले सरकारी स्कूल में बच्चों की पढ़ाई वही पुराना तरीका है, मतलब मेरी बड़ी बेटी आज तक कम्प्यूटर के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती है। हम सब जानते हैं कि कम्प्यूटर और अंग्रेज़ी की पढ़ाई आज के समय की बहुत बड़ी ज़रूरत है। प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई का स्तर भले ही कैसा भी हो लेकिन वहां की फीस बहुत ज्यादा होती है। पहले मेरी बड़ी बेटी पास के ही कस्बे के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ती थी, वहां की किताबें गाँव के स्कूल से अलग थी। लेकिन चार बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना हम जैसे छोटे काश्तकारों के लिए एक बड़ी परेशानी बन जाती है। गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ाई का स्तर वह नहीं है जो आज के जमाने में आगे बढ़ने के लिए होना चाहिए। आप खुद ही देख लेना कक्षा चार का बच्चा जो यहां पढ़ रहा है वह शहर के बच्चे से बहुत पीछे है। सरकारी सुविधाओं की हालात अब किसी से छिपी तो है नहीं।”
अविका के पिता स्कूली शिक्षा व्यवस्था के जिन पहलूओं के बारे में बात कर रहे हैं उनकी चिंताओं को सही साबित करने का काम हाल ही में जारी शिक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट करती है। रिपोर्ट के अनुसार देश में पहले के मुकाबले स्कूलों और शिक्षकों की संख्या कम हुई है। आज भी बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल में कम्प्यूटर शिक्षा से वंचित हैं। भारत में शिक्षा व्यवस्था को लेकर शिक्षा मंत्रालय की यूनिफाइड डिस्ट्रिक इनफॉरमेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार देशभर 20,000 से अधिक स्कूल बंद हो गए। रिपोर्ट के अनुसार 2021-22 में स्कूलों की संख्या 14.89 लाख है जबकि 2020-21 में यह संख्या 15.09 लाख थी। इस गिरावट में अधिकतर प्राइवेट और अन्य प्रबंधन के तहत आनेवाले स्कूल बंद हुए हैं। देश में केवल स्कूलों की संख्या में कमी नहीं आई है बल्कि साल 2020-21 के आंकड़े से वर्तमान में जारी रिपोर्ट के अनुसार शिक्षिकों की संख्या में भी कमी आई है। पिछले साल के मुकाबले 1.89 लाख शिक्षक कम हुए हैं। 2020-21 में देश में 96.96 लाख शिक्षक थे जो 2021-22 में 95.07 लाख हैं।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- वर्तमान में देश कुल स्कूलों की संख्या 14.89 लाख है। पिछले साल की रिपोर्ट के मुकाबले देश में स्कूल की संख्या में कमी देखी गई है।
- 2021-22 के अनुसार देश में कुल शिक्षक की संख्या 95.07 लाख है। बीते साल के मुकाबले देश में 1,89,303 शिक्षक कम हैं।
- देश में स्कूलों में बीच में पढ़ाई छोड़ने की दर में भी बढ़ोतरी देखी गई है। यह दर प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और माध्यमिक सभी विद्यालयों में देखी गई है। प्राइमरी में पिछले साल ड्रापआउट की दर 0.8 थी जो नये आंकड़े के अनुसार 1.45 दर्ज की गई है। उच्च प्राथमिक में यह दर 1.9 से 3.02 दर्ज की गई है।
- देश में उच्च माध्यमिक विद्यालयों में साल 2020-21 के मुकाबले 2021-22 में छात्रों के पंजीकरण में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
- 2020-21 के 14.6 से साल 2021-22 में माध्यमिक विद्यालयों में ड्रापआउट दर घटकर 12.61 दर्ज की गई है।
बच्चों के नामाकंन में कमी
