स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य ब्रेस्टफीडिंग को कम करने में मिल्क कंपनियां निभा रही हैं बड़ी भूमिकाः रिपोर्ट

ब्रेस्टफीडिंग को कम करने में मिल्क कंपनियां निभा रही हैं बड़ी भूमिकाः रिपोर्ट

मेडिकल जर्नल “द लैंसेट” में प्रकाशित तीन रिसर्च पेपर की एक सीरिज में कहा गया है कि दूध कंपनियां अपने उत्पादों को बेचने के लिए शोषणकारी नीति अपनाती हैं जिस वजह से वह ब्रेस्टफीडिंग के लिए लोगों को हतोत्साहित करते हैं। 

पूंजीवादी बाजार के दौर में हमारी जीवनशैली पूरी तरह से बदल गई है। लोगों का रहने, खाने का तरीका इससे बहुत हद तक प्रभावित नज़र आता है। आज हर छोटी से छोटी प्राकृतिक चीज़ का विकल्प बाज़ार ने खड़ा कर दिया है। मार्केटिंग और प्रचार की वजह से ये चीज़ें इतनी हावी हो गई हैं कि स्वास्थ्य पर पड़नेवाले बुरे असर को नकार कर लोग इनकी गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं। इसी में सबसे खतरनाक उदाहणों में से एक है कमर्शियल मिल फॉर्मूला जो शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए माँ के दूध के विकल्प के तौर पर प्रचारित किया जाता है।

फार्मूला मिल्क प्रोडक्ट्स का असर रोज़मर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल होनेवाले अन्य सामान से अलग है। स्वास्थ्य प्रभाव से अलग ये कंपनियां बेस्ट्रफीडिंग के लिए लोगों को हतोत्साहित करती हैं। बीते हफ्ते मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित तीन रिसर्च पेपर की एक सीरीज़ में कहा गया है कि मिल्क कंपनियां अपने उत्पादों को बेचने के लिए शोषणकारी नीति अपनाती हैं जो ब्रेस्टफीडिंग के लिए लोगों को हतोत्साहित करते हैं। 

इन कंपनियों का भ्रामक प्रचार नवजात बच्चों के सामान्य व्यवहार के बारे में माता-पिता की चिंताओं का फायदा उठाता है। ये कंपनियां बच्चों के रोने, चिड़चिड़ापन और रात में खराब नींद को ऐसे चित्रित करती हैं जैसे ये परेशानी हैं जबकि ये शिशुओं का सामान्य बर्ताव होता है। इन्हीं बातों को केंद्र बनाकर कंपनियां अपने प्रोडक्ट के प्रचार के ज़रिये यह संदेश देने की कोशिश करती हैं कि इसके इस्तेमाल से शिशु का चिड़चिड़ापन खत्म हो जाता है, वे रात में अच्छी नींद लेते हैं। इतना ही नहीं कंपनियां यह भी दावा करती हैं कि इस तरह के दूध के इस्तेमाल से दिमाग का विकास होता है और बुद्धि बढ़ती है।  

रिसर्च पेपर की इस सीरिज में इस बात पर विशेषतौर पर जांच की गई है कि फॉर्मूला मिल्क कंपनियों की मार्केटिंग से जुड़ी रणनीतियां ब्रेस्टफीडिंग को महत्व न देकर, माता-पिता, स्वास्थ्य पेशेवरों और नेताओं को केंद्रित करती है। ऐसी रणनीति महिलाओं के अधिकार एवं स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनियां अपने उत्पादों को बेचने के लिए लैंगिक राजनीति के दांव-पेच भी अपनाती हैं। ब्रेस्टफीडिंग की वकालत को नैतिक निर्णय लेने के रूप में भी प्रस्तुत करती है।

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार डिब्बा बंद दूध कंपनियां सोशल मीडिया को अपना प्रोडक्ट बेचने के लिए एक उपयुक्त विकल्प के तौर पर इस्तेमाल कर रही हैं।

फॉर्मूला मिल्क इंडस्ट्री, ब्रेस्टफीडिंग प्रोटेक्शन लॉ और फूड स्टैडर्ड रेगुलेशन को चुनौती देकर मार्केट में ट्रेंड एसोशिएशन और बाजार में लॉबिंग करके केवल मुनाफे की नज़र से देखती है। हालांकि साल 1981 में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली ने ब्रेस्ट-मिल्क सब्सिस्ट्यूट्स की मार्केटिंग के लिए अंतरराष्ट्रीय कोड और अन्य प्रस्तावों को विकसित किया है। यह फार्मूला मिल्क के अनुचित मार्केटिंग को रोकने के लिए लाया गया था। इसमें जनता के लिए सीएमएफ के विज्ञापनों या स्वास्थ्य देखभाल को लेकर रणनीति में प्रचार पर रोक, माँओं और हेल्थ केयर वर्कर्स के लिए फ्री सैंपल, स्वास्थ्य सेवाओं फार्मूल के प्रचार और हेल्थ प्रोफेशनल के प्रयोजन आदि पर रोक के प्रावधान है। कंपनियां अपनी रणनीति में इस कोड का उल्लंघन करती हैं।  

