समाजकैंपस तमाम संघर्षों के बीच कैसे अपने कोरकू समुदाय की लड़कियों को शिक्षा से जोड़ रही है गीता

तमाम संघर्षों के बीच कैसे अपने कोरकू समुदाय की लड़कियों को शिक्षा से जोड़ रही है गीता

लेकिन जहां गीता आज अपने समुदाय के लिए एक प्रेरणा है लेकिन अगर यह मौका उसे नहीं मिलता होता तो क्या होता? शायद वह आज अपनी पढ़ाई फिर से शुरू नहीं कर पाती। गीता जैसी न जाने कितनी ही हाशिये की लड़कियां हैं जिन्हें यह मौका कभी नहीं मिलता।

जब मैं पहली बार गीता से मिली थी तो मानो मैं अपने आप को ही देख रही थी। डरी, सहमी, चेहरे पर इतने सवाल लेकिन जुबान से एक शब्द नहीं निकलता था उसके। जब मैं उससे बात करती तो वह सुनती लेकिन जवाब उसके भाई देते या पिता। वह कुछ नहीं बोलती और मन ही मन घबराती, मेरी हिंदी भाषा को समझने की कोशिश करती। लेकिन जवाब के नाम पर गीता से हमेशा खामोशी ही मुझे मिलती। लेकिन आज ऐसा नहीं है, आज गीता जो अपने समुदाय के लिए कर रही है वह किसी प्रेरणा से कम नहीं है। जिस जगह से वह आती है, वहां से निकलना मुश्किल है लेकिन आज भी उसकी कोशिश जारी है।

मध्य प्रदेश के हरदा ज़िले के रहटगांव के पास घाने जंगल में गीता का गांव हैं। गांव का नाम जूनापानी है। घने जगलों के बीच पहाड़ी क्षेत्र में गीता रहती है। वह आदिवासी कोरकू समुदाय से आती है। इस इलाके के लोगों को आज भी पानी के लिए मीलों चलना पड़ता है। यहां बिजली के नाम पर एक चिराग जैसा बल्ब जलता है। अक्सर बिजली लंबे समय तक के लिए गायब रही है। गांव का रास्ता ऊबड़-खाबड़ और और बड़े-बड़े पत्थरों से भरा हुआ है। वहीं, जहां आज की दुनिया में लोगों के लिए इंटरनेट के बिना जीवन संभव नहीं है, वहां इस गांव में फोन करने तक के लिए नेटवर्क नहीं मिलता है।

तो यह गीता के गांव का छोटा सा परिचय है जहां से वह आती है। अब यहां सवाल है कि आखिर ऐसा क्या किया गीता ने अपने गांव के लिए, अपने समुदाय के लिए। तो जिस गांव से वह आती है, जहां किसी बुनियादी सुविधा तक की पहुंच नहीं है, इसके कारण गीता की नौंवी कक्षा के बाद पढ़ाई छूट गई थी। कई कारणों की वजह से गीता की पढ़ाई छूटी जिसके लिए हर वह व्यवस्था ज़िम्मेदार है जिसने उसे मजबूर किया पढ़ाई छोड़ने के लिए। गीता अकेली नहीं है। उसके गांव की लगभग 60 से 70 लड़कियों की पढ़ाई छूटी जिसकी मुख्य वजह थी गाँव से स्कूल की दूरी। इस दूरी के कारण परिवारवाले अपनी लड़कियों को अकेले भेजने से कतराते हैं। उनका लड़की होना इस रास्ते में एक बड़ी रुकावट है।

जिन-जिन कारणों से गीता की पढ़ाई छूटी थी आज वह उन्हीं मुद्दों को लेकर अपने गांव में काम भी कर रही है। साथ ही जिन लड़कियों की पढ़ाई छूट गई है, उन्हें भी वापस शिक्षा से जोड़ने का काम कर रही है। इतना ही नहीं, वह अपनी आदिवासी कोरकू संस्कृति को आगे बढ़ाने की भी कोशिश कर रही है। इसके तहत वह अपनी स्थानीय भाषा में गाने लिखती है।

समुदाय की लड़कियों को पढ़ाती गीता, तस्वीर साभार: हिना

लड़की होना, स्कूल का दूर होना, रास्ते का ठीक न होना, घर के आर्थिक हालत और और हमारी शिक्षा व्यवस्था का भेदभाव जैसे कई कारण इन लड़कियों की पढ़ाई के रास्ते में रुकावट का काम करते हैं। जो लड़कियां स्कूल पहुंच भी जाती हैं वहां उन्हें कई प्रकार के भेदभाव से गुज़रना पड़ता था। कोरकू समुदाय की लड़कियों के साथ सबसे बड़ा था भेदभाव किया जाता है भाषा के आधार पर।

जिस क्षेत्र से गीता और उसके समुदाय की लड़कियां आती हैं उन्हें सिर्फ कोरकू भाषा समझ आती है। लेकिन स्कूल के वातावरण में उन्हें समर्थन का माहौल नहीं मिला। उन्हें हिंदी समझने में मुश्किल होती है। इतना ही नहीं उनकी भाषा की वजह से उनका मज़ाक भी उड़ाया जाता है। हर लड़की जो हाशिये की पहचान से आती है वे ऐसे कई कारणों के चलते अपनी पढ़ाई छोड़ देती है या हम कह सकते हैं उनकी पढ़ाई छुड़वा दी जाती है सालों से चली आ रही इस व्यवस्था के तहत। गीता की पढ़ाई छूटी लेकिन उसकी हिम्मत ने उसे फिर पढ़ने और आगे बढ़ने का मौका दिया जब एक निजी संस्था द्वारा चलाई जा रही एक फेलोशिप में उसका चयन हुआ।

फिर क्या गीता को भी एक उड़ान भरने का मौका मिला। जिन-जिन कारणों से उसकी पढ़ाई छूटी थी आज वह उन्हीं मुद्दों को लेकर अपने गांव में काम भी कर रही है। साथ ही जिन लड़कियों की पढ़ाई छूट गई है, उन्हें भी वापस शिक्षा से जोड़ने का काम कर रही है। फेलोशिप की प्रक्रिया के दौरान गीता को गांव में एक मुद्दा चुनना था जिस पर वह काम कर सके। इसके तहत गीता ने यह मुद्दा लिया कि गांव की जिन लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया है वह उनका समूह बनाकर उन्हें पढ़ाएगी। इसके बाद गीता ने गांव में 20 से अधिक लड़की का समूह बनाया। इतना ही नहीं, उसने गांव की कितनी लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया है उसका भी सर्वे किया। इस सर्वे से यह पता चला कि गांव की करीब 70 से 80 लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया था। समूह बनाने के बाद गीता ने गांव की लड़कियों के साथ सप्ताह में एक से दो बार मीटिंग करनी शुरू की। शुरुआती दिनों में उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। गीता बताती है कि कोई भी लड़की उसकी बात नहीं सुनती थी। उसका मज़ाक भी उड़ाया जाता था। लेकिन गीता ने धीरे-धीरे अपनी फेलोशिप मेंटर की मदद से लड़कियों के साथ मीटिंग शुरू की और इसके बाद शाम या रात को उन्हें पढ़ाने के लिए क्लास भी लगाने लगी।

इतना ही नहीं, वह अपनी आदिवासी कोरकू संस्कृति को आगे बढ़ाने की भी कोशिश कर रही है। इसके तहत वह अपनी स्थानीय भाषा में गाने लिखती है। साथ ही उसका सपना है कि वह आगे चलकर अपने गीतों की एक किताब भी छापे। आज गीता ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ रही है। गीता का जब  फ़ेलोशिप में चयन हुआ था तो उसका सपना था कि वह बस अपनी पढ़ाई पूरी करे। फेमिनिज़म इन इंडिया से बातचीत के दौरान उसने बताया कि उसे गाँव से बाहर निकलना है, कुछ करना है क्योंकि उसे हमेशा डर रहता है कि कहीं उसकी पढ़ाई न छूट जाए। कहीं घरवाले उसकी शादी न करवा दें। गीता का यह भी कहना है कि जब वह फेलोशिप से जुड़ी थी तो उसे हिन्दी तक समझ नहीं आती थी और वह कभी भी इससे पहले गाँव से अकेली बाहर नहीं गई थी। लेकिन अब न सिर्फ वह अपनी पढ़ाई पूरी कर पा रही है बल्कि गाँव की दूसरी लड़कियों की भी मदद कर रही है।

लेकिन जहां गीता आज अपने समुदाय के लिए एक प्रेरणा है लेकिन अगर यह मौका उसे नहीं मिलता होता तो क्या होता? शायद वह आज अपनी पढ़ाई फिर से शुरू नहीं कर पाती। गीता जैसी न जाने कितनी ही हाशिये की लड़कियां हैं जिन्हें यह मौका कभी नहीं मिलता, जिन्हें मिलता भी है उनकी संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। आज भी हाशिये के लोग अपनी जिंदगी में संघर्ष कर रहे हैं और सिर्फ विशेषाधिकार प्राप्त तबका, जाति, वर्ग और जेंडर हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। आख़िर हम जैसे लोग कब तक संघर्ष करते रहेंगे, आख़िर कब तक हम उस हाशिये की आखिरी सीढ़ी पर खड़े रहेंगे?


(नोट: गीता अपने समुदाय में बदलाव लाने के लिए क्या कदम उठा रही है इस बिंदु को जोड़ने के लिए इस लेख को 13.12.2022 को अपडेट किया गया है)

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