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी का असर क्रॉस-कटिंग है जिससे युवा और कमज़ोर बच्चों का स्कूल में दाखिला प्रभावित हुआ है। देश में पूर्व प्राथमिक से लेकर से उच्च माध्यमिक का कुल नामाकंन 26.52 करोड़ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020-21 से 2021-22 तक पूर्व प्राथमिक वर्गों में छात्रों के नामांकन में 11.50 लाख की गिरावट देखी गई है। साल 2020-21 में पूर्व-प्राथमिक में बच्चों के नामाकंन की संख्या 1 करोड़ 6 लाख थी जो 2021-22 में घटकर 94.95 लाख दर्ज किया गया है। प्राथमिक स्तर पर देश में बच्चों के नामाकंन की संख्या 2021-22 में 12 करोड़ 18 लाख दर्ज की गई। पिछले साल के मुकाबले प्राथमिक स्तर पर बच्चों के नामाकंन में 1 लाख 79 हजार के लगभग कमी देखी गई है।
कुल मिलाकर कहें तो भारतीय शिक्षा व्यवस्था चुनौतियों से घिरी हुई है जिसमें स्कूलों और शिक्षिकों की संख्या घट रही है। प्राथमिक स्तर पर बच्चों के स्कूल में दाखिले में गिरावट भी देखी जा रही है। तथाकथित ‘डिजिटल इंडिया’ में आज भी देश में बड़ी संख्या में स्कूलों में कम्प्यूटर और इंटरनेट की सुविधाएं नहीं हैं।
ठीक इसी तरह माध्यमिक स्तर पर भी छात्रों के नामांकन की संख्या में कमी दर्ज की गई है। साल 2021-22 की रिपोर्ट के मुताबिक़ माध्यमिक स्तर पर कुल नामांकन की संख्या 3 करोड़ 85 लाख के करीब है। पिछले साल के मुकाबले माध्यमिक स्तर पर नामांकन की दर में 4.77 लाख की कमी है। इससे अलग केवल उच्च माध्यमिक स्तर पर छात्रों के नामाकंन में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। साल 2020-21 में यहां नामाकंन की संख्या 2 करोड़ 69 लाख थी जो 2021-22 में बढ़कर 2 करोड़ 85 लाख दर्ज की गई है।
स्कूल में बच्चों के नामाकंन की कमी को कोविड-19 से भी जोड़ा जा गया है। कोविड-19 की वजह से पहली बार स्कूल में दाखिला लेने वाले बच्चों के एडमिशन को टाला गया। पांच साल की अद्विता इस साल कक्षा एक में पढ़ रही है। यह उनके स्कूल का पहला साल है। अद्विता की माँ का कहना है, “कोविड की वजह से हमने इसका स्कूल में देर से दाखिला करवाया था। पिछले साल दिसंबर में पास के ही स्कूल में यूकेजी में भेजना शुरू किया था। इससे पहले कोरोना की वजह से बच्चों के स्कूल बंद होने की वजह से एडमिशन को टालकर घर पर पढ़ाने पर ध्यान दिया था। उसके बाद स्कूलों में हाफ टर्म पूरा होने के बाद सीधा यूकेजी में एडमिशन कराया था। यूकेजी के लिए एडमिशन टेस्ट तो बेटी ने पास कर लिया था लेकिन बाद में सिलेबस के साथ पढ़ाई करवाने को लेकर बच्ची के साथ बहुत मेहनत करनी पड़ी थी। एकदम से इसके ऊपर पढ़ाई और होमवर्क का भार बढ़ गया था।”
कम्प्यूटर शिक्षा के इंतज़ार में स्कूल
स्कूलों में सुविधाओं को लेकर बात करें तो रिपोर्ट के अनुसार देश में केवल 33.9 प्रतिशत स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा है और आधे से भी कम केवल 44.8 प्रतिशत स्कूल में कम्प्यूटर की सुविधा है। वहीं, देश के 98.2 फीसदी स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा है। 97.4 फीसदी में लड़कियों के लिए शौचालय की सुविधाएं हैं जबकि 96.2 फीसदी स्कूलों में लड़कों के लिए शौचालय की सुविधा है।
