इंटरसेक्शनलग्रामीण भारत अवध के गाँवों में नालियों और रास्तों के लिए मचा संग्राम, एक सामंती समाज में असमानता से बना जर्जर ढांचा

अवध के गाँवों में नालियों और रास्तों के लिए मचा संग्राम, एक सामंती समाज में असमानता से बना जर्जर ढांचा

अगर अवध के गाँवों को ध्यान से देखेगें तो पाएंगे कि यहां स्त्रियां और शोषित-वंचित जातियों के लोग अपनी इच्छा से रहना नहीं चाहते उसका सीधा सा कारण है दोनों को वे चीजें नहीं मिल पाती गाँव में जो एक मनुष्य की सामान्य इच्छा और जरूरत होती है। वे चीज़ें हैं-आज़ादी और सम्मान।

जिसने जीवनभर घर बनाया उसके पास अपना घर नहीं हो और जो सुबह ही फावड़ा लेकर सड़क बनाने के निकलता हो उसके घर तक कोई सड़क नहीं जाती हो तो उस समाज, देश को आप कैसे देखेगें। एक समाज जो छोटे, बड़े वर्ग और जातियों से बना है, जो लैंगिक भेदभाव और असमानता से चल रहा है वह देश किसी के लिए आदर्श हो सकता है लेकिन जो शोषित और वंचित हैं उनके लिए आदर्श कैसे हो सकता है। अगर अवध के गाँवों को ध्यान से देखेगें तो पाएंगे कि यहां स्त्रियां और शोषित-वंचित जातियों के लोग अपनी इच्छा से रहना नहीं चाहते उसका सीधा सा कारण है दोनों को वे चीजें नहीं मिल पाती गाँव में जो एक मनुष्य की सामान्य इच्छा और जरूरत होती हैं। वे चीज़ें हैं-आज़ादी और सम्मान।

जब हम यहाँ के गांवों का अध्ययन करेगे तो देखेगें कि किसी भी वर्ग की स्त्री गाँव में नहीं रहना चाहती क्योंकि छोटी से छोटी आज़ादी के लिए भी उसे तरसना पड़ता है। यहां आजादी से अर्थ बहुत मामूली चीजों से है। मसलन कपड़े पहनने और बाहर निकलने की आजादी। इस स्थिति में हाशिये की जातियां और स्त्री वहीं खड़े हैं। दोनों की स्थितियों में कुछ अंतर हो सकता है लेकिन सामान्य मनुष्य की जरूरतों में दोनों अपना पूर्ण अधिकार ज्यादातर नहीं पाते। अगर आप गांवों में रास्ते और नालियों की निकासी को लेकर होनेवाले झगड़े और विवाद को देखेंगे तो पाएंगे कि ये सीधे-सीधे एक प्रभुत्वशाली विचार के वर्चस्व का हठ मात्र है। जो समाज अपने ही भाई, परिवार, कुटुंब का रास्ता रोकना चाहता है उसके लिए तमाम कुचक्र रचता है तो यह एक उपेक्षित और शोषित वर्ग को क्या अधिकार देना चाहेंगे। 

अवध के गाँवों में अगर आप आ रहे हैं किसी कार, ऑटो या रिक्शे से तो हो सकता है गाँव के बाहर के रोड पर आपको रोक दिया जाए। आपको अपने दुवार से पैदल जाने के लिए भी रोक सकते हैं। अगर झगड़ा कुछ पुराना हुआ तो बस आपके वाहन को न जाने देंगे या यह भी हो सकता है कि रास्ता ही बंद कर दिया गया हो जिससे आप किसी अमुक के घर तक जाना चाहते हो। ऐसी स्थितियों यह भी हो सकता है कि आप भटक-भटक कर गाँव में कोई और रास्ता खोजें नहीं तो किसी तरह पैदल जाने का जुगाड़ हो। इसमें यह भी हो सकता है कि सबको इन दिक्कतों का सामना न करना पड़े। जिनके घर पूंजी है या घर उनका गाँव के बाहर की सड़क से लगा है तो उनकी सुविधाएं अलग हैं। लेकिन ऐसे कितने घर होते हैं गाँव में बस कुछ गिने -चुने।