डाउन टू अर्थ में प्रकाशित ख़बर के अनुसार यह नई रिसर्च बड़ी फार्मूला मिल्क कंपनियों की विशाल आर्थिक और राजनैतिक ताकतों को दिखाती है। साथ ही ये गंभीर सार्वजनिक पॉलिसी की विफलता को भी दिखाती है जिससे लाखों लोग अपने बच्चे को ब्रेस्ट फीड कराने से रूकते हैं। रिपोर्ट के लेखकों ने कहा हैं कि बेस्टफीडिंग कराना केवल महिलाओं की जिम्मेदारी नहीं हैं बल्कि ऐसे सामूहिक सामाजिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो लैंगिक असमानताओं को ध्यान में रखे। रिसर्च पेपर की सीरिज में स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा प्रणाली में ब्रेस्टफीडिंग के लिए अधिक समर्थन दिए जाने की सिफारिश की गई है। 

सोशल मीडिया का सहारा लेकर आगे बढ़ रही हैं कंपनियां

लैंसेट में प्रकाशित रिसर्च ये बात स्पष्ट करती है कि कंपनियां गलत तरीके से प्रचार प्रसार कर रही हैं। इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लोगों को आगाह किया है कि कंपनियां गर्भवती महिलाओं और माँओं के जीवन के सबसे संवेदनशील पलों में सीधी पहुंच हासिल करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का गलत तरीके से इस्तेमाल करती हैं। इस प्लेटफॉर्म पर भी मार्केटिंग का पूरा एक तंत्र बना दिया गया है। इसके लिए कंपनियां बड़ी रकम तक चुकाती हैं।

ग्लोबल डेटा में प्रकाशित जानकारी के अनुसार साल 2021 में  बेबी फूड मार्केट का साइज 3.04 बिलियन यूएस डॉलर था। एक अनुमान के मुताबिक साल 2021-27 तक इस बाजार के बढ़ने के नौ प्रतिशत अधिक बढ़ने की संभावना है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्कोप एंड इम्पैक्ट ऑफ डिजिटल मार्केटिंग स्ट्रेटेजीस फॉर प्रमोटिंग ब्रेस्ट मिल्क सब्सिट्यूटस नामक एक रिपोर्ट में भी इस बात को कह चुका है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार डिब्बा बंद दूध कंपनियां सोशल मीडिया को अपना प्रोडक्ट बेचने के लिए एक उपयुक्त विकल्प के तौर पर इस्तेमाल कर रही हैं। इस रिपोर्ट में डिजिटल मार्केटिंग तकनीकों की रूपरेखा तैयार की गई है कि कंपनियां कैसे माता-पिता बने लोगों और उनके परिवारों को बच्चों को खिलाने के तरीकों और उससे जुड़े निर्णयों को प्रभावित करती है।

इन विज्ञापनों का लोगों पर ऐसा असर पड़ता है कि वे लोगों को ब्रेस्ट फीडिंग के इस्तेमाल करने से रोककर पैकेट दूध या अन्य सामग्री के उपयोग के लिए प्रेरित करती हैं। कंपनियां ऐप, वर्चुअल सपोर्ट ग्रुप, पेड सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, प्रमोशन और प्रतियोगिताओं का सहारा लेती हैं। 

महिलाओं का बाजार के दूध के इस्तेमाल पर क्या हैं कहना

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर की रहने वाली 27 वर्षीय शीतल का दो साल का बेटा है। पैकेट फूड मिल्क के इस्तेमाल को लेकर उनका कहना है, “बाजार में वैसे बहुत सारे ऑप्शन हैं और डॉक्टर भी इस तरह के प्रोडक्ट को यूज करने की सलाह देते हैं। वैसे भी ये टेक्नोलॉजी का दौर है तो इस तरह के प्रोडक्ट्स की अच्छी क्वालिटी भी है जो काफी हेल्दी होते हैं। हालांकि मैंने अपने बेटे के लिए इस तरह के प्रोडक्ट का इस्तेमाल बहुत कम किया है न के बराबर। कभी बाहर जाना पड़ा और बेस्ट फीड कराने से बचने के लिए इस तरह के प्रोडक्ट का इस्तेमाल किया है। लेकिन मुझे लगता है कि डॉक्टर जब इस तरह की चीजों के इस्तेमाल करने के लिए कह रहे हैं तो ये काफी सही होंगे।”

