तकनीक आज हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग है जिसने हमारे जीवन जीने के तरीकों को बहुत आसान भी कर दिया है। लंबी दूरियों को छोटा कर दिया है। फोन ने दूसरों से संवाद करना आसान कर दिया है। तकनीक ने न केवल हमारे जीने को बेहतर किया है बल्कि उसे सुरक्षा देने में भी एक योगदान दिया है। बात जब सुरक्षा की आती है तो यह मुद्दा लैंगिक आधार पर बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। इस लेख के माध्यम से हम विस्तार रूप से बात करेंगे कि कैसे तकनीक, मोबाइल फोन और इंटरनेट महिला को सुरक्षा देने और किसी भी मुसीबत के समय उनकी मदद का रास्ता निकलता है।
तकनीक और इंटरनेट ने कई स्तर पर लैंगिक आधार पर जीवन को बेहतर करने का काम किया है। यही नहीं, टेक्नॉलजी ने महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा को कम करने और सुरक्षा में सुधार करने में भी बड़ा रोल निभा रही है। स्मार्ट डिवाइस ने शहरी और विशेषाधिकार प्राप्त महिलाओं को और आगे बढ़ाया है। ग्रामीण और छोटे शहरों में भी महिलाओं और लड़कियों को तकनीक के बदौलत घर से बाहर निकलकर काम करने, पढ़ने का हौसला दिया है। हालांकि, यह ज़रिया लैंगिक आधार पर असुरक्षा के माहौल को खत्म करने का कोई समाधान नहीं है ये केवल मुसीबत में मदद का एक आश्वासन है।
वर्तमान समय में हम कई ऐसी डिवाइसेज़ से घिरे हुए हैं जो हमें सुन सकते हैं, जिसने हम संवाद कर सकते हैं। सिरी, गूगल केवल कुछ नाम हैं। इसके अलावा बहुत सी डिवाइस हैं जो हमारी आवाज़ सुनकर ही इंस्ट्रक्शन को फॉलो करती हैं। इन ऐप्स में ‘हेल्प’ शब्द का इस्तेमाल करते ही ये अलर्ट हो जाते हैं और इमरजेंसी सुविधाओं तक पहुंच को आसान कर देते हैं।
मोबाइल ऐप्स की सुरक्षा में भूमिका
सबसे पहले तो मोबाइल फोन या महिला सुरक्षा के लिए बनाए गए ऐप्स ने महिलाओं की पुलिस या अन्य सुरक्षा दल तक पहुंच को आसान बना दिया है। इस तरह के ऐप्स महिलाओं की कई गतिविधियों को संभालने उन्हें पूरा करने में मदद करते हैं। टेक्नॉलजी महिलाओं को सूचनाओं के दौर में आगे बढ़ाने का तो काम करती, उनको सुरक्षा तकनीक की जानकारियों के बारे में अपडेट करने का काम भी करती है। साथ ही महिलाओं और लड़कियों में आत्मविश्वास को भी बढ़ाने का काम करती है।
वीमन सेफ्टी ऐप किस तरह काम करते हैं
सेफ्टी डिवाइस या मोबाइल फोन ऐप पर एक बार डाउनलोड कर खुद को सबसे पहले रजिस्टर्ड करना होता है। उसके बाद कुछ जानकारियां ऐप मांगता है। कुछ ऐप ऐसे भी होते हैं जिन्हें इमरजेंसी के दौरान फोन में जाकर खोलने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। केवल फोन को दो से तीन बार शेक (हिलाने) पर ही वह इमरजेंसी कॉन्टैक्ट को जानकारी पहुंच जाती है। अधिकतर ऐप कम से कम दो इमरजेंसी कॉन्टेक्ट की डिटेल मांगते हैं। इन नंबरों पर जीपीएस के माध्यम से इमरजेंसी में लोकेशन अपडेट कर देते है। यही नहीं ये पुलिस स्टेशन तक में सूचना दे देते हैं। ये ऐप हर समय इंटरनेट के माध्यम से काम करते हैं।
एक आवाज़ और फोन अलर्ट
