इंटरसेक्शनलजेंडर जेंडर आधारित हिंसा के ख़िलाफ़ ये कदम हैं ज़रूरी

जेंडर आधारित हिंसा के ख़िलाफ़ ये कदम हैं ज़रूरी

अगर हम मायके, ससुराल, समाज और सार्वजनिक स्थल पर होने वले जेंडर आधारित भेदभाव और हिंसा की पहचान करना नहीं सीखेंगें तो कभी भी हम इस समस्या को जड़ से ख़त्म नहीं कर सकते हैं। हर स्तर पर होने वाले भेदभाव और हिंसा को ख़त्म सिर्फ़ तभी किया जा सकता है, जब हम उसकी पहचान कर सकेगें।

नंदनी ने आत्मविश्वास के साथ कहा कि अगर लड़की के मायकेवाले उसका साथ दें तो उसे कभी भी किसी हिंसा या भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा। यह कहते हुए नंदनी की आंखों में अलग तरह का असंतोष और ग़ुस्सा दिखाई दे रहा था। लेकिन उसे विश्वास था कि इस समस्या का हल यही है। नंदनी की बात से बैठक में आई बाक़ी किशोरियां और महिलाएं भी सहमत थीं। पैंतीस वर्षीय शकुंतला ने भी नंदनी की बात पर सहमति जताते हुए कहा कि लड़कियों को शादी के बाद किसी भी तरह की समस्या होने, भेदभाव और हिंसा होने पर अगर उसके मायकेवाले उसका साथ नहीं देते हैं तो उस परिस्थिति से वह निकल नहीं पाती है। इसलिए अगर माता-पिता साथ दें तो उनके लिए हिंसा और भेदभाव के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना आसान होगा।

नंदनी और शकुंतला की बात पर सहमति जताते हुए पुष्पा कहती हैं कि लड़कियों को शादी के बाद बहुत-सी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है। उनके साथ कई बार भेदभाव और हिंसा की जाती है, लेकिन लड़कियां इस डर से कुछ भी नहीं बोल पाती हैं कि अगर उन्होंने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई या उस स्थिति से निकलने का सोचा तो उनका साथ कौन देगा या उन्हें सहारा कौन देगा। अब अगर उसके मायकेवाले उसे सहारा देंगें तो उसके लिए उस स्थिति से निकलना आसान हो जाएगा।

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ये सारी बातें महिलाओं और किशोरियों ने देईपुर गाँव में एक बैठक के दौरान साझा की जब मैं उनके साथ जेंडर आधारित हिंसा और भेदभाव के मुद्दे पर बैठक करने गई थी। इन लड़कियों और महिलाओं के विचार कुछ ज़्यादा नये नहीं थे। ये बहुत ही सामान्य बात लग सकती है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों ज़्यादातर महिलाओं और लड़कियों को जेंडर आधारित हिंसा और भेदभाव से बचाव के लिए मायके का साथ होना ही एकमात्र सही और सटीक उपाय लगता है। जब हम बैठक में शामिल महिलाओं और किशोरियों की चर्चा पर आते हैं तो कुछ ऐसी बातें सामने आती है, जिसे महिलाओं और किशोरियों के साथ जेंडर आधारित हिंसा और भेदभाव के मुद्दे पर चर्चा और काम के लिए शामिल करना बेहद ज़रूरी हो जाता है।

हिंसा और भेदभाव की पहचान

अक्सर आपने भी महिला हिंसा को लेकर यही सुना होगा कि महिलाओं को हिंसा का सामना शादी के बाद करना पड़ता है। शादी के बाद ही उनके साथ जेंडर आधारित हिंसा और भेदभाव होता है। इस बात यह साफ़ संदेश दिया जाता है कि लड़की के साथ मायके में किसी भी तरह की हिंसा या भेदभाव नहीं होता है। अगर ऐसा होता भी है तो यह कहीं भी मायने नहीं रखता है। जेंडर आधारित हिंसा और भेदभाव से निजात पाने के लिए ये ज़रूरी है कि हम हिंसा और भेदभाव की पहचान करना सीखें।

