“हमारे घर में खाना ज्यादा बचता है तो हम भरपेट खा लेते हैं वरना कई बार दोबारा खुद के लिए क्या खाना बनाए और ऐसे ही पानी पीकर भी सो जाते हैं।” यह कहना है हज़ारीबाग की सिंपल देवी का जिन्हें गर्भावस्था के दौरान कुपोषण का सामना किया जिसका असर उनके बच्चे पर भी हुआ। इसी बात की तस्दीक करती है यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट। यूनिसेफ के अनुसार भारत में महिलाओं का आहार अक्सर उनके शरीर में पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने में नाकामयाब रहता है।
महिलाएं दिन भर मेहनत करने के बाद जो खाना खाती हैं वह केवल भूख शांत करने के लिए हो सकता है लेकिन उनके शरीर में पोषण तत्वों की पूर्ति नहीं कर पाता है। इतना ही नहीं कई बार वे रात में बिना खाएं भी सो जाती हैं। इस वजह से वे जीवन के हर पड़ाव पर कुपोषण से जूझती रहती हैं। महिलाओं और भोजन तक उनकी पहुंच में वर्ग, क्षेत्र, जाति, व्यवस्था और पितृसत्ता के आयाम बहुत गहरी भूमिका निभाते हैं। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र एजेंसी यूनिसेफ के अनुसार संकटग्रस्त देशों में रहने वाली माँओं में 25 फीसद कुपोषण की समस्या अधिक बढ़ जाती है। यह महिलाओं और नवजात बच्चों में कई तरह के खतरों को अधिक कर देता है।
बीते मंगलवार को ‘अंडरनरिश्ड एंड ओवरलुक्ड’ के टाइटल से जारी रिपोर्ट के मुताबिक़ गर्भवती और ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली किशोरियों और महिलाओं में कुपोषण की संख्या 5.5 मिलियन से 6.9 मिलियन पर पहुंच गई है। रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया और उप सहारा अफ्रीका में स्थिति सही नहीं है। साल 2020 के बाद से वैश्विक स्तर पर खाद्य और पोषण के संकट से गुजरने वाले 12 देशों में यह दर बढ़ गई है। रिपोर्ट में अफगानिस्तान, बुकारिया, फासो, चाड, इथोपिया, केन्या, माली, नाइजर, सोमालिया, दक्षिण सूडान, सूडान और यमन को वैश्विक पोषण संकट का केंद्र बताया गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि यूक्रेन में चल रहे युद्ध और अन्य देशों में सूखा, संघर्ष और अस्थिरता इस संकट को और अधिक बढ़ाने का काम कर रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक़ गर्भवती और ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली किशोरियों और महिलाओं में कुपोषण की संख्या 5.5 मिलियन से 6.9 मिलियन पर पहुंच गई है। साल 2020 के बाद से वैश्विक स्तर पर खाद्य और पोषण के संकट से गुजरने वाले 12 देशों में यह दर बढ़ गई है।
रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर भुखमरी के संकट की वजह से लाखों माताएं और उनके बच्चे भूख और कुपोषण की ओर बढ़ रहे है। अगर तुरंत इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया तो यह आने वाली कई पीढियों को चपेट में ले सकता है। कम पोषण की वजह से कई तरह की कमियां आने वाली पीढ़ी तक को प्रभावित करती है। दो साल से कम उम्र के लगभग आधे बच्चे गर्भावस्था के दौरान और अपने जीवन के पहले छह महीनों में उनकी वृद्धि रूक जाती है। रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में एक अरब से अधिक किशोर लड़कियों और महिलाओं के शरीर में पोषण तत्वों की कमी से कद छोटा होना, कम वजन होना और खून की कमी की यानी एनीमिया होने की संभावना रहती है।
