इंटरसेक्शनलजेंडर छोटे शहरों और कस्बों की लड़कियों के ऑनलाइन स्पेस में किस तरह पाबंदी लगाती है पितृसत्ता!

छोटे शहरों और कस्बों की लड़कियों के ऑनलाइन स्पेस में किस तरह पाबंदी लगाती है पितृसत्ता!

हमने मध्यप्रदेश के भोपाल शहर में 1200 लड़कियों के साथ इंटरनेट पर महिलाओं के साथ होने वाले पर एक सर्वे किया। इस ऑनलाइन सर्वे में 986 लड़कियों में पाया कि हर एक लड़की किसी न किसी तरह कि असहजता का सामना किया है। आंकड़ों में अलग-अलग नंबरों में स्थितियां निकलकर आई हैं।

आज साइबर ठगी, ट्रोलिंग और सोशल मीडिया पर हिंसा का सबसे ज़्यादा सामना लड़कियां, औरतें और हाशिये के जेंडर करते हैं। समाज के एक वर्ग ने इंटरनेट की आभासी दुनिया को भी महिलाओं और हाशिये के जेंडर से आनेवाले लोगों के लिए बेहद असुरक्षित स्पेस बना दिया है। चंद पैसों, सोशल साट्स पर फॉलोइंग बढ़ाने, उन्हें धमकाने या डराने के लिए महिलाओं, लड़कियों की तस्वीरों, निजी जानकारियों का इस्तेमाल करना आम बात हो गई है। अलग-अलग तरीकों को अपनाकर सोशल मीडिया पर लड़कियों, औरतों की निजता का हनन किया जा रहा है।

लगातार होनेवाली ट्रोलिंग, ऑनलाइन हिंसा आदि ने हाशिये के सभी जेंडर के लोगों के लिए एक असुरक्षा का माहौल इंटरनेट के स्पेस में बना दिया गया है। सोशल मीडिया के ज़रिए लड़कियों को आसानी से टार्गेट किया जाता है। हमारे देश में ऑनलाइन किसी भी तरह की हिंसा और अपराध के निवारण के लिए साइबर कानून हैं लेकिन इसके बारे में जन जागरूकता की अभी भी खासी कमी है। देखा जाए तो सर्वाइवर और अपराधी दोनों ही साइबर संबंधी कानूनों से अवगत नहीं हैं।

बातचीत के दौरान लड़कियों ने बताया कि कई बार फोन पर जान-पहचान के परिचित लोगों द्वारा सोशल मीडिया की गलत हरकत के बारे में वे घर में किसी को नहीं बता पाती हैं क्योंकि फिर ऐसा करने पर फिर उनके फोन चलाने पर ही सबसे पहले सवाल किया जाता है। सबसे पहले यही कहा जाता है कि उन्हें फोन रखने कि ज़रूरत ही क्या है। इससे अलग लड़कों के फोन में क्या है इस पर कभी कोई बात नहीं होती।

ऑनलाइन स्पेस में होनेवाली हिंसा और दुर्व्यवहार के चलते लड़कियों और औरतों को बाहर और परिवार दोंनो ही जगहों से मानसिक प्रताड़ना का भी सामना करना पड़ता है। हाल ही में मध्यप्रदेश के भोपाल शहर में में कपिल नाम के लड़के ने सूरज (बदला हुआ नाम) नाम की लड़की की तस्वीरें इंस्टाग्राम से लेकर उसके ही नाम से एक अलग अकांउट बनाया। इस फेक अकांउट पर इंस्टाग्राम से स्क्रीनशॉट ली गई तस्वीरें अपलोड कर सूरज का मोबाइल नंबर लिखा और साथ में एक भद्दा वाक्य लिखकर, सबकुछ अपलोड कर दिया।

इसके बाद सूरज के पास अलग-अलग लोगों के कॉल और मेसेज आने लगे। यह वाकया बताता है कि सोशल मीडिया पर लड़कियों की पहचान को सार्वजनिक करनेवाले और उसका पोषण करनेवाले दोंनो तरह के लोग मौजूद हैं। लेकिन साथ ही ऐसी घटनाओं के बाद परिवारवालों का रवैया भी कम चौंकानेवाला नहीं होता। इस घटना के बाद सूरज की माँ ने उसे कहा कि ऐसी भी क्या जरूरत है इंस्टाग्राम पर रहने की, उसे वहां से हट जाना चाहिए। मोबाइल से इंस्टाग्राम डिलीट करना ही सूरज के परिवारवालों को बेहतर विकल्प लगा।  

