इंटरसेक्शनलLGBTQIA+ लैंगिक पहचान के कारण ट्रांस महