समाजकानून और नीति क्या पति के परिवारवालों का सम्मान न करना बन सकता है तलाक का आधार?

क्या पति के परिवारवालों का सम्मान न करना बन सकता है तलाक का आधार?

कोर्ट ने इस केस में पत्नी द्वारा पति के घर वालों का आदर न करना, पति के साथ छोटे-छोटे मुद्दों पर लड़ना- बहस करने को पति के प्रति मानसिक क्रूरता माना। क्या पत्नी के घर वालों का उसके पति द्वारा अपमान करना, पत्नी के साथ मार-पीट करना, पत्नी की मदद न करना पत्नी के खिलाफ मानसिक क्रूरता नहीं है?

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि अगर पत्नी अपने पति और उसके परिवार के प्रति असम्मानजनक है, तो यह पति के प्रति क्रूरता मानी जाएगी। जस्टिस शील नागू और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की पीठ ने फैमिली कोर्ट द्वारा दी गई तलाक की डिक्री के खिलाफ पत्नी की अपील को खारिज करते हुए ऐसा निर्णय दिया। यह अपील फैमिली कोर्ट के निर्णय के खिलाफ थी। पति ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए याचिका दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने दोनों आधारों को साबित पाया लेकिन तकनीकी आधार पर याचिका को केवल ‘क्रूरता’ के आधार पर स्वीकार किया और पति की तलाक की अर्जी को ‘क्रूरता’ के आधार पर मंजूर कर लिया था।

इस आदेश के खिलाफ पत्नी ने हाई कोर्ट में अपील की। पत्नी ने अपने पति के खिलाफ मारपीट का, दहेज़ की मांग का, पति और उसके घरवालों द्वारा अपमानित किए जाने, सास को उसका पढ़ाई करना पसंद नहीं है, ससुराल के लोग उसकी मदद नहीं करते जैसे अन्य आरोप लगाए। हाई कोर्ट के सामने अपील में, पत्नी ने आरोप लगाया कि यह वास्तव में उसके प्रति उसके पति का व्यवहार था जिसने उसे अपने नाबालिग बेटे के साथ ससुराल से बाहर जाने के लिए मजबूर किया था। साथ ही पत्नी ने आरोप लगाया कि तलाक की डिक्री पारित करते समय, फैमिली कोर्ट ने केवल पति के पहलुओं और विवादों पर विचार किया और विरोधाभासों के बावजूद, उसके द्वारा प्रस्तुत सबूतों पर विश्वास नहीं किया। उसने दावा किया कि उसके प्रति पति की हरकतें उनके अलगाव का कारण थीं।

क्या है पूरा केस

इस केस में पति, पेशे से जॉइंट कमिश्नर इनकम टैक्स है और पत्नी एक आईपीएस अधिकारी की बेटी। दोनों की शादी साल 2009 में हुई थी। हालांकि, उनकी शादी नहीं चल पाई। पत्नी अपने बेटे को लेकर पति का घर छोड़ कर 2013 में अपने पिता के घर चली गई। इसके खिलाफ पति ने जयपुर में फैमिली कोर्ट में’क्रूरता’ और ‘परित्याग’ के आधार पर तलाक की मांग वाली याचिका दायर की। बाद में, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार याचिका को भोपाल की अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था।

पति ने अपनी पत्नी पर आरोप लगाया था कि पत्नी, जो एक आईपीएस अधिकारी की बेटी है, बहुत घमंडी, जिद्दी, गुस्सैल और दिखावा करने वाली थी और वह उसके परिवार के सदस्यों का अपमान भी करती थी। पति ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष पत्नी पर आरोप लगाया था कि जिस दिन से उसकी पत्नी ने अपने ससुराल में प्रवेश किया, उसने यह कहते हुए सभी की अवज्ञा करना शुरू कर दिया कि वह एक प्रगतिशील लड़की है और न तो रूढ़िवादी परंपराओं को पसंद करती है और न ही उसका पालन करती है।

हाई कोर्ट ने फैसला देते समय यह बात मानी कि फैमिली कोर्ट अपने बहुत लंबे फैसले में स्पष्ट रूप से हर पहलू को छूते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि पति और उसके गवाहों के बयान विश्वसनीय थे जबकि पत्नी के आरोप टिक नहीं पाए। हाई कोर्ट ने भी फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय पर मुहर लगा दी और इस निष्कर्ष पर पहुंची कि पत्नी पति के साथ नहीं रहना चाहती और पत्नी द्वारा अपने वैवाहिक घर छोड़ने के लिए बताए गए कारण संतोषजनक नहीं हैं और न ही उचित हैं इसीलिए फैमिली कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला सही है।