इस घटना के बाद नवंबर के महीने में मैंने ज़ोया, ज़ेबा और सिमरन ने मिलकर एक ऑनलाइन सर्वे किया यह पता लगाने के लिए कि आखिर छोटे शहरों की लड़कियों के लिए ऑनलाइन स्पेस कितना महफूज़ है। हमने मध्यप्रदेश के भोपाल शहर में 1200 लड़कियों के साथ इंटरनेट पर होनेवाले व्यवहार को लेकर यह सर्वे किया। इस ऑनलाइन सर्वे में हमने पाया कि 1200 में से 986 लड़कियों ने किसी न किसी तरह की असहजता का सामना ऑनलाइन प्लैटफॉर्म्स पर किया है। इस सर्वे से हासिल हुए आंकड़ों के आधार पर स्थितियां निकलकर आई हैं। उनमें से कुछ स्थितियां निम्नलिखित हैं:

  • अनजान नंबर से गंदे (पॉर्न) वीडियो भेजे गए।
  • अश्लील जोक और भद्दे कॉमेंट के ज़रिये टारगेट किया गया।
  • तस्वीर लगाकर उसके साथ गलत मेसेज जोड़कर फॉरवर्ड किए गए।
  • नंबर वायरल किए गए।
  • तस्वीरों के स्क्रीनशॉट लिए गए।
  • कुछ लड़कियों ने बताया कि उनकी डिस्प्ले प्रोफाइल से पिक्चर निकालकर दूसरों ने अपनी प्रोफाइल पर लगा ली। इसमें अनजान और कभी-कभी परिचित लोग भी शामिल थे।
  • कुछ दूर के परिचित लोगों ने व्हाट्सएप के माध्यम से गलत तरह की बातें करनी शुरू की/ सीमा लांघने की कोशिश की

सोशल मीडिया में जुड़े रहने पर परिवार रिश्तेदार, दोस्तों द्वारा मानसिक प्रताणनाएं भी छोटे शहरों कस्बों की लड़कियों को ऑनलाइन प्लैटफॉर्म्स पर झेलनी पड़ती हैं। हमने अलग-अलग लड़कियों से जाना जिसमें रूपा (बदला हुआ नाम) ने बताया, “मुझे देर रात तक ऑनलाइन रहने पर अपने ही बॉयफ्रेंड से इतनी अश्लील बात सुननी पड़ीं कि मुझे उससे रिश्ता भी खत्म करना पड़ा। कई बार जिस तरह से रिश्तेदार और परिचित लोग बार-बार परिवारवालों के सामने हमारे सोशल मीडिया के इस्तेमाल के बारे में ज़िक्र करते हैं, इस डर से हम अपने परिचित लोगों को ब्लॉक ही कर देते हैं।”

सर्वे में शामिल कुछ लड़कियों ने बताया कि उन्होंने फेसबुक-इंस्टाग्राम जैसी सोशल मीडिया साइट्स पर अकाउंट तो बनाए हैं पर कभी अपनी असली तस्वीर नहीं लगाई। इस पर कुछ विवाद न बन जाए इस डर से कभी कोई पोस्ट नहीं डाली। साथ ही कई लड़कियों ने इस बात का भी ज़िक्र किया कि उनके घर में परिवार के लोग भी उनके मोबाइल की निगरानी करते हैं। यहां तक कि रिश्तेदारों के लड़के भी ढूंढ लेते हैं कि वे कहीं इंस्टाग्राम या फेसबुक पर तो नहीं हैं। अगर गलती से उनके अकाउंट मिल जाते हैं तो वे परिवार के लोगों को दिखा देते हैं कि आपकी लड़की अपनी तस्वीरें सोशल मीडिया पर लगा रही है। वे कहते हैं कि हमने तो बता दिया ताकि वहां (सोशल मीडिया) आपकी बेटी के साथ कुछ गलत न घट जाए।

