स्कूल, हम सब के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वहां के माहौल में मिली शिक्षा हमें अलग-अलग पहलूओं से रूबरू कराती है। हमारे सामाजीकरण की नींव रखती है। यही वह एंजेसी है जो हमारे व्यक्तित्व को बनाने का काम करती है इसलिए स्कूल का माहौल जितना समावेशी, संवेदनशील, व्यापक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला होगा बच्चों की सोच का दायरा उतना ही बढ़ेगा। लेकिन आज के दौर में भी हमारी शिक्षा का आकार वर्षों पहले बने एक तय सीमित खांचे में के अनुसार ही बना हुआ है। इस वजह से इस आकार में समावेशी, वैज्ञानिक सोच की कमी बनी हुई है। समय की ज़रूरत को देखते हुए अगर इस दिशा में अलग कुछ कदम उठाए भी जा रहे हैं तो उनमें भारी खामियां देखने को मिलती है, विरोध का सामना करना पड़ता है या फिर प्रयासों को ठंडे बस्ते में डाल दिया जा रहा है। इसी में एक मुद्दा है ट्रांसजेंडर छात्र और हमारी स्कूली शिक्षा का ढांचा।
स्कूलों में ट्रांसजेंडर बच्चों को शामिल करने के लिए राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के बनाए दस्तावेज के हटाए जाने के एक साल बाद एनसीईआरटी ने एक नया मॉड्यूल तैयार किया है। 16 सदस्यों की कमेटी ने “इंटीग्रेटिंग ट्रांसजेंडर कंसर्न्स इन स्कूलिंग प्रोसेसेस” के टाइटल से जारी किया है। इस मसौदे में ट्रेनिंग मॉड्यूल में ट्रांसजेंडर को लेकर चिंताएं, स्कूलों में समावेशी वातावरण बनाने के लिए टीचिंग के तरीके विकसित करने को लेकर सुझाव दिए गए है। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ख़बर के अनुसार नैशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) के जेंडर न्यूट्रल शौचालय और अन्य सुझावों पर आपत्ति के बाद एनसीईआरटी ने हटा लिया था। नया मैनुअल पुराने दस्तावेज से उलट है इसमें उन सभी शब्दों और टर्म से बचा गया है जिस पर आपत्ति उठाई गई थी बल्कि जाति व्यवस्था और पितृसत्ता के संदर्भों पर भी बात करने से बचा गया है जिन्हें पिछले मैनुअल में उजागर किया गया था।
क्या है मैनुअल बनाने का उद्देश्य
भारतीय समाज में जेंडर को एक सीमित दृष्टिकोण से देखा जाता है जिस वजह से महिला-पुरुष से इतर पहचान रखने वाले लोगों को भेदभाव और दुर्रव्यवहार का सामना करना पड़ता है। शिक्षा के माध्यम से लोगों में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए लोगों की सोच को बदलने और उन्हें जागरूक करने के लिए यह मैनुअल बनाया गया। स्कूलों को ट्रांसजेंडर बच्चों के लिए अधिक समावेशी और संवेदनशील बनाने की रणनीतियों के तहत इस मैनुअल में विस्तार से इस विषय में बात की गई। हाल में जारी मैनुअल में ट्रांसजेंडर बच्चों के लिए स्कूल में मौजूद चुनौतियों, उनके ख़िलाफ़ हिंसा, स्कूल का ऐसे मामलों में अप्रोच और सुरक्षित माहौल को बनाने के लिए सुझाव दिए गए है।
नया माड्यूल ट्रांस विद्यार्थियों के संघर्ष को उजागर करता है और लगातार वर्कशॉप, आउटरीच प्रोग्राम, जेंडर न्यूट्रल यूनिफॉर्म जैसे सुझावों पर जोर देता है। लेकिन यह उनके अनुकूल वातावरण बनाने के लिए काफी नहीं है। ऑउटलुक में प्रकाशित ख़बर के अनुसार ड्राफ्ट में कहा गया है कि कक्षा छठी और उसके बाद के छात्रों की अक्सर अलग-अलग कपड़ों की प्राथमिकताएं होती हैं जिसमें स्कूल की यूनिफॉर्म भी शामिल है। वे एक विशेष तरह की यूनिफॉर्म में सहज नहीं हो पाते हैं, इस वजह से बहुत से स्कूलों में पैंट और शर्ट पहनते हैं जो न केवल आरामदायक होता है बल्कि उभयलिंगी भी है।