कानून की नज़र में यह क्रूरता है या कोर्ट पितृसत्तात्मक मानसिकता को पोषित कर रहा है

“वह नहीं मानेगी”, “वह परिवार तोड़ देगी”, “वह बेटे को अपना गुलाम बनाएगी” या “वह अपने ससुराल वालों को प्रताड़ित करेगी” भारतीय परिवारों में भविष्य की बहुओं के बारे में ऐसी धारणाएं बहुत आम हैं। जब भी कोई पुरुष शादी करता है, तो उसका परिवार आनेवाली बहू से कुछ उम्मीदें बांधता है। एक बहू को रसोई और घर के कामकाज के लिए समर्पित होना चाहिए, उसे अपने ससुराल वालों और उनकी मांगों का सम्मान करना चाहिए, उसे अपने पति को खुश रखना चाहिए, उसे घर से बाहर कम ही निकलना चाहिए, उसे माता-पिता के परिवार की तुलना में अपने वैवाहिक परिवार को प्राथमिकता देनी चाहिए, उसे घर के वित्तीय मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, उसे परिवार के लिए कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए और उसे परिवार के चिराग (आमतौर पर लड़का) को पालना चाहिए। ये उम्मीदें पितृसत्तात्मक समाज की ‘बहु कैसी होनी चाहिए’ की परिभाषा में निहित हैं। 

पति ने पत्नी पर यह आरोप भी लगाए कि उसने उसके माता-पिता का पहले दिन से ही अपमान किया। फैमिली कोर्ट ने पति की इस बात पर विश्वास कर लिया। लेकिन जब पत्नी ने यही आरोप लगाए कि उसके पति ने कई बार उसके माता-पिता के साथ बदतमीज़ी की और उनका अपमान किया तो कोर्ट ने उसके आरोप को नहीं माना।

लेकिन आज के समय में दुनिया में जहां महिलाओं ने स्वतंत्र होने की ज़रूरत को समझा है और खुद के लिए आवाज़ उठाई है, इस प्रकार की उम्मीदों को ख़ुद-ब-खु़द ही चुनौती मिल जाती है। आज महिलाएं अपनी जरूरतों को प्राथमिकता दे रही हैं, अपनी राय व्यक्त कर रही हैं और अपने अधिकारों की मांग कर रही हैं। महिलाओं का यह बदला हुआ रूप पितृसत्तात्मक समाज और परिवारों की आंखों की किरकिरी बन गया है। इन परिवारों ने लंबे अरसे से चली आ रही बहू की पितृसत्तात्मक परिभाषा को आदर्श बना दिया है। परिणामस्वरूप वे उन महिलाओं के खिलाफ विद्रोह करते हैं जो अलग हैं। नतीजतन, ऐसे परिवार चली आ रही एक ‘अच्छी’ बहू के गुणों की कमी के कारण बहुओं की वर्तमान पीढ़ी को खलनायक बना रहे हैं।

उपर्युक्त केस में भी जब पत्नी ने मुंह दिखाई की रस्म के लिए मना कर दिया तो उसके ससुरालियों को अच्छा नहीं लगा। उनका कहना था कि यह पीढ़ियों से चली आ रही रस्म है। जबकि पत्नी का कहना था कि उसे दूसरों को सामने शोपीस की तरह नहीं आना। उसे कोई भी पीढ़ियों पुरानी रस्म को नहीं मानना। पुरानी चली आ रही रस्मों को मानने से बहु द्वारा मना कर देना बदतमीज़ी कैसे हो गई? क्या फायदा उस शिक्षा को जो पुरानी चली आ रही ऊंट-पटांग रीतियों को मानता रहे। 

“वह नहीं मानेगी”, “वह परिवार तोड़ देगी”, “वह बेटे को अपना गुलाम बनाएगी” या “वह अपने ससुराल वालों को प्रताड़ित करेगी” भारतीय परिवारों में भविष्य की बहुओं के बारे में ऐसी धारणाएं बहुत आम हैं।

पितृसत्तात्मक समाज में घर के पुरुषों को अपनी मनमानी करने की आज़ादी है क्योंकि लड़के तो ऐसे ही होते हैं। लेकिन बहुओं को परिवार या समाज के एक सम्मानित सदस्य के रूप में स्वीकार किए जाने के लिए पितृसत्तात्मक नैतिकता की कड़ी रस्सी पर चलना पड़ता है, चाहे वह कितनी भी पुरानी क्यों न हो। लेकिन यह असमानता कब तक हमारे जीवन पर राज करेगी? कब पितृसत्ता हमारे जीवन का नियम बनाना बंद करेंगे?

