इतिहास में हर संघर्ष और तमाम तरह की निरंकुशताओं और अत्याचारों के ख़िलाफ़ महिलाओं ने संघर्ष किया। अपने साम्राज्य को बचाने के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की। ठीक इसी तरह भारत का पूर्वोत्तर भाग भी महिलाओं की वीरता की गाथाओं से भरा हुआ है। जब भी हम मजबूती और संघर्ष की बात करते हैं तो इसमें असम की जॉयमती के योगदान को नहीं नकार सकते हैं। इनका बलिदान आज भी असम के लोगों के लिए प्रेरणा बना हुआ है। इन्हें सती जॉयमती के नाम से भी जाना जाता हैं।
सती जॉयमती असमिया लोगों की प्रिय राजकुमारी थीं। इन्होंने अपने बलिदान से आहोम राज्य की रक्षा की थी। जॉयमती के वीरतापूर्वक धैर्य के कारण ही आहोम राज्य को एक अत्याचारी शासक से मुक्ति मिली। उनकी सूझबूझ की वजह से ही आगे चलकर असम में साम्राज्य की नींव मजबूत हुई।
शुरुआती जीवन
जॉयमती का जन्म 17वीं शताब्दी के मध्य में असम के शिवसागर जिले के मदुरी गांव में हुआ था। शिवसागर उस समय अहोम साम्राज्य की राजधानी था। इसे बाद में तुंगखुगिया राजवंश के शासक ने बदल दिया था। जॉयमती लैथेपेना बोर्गेहेन और चंद्रदारू की बेटी थीं। उनका विवाह गोदापानी कुंवर से हुआ था जिसने बाद में तुंगखुगिया राजवंश की स्थापना की थी। इतिहास में जॉयमती अपने निस्वार्थ बलिदान की प्रतीक हैं। उन्होंने अहोम राज्य को एक निरंकुश और अत्याचारी शासक से बचाने के लिए अपना प्राणों का बलिदान दिया था।
1671 से 1681 के वर्षों के बीच असम पर अहोम का शासन था। अहोम राज्य की गद्दी पर लोरा राजा (सुलिकफा) आसीन था। वह अहोम राज्य के शाही अधिकारी तथा प्रधानमंत्री के हाथों की कठपुतली बना हुआ था। लोरा राजा को ‘यंग किंग’ भी कहा जाता है क्योंकि वह बहुत कम उम्र का शासक था। शाही अधिकारियों के नियंत्रण में राजा के आने से राज्य में भ्रष्टाचार, निरंकुशता और अस्थिरता आ गई थी। पूरा तंत्र अत्याचारी हो चला था।
राजकुमार गोदापानी उस राज्य के एक मजबूत उत्तराधिकार थे। साजिश को भांपते हुए शाही सैनिक के पहुंचने से पहले वे वहां से दूर चले गए। अपनी पत्नी जॉयमती के कहने पर वे नागा हिल्स (नागालैंड) में छिप गए।
राज्य का प्रधानमंत्री लालुकास्ला बोरफुकान ने अपने प्रभुत्व को राज्य में स्थापित करने के लिए अपनी छोटी बेटी की शादी राजा से कर दी थी। प्रधानमंत्री चाहता था कि राज्य एक ऐसे राजा के हाथों में रहे जिसे वह अपने नियंत्रण में रख सके। इसी के चलते प्रधानमंत्री ने लोरा राजा को सलाह दी थी कि राज्य के अन्य सारे राजकुमार को मार दे या तो उन्हें विकृत कर दें। उसके शासनकाल के दौरान 27 योग्य राजकुमारों और दो राजाओं को मार डाला गया था।
पति को नागा हिल्स में छिपने की दी सलाह
लोरा राजा ने अपने प्रधानमंत्री के कहे अनुसार अपने शाही सैनिक को राजकुमारों को मारने या अपंग करने का आदेश दे दिया। राजकुमार गोदापानी उस राज्य के एक मजबूत उत्तराधिकार थे। साजिश को भांपते हुए शाही सैनिक के पहुंचने से पहले वे वहां से दूर चले गए। अपनी पत्नी जॉयमती के कहने पर वे नागा हिल्स (नागालैंड) में छिप गए। सैनिकों ने सारे राजकुमार को तो मार दिया लेकिन गोदापानी को नहीं मार सके। सुलकफा के सैनिक गोदापानी को खोजते-खोजते जब परेशान हो गए तब लोरा राजा ने उनकी पत्नी जॉयमती कोंवारी को महल में आने का आदेश दिया।