भारत में कुपोषण और महिलाएं
भारत में महिलाओं और कुषोषण की बात करें तो यहां की स्थिति भी बहुत बेहतर नहीं है। भारत में कुल 189.2 मिलियन कुपोषित लोग हैं जिनमें से अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं। भारत में माँ बनने योग्य उम्र की एक चौथाई महिलाएं कुपोषित हैं। उनका बॉडी मास इंडेक्स 18.5 किलोग्राम से कम है। यह दर ग्रामीण क्षेत्र में अधिक 27 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में 16 प्रतिशत है। कमजोर माँ और फिर कमजोर बच्चे के जन्म की प्रक्रिया की वजह से कुपोषण चक्र पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है।
“हम रोज़ बहुत अच्छा खाना खाएं ऐसा मुमकिन नहीं है”
पोषणयुक्त भोजन और उसतक पहुंच के बारे में फेमिनिज़म इन इंडिया ने कुछ महिलाओं से बात की। बुलंदशहर के बनबोई गाँव की 46 वर्षीय गीता वाल्मिकी से जब महिलाओं में कुपोषण और भोजन के पोषक तत्वों को लेकर बात की तो उनका कहना है, “हम रोज बहुत अच्छा खाना खाएं ऐसा तो नहीं है। बड़ा परिवार है और गरीब लोग है तो हर दिन भरपेट और स्वादिष्ट खाना नहीं मिलता है। ऐसा भी होता है कि पहले घर के मर्दों और बच्चों को खाना खिला देती हूं खुद तो कई बार पानी और रोटी खाकर भी सो जाती हूं। पहले तो मैं ऐसा बहुत बार करती थी। अब तो बच्चे बड़े हो गए हैं तो वे भी ध्यान रखते है लेकिन हम औरतें होती ही ऐसी हैं कि पहले परिवार का पेट भरना चाहिए भले ही वह खुद भूखी रहे। मुझे याद है कि अपने समय में मैं परिवार के सब लोगों को खिलाने के बाद जब कुछ नहीं बचता था भूखी ही सो जाती थी। दिनभर काम करने के बाद एक वक्त की रोटी तो आदमी को भरपेट मिलनी चाहिए लेकिन गरीबी ऐसी ही चीज है। लेकिन जो चीजें मैंने की है वो मैं अपनी बेटी और बहू को नहीं करने देती हूं।”
भारत में लगभग एक तिहाई 26.8 प्रतिशत शादीशुदा महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी गई थी। अपर्याप्त आहार अक्सर महिलाओं में पोषकतत्वों की कमी का कारण होता है। आधे से भी अधिक महिलाएं पूरा और पौष्टिक आहार का सेवन नहीं कर पाती है।
झारखंड के हजारीबाग जिला के बिष्णुगढ़ गांव की रहने वाली 22 वर्षीय गीता दो बच्चों की माँ है। कुपोषण, भोजन की महत्वता और गर्भावस्था को लेकर अपने अनुभवों से उनका कहना हैं, “पहले तो मेरा गर्भावस्था के दौरान कुछ भी खाने का मन ही नहीं करता था। इससे बहुत तरह का नुकसान भी होता था। यह मेरी सेहत और होने वाले बच्चे के लिए सही नहीं था बाद में हमें डॉक्टर को भी दिखाया था। मेरा जिन चीजों को खाने का मन करता था वे घर में नहीं मिलती थी। घर में जो कुछ होता था उसी से काम चलाते थे। उस दौरान हम रोज तो बहुत फल-मेवा नहीं खा पाते थे लेकिन जितना हो सकता था उतना खाया। गर्भावस्था के दौरान बच्चे और खुद का ज्यादा ध्यान न रखने की वजह से इसका इसका बच्चे पर भी पड़ा। जन्म के समय हमारा बच्चा बहुत कमजोर था और हमको भी बहुत कमज़ोरी महसूस होती थी।”
“खाना ज्यादा बनता है तो हम भरपेट खा लेते हैं”