उत्तर प्रदेश में कार्यरत एक शिक्षिका से जब हमने स्कूल की सुविधाओं और शिक्षा पद्धति को लेकर बात की तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “अगर हम आज के आधुनिक दौर को लेकर बात करें तो सरकारी स्कूल की शिक्षा व्यवस्था अभी बेहद पीछे है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का हिस्सा तो काफ़ी विकसित है लेकिन आप पूरे प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों की बात करेंगे तो सबका स्तर सुविधाओं के नाम पर बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। सरकार ने कुछ स्कूल अंग्रेज़ी माध्यम बनाए हैं, वहां गाँव के कमज़ोर वर्ग से आनेवाले बच्चों को प्राइवेट स्कूलों के बच्चों के मुकाबले के लिए तैयार किया जा रहा है। लेकिन अभी भी सब तक समान शिक्षा वाली बात के लिए राह ही देखनी पड़ेगी। जैसे आपने कम्प्यूटर की शिक्षा को लेकर सवाल किया तो मैं अपने निजी मत से कहूंगी कि सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा तीन, चार और पांच के बच्चों के लिए भी कम्प्यूटर लैब की सुविधा होनी चाहिए। इससे क्या होगा बच्चे जल्दी कम्प्यूटर का इस्तेमाल करना सीख लेंगे।”
महामारी के चलते प्रभावित शिक्षा
कोविड-19 की महामारी के चलते बंद स्कूल ने शिक्षा तक बच्चों की पहुंच को और मुश्किल कर दिया है। कोविड से प्रभावित शिक्षा के आंकड़े दिखाते हैं कि कैसे हर स्तर पर महामारी ने बच्चों की स्कूली शिक्षा पर असर डाला है। ओआरएफ के अनुसार भारत में लगभग 250 मिलियन बच्चों ने लॉकडाउन के चलते स्कूल बंद की वजह से शिक्षा में नुकसान का सामना किया है। समाज में हाशिये पर रहनेवाले परिवार के बच्चों को मजबूरन पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी। जिन परिवारों में कोविड की वजह से मृत्यु और आर्थिक नुकसान हुआ है वहां आर्थिक सहयोग के लिए बच्चे को काम करना भी शुरू कर दिया। इससे अलग कोविड की वजह से बच्चों के पाठ्यक्रम में कटौती, परीक्षा के तरीके, डिजिटल शिक्षा आदि के चलते बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा है। यूनिसेफ के मुताबिक भारत में साल 2020 में कोविड-19 संकट के शुरू होने से पहले ही 60 लाख से अधिक लड़के और लड़कियां स्कूल से बाहर हो चुके थे।
भारत में शिक्षा व्यवस्था को लेकर शिक्षा मंत्रालय की यूनिफाइड डिस्ट्रिक इनफॉरमेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार देशभर 20,000 से अधिक स्कूल बंद हो गए। रिपोर्ट के अनुसार 2021-22 में स्कूलों की संख्या 14.89 लाख है जबकि 2020-21 में यह संख्या 15.09 लाख थी। इस गिरावट में अधिकतर प्राइवेट और अन्य प्रबंधन के तहत आनेवाले स्कूल बंद हुए हैं।
कोविड-19 की वजह से बड़ी संख्या में निजी स्कूल में पढ़नेवाले बच्चों ने सरकारी स्कूल में भी एडमिशन लिया है। टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र के निजी स्कूल में पढ़नेवाले बच्चों ने बड़ी संख्या में सरकारी स्कूल में दाखिला लिया गया है। कम लागत वाले निजी स्कूलों के बंद होने, फीस में बढ़ोतरी, अभिभावकों की आय में कमी और तालाबंदी में पूरे परिवार के शहर से गांव में लौटने जैसी वजहों से बच्चें निजी स्कूलों से निकलकर सरकारी स्कूल में गए हैं।