जॉयमती ने अपने पति की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी इसके बाद उन्हें ‘सती जॉयमती’ कहा जाने लगा। इतना ही नहीं यातना के समय वह गर्भवती भी थी। किसी भी बात की परवाह किए वह अपने फैसले पर अटल रही।
लोरा राजा को लगा कि गोदापानी की पत्नी को पता ही होगा कि वह कहां छिपा है। जॉयमती से उसके पति के छिपने के स्थान के बारे में बताने को कहा गया। जॉयमोती कोंवरी के ऐसा करने से इनकार कर दिया। उन्हें शिवसागर जिले के जेरेंगा पाथार में ले जाया गया और एक कटीले संयंत्र से बांध दिया गया। उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दी गई। उन्हें 14 दिनों तक लगातार प्रताड़ित किया गया। उन्होंने पति के ठिकाने की ख़बर पता नहीं चलने दी। अपनी अंतिम सांस तक वह गोदापानी की रक्षा करती रही। निरंकुश और अत्याचारी शासक से लड़ते-लड़ते अंत में वह शहीद हो गई।
14 दिन तक सहती रही यातना
जॉयमती ने अपने पति की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी इसके बाद उन्हें ‘सती जॉयमती’ कहा जाने लगा। इतना ही नहीं यातना के समय वह गर्भवती भी थी। किसी भी बात की परवाह किए वह अपने फैसले पर अटल रही। आखिर में 14 दिनो की लंबी यातना सहने के बाद 27 मार्च 1680 में उन्होंने अंतिम सांस ली। जॉयमती के दो पुत्र 14 साल लाई और 12 साल के लेशाई था।
सती जॉयमती का संघर्ष की चर्चा इतिहास में बहुत ही कम की गई है। उनके बारे में मूल असमिया के गीतों, नाटकों, कविताओं, कहानियों, रंगमंच के कार्यक्रमों से जाना जा सकता है। मूल असमिया के लोग उनके बलिदान को आज भी अपनी लोक-कथाओं के जरिए जीवित रखा है। सोती जॉयमती के बलिदान के दिन 27 मार्च को उनकी स्मृति के रूप में ‘सती जॉयमती दिवस’ मनाया जाता है।
जॉयमती के सम्मान में स्थल
जॉयमती के नाम पर असम में कई सार्वजनिक स्थल और इमारतें हैं। उनके बेटे सुखरुंगफा (लाई) ने उनकी स्मृति में कई वास्तुकला का निर्माण कराया था। जॉयमती टैंक उनके बेटे ने बनवाया था। साल 1697 में शिवसागर में जॉयसागर टैंक का निर्माण किया। इसे भारत की सबसे बड़ी मानव मानव निर्मित झील में से एक माना जाता है। इसी तरह जॉयमती की याद में उनके बेटे ने 1703-04 में फकुवा डोल या जॉय डोल का निर्माण करवाया था। इसमें उनकी एक स्वर्ण मूर्ति भी स्थापित की थी। पिरामिड के आकार का मंदिर है। इस मंदिर के अवशेष आज भी असम में बने हुए हैं।
जॉयमती को याद रखने और उनके बलिदान को दर्शाने के लिए 1935 में ज्योति प्रसाद अग्रवाल के निर्देशन में उनकी कहानी पर आधारित ‘जॉयमोती’ नामक फिल्म बनी। यह फिल्म पहली असमिया भाषा की फिल्म थी जिसमे जॉयमती की कहानी को दर्शाया गया था। साल 2006 में, मंजू बोरा ने जॉयमती नाम से एक और फिल्म रिलीज की। इसके बाद 19वीं सदी के असमिया लेखक लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ ने ‘जॉयमती कोंवरी’ नामक नाटक में इनके जीवन का चित्रण किया।
जॉयमती स्मृति दिवस
असम की राज्य सरकार ने जॉयमती के नाम से एक वार्षिक पुरस्कार की स्थापना की है। यह पुरस्कार हर साल महिलाओं को उनके चुने हुए कार्यक्षेत्र में सम्मानित और प्रोत्साहित करने के लिए दिया जाता है। हर साल 27 मार्च को जॉयमती स्मृति दिवस मनाया जाता है। इतिहास के पन्नों में भले ही उन्हें वो जगह न दी गई हो जिसकी वे हकदार थी लेकिन लोक कथाओ के ज़रिये असम में पीढ़ी दर पीढ़ी उनके वीरता की कहानियां सुनाई जा रही है।
स्रोतः