समाजमीडिया वॉच परिचित द्वारा यौन हिंसा/लैंगिक हिंसा के मामले में मीडिया का पितृसत्तात्मक रवैया| #GBVInMedia

परिचित द्वारा यौन हिंसा/लैंगिक हिंसा के मामले में मीडिया का पितृसत्तात्मक रवैया| #GBVInMedia

जब बात जानकारों, परिवार के सदस्यों द्वारा हिंसा की गई हिंसा से जुड़ी होती है तो यहां मीडिया का पितृसत्तात्मक नज़रिया दिखाई देता है। घर में होनेवाली लैंगिक हिंसा की घटनाओं को न सिर्फ असंवेदनशीलता के साथ बल्कि सनसनखेज़ तरीके से पेश किया जाता है। इन घटनाओं को लैंगिक हिंसा से अधिक ‘रिश्तों की मर्यादा’ को खत्म करने के नज़रिये से कवर किया जाता है।

एडिटर्स नोट: यह लेख हमारे अभियान #GBVInMedia के तहत प्रकाशित किया गया है। यह लेख हमारी रिपोर्ट लैंगिक हिंसा और हिंदी मीडिया की कवरेजका ही एक हिस्सा है। इस अभियान के अंतर्गत हम अपनी रिपोर्ट में शामिल ज़रूरी विषयों को लेख, पोस्टर्स और वीडियोज़ के ज़रिये पहुंचाने का काम करेंगे।

नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की साल 2021 की रिपोर्ट बताती है कि बीते साल महिलाओं के ख़िलाफ़ होनेवाले बलात्कार के 96.5% मामलों में आरोपी उनके जानकार थे। आंकड़ों के मुताबिक महिला के पति या पार्टनर द्वारा किए गए बलात्कार के मामलों की संख्या भी पहले से बढ़ी है। आंकड़े और रिपोर्ट्स बताती हैं कि लैंगिक हिंसा से ज्यादातर मामलों में आरोपी सर्वाइवर के जानकार होते हैं। लेकिन जब बात जानकारों, परिवार के सदस्यों द्वारा हिंसा की गई हिंसा से जुड़ी होती है तो यहां मीडिया का पितृसत्तात्मक नज़रिया दिखाई देता है। घर में होनेवाली लैंगिक हिंसा की घटनाओं को न सिर्फ असंवेदनशीलता के साथ बल्कि सनसनखेज़ तरीके से पेश किया जाता है। इन घटनाओं को लैंगिक हिंसा से अधिक ‘रिश्तों की मर्यादा’ को खत्म करने के नज़रिये से कवर किया जाता है।

स्रोत: दैनिक जागरण

दैनिक जागरण में यौन हिंसा से जुड़ी इस ख़बर में बलात्कार, यौन हिंसा या रेप जैसे शब्दों की जगह गंदा काम जैसे शब्द का इस्तेमाल किया गया है। यह शब्द अपने आप में यौन हिंसा जैसे अपराध की गंभीरता को कम कर रहा है। साथ ही इस ख़बर में हिंसा से अधिक इस बात को प्राथमिकता दी गई है कि सर्वाइवर के मौसा ने रिश्ते को कलंकित किया है। ख़बर में इस बिंदु को प्रमुखता से दिखाए जाने के कारण यह पाठकों का ध्यान लैंगिक हिंसा से अधिक इस बात की ओर ले जाता है कि इस घटना से मौसा और भतीजी जैसे रिश्ते की मर्यादा को ठेस पहुंची है। यहां अपराध से अधिक नैतिकता और मर्यादा जैसी भावनाओं को अहमियत दी गई है। यहां यौन हिंसा को एक अपराध से अधिक पारिवारिक मामले की तरह रिपोर्ट किया गया है।

नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की साल 2021 की रिपोर्ट बताती है कि बीते साल महिलाओं के ख़िलाफ़ होनेवाले बलात्कार के 96.5% मामलों में आरोपी उनके जानकार थे। आंकड़ों के मुताबिक महिला के पति या पार्टनर द्वारा किए गए बलात्कार के मामलों की संख्या भी पहले से बढ़ी है। आंकड़े और रिपोर्ट्स बताती हैं कि लैंगिक हिंसा से ज्यादातर मामलों में आरोपी सर्वाइवर के जानकार होते हैं।

स्रोत: एनबीटी

एनबीटी में रिश्तेदार द्वारा एक नाबालिग के साथ यौन हिंसा की इस ख़बर को देखिए। इसमें कई स्तरों पर असंवेदनशीलता और पूर्वाग्रह का परिचय दिया गया है। ख़बर की हेडलाइन को सनसनीखेज़ बनाने के लिए सर्वाइवर ने फोन पर जो पुलिस को कहा उसे इस्तेमाल किया गया है जिसकी ज़रूरत नहीं थी।

ख़बर में इस्तेमाल की गई तस्वीर सर्वाइवर को बेहद कमज़ोर और असहाय दिखा रही है और अपराधी को मज़बूत। ख़बर की पहली लाइन में ही रिश्तों को शर्मसार करने जैसी बात कही गई है। यहां अपराध से अधिक सर्वाइर का दोषी से रिश्ता क्या था इसे प्रमुखता दी गई है।

जब बात जानकारों, परिवार के सदस्यों द्वारा हिंसा की गई हिंसा से जुड़ी होती है तो यहां मीडिया का पितृसत्तात्मक नज़रिया दिखाई देता है। घर में होनेवाली लैंगिक हिंसा की घटनाओं को न सिर्फ असंवेदनशीलता के साथ बल्कि सनसनखेज़ तरीके से पेश किया जाता है। इन घटनाओं को लैंगिक हिंसा से अधिक ‘रिश्तों की मर्यादा’ को खत्म करने के नज़रिये से कवर किया जाता है।

साथ ही ख़बर में सगे चाचा और चाचा शब्द का इस्तेमाल कई बार किया गया है। हालांकि ख़बर में आरोपी शब्द का इस्तेमाल भी किया गया है लेकिन सिर्फ आरोपी शब्द का इस्तेमाल किया जाना एक बेहतर विकल्प होता। जानकारों और परिजनों द्वारा की जानेवाली लैंगिक हिंसा और यौन हिंसा से जुड़े मामलों में इस तरह की शब्दावली और सोच अपराध से अधिक रिश्तों की तथाकथित मर्यादा को वरीयता दी जाती है।


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