पश्चिम उत्तर प्रदेश के कूकड़ा गांव में रहनेवाली प्रीति कक्षा सात में पढ़ती है। प्रीति कोरोना महामारी से पहले अपने ही गांव की सीमा पर बने एक निजी स्कूल में पढ़ती थी लेकिन तालाबंदी के दौरान बंद स्कूल के दौरान उनके परिवार ने उसका दाखिला एक सरकारी स्कूल में करवा दिया है। प्रीति की माँ का कहना है, “कोरोना की वजह से स्कूल तो बंद थे लेकिन स्कूल की फीस उसी तरह जा रही थी। ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर बच्चे कुछ नहीं कर रहे थे। काम न होने की वजह से घर चलाना भी बहुत मुश्किल हो रहा था ऐसे में बच्चों की फीस अधिक होने की वजह से हमने प्रीति का दाखिला सरकारी इंटर कॉलेज में करा दिया है। अब बारहवीं तक ये उसी स्कूल में पढ़ेगी।”
देश की शिक्षा व्यवस्था पर खर्च
वर्तमान में देश में स्कूल व्यवस्था वित्तीय और मानवीय संसाधन की कमी का सामना कर रही है। आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के अनुसार भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के शिक्षा के 6.7 प्रतिशत के न्यूनतम व्यय के लक्ष्य के मुकाबले वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट के अनुमान में जीडीपी का केवल 3.1 प्रतिशत आंवटित किया गया। साल 1968 से हर राष्ट्रीय शिक्षा पॉलिसी के मुताबिक़ भारत की शिक्षा व्यवस्था को जीडीपी का 6 फीसदी खर्च करने की ज़रूरत है। वर्तमान में 54 साल बाद आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के बाद जीडीपी का केवल 3.1 हिस्सा ही बजट के तौर पर आंवटित हो पा रहा है। देश में शिक्षा व्यवस्था के लिए उचित वित्तीय साधन उपलब्ध न होना भी भारत के स्कूलों की व्यवस्था को सबसे पहले प्रभावित करता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मोघपुर गाँव के प्राथमिक विद्यालय में कक्षा पांच में पढ़नेवाली अविका के पिता बताते हैं, “कोरोना ने बच्चों की पढ़ाई पर बहुत बुरा असर डाला है। स्कूल बंद थे उस दौरान ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर जो कुछ भी हुआ है वह खानापूर्ति के अलावा कुछ नहीं था। हम खेती करनेवाले लोग हैं, खुद पढ़े नहीं है लेकिन बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं। अब मेरे सारे बच्चे गाँव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। प्राइवेट स्कूल के मुकाबले सरकारी स्कूल में बच्चों की पढ़ाई वही पुराना तरीका है, मतलब मेरी बड़ी बेटी आज तक कम्प्यूटर के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती है।
शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक देश में एक ओर तो स्कूलों की संख्या में कमी आई है दूसरी और बच्चों के ड्रापआउट नंबर भी बढ़ा है। देश में प्राथमिक विद्यालयों को एक जगह मर्ज किया जा रहा है जिससे कक्षा में भीड़ बढ़ी है और एक अध्यापक की कक्षा में पहले से ज्यादा बच्चों की संख्या हो गई है। ये सारी वजहें मिलकर शिक्षा की गुणवत्ता को भी प्रभावित कर रही हैं।
कुल मिलाकर कहें तो भारतीय शिक्षा व्यवस्था चुनौतियों से घिरी हुई है जिसमें स्कूलों और शिक्षिकों की संख्या घट रही है। प्राथमिक स्तर पर बच्चों के स्कूल में दाखिले में गिरावट भी देखी जा रही है। तथाकथित ‘डिजिटल इंडिया’ में आज भी देश में बड़ी संख्या में स्कूलों में कम्प्यूटर और इंटरनेट की सुविधाएं नहीं हैं। अभी भी देश के सभी स्कूलों तक आधारभूत सुविधाएं नहीं पहुंची है। कई तरह के अभावों और सुविधाओं के नाम पर बदत्तर स्थिति में बच्चे स्कूलों में शिक्षा हासिल कर रहे हैं।