हम सवाल करें कि क्यों हमें भाई की तरह पढ़ने और नौकरी करने का अवसर नहीं दिया गया? क्यों बचपन से ही हमें घर का काम करने की सीख दी जाती है? क्यों महिलाओं को हमेशा सुरक्षा के घेरे में रखने के बहाने उन्हें उनके अधिकारों से दूर किया जाता है। क्यों ये सब महिलाओं को अपने मायके में अनुभव करना पड़ता है। इतना ही नहीं, जब कोई भी लड़की अपने मन से अपने करियर का चुनाव करती है या अपने मनपसंद जीवनसाथी को चुनती है तो इस पर हिंसा हमेशा मायके की तरफ से की जाती है और ये कहा जाता है कि ये लड़की की भलाई के लिए किया जा रहा है। अगर हम मायके, ससुराल, समाज और सार्वजनिक स्थल पर होने वले जेंडर आधारित भेदभाव और हिंसा की पहचान करना नहीं सीखेंगें तो कभी भी हम इस समस्या को जड़ से ख़त्म नहीं कर सकते हैं। हर स्तर पर होनेवाले भेदभाव और हिंसा को ख़त्म सिर्फ़ तभी किया जा सकता है, जब हम उसकी पहचान कर पाएंगे

और पढ़ें: महिला हिंसा के वे रूप जो हमें दिखाई नहीं पड़ते

हम सवाल करें कि क्यों हमें भाई की तरह पढ़ने और नौकरी करने का अवसर नहीं दिया गया? क्यों बचपन से ही हमें घर का काम करने की सीख दी जाती है? क्यों महिलाओं को हमेशा सुरक्षा के घेरे में रखने के बहाने उन्हें उनके अधिकारों से दूर किया जाता है।

सशक्तिकरण : हिंसा और भेदभाव से लड़ाई के लिए

महिलाओं के साथ होनेवाली हिंसा के बचाव में अक्सर मायके का मुंह निहारा जाता है। जब किसी अविवाहित लड़की के साथ भेदभाव और हिंसा होती तो उसे यह कहकर सांत्वना दी जाती है, “तुम तो शादी करके अपने घर चली जाओगी तो सब ठीक हो जाएगा।” कहने का मतलब यह है कि जब मायके में हिंसा हो तो ससुराल को बचने की जगह बताई जाती है और जब ससुराल में हिंसा हो तो मायके को बचने की जगह बताई जाती है। यह बात इतनी बार और मज़बूती से बताई जाती है कि हम लोग भी इसे सच मान लेते हैं, फिर इसे के हिसाब से हिंसा से बचाव का उपाय सोचते हैं।

लेकिन यहां हमलोगों को अच्छे से समझना होगा कि कुल मिलाकर लड़कियों को दूसरे पर आश्रित होना ही उपाय के रूप में बताया जाता है। इसकी वजह से लड़कियां कभी भी खुद हिंसा और भेदभाव के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का सोच भी नहीं पाती हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि महिलाओं और लड़कियों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और सशक्त होने की सलाह दी जाए। साथ ही महंगी शादी की बजाय खुद को सशक्त करने और संपत्ति में अपने अधिकार को सुनिश्चहित करने की।

आज के समय में महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी होना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि किसी भी पहल का यह एक बुनियादी आधार है। यह कई अध्य्यन में भी पाया गया है कि आर्थिक रूप से सशक्त महिलाओं के साथ हिंसा होने की संभावना आधे से भी कम हो जाती है। जेंडर आधारित हिंसा और भेदभाव महिलाओं को समाज की धारा में पीछे धकेलने का काम करती है। इसके लिए ज़रूरी है कि हम इस दिशा में कुछ बुनियादी कदम उठाए और महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने की दिशा में काम करें।   

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तस्वीर साभार : Huffpost

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