झारखंड के हजारीबाग ज़िले की रहने वाली 24 वर्षीय सिंपल देवी का कहना कहना है, “गर्भावस्था के दौरान खाना-पीना ठीकठाक ही मिलता था। दवाई को लेकर भी ऐसा भी होता था कि कभी मिलती थी कभी नहीं मिलता थी। गर्भावस्था में खाने का कोई सामान एक महीना खा लिया तो फिर दूसरी बार वो नहीं मिला। इस तरह से सही तरीके से पोषण वाला भोजन न होने की वजह से बहुत कमजोरी भी होती थी। शुरू में हमारा बच्चा भी बहुत कमजोर था मुझे भी बहुत थका हुआ महसूस होता था। दरअसल घरों में आज भी आदमी लोगों के खानपान को ज्यादा तवज्जो दिया जाता है वो लोग बाहर जाकर काम करते हैं तो उनकी सेहत सही होना ज्यादा मायने रखता है। यही वजह है कि हम कुपोषण जैसी और बीमारियों का सामना करते हैं जिससे हमारे बच्चे की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है।”
“लड़की हो तुम खाकर क्या करोगी”
बिष्णुगढ़ की 24 साल की डिम्पल देवी ने हाल ही एक बच्चे को जन्म दिया है उनका कहना है कि औरतों के खाने-पीने पर ज्यादा ध्यान देने का चलन अभी भी कम है। मेरे साथ मेरी गर्भावस्था में तो जितना परिवार सहयोग दे सकता था उन्होंने दिया था। मैंने भी खुद भी पूरी कोशिश के साथ अपना ध्यान रखा क्योंकि मैं जानती थी कि अगर खुद का ध्यान नहीं रखूंगी तो बच्चे की सेहत भी खराब होगी और ताउम्र मुझे भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन ऐसा हर औरत तो नहीं कर सकती ना सबकी स्थिति अलग होती है। मुझे याद है बचपन में हमारे घर में लड़की होने की वजह से मेवा-दूध हमें देने के लिए मना कर दिया जाता था कि लड़की हो तुम खाकर क्या करोंगी।
आधे से अधिक महिलाएं पौष्टिक आहार से दूर
डाउट टू अर्थ में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़ भारत में लगभग एक तिहाई 26.8 प्रतिशत शादीशुदा महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी गई थी। अपर्याप्त आहार अक्सर महिलाओं में पोषकतत्वों की कमी का कारण होता है। आधे से भी अधिक महिलाएं पूरा और पौष्टिक आहार का सेवन नहीं कर पाती है। केवल 47 फीसदी रोजाना हरी पत्तेदार सब्जियां खा पाती हैं। मात्र 46 फीसदी ही रोज दाल खा पाती है। बात जब कुपोषण और महिलाओं की आती है तो इसका बड़ा कारण लैंगिक असमानता, सामाजिक स्थिति और आर्थिकता भी जुड़ा हुआ है।
संकटग्रस्त देशों में रहने वाली माँओं में 25 फीसदी से कुपोषण की समस्या अधिक बढ़ जाती है। यह महिलाओं और नवजात बच्चों में खतरे को अधिक कर देता है।
महिलाओं के स्वास्थ्य, भोजन और पोषण की स्थिति न केवल उनके जीवन की गुणवत्ता का केंद्र है बल्कि उनके बच्चे की भी है। इसलिए एक स्वस्थ महिला का ही माँ बनना बहुत आवश्यक है। महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार होने से हम एक स्वस्थ्य समाज और राष्ट्र की भी कल्पना कर सकते हैं। बावजूद इन सबके तमाम तरह की विषमताओं की वजह से महिलाओं से पोषणयुक्त भोजन की पहुंच बहुत दूर हो जाती है। कुल मिलाकर महिलाओं में कुपोषण की समस्या एक सामाजिक समस्या है जिसके समाधान के लिए बुनियादी रवैये को बदलने की आवश्यकता है।
नोट: इस लेख में झारखंड की महिलाओं को हम तक जोड़ने में सावित्री कुमारी ने एक अहम भूमिका निभाई है। वह ‘समाधान’ संस्था के साथ काम करती हैं।