तमाम कुशलता और योग्यता होने के बावजूद ट्रांस समुदाय को समाज के हर अवसर से दूर रखा जाता है। इसी तरह खेल के क्षेत्र में भी ट्रांस समुदाय के साथ लगातार भेदभाव जारी है। नये-नये निर्देशों के ज़रिये ट्रांस समुदाय को खेलों में आगे आने से रोका जाता है। हाल ही में खेलों में ट्रांसजेंडर महिला खिलाड़ियों को लेकर ऐसा निर्देश आया है जिससे उनपर प्रतियोगिता में शामिल होने पर रोक लगा दी गई है।
वर्ल्ड एथलेटिक्स ने तय किया है कि ट्रांसजेंडर एथलीट महिलाएं ट्रैक एंड फील्ड में हिस्सा नहीं लेगी। डीडब्ल्यू में प्रकाशित ख़बर के अनुसार ट्रांसजेंडर महिलाओं को प्रतियोगिता में अनुचित लाभ मिल रहा था। वर्ल्ड एथलेटिक्स के अध्यक्ष सेबेस्टिय कोए ने कहा है कि यह काउंसिल 31 मार्च 2023 से महिला विश्व रैंकिंग प्रतियोगिताओं में फीमेल ट्रांसजेंडर एथलीटों को बाहर करने पर सहमत हो गई है। कोए ने कहा है कि वर्ल्ड एथलेटिक्स ने फैसला लेने से पहले इंटरनैशनल ओलंपिक कमेटी, नैशनल फेडरेशन और ट्रांस समूहों के साथ इस पर चर्चा की थी।
उन्होंने यह भी कहा है कि परामर्श करने वालों में से अधिकांश ने ट्रांसजेंडर एथलीट्स के महिला वर्ग में प्रतिस्पर्धा न करने को सही माना है। काउंसिल ने यह फैसला महिला कैटेगिरी की व्यापक आवश्यकताओं को सुरक्षित करने के लिए उठाया है। कई लोगों का मानना है कि इस बात के अपर्याप्त सबूत है कि ट्रांस महिलाएं, बायोलॉजिक महिलाओं के बराबर शारीरिक लाभ रखती हैं। महिला वर्ग में शामिल करने के विकल्प से पहले वे इस दिशा में अधिक सबूत चाहते हैं।
डीएसडी एथलीटों को किसी भी अंतरराष्ट्रीय ट्रैक और फील्ड इवेंट में महिला वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने के लिए खून में टेस्टोस्टेरोन का लेवल 2.5 नैनोमल पर लीटर तक रखने की आवश्यकता होगी और दो साल तक इस सीमा के तहत रहना होगा।
काउंसिल ने ‘ट्रांसजेंडर्स समावेशन के मुद्दे’ पर आगे विचार करने के लिए 12 महीने के लिए एक वर्किंग ग्रुप बनाया है। इस ग्रुप का नेतृत्व एक स्वतंत्र अध्यक्ष करेगा, जिसमें तीन परिषद सदस्य, एथलीट आयोग के दो एथलीट, एक ट्रांसजेंडर एथलीट, तीन वर्ल्ड एथलेटिक्स के प्रतिनिधित्व और वर्ल्ड एथलीट हेल्थ और साइंस डिपार्टमेंट के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। यह समूह विशेष तौर पर ट्रांसजेंडर एथलीटों के साथ परामर्श करेगा, समीक्षा करेगा और काउंसिल को सिफारिशें देगा।
पिछले नियम क्या थे?
बीबीसी में छपी रिपोर्ट के अनुसार पिछले नियमों के तहत वर्ल्ड एथलेटिक्स में ट्रांसजेंडर महिलाओं को अपने खून में टेस्टोस्टेरोन की मात्रा को अधिकतम 5एनएमओएल तक कम करने तक का था। साथ ही महिला वर्ग में प्रतियोगिता में खेलने से पहले 12 महीने की अवधि तक इसे लगातार बरकरार रखने की ज़रूरत थी।
डीएसडी के नियमों में भी बदलाव
वर्ल्ड एथलेटिक्स ने नये नियमों को अपनाने के लिए भी मतदान किया है जो डिफेरेंस इन सेक्स डेवलेपमेंट (डीएसडी) जैसे दक्षिणी अफ्रीकी कास्टर सेमेन्या और अन्य खिलाड़ियों को भी प्रतिस्पर्धा से दूर रख सकते हैं। डीएसडी एक समूह है जिसमें किसी व्यक्ति के हार्मोन, जीन, प्रजनन अंग महिलाओं और पुरुष के मिश्रण हो सकते हैं।
डीएसडी एथलीटों को किसी भी अंतरराष्ट्रीय ट्रैक और फील्ड इवेंट में महिला वर्ग में प्रतिस्पर्धा करने के लिए खून में टेस्टोस्टेरोन का लेवल 2.5 नैनोमल पर लीटर तक रखने की आवश्यकता होगी और दो साल तक इस सीमा के तहत रहना होगा। पिछले नियमों के तहत डीएसडी एथलीटों को केवल 400 मीटर से एक मील तक के इवेंट में भी प्रतिबंधित किया था।
कोए ने कहा है इस बदलाव के बाद 13 डीएसडी एथलीट्स के प्रभावित होने की संभावना है। जिसमें से सात एक मील के रनिंग इवेंट में हिस्सा लेते थे और छह 400 मीटर से नीचे की दौड़ में हिस्सा लेते थे। इसमें दो बार की 800 मीटर ओलंपिक चैंपियन सेमेन्या भी शामिल है। उन्होंने कहा है कि 13 में से कोई भी अब अगस्त में होने वाली विश्व एथेलेटिक्स चैंपियनशिप में प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं होंगे। भविष्य में 2024 में ओलंपिक सहित अन्य प्रतियोगिताओं के लिए उन्हें अपने शरीर में टेस्टोस्टेरोन को आवश्यक स्तर पर बनाए रखना होगा।