वर्तमान समय में हम कई ऐसी डिवाइसेज़ से घिरे हुए हैं जो हमें सुन सकते हैं, जिसने हम संवाद कर सकते हैं। सिरी, गूगल केवल कुछ नाम हैं। इसके अलावा बहुत सी डिवाइस हैं जो हमारी आवाज़ सुनकर ही इंस्ट्रक्शन को फॉलो करती हैं। इन ऐप्स में ‘हेल्प’ शब्द का इस्तेमाल करते ही ये अलर्ट हो जाते हैं और इमरजेंसी सुविधाओं तक पहुंच को आसान कर देते हैं। वर्बल कमांड देने पर ऑटोमेटिकली ही पुलिस तक को फोन लग जाता है। टेक्नॉलजी इतनी विकसित हो गई है कि यह आवाज़ के तरीके को पहचान कर भी रिएक्ट करती है। आवाज़ संघर्ष के साथ आ रही है, आवाज़ में किसी तरह की रुकावट या दबाव है या हांफती हुई आवाज़ को पहचानकर तुरंत महिलाओं की सुरक्षा एंजेसी या उनके नज़दीकी लोगों को संदेश देने का काम करती है।
मध्य प्रदेश की रहनेवाली सुरभि एक सोलो ट्रेवलर हैं, वह अक्सर देश के अलग-अलग कोनों में घूमती रहती हैं। उनके पास हर जगह के कई अनुभव हैं। उन्हीं में से एक है कैसे टेक्नॉलजी के सहारे उनकी घुमक्कड़ी आसान हो गई है। कैसे उनके फोन में मौजूद कुछ ऐप्स और इंटरनेट ने उन्हें कई मुसीबतों से बचा लिया और उनकी बेफ्रिक होकर घूमने की आज़ादी को ओर बढ़ाया है।
लोकेशन ट्रैकिंग और परिवार को जानकारी
प्रीति सिंह एक सरकारी कर्मचारी हैं। नौकरी के सिलसिले में वह अक्सर बाहर रहती हैं। टेक्नॉलजी और महिला सुरक्षा के बारे में बात करते हुए उनका कहना है, “मैं काम के चलते बाहर रहती हूं, देर रात में सफ़र करना पड़ता है। भले ही सरकारी कर्मचारी के तौर पर हम खुद काम कर रहे हो लेकिन मन में खुद की सुरक्षा को लेकर बहुत उलझनें चलती रहती हैं। घरवालों से बार-बार बात करके काम के बीच में खुद की जानकारी नहीं दे सकते लेकिन मेरी एक आदत है मैं जब भी फील्ड में होती हूं अपनी लोकेशन परिवार के सदस्यों को भेजती रहती हूं। यह बात मुझे सुकून भी देती है कि उन्हें पता है कि मैं कहां हूं, कहीं कुछ भी होता है तो उन्हें अंदाज़ा रहेगा कि मैं कहां थी।”
लोकेशन शेयरिंग फोन में उपलब्ध एक विकल्प है जिसके ज़रिये आसानी से अपनी लोकेशन घर और दोस्तों में शेयर की जाती है। इसके अलावा कुछ ऐप्स भी होते है जिनमें आपके द्वारा चुने गए कॉन्टैक्ट नंबरों को ऐप एक्टिव करने पर एसएमएस के माध्यम से जानकारी पहुंच जाती है। लोकेशन ऐप से जारी जानकारी के माध्यम से आपके परिवार के सदस्यों को आपकी बाहर हर जगह पर जाने की जानकारी मिल जाती है।
खतरे से आगाह करती तकनीक
मध्य प्रदेश की रहनेवाली सुरभि एक सोलो ट्रेवलर हैं, वह अक्सर देश के अलग-अलग कोनों में घूमती रहती हैं। उनके पास हर जगह के कई अनुभव हैं। उन्हीं में से एक है कैसे टेक्नॉलजी के सहारे उनकी घुमक्कड़ी आसान हो गई है। कैसे उनके फोन में मौजूद कुछ ऐप्स और इंटरनेट ने उन्हें कई मुसीबतों से बचा लिया और उनकी बेफ्रिक होकर घूमने की आज़ादी को ओर बढ़ाया है।
फेमिनिज़म इन इंडिया से बात करते हुए सुरभि कहती हैं, “मुझे घूमने का शौक है। मैं भारत के कई हिस्सों में घूम चुकी हूं। आज का दौर इंटरनेट और तकनीक का दौर है। इसनें एक अकेली महिला को घूमने में देखें तो कई तरीके से बहुत आसान कर दिया है। इंटरनेट तकनीक से पहले से ही जगह के बारे में जानकारी मिल जाती है। मैं अपने फोन में कई ऐसे ऐप्स रखती हूं जो मेरी सुरक्षा करने में मेरी मदद करते है। जिनके ज़रिये मेरे बारे में जानकारी मेरे परिजनों को मिलती रहती है। ऐसे ऐप मेरे फोन में डाउनलोडेड हैं। अगर मैं किसी परेशानी में फंसती हूं तो वह मेरे परिवार और मेरे चुने हुए कॉन्टैक्ट्स को तुरंत अलर्ट मैसेज भेजने का काम करते हैं। साथ ही स्मार्टवॉच पहने पर हेल्थ अपडेट और वेदर अपडेट से भी एक ट्रैवलर के लिए बहुत मदद का काम करते हैं।”
महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई ऐप्स बनाए गए हैं जो बहुत तेजी से किसी भी अप्रिय घटना के समय एसएमएस अलर्ट भेजने का काम करते हैं। द हिंदू बिजनेसलाइन के अनुसार ‘माई सेफ्टी पिन’ एक ऐसा ऐप है जो यात्रा के समय सेफ रूट को चुनने में मदद करता है। किसी असुरक्षित लोकेशन पर पहुंचने पर ये ऐप तुरंत अलर्ट जारी कर देता है और मित्रों और परिवार को यात्रा ट्रैक करने के लिए भी कहता है। यह ऐप पब्लिक ट्रांसपोर्ट, विजिबलिटी और सिक्योरिटी जैसे कई पैमानों पर जगह की सुरक्षा को आंकता है। इसी तरह कुछ ऐसे डिवाइस भी बाजार में मौजूद हैं जिनसे किसी भी आपातकालीन स्थिति में तुरंत अभिभावकों को मैसेज चला जाता है। कुछ डिवाइस ऐसे भी हैं जो फोन से कनेक्ट होकर खतरे की स्थिति में पुलिस व अन्य इमरजेंसी कॉल करने और घटना के समय ऑडिया या वीडियो रिकॉडिंग का भी काम करते हैं।
प्रीति सिंह एक सरकारी कर्मचारी हैं। नौकरी के सिलसिले में वह अक्सर बाहर रहती हैं। टेक्नॉलजी और महिला सुरक्षा के बारे में बात करते हुए उनका कहना है, “मैं काम के चलते बाहर रहती हूं, देर रात में सफ़र करना पड़ता है। घरवालों से बार-बार बात करके काम के बीच में खुद की जानकारी नहीं दे सकते लेकिन मेरी एक आदत है मैं जब भी फील्ड में होती हूं अपनी लोकेशन परिवार के सदस्यों को भेजती रहती हूं। यह बात मुझे सुकून भी देती है कि उन्हें पता है कि मैं कहां हूं, कहीं कुछ भी होता है तो उन्हें अंदाज़ा रहेगा कि मैं कहां थी।”
हिंसा के व्यवहार के खिलाफ़ जानकारी देना
तकनीक वह ज़रिया है जिसके माध्यम से हम हिंसा से बच सकते हैं, उसके व्यवहार से लड़ सकते हैं और यह सब सूचना के माध्यम से आसानी से हो सकता है। भारत जैसे देश में हिंसा के व्यवहार, उसके प्रकार और उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने में भी तकनीक एक बड़ी भूमिका निभा सकती है। इसके ज़रिये महिलाओं को हिंसा के बारे में जानकारी देने के लिए अलावा घर में ही सेल्फ डिफेंस तक की जानकारी भी दी जा सकती है। यूनिसेफ के एक लेख के अनुसार टेक्नॉलजी महिलाओं के ख़िलाफ़ किसी भी तरह की हिंसा और असुरक्षा को खत्म करने के लिए एक टूल की तरह काम कर सकती है। घर हो या बाहर ये महिलाओं को हिंसा के बारे में जानकारी देने का काम करती है। महिलाओं के लिए असुरक्षा की समस्या केवल बाहर या सार्वजनिक जगह से ही नहीं जुड़ी है बल्कि महिलाएं अपने घर में भी बहुत असुरक्षित हैं।
हमारे समाज में महिला सुरक्षा एक बहुत बड़ा मुद्दा है। महिलाएं सड़क से लेकर घर में कई बार लगातार असुरक्षा के घेरे में बनी रहती हैं। इस घेरे को खत्म करने में और सुरक्षा प्रदान करने में तकनीक बड़ी भूमिका निभा सकती है। महज कुछ ऐप महिलाओं में काम करने का हौसला देते हैं और उन्हें मुसीबत में सहायता का आश्वासन देते हैं। तकनीक के सहारे सड़कों को ज्यादा सुरक्षित किया जा सकता है। सड़कों पर नयी टेक्नॉलजी बेस्ड स्ट्रीट लाइट लगाकर अपराधिक गतिविधियों पर नज़र रखी जा सकती है। इस तरह से महिलाओं में डर की भावना भी कम होती है। इस तरह से महिलाओं के ख़िलाफ़ डर के माहौल को खत्म करने और उसे आगे बढ़ने स्मार्ट डिवाइस और ऐप मदद का काम कर रहे हैं।
स्रोतः
1. BBC