ठीक इसी तरह बाजार के दूध के इस्तेमाल को लेकर मुरादनगर की 52 वर्षीय प्रतिभा शर्मा जिनकी नौ महीने की नातिन है उनका कहना है, “न तो हमारे दौर में ऐसे विकल्प मौजूद थे और न ही बाजार की किसी चीज को बच्चे के लिए सही माना जाता है। मेरी नातिन के जन्म के बाद बेटी को बेस्ट फीड के लिए कम दूध होने की वजह से डॉक्टर ने हमें डब्बे के दूध देने के लिए कहा था  लेकिन मैंने अपने बच्चों को मना कर दिया था कि हम बाजार की कोई ऐसी चीज नहीं देंगे। वैसे भी जन्म के समय और उसके बाद तक केवल  माँ का दूध ही पिलाना चाहिए। ये जितना बच्चे के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है उतना ही माँ के लिए भी हैं। आजकल बाजार में हेल्थ के नाम पर बहुत कुछ बिक रहा है लेकिन ज़रूरी नहीं है कि इनसब के बहकावे में आकर बेसिक और नेचुरल तरीकों को भूल जाओ।”

भारत में प्रोडक्ट मिल्क इंडस्ट्री

इंटरनैशनल ब्रेस्टफीडिंग जर्न में प्रकाशित जानकारी के दुनिया में तेजी से बच्चों को ब्रेस्टफीडिंग कराने में कमी दर्ज की गई है। विश्वभर में लाखों बच्चे लगभग दो तिहाई अब फार्मूला मिल्क पर निर्भर है। एशिया प्रांत में बहुत तेजी से ब्रेस्टफीडिंग में गिरावट देखी गई है। भारत के परिदृश्य में मिल्क इंडस्ट्री की बात करे तो इसका बाजार यहां तेजी से बढ़ रहा है। मार्केटिंग का जाल इस बाजार को बढ़ाने की बड़ी वजह है। विज्ञापन और उसमें किए वादें और सहूलियतों को देखते हुए फार्मूला मिल्क कंपनियों लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही है जिससे उसकी बिक्री बढ़ रही है। ग्लोबल डेटा में प्रकाशित जानकारी के अनुसार साल 2021 में  बेबी फूड मार्केट का साइज 3.04 बिलियन यूएस डॉलर था। एक अनुमान के मुताबिक साल 2021-27 तक इस बाजार के बढ़ने के नौ प्रतिशत अधिक बढ़ने की संभावना है। साल 2021 में बेबी फूड को बेचने में मेडिकल स्टोर और फॉर्मेसी सबसे आगे रही है।

गुणवत्ता केवल प्रचार का साधन

वर्तमान में परोपकारी प्रचार तंत्र के सहारे लोगों की भावनाओं को केंद्र में करके उनसे भावनात्मक तरीकें से जोड़ने का काम किया जाता है। पैकेट दूध को माँ के दूध के समान गुणवत्ता वाला बताया जाता है। लेकिन कई रिसर्च में यह बात सामने आ चुकी है कि बाजार का दूध में वह गुणवत्ता नहीं है। नेचर.कॉम में प्रकाशित रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार माँ के दूध में ग्लिसरॉल मोनोलॉरेट (जीएमएल) पाया जाता है। यह शरीर में हानिकारक बैक्टीरिया की वृद्धि को रोकता है। इसके साथ ही लाभकारी बैक्टीरिया को बनाने में मदद करता है। अध्ययन के मुताबिक माँ के दूध में गायों से प्राप्त होने वाले दूध की तुलना में यह करीब 200 गुना ज्यादा होता है जबकि बच्चों के बनाने वाले पैकेट दूध में इसकी मात्रा न के बराबर होती है। 

साल 1981 में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली ने ब्रेस्ट-मिल्क सब्सिस्ट्यूट्स की मार्केटिंग के लिए अंतरराष्ट्रीय कोड और अन्य प्रस्तावों को विकसित किया है। यह फार्मूला मिल्क के अनुचित मार्केटिंग को रोकने के लिए लाया गया था।

तमाम शोध से यह बात साफ हो चुकी है कि बच्चे और माँ दोनों के स्वास्थ्य के लिए ब्रेस्टफ्रीडिंग बहुत स्वास्थ्यवर्धक है। लेकिन तमाम सबूतों के बावजूद फार्मूला मिल्क कंपनियों ने एक बाजार बना लिया है जो लगातार बढ़ता जा रहा है। जिसमें कंपनियां और उनके भ्रामक विज्ञापन नीति है जिससे लोग तेजी से प्रभावित हो रहे हैं। इस लेख में बात करने के दौरान हम जिन महिलाओं से बात की है उनकी उम्र और अनुभव भी यह स्पष्ट करते हैं कि बाजार में माँ के दूध के विकल्प को वे किस तरह से देखती है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस बारे में कह चुका है कि बच्चों की खाद्य सामग्री बनाने वाली कंपनियों को विज्ञापन और प्रचार नीति को बंद करने की बात कह चुका है। इतना ही नहीं सरकारों से भी अपील की है कि इसे रोकने और निगरानी के लिए कड़े कानून होने चाहिए। बावजूद इन सबके डिजिटल युग में ये प्रोडक्ट हर वर्ग तक पहुंच बनाने के लिए छोटे पैकेट में उपलब्ध कराएं जा रहे हैं। 


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