समाजख़बर महिलाओं की हर पांच में से एक अप्राकृतिक मौत को ‘एक्सीडेंटल डेथ’ के रूप में किया जाता है दर्जः स्टडी

महिलाओं की हर पांच में से एक अप्राकृतिक मौत को ‘एक्सीडेंटल डेथ’ के रूप में किया जाता है दर्जः स्टडी

मई 2017 से अप्रैल 2022 के समय के दौरान हॉस्पिटल में 6,190 ऑटोप्सी हुई। इसमें से 1,467 फीमल डेड बॉडी का पोस्टमार्टम किया गया और 840 अप्राकृतिक मौत के मामलों की जांच की गई।

हमारे समाज में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा को लेकर इतना सामान्य माहौल बना हुआ है कि उनकी मौत के बाद जाकर एक जांच में पता चलता है कि प्राकृतिक दिखनेवाली मौत वास्तव में लैंगिक हिंसा से हुई थी। मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक़ बीते मंगलवार मुंबई के अस्पताल में हुई स्टडी में यह बात सामने आई है कि शहर में 21 प्रतिशत महिलाओं की अनैचुरल (अप्राकृतिक) मौत की वजह लैंगिक हिंसा थी। अप्राकृतिक मौत के महिलाओं से जुड़े इन मामलों को दुर्घटनावश मृत्यु के रूप में रिपोर्ट किया जाता है। इन सभी मामलों की जांच अपराधों के रूप में नहीं की गई क्योंकि पुलिस द्वारा उनमें कुछ आत्महत्या या आकस्मिक मृत्यु के मामले दर्ज किए थे।

किंग एडवर्ड मेमौरियल हॉस्पिटल और सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज के द्वारा हुई स्टडी के अनुसार शहर में होने वाली महिलाओं की हर पांच में से एक अप्राकृतिक मौत लैंगिक हिंसा की वजह से होती है। यह अध्ययन एक्सीडेंटल डेथ रिपोर्ट (एडीआर) के साथ महिला ऑटोप्सी (मौत की वजह जाने के लिए की जाने वाली शव-परीक्षा) के तहत किया गया। महिलाओं की मौत के बाद उनके शव की जांच के बाद रिपोर्ट से ये जानकारी इकट्ठा की गई है। 

महिलाओं के साथ लैंगिक हिंसा की 99 फीसदी घटनाएं उनके घर या निजी स्पेस में हुई। इसमें 58 प्रतिशत मौत आग में जलने की वजह से, 20 प्रतिशत की फांसी लगाने, 16 फीसदी की जहरीली चीजों के खाने या ओवरडोज से, तीन प्रतिशत की जान किसी ऊंची जगह से कूदने और तीन फीसदी मौतें मर्डर से हुई।

21.5 फीसदी मामलों में लैंगिक हिंसा की वजह से मौत

द स्क्रोल में प्रकाशित ख़बर के अनुसार मई 2017 से अप्रैल 2022 के समय के दौरान हॉस्पिटल में 6,190 ऑटोप्सी हुई। इसमें से 1,467 फीमल डेड बॉडी का पोस्टमार्टम किया गया और 840 अप्राकृतिक मौत के मामलों की जांच की गई। अध्ययन में इसमें से 181 यानी 21.5 फीसदी मामलों में शोधकर्ताओं ने लैंगिक हिंसा के मामले पाए। इन मामलों में 75 प्रतिशत महिलाएं 15 से 44 आयु वर्ग की थी। स्टडी के तहत फारेंसिक जांच में चोटों की प्रकृति और पैटर्न, मौत से पहले सर्वाइवर के बयान और उनके रिश्तेदारों के बयान शामिल हैं। शोधकर्ताओं 181 मौतों में से जिन्हें शोधकर्ताओं ने लैंगिक हिंसा से जोड़ा है उनमें से 86 (47%) आत्महत्या, 85 (47%) मामलें अचानक मौतें और केवल 10 (6%) केस में पति, अंतरंग साथी या रिश्तेदार से जुड़ी हत्या के केस में दर्ज किया गया है।