ससुराल के प्रति लापरवाह क्यों होते हैं पुरुष?

पति ने पत्नी पर यह आरोप भी लगाए कि उसने उसके माता-पिता का पहले दिन से ही अपमान किया। फैमिली कोर्ट ने पति की इस बात पर विश्वास कर लिया। लेकिन जब पत्नी ने यही आरोप लगाए कि उसके पति ने कई बार उसके माता-पिता के साथ बदतमीज़ी की और उनका अपमान किया तो कोर्ट ने उसके आरोप को नहीं माना। कोर्ट के अनुसार पत्नी ने अपनी बात को साबित करने के लिए संतोषजनक सबूत पेश नहीं किए और जो गवाह/सबूत पेश किए वे उसके आरोप को साबित नहीं कर पाए। क्या पत्नी के माता-पिता, रिश्तेदार पति के लिए आदरणीय नहीं हैं? क्या इज़्ज़त/सम्मान/ आदर करने का सारा ठेका बहु और बहु पक्ष का होता है?

पत्नी के माता-पिता का क्या? पितृसत्तात्मक रूढ़ि में अक्सर देखा जाता है कि भारतीय पति अपने ससुराल वालों के प्रति लापरवाह होते हैं और उनसे किसी भी तरह की बातचीत से बचते हैं। इस पर सवाल भी नहीं उठाया जाता क्योंकि एक बेटी का परिवार उसके पति का उनकी बेटी से शादी करने के लिए आभारी होता है। अगर शादी दो लोगों के बीच का बंधन है, तो क्या अपने ससुराल वालों की देखभाल करना, उनका आदर करना पति की समान ज़िम्मेदारी नहीं है? इसके उलट महिला को अपने माता-पिता और ससुराल वालों के बीच चयन करने के लिए मजबूर किया जाता है। इसके अलावा, भारतीय परिवारों में, विवाह के बाद, केवल बेटों को ही अपने माता-पिता को एक सुखी जीवन देने के लिए सक्षम और ज़िम्मेदार के रूप में देखा जाता है और इसलिए उन्हें उनके साथ रहने की अनुमति दी जाती है। जबकि बेटियों को दूसरे परिवार में भेज दिया जाता है जो उसका भरण-पोषण करेंगे और उसे सुरक्षित रखेंगे। क्या ये परंपराएं आज भी प्रासंगिक हैं?

पुरुषों और महिलाओं के लिए इतने अलग-अलग नियम क्यों?

कोर्ट ने इस केस में पत्नी द्वारा पति के घर वालों का आदर न करना, पति के साथ छोटे-छोटे मुद्दों पर लड़ना- बहस करने को पति के प्रति मानसिक क्रूरता माना। क्या पत्नी के घर वालों का उसके पति द्वारा अपमान करना, पत्नी के साथ मार-पीट करना, पत्नी की मदद न करना पत्नी के खिलाफ मानसिक क्रूरता नहीं है। कोर्ट ने पत्नी के आरोपों को इसलिए नहीं माना क्योंकि वो सबूत और गवाह पेश नहीं कर पाई। एक पत्नी अपने कमरे में हुई मार-पीट के खिलाफ किसको गवाह बना सकती है? ऐसे स्थिति में अपने बेटे के खिलाफ जाते हुए क्या उसके ससुराल पक्ष के लोग उसके पक्ष में गवाही दे सकते हैं? यह बात सोचने का विषय है। बहुओं को उद्दंड होना, अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ और दुस्साहसी होना गलत नहीं है। क्या यह समाज पुरुषों को समान व्यवहार के लिए गलत मानेंगे? अगर नहीं तो वहीं रुक जाइए और पूछिए कि पुरुषों और महिलाओं के लिए इतने अलग-अलग नियम क्यों?


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content