केरल डेवलेपमेंट सोसायटी के द्वारा दिल्ली और उत्तर प्रदेश में हुए सर्वे पर आधारित अध्ययन में कहा गया है कि 28 प्रतिशत ट्रांसजेंडर छात्रों को स्कूल स्तर पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। 52 प्रतिशत छात्रों को उनके सहपाठियों द्वारा परेशान किया गया। यही नहीं 12 प्रतिशत छात्रों ने माना कि उनके अध्यापक ने उनका उत्पीड़न किया। 13 प्रतिशत छात्रों ने यौन उत्पीड़न की बात को भी कबूला है। 62 प्रतिशत ने माना कि उनका मौखिक रूप से उत्पीड़न हुआ है।
ट्रांस बच्चों और विद्यार्थियों के द्वारा अनुभव की जाने वाले कई चुनौतियों को रेखांकित करते हुए, ड्राफ्ट में भावात्मक, शारीरिक और व्यवहारिक ट्रामा पर बात की गई है। इसमें बच्चों की खुद की सेक्सुलिटी, वॉशरूम और यूनिफॉर्म, बुलिंग करना, यौन शोषण और छेड़छाड़ और स्कूल प्ले में एक किरदार का चयन करना और उसे निभाना आदि है। इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए और लैंगिक विविधता पर ध्यान देने के लिए पैरेंट-टीचर मीटिंग आउटरीच कार्यक्रम को करने की सिफारिश दी गई है। इतना ही नहीं स्कूलों को सेल्फ रेग्युलेटिंग के लिए भी वर्कशॉप करने के लिए कहा गया है। साथ ही एकेडमिक, नॉन एकेडमिक और हाउसकीपिंग स्टॉफ की नियुक्ति में लैंगिक भेदभाव का पालन नहीं किया जाएगा। एनसीईआरटी का नया मैनुअल ट्रांसजेंडर छात्रों को स्कूल में होने वाली परेशानियों पर केंद्रित है।
एनसीईआरटी पहले भी जारी कर चुका है मैनुअल
ट्रांसजेंडर बच्चों के लिए समावेशी शिक्षा और माहौल बनाने के लिए एनसीईआरटी ने साल 2021 में भी एक मैनुअल जारी किया था लेकिन आलोचाओं के बाद इसे हटा लिया गया था। एनसीपीसीआर की आपत्तियों के बाद इस मैनुअल को हटाया गया था। पुराने मसौदे के लिए ये तक कहा गया था कि ये सिफारिशें उनके बच्चों की जेंडर वास्तविकताओं और बुनियादी ज़रूरतों के अनुरूप नहीं थीं। वहीं अगर नये डॉफ्ट की बात करें तो इसमें जाति और पितृसत्ता के मुद्दे पर चुप्पी रखी गई है। रूढ़िवादी, कम जानकारी के साथ ट्रांसजेंडर वर्ग के छात्रों की चुनौतियों को व्यापक तरीके से समाधान निकालने से बचा गया है। इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार नई रिपोर्ट में ऐतिहासिक तौर पर भारत में लैंगिक अभिव्यक्ति की बात तो कही गई है लेकिन इसे कलंक या दोष बनाने वाले जातीय और पितृसत्ता की भूमिका पर सवाल नहीं करती है। जबकि पिछले मैनुअल में कहा गया था कि वैदिक काल के बाद से उपमहाद्वीप में अलग-अलग लैंगिक पहचान रखने वाले लोगों को सामाजिक रूप से स्वीकार करने के प्रमाण है। वहीं पिछले मैनुअल में जेंडर नॉन कन्फ़र्मिंग की सभी कैटेगिरी के बच्चों की ज़रूरतों को व्यापक तौर पर बात की गई थी। नई रिपोर्ट में कहा गया है कि विविध लैंगिकता और यौन झुकाव वाले एलजीबीटीक्यूएआई+ समुदाय के लोगों को मान्यता है। मौजूदा मोड्यूल विशेषतौर पर जन्म से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों पर ध्यान केंद्रित करता दिखता है।
परिणामस्वरूप इसमें टीचर के लिए उन बच्चों से निपटने के बारे में कोई जानकारी नहीं है जो ट्रांसजेंडर नहीं हो सकते हैं लेकिन ‘जेंडर डिस्फोरिया’ के लक्षण दिखाते है, जो किसी व्यक्ति के जन्म के समय शारीरिक या जिस जेंडर से उनकी पहचान होती हैं, के बीच संघर्ष की वजह से मनोवैज्ञानिक खतरे को दिखाता है। वहीं पुरानी रिपोर्ट में ‘एजेंडर कैटेगरी’ जिसमें न महिला और न पुरुष के रूप में खुद की पहचान के तौर पर वर्णन किया गया था।