58 फीसदी मौतें आग में जलने की वजह से

स्टडी में यह बात समाने आई है कि महिलाओं के साथ लैंगिक हिंसा की 99 फीसदी घटनाएं उनके घर या निजी स्पेस में हुई। इसमें 58 प्रतिशत मौत आग में जलने की वजह से, 20 प्रतिशत की फांसी लगाने, 16 फीसदी की जहरीली चीजों के खाने या ओवरडोज से, तीन प्रतिशत की जान किसी ऊंची जगह से कूदने और तीन फीसदी मौतें मर्डर से हुई। स्टडी के मुताबिक 67 प्रतिशत सर्वाइवर महिलाएं शादीशुदा थीं।

केईएम फारेंसिक डिपार्टमेंट के मुख्य और स्टडी को लीड करने वाले डॉ. हरीश पाठक के अनुसार, “लैंगिक हिंसा में आग से जलना और फांसी की दो कैटेगिरी प्रमुख थी। उन्होंने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट और मरीज की केस हिस्ट्री में हमने सर्वाइवर और रिश्तदारों के बयानों में अंतर पाया। उदाहरण के लिए किसी आग लगने वाले मामले में महिला का परिवार कहता है कि साड़ी में आग लग गई थी लेकिन उसके बालों से मिट्टी के तेल की गंध आ रही थी। ऐसे केस में जहां परिवार कहता है कि महिला ने गलती से लाइजोल (कीटनाशक) पी लिया। लाइजोल से गंध आती है और उसे आसानी से पानी से अलग पहचाना जा सकता है। एक इंसान कैसे पानी पीने में इस तरह की गलती कर सकता है?”

इससे आगे उनका कहना है कि कुछ मामलों में परिवार महिला को आधी रात में लेकर आये और कहा कि खाना बनाते समय आग लग गई। “इस तरह के बयान परिस्थितिगत साक्ष्य (सकम्स्टैनशल एविडेंस) से नहीं जुड़ते हैं।’ उन्होंने आगे यह भी कहा कि शोधकर्ताओं ने पाया कि पुलिस ने मामलों की गहरी जांच नहीं की और अगर उनके परिवार वालों ने आत्महत्या के आरोप लगाया तो मामलों को जल्दबाजी में बंद करना पसंद किया।

हिंसा हो रही है यही जानना बाकी

पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को सामाजिक प्रतिष्ठा का एक मानक माना जाता है। घर, परिवार, समुदाय का सम्मान महिलाओं से जोड़ा जाता है। इन्हीं घरों और रिश्तों के ढ़ाचें में महिलाओं के साथ होने वाले हिंसक व्यवहार को बहुत सामान्य कर दिया जाता है। इस रवैये के चलते बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ होने वाले हिंसा की घटनाएं दर्ज तक नहीं होती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया में महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगह उनका घर है।  द मिंट में प्रकाशित ख़बर के अनुसार 99 प्रतिशत यौन हिंसा के मामलों की रिपोर्ट ही नहीं की जाती है। ऐसे मामलों में अपराधी, सर्वाइवर का पति या परिचित होता है। यौन हिंसा की घटनाओं को केवल एक छोटा सा हिस्सा ही पुलिस में दर्ज किया जाता है। अध्ययन से पता चलता है कि भारत में महिलाओं को दूसरों की तुलना में अपने पति से यौन हिंसा का सामना करने की 17 गुना अधिक संभावना रहती है।

अध्ययन में इसमें से 181 यानी 21.5 फीसदी मामलों में शोधकर्ताओं ने लैंगिक हिंसा के मामले पाए। इन मामलों में 75 प्रतिशत महिलाएं 15 से 44 आयु वर्ग की थी।

महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के बढ़ते मामले

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराध की दर 2020 में 56.5 प्रतिशत से बढ़कर 64.5 प्रतिशत हो गई। रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में देशभर में कुल 4,28,278 मामले दर्ज किए गए। जबकि 2020 में इन केसों की संख्या 3.70 लाख थी। साल दर साल सरकारी आंकड़े और नई रिपोर्ट यह दिखाती है कि हमारे देश में महिलाएं असुरक्षित होती जा रही हैं। 

मुंबई अस्पताल की जांच में एक बात कही गई है कि जांच किए गए मामलों में अधिक घटनाएं महिलाओं के परिचित द्वारा की गई है। ठीक इसी तरह भारत सरकार द्वारा एनसीआरबी डेटा के अनुसार देश में कुल बलात्कार के मामलों मे से 96.5 प्रतिशत में आरोपी सर्वाइवर के परिचित थे। साल 2021 में 30,571 ऐसे मामले दर्ज हुए जिनमें वारदात करने वाला महिला का जानने वाला था। 2,424 मामलों में बलात्कार करने वाला महिला के परिवार का सदस्य था। पारिवारिक मित्र, पड़ोसी या अन्य परिचित द्वारा किए गए बलात्कार के 15,196 मामले दर्ज किए गए। महिला के मित्र, लिव इन पार्टनर या पति से अलग और शादी के वादे के आधार पर बलात्कार के 12,951 मामले दर्ज किए गए।

गृहणियों में आत्महत्या के बढ़ते मामले

शोधकर्ताओं ने अध्ययन में लैंगिक हिंसा के पहचान वाले मामलों में 47 प्रतिशत मामलें आत्महत्या के दर्ज किए। अगर सरकार के अन्य आंकड़ों की बात करे तो पिछले कुछ सालों से महिलाओं में आत्महत्या की घटनाएं लगातार बढ़ रही है। हिंदुस्तान टाइम्स की ख़बर के अनुसार एनसीआरबी के डेटा 2021 के मुताबिक़ देश में 45 हजार से अधिक महिलाओं ने आत्महत्या से अपनी जान दी। इनमें से 23,000 महिलाएं गृहणी थीं। साल 2018 में लगभग हर दिन 63 गृहणियों की आत्महत्या से मौत हुई। गृहणियों की आत्महत्या के पीछे बड़ी वजह पितृसत्ता है जिसपर बात नहीं की जाती है। लैंगिक असमानता की वजह से मानसिक एवं शारीरिक उत्पीड़न से बचने के लिए उनके पास केवल खुद को खत्म करना ही एक मात्र विकल्प बचता है। 

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया में महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगह उनका घर है।

सरकार या समाज का रवैया

महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा हुई, उन्होंने उसका सामना किया और एक दिन अपनी जान तक गंवा दी और भारतीय सिस्टम में यह बात पता ही नहीं चली। समाज ने पारिवारिक मामला कहा और परिवार ने अफरा-तफरी में केस खत्म किया और कुछ दिन बाद सब भुला दिया गया। यह है महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा की भयावहता। जहां उसके मरने की असली वजह क्या है इसतक का पता नहीं चलता है। महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की जड़ है पितृसत्ता और जिसको बदलने के लिए हमें अपने स्तर से शुरुआत करनी होगी।

मुंबई में फारेंसिक जांच में लैंगिक हिंसा की घटनाओं से जुड़ी स्टडी के बाद महाराष्ट्र महिला एवं बाल विकास मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा ने लैंगिक हिंसा को खत्म करने के लिए सिफारशें तैयार करने और ऐसे मामलों को रिकॉर्ड करने के लिए एक प्रणाली बनाने का निर्देश दिया है। यह बात बिल्कुल ऐसी है जैसी अब तक होती आई है। महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के मामले और सुरक्षा पर लेकर देश में सरकारी कदम के तौर पर सिस्टम या कमेटी बनाने के आदेश दिये जाते है या फिर सिर्फ राजनीतिक चुनावी वादें किए जाते हैं। महिला सुरक्षा और समानता के नाम सरकारें सिर्फ दावें करती हैं लेकिन जब मेरिटल रेप को लेकर कानून की बाद आती है तो इसे संस्कृति के ख़िलाफ़ बताती है। ऐसे कानूनों को सामाजिक ढ़ांचे के विरुद्ध बताती है। यही व्यवहार दिखाता है कि भारतीय राजनीति पर पितृसत्ता हावी है। 


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