गाँव आज भी हर घर के लिए रास्ते और नालियों के लिए कोई व्यवस्थित प्रारूप नहीं बना है। रास्ता सबको चाहिए, नाली सबको चाहिए जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था यहां अभी दिख नहीं रही है। यह सिर्फ एक गाँव की बात नहीं है। यहां सारे गांवों का यही हाल है। यहां गाँव में जैसे हर कोई हर किसी का रास्ता रोकना चाहता है और इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार है। यहां ऐसे बेहद कम लोग मिलेंगे तो जो इस बात से सहमत होंगे कि रास्ता मिलना हर नागरिक का अधिकार है।

आप यहां के अखबार उठाकर देख लीजिए, रास्ते के लिए विवाद, मारपीट यहां तक कि मौत, हत्या की खबरें भी आए दिन छपती रहती हैं। इन खबरों की अमूमन हेडिंग होती है- नालियों के लिए दो समुदाय में मारपीट, रास्ते के लिए पट्टीदारों में कलह, बरसात के पानी के बहने को लेकर विवाद। अब ये खबरें बस एक झलक मात्र हैं। आप जब गाँव में रहकर देखेंगे तो पाएंगे कि इन झगड़ों का रूप कितना भयंकर होता है। बेहद अश्लील गालियां, लाठी डंडे और जलन की एक बहुत बड़ी दुनिया है गाँव में। यहां रहने का जी नहीं करता क्योंकि कोई भी संवेदनशील मन यहां की कुंठा से अपने आपको बचा नहीं सकता। इतना जातिवाद, इतना लैंगिक भेदभाव और इतने तरह की हिंसा की कभी-कभी दम घुटने लगता है इस परिवेश में। 

यह सिर्फ एक गाँव की बात नहीं है। यहां सारे गांवों का यही हाल है। यहां गाँव में जैसे हर कोई हर किसी का रास्ता रोकना चाहता है और इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार है। यहां ऐसे बेहद कम लोग मिलेंगे तो जो इस बात से सहमत होंगे कि रास्ता मिलना हर नागरिक का अधिकार है।

यहां कोई किसी की राह जीवनभर के लिए महज इसलिए रोक देता है कि वह उसे नीचा दिखाना चाहता है। गाँव की अपेक्षा मुझे शहर इस मामले में ज्यादा सहज लगता है वहां कम से कम हर झोपड़े तक जाने के लिए रास्ता है, बिजली के तार को ले जाने के लिए गाँव की तरह झगड़ा नहीं है। बारिश होने पर हमारी तरफ तुम्हारा पानी बहकर क्यों आ गया, यह हर घर का झगड़ा नहीं है। ऐसा नहीं है कि गाँव आज ऐसे बन गया है। गाँव हमेशा से यही था। अपने आसपास के लोगों के रहन-सहन में उनकी दुनिया सीमित थी। परिवार संयुक्त होते थे तो रास्ते और नालियों के तब इतने विवाद नहीं थे। आज आप अगर गाँव में रह रहे हैं तो बारिश के पानी के लिए, बिजली के तार के लिए, नाली की निकासी के लिए और अपने घर तक के रास्ते के लिए लंबा लड़ाई लड़नी होगी ।

जब इन लडाइयों की बात कर रहे हैं तो ज़ाहिर सी बात है कि गाँव में रहने के लिए ठीक-ठाक वर्ग और पुरुष होने के विशेषाधिकार के साथ जो लड़ाई कठिन लगती है तो स्त्रियों और दलितों के लिए ये लड़ाई कितनी कठिन हो सकती है। जिस समाज ने उनके सामान्य मनुष्य होने की स्वतंत्रता छीनी है वह भला उन्हें क्या ही मुक्त करेगा। स्त्रियों का गाँव में अपने हक और बराबरी के लिए बोलना ही समाज के ठेकेदारों के लिए गुनाह है। किसी पंचायत में आज तक कोई भी स्त्री पंच नहीं होती आप गाँव में रास्ते के लिए नाली के लिए पंचायत बुलाइए, सब पुरुष पंच होते हैं। जहां पीड़ित स्त्री का अपनी बात कहना ही मुश्किल होता है तो वहां भला क्या न्याय होगा। 

अपने आसपास के लोगों के रहन-सहन में उनकी दुनिया सीमित थी। परिवार संयुक्त होते थे तो रास्ते और नालियों के तब इतने विवाद नहीं थे। आज आप अगर गाँव में रह रहे हैं तो बारिश के पानी के लिए, बिजली के तार के लिए, नाली की निकासी के लिए और अपने घर तक के रास्ते के लिए लंबा लड़ाई लड़नी होगी।

कुछ ऐसा ही अन्याय और असमानता की स्थिति हाशिये की जातियों से आनेवाले लोगों के लिए भी दिखती है। उनके पास श्रम है, निर्माण का हुनर है लेकिन अधिकार नहीं है क्योंकि रास्तों की जमीन उच्च वर्ग के लोगों की हैं। उनकी वे पुश्तैनी जमीनें हैं जिस पर उनके बाप दादा के ज़माने से ही कब्जा है, जिस पर उन्हें गर्व है शर्म नहीं कि सदियों से इन मेहनतकशों के पास जमीनें क्यों नहीं हैं। आज जो गाँव बन गए हैं वह पहले की अपनी सारी खराबियों और सामंती ताकतों के साथ विकसित हो रहे हैं।

हो सकता है आप बहुत दिन बाद अपने गाँव लौटकर आए और गाँव आपके जाने के लिए रास्ता ही नहीं दे। आपके घर की बिजली का तार खींचकर फेंक दिया गया हो। अंधेरे में बैठकर आप अपने गाँव को कितना सराहेंगे। बारिश हुई हो और पानी आपके दरवाजे तक लगा हो तब भला वह गाँव आपको कैसे प्यारा लग सकता है महज इसलिए कि वो गाँव है या आपका अपना गाँव है। गाँव दूर से किसी को सम्मोहित कर सकता है लेकिन हमेशा के लिए वहां रह जाना जीवन को बेहद कठिन बना सकता है।

तमाम तरह की गुटबंदियों और उनकी अपनी राजनीति में आपको शामिल होना होगा जिनका नागरिक जीवन से कोई सरोकार नहीं है। तरह-तरह के धार्मिक कर्मकांडों और धार्मिक आयोजनों में शामिल होना होगा नहीं तो अन्य तरह से वे आपको परेशान कर सकते हैं। नशे और अपराध की एक गंवई दुनिया अब बहुत बड़ी और भयानक होती जा रही है जिसके लिए गाँव में बेहद कम चिंताएं दिखती हैं।  

कुछ ऐसा ही अन्याय और असमानता की स्थिति हाशिये की जातियों से आनेवाले लोगों के लिए भी दिखती है। उनके पास श्रम है, निर्माण का हुनर है लेकिन अधिकार नहीं है क्योंकि रास्तों की जमीन उच्च वर्ग के लोगों की हैं। उनकी वे पुश्तैनी जमीनें हैं जिस पर उनके बाप दादा के ज़माने से ही कब्जा है, जिस पर उन्हें गर्व है शर्म नहीं कि सदियों से इन मेहनतकशों के पास जमीनें क्यों नहीं हैं।

कोई भी समाज हो वह मनुष्य के सामूहिक जीवन की सुविधाओं के लिए कितना चिंतित और जिम्मेदार है उसका आदर्श उससे निर्मित होता है न कि उनके धार्मिक या आर्थिक उन्माद की प्रवृत्ति से। स्त्रियों, हाशिये की जातियों, समलैंगिकों या किसी भी हाशिये के समुदायों के लिए समाज ने कितनी समानता बनाई है, उनके स्वस्थ जीवन यापन के कितनी सुविधाएँ बनायी है समाज ने इस दृष्टि पर कोई समाज श्रेष्ठ बन सकता है न कि रास्तों और नालियों और बारिश के पानी के लिए लाठी लेकर खड़ा समाज , जहां मनुष्य को मनुष्य होने की गरिमा से नहीं देखा जाता वर्ग धर्म और जेंडर के भेदभाव से देखा जाता है। जहां सभी मनुष्यों के अधिकार समानता और न्याय पर नहीं निश्चित होते वह एक पक्षपाती समाज है।


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