ट्रांसजेंडर बच्चों के लिए समावेशी शिक्षा और माहौल बनाने के लिए एनसीईआरटी ने साल 2021 में भी एक मैनुअल जारी किया था लेकिन आलोचाओं के बाद इसे हटा लिया गया था। एनसीपीसीआर की आपत्तियों के बाद इस मैनुअल को हटाया गया था। पुराने मसौदे के लिए ये तक कहा गया था कि ये सिफारिशें उनके बच्चों की जेंडर वास्तविकताओं और बुनियादी ज़रूरतों के अनुरूप नहीं थीं।
भारतीय शिक्षा व्यवस्था में ट्रांसजेंडर बच्चों का स्पेस
भारत में ट्रांसजेंडर बच्चों में शैक्षिक दर बहुत कम है। आज भी बड़ी संख्या में बच्चों को बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती हैं। न्यूज़क्लिक में प्रकाशित केरल डेवलेपमेंट सोसायटी के द्वारा दिल्ली और उत्तर प्रदेश में हुए सर्वे पर आधारित अध्ययन में कहा गया है कि 28 प्रतिशत ट्रांसजेंडर छात्रों को स्कूल स्तर पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। 52 प्रतिशत छात्रों को उनके सहपाठियों द्वारा परेशान किया गया। यही नहीं 12 प्रतिशत छात्रों ने माना कि उनके अध्यापक ने उनका उत्पीड़न किया। 13 प्रतिशत छात्रों ने यौन उत्पीड़न की बात को भी कबूला है। 62 प्रतिशत ने माना कि उनका मौखिक रूप से उत्पीड़न हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार ट्रांस समुदाय के छात्रों के पढ़ाई जारी न रखने के ये प्रमुख कारण है और शिक्षण संस्थानों के कर्मचारी और शिक्षक ट्रांसजेंडर मुद्दों से पूरी तरह अनजान है। सीएलपीआर में छपी ख़बर के अनुसार 2011 जनगणना के अनुसार ट्रांसजेंडर लोगों में कुल शैक्षिक दर 56.1 प्रतिशत है। ट्रांसजेंडर छात्रों में ड्रॉपआउट दर और कम साक्षरता के कई कारण है लेकिन एक महत्वपूर्ण पहलू स्कूल और विश्वविद्यालयों में समावेशी वातावरण की कमी होना भी है।
ट्रांसजेंडर बच्चों के द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियां
हर बच्चा सम्मान के साथ जीने और समान व्यवहार का हकदार है लेकिन हमारे समाज में रूढ़िवाद और पूर्वाग्रहों के चलते ट्रांसजेंडर लोगों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। जो बच्चे खुद को ट्रांसजेंडर के तौर पर पहचानते हैं उन्हें बहिष्कृत किया जाता है। उन्हें हीनता का महसूस कराया जाता है। जेंडर और सेक्स के तय मॉडल की वजह से अलग लैंगिक पहचान रखने वाले लोगों को स्वीकृत नहीं किया जाता है। स्कूलों में केवल लड़की या लड़के की लैंगिक पहचान वाली यूनिफॉर्म होती है जिस वजह से केवल दो तरह की लैंगिक पहचान की स्वीकृति दिखती है। ट्रांसजेंडर बच्चों के लिए कोई विकल्प या संशोलन उपलब्ध नहीं है। तय बाइनरी से अलग सोच बनाने के लिए जेंडर न्यूट्रल यूनिफॉर्म होना बहुत ज़रूरी है। इतना ही नहीं संस्था के बिल्डिंग और अन्य ढांचे की वजह से भी ट्रांसजेंडर बच्चों तक बुनियादी ज़रूरतों की पहुंच कठिन हो जाती है।
भारतीय शिक्षा के ढ़ांचे को समावेशी बनाने के लिए कुछ कदम लिए जाए रहे हैं। जेंडर न्यूट्रल एजुकेशन स्ट्रक्चर के लिए कई राज्यों में फैसले लिये गए है। लेकिन साथ संस्कृति, परंपराओं के नाम पर ऐसे फैसलों का विरोध भी किया जा रहा है। राजनीति नफा-नुकसान के बाद सरकारे प्रगतिशील कदमों से पीछे हट रही है। एनसीआरटीई का मैनुअल इसका इकलौता उदाहरण नहीं है। केरल में जेंडर न्यूट्रल एजुकेशन सिस्टम बनाने के लिए कई फैसलों को राजनीतिक विरोध के चलते ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब हमें समझना होगा कि एक समावेशी और सबके लिए सुरक्षित समाज बनाने के लिए हमें शिक्षा के माध्यम से महत्वपूर्ण कदम उठाने ही होंगे। व्यापक यौनिकता पर आधारित शिक्षा न केवल बच्चों का हक है बल्कि इसके बारे में जागरूकता और संवेदनशील व्यवहार ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के उत्थान के लिए भी ज़रूरी है।