सबसे अधिक लड़कियों ने बताया कि कई बार फोन पर जान-पहचान के परिचित लोगों द्वारा सोशल मीडिया की गलत हरकत को वे घर में किसी को बता नहीं पाते हैं और उनके फोन चलाने पर ही सबसे पहले सवाल किया जाता है। सबसे पहले यही कहा जाता है कि फोन रखने कि जरूरत ही क्या है। इससे अलग लड़कों के फोन में क्या है इस पर कभी कोई बात नहीं होती। वे किस से बात कर रहे हैं या वे फोन में क्या देख रहे हैं।

सोशल मीडिया में जुड़े रहने पर परिवार रिश्तेदार, दोस्तों द्वारा मानसिक प्रताणनाएं भी छोटे शहरों कस्बों की लड़कियों को ऑनलाइन प्लैटफॉर्म्स पर झेलनी पड़ती हैं। हमने अलग-अलग लड़कियों से जाना जिसमें रूपा (बदला हुआ नाम) ने बताया, “मुझे देर रात तक ऑनलाइन रहने पर अपने ही बॉयफ्रेंड से इतनी अश्लील बात सुननी पड़ीं कि मुझे उससे रिश्ता भी खत्म करना पड़ा। कई बार जिस तरह से रिश्तेदार और परिचित लोग हमारे बार-बार परिवारवालों के हमारे सोशल मीडिया के इस्तेमाल के बारे में ज़िक्र करते हैं, इस डर से हम अपने परिचित लोगों को ब्लॉक ही कर देते हैं।”

कई लड़कियों का कहना था, “जो भाई, रिश्तेदार के लड़के हमें सोशल मीडिया पर होने से रोकते हैं वे खुद शायद दूसरी लड़कियों को ऑनलाइन तंग करते हो। परिवार, रिश्तेदार, दोस्त सभी के लिए लड़कियों पर सोशल मीडिया पर निगरानी करना आसान हो गया। कभी फोन बिज़ी आया तो सबको बताना पड़ता है कि हम किससे बात कर रहे थे, फोन कहां बिज़ी था। चाहे परिवार या फिर दोस्त कितने भी करीबी हो ज्यादा देर फोन बिज़ी रहा है तो वे उस बात का गलत ही मतलब निकालते हैं। अगर परिचित कोई लड़का हमारी फोटो इंस्टा या व्हाट्सएप की डिस्प्ले प्रोफाइल या फिर स्टेटस से निकाल लेता है तो वह उतना चिंतित नहीं होता जितना हम रहते हैं, सब लड़कों को विश्वास है कि यदि यह शिकायत करेगी तो इसका ही फोन रखना बंद करवा दिया जाएगा। शिकायत करने पर महिलाओं को ही विक्टिम ब्लेमिंग का सामना करना पड़ता है।”

इस तरह हमने सर्वे में पाया कि ऑनलाइन स्पेस लड़कियों के लिए कितना असहज होता जा रहा है। रूढ़िवादी पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले लोग आभासी दुनिया में भी उन पर पाबंदियां लगा रहे हैं। उनके साथ गलत व्यवहार करके उनकी निजता का हनन तक कर रहे हैं। सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि शिकायत करने वाली लड़की को ही इसका बुरा परिणाम सामना करने की ज्यादा संभावना है जिस वजह से वे शिकायत करने से भी बचती है। इससे अलग पुरुषवादी सोच महिलाओं और लड़कियों पर पाबंदी रखती है। सोशल मीडिया स्वतंत्रता देता है कि हर वर्ग, लिंग के लोग वहां मौजूद रहे लेकिन पुरुष को यहां भी महिलाओं की स्वतंत्रता पसंद नहीं है। ट्रोल, अश्लील मैसेज, ऑनलाइन स्टॉक करके उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है।

इस ट्रोल युग में आम से लेकर ख़ास महिलाओं को इस तरह का व्यवहार लगातार करना पड़ रहा है। महिलाओं और लड़कियों में भी जब आम लड़कियों की बात आती है तो इसमें उनके सार ऑनलाइन बुरा व्यवहार करने वाले या बंदिश लगाने वाली परिचित भी उतने ही शामिल है। उनके सोशल मीडिया पर मौजूदगी को हव्वा बनाकर पेश किया जाता है। चेतावनियां देकर उन्हें वहां से हटकार सूचना के युग में उन्हें पीछे धकेला जाता है। साथ ही सोशल मीडिया चलाने वाली लड़कियों की मोरल पुलिसिंग होती है। इन हालातों में सोशल मीडिया लड़कियों और महिलाओं के लिए जोखिम से कम नहीं है।


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