खिलाड़ियों समेत महासंघ तक ने की आलोचना
विश्व एथलेटिक्स के इस फैसले की ट्रांसजेंडर एथलीट्स ने निंदा की हैं। रायटर्स में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़ कनाडा के साइकलिस्ट क्रिस्टीन वर्ली ने कहा हैं कि विश्व एथलीट का यह फैसला निराशाजनक है। उन्होंने कहा है कि सबसे वंछित समुदाय के लोगों को राजनीति के कारणों पर खेल से बाहर किया जा रहा है न कि विज्ञान और शोध के आधार पर। इसका न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असर पडे़गा बल्कि इसके परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका में समुदायों समेत पूरी दुनिया में इसका असर पड़ेगा। क्रिस्टीन वर्ली अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति की लैंगिक नीतियों को कानूनी रूप से चुनौती देने वाले ट्रांस खिलाड़ी हैं।
ऑस्ट्रेलिया के पेशेवर दौड़ में भाग लेने वाले पहले ट्रांसजेंडर एथलीट रिकी कफलान का कहना है कि डब्ल्यूए के फैसले से ट्रांसजेंडर लोगों के ख़िलाफ़ नफरत की ताकतों को बढ़ावा मिलेगा। रिकी आगे कहते हैं कि नफरत की ताकतें नहीं चाहती कि ट्रांसजेंडर लोग समाज में मौजूद रहें। वे इसे अपनी जीत के तौर पर लेंगे। नियमों के बदलाव पर न्यूजीलैंड देश के फेडरेशन ने कहा है कि ट्रांसजेंडर एथलीट का विषय बहुत ही संवेदनशील है। नये नियमों को समझने और पचाने में वक्त लगेगा।
हर स्तर पर ट्रांस खिलाड़ियों को रोकने वाले फैसलें
वर्ल्ड एथलेटिक्स का यह फैसला एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के ख़िलाफ़ है। ऐसे नियम निर्देश उन्हें खेलों में भाग लेने और सामाजिक पहचान बनाने से वंचित करने वाले हैं। लगातार ट्रांस समुदाय के लोगों को खेलों के प्रति हतोत्साहित करने के लिए नियमों में बदलाव किया जा रहा है। एथलेटिक्स में बैन हाल का मामला नहीं है। द गार्डियन में छपी ख़बर के अनुसार इससे पहले महिला खेलों से 2020 में विश्व रग्बी प्रतियोगिता पर रोक लगी। पिछले साल विश्व तैराकी और रग्बी फुटबाल लीग के बाद से ट्रांसजेंडर महिलाओं को प्रतिबंधित किया गया। द न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़ पिछले दो सालों में अमेरिका के 18 राज्यों में ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों के खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए बाधित करने वाले नियम लागू किए गए हैं।
कनाडा के साइकलिस्ट क्रिस्टीन वर्ली ने कहा है कि विश्व एथलीट का यह फैसला निराशाजनक है। उन्होंने कहा है कि सबसे वंछित समुदाय के लोगों को राजनीति के कारणों पर खेल से बाहर निकाला जा रहा है न कि विज्ञान और शोध के आधार पर। इसका न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असर पडे़गा बल्कि इसके परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका में समुदायों समेत पूरी दुनिया में इसका असर पड़ेगा।
खेलों को एकता, समानता, सम्मान और निष्पक्षता का प्रतीक माना जाता है। खेलों के माध्यम से लोगों को जोड़ने की बात कही जाती है। ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए खेल संगठनों में ये भावनाएं नजर नहीं आती है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के उदासीन और राजनैतिक पक्षपाती पक्ष उनकी न के बराबर मौजूदगी को भी खत्म करने की दिशा में फैसले ले रही है। नियमों में बदलाव कर बैन और पक्षपाती सेक्स परीक्षण इसका प्रणाम है।
डीडब्ल्यू मे छपी जानकारी के मुताबिक़ अमेरिका में कई राज्यों में ट्रांस महिलाओं के खेलों बैन लगाने के बाद खेल वैज्ञानिकों ने स्थिति में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप करते हुए कहा था कि ट्रांस खिलाड़ियों को कोई प्राकृतिक बढ़त हासिल होती हो ऐसा साबित करने के लिए ज्यादा डेटा नहीं है। इसलिए हर खेल को अपनी ज़रूरतों के हिसाब से ट्रांस महिलाओं की भागीदारी पर फैसला लेना चाहिए। इंटरनैशनल फेडरेशन ऑफ स्पोर्टस मेडिसिन का सुझाव है कि आईओसी को जिम्मेदारी लेकर विज्ञान के आधार पर निष्पक्ष और समावेशी नियम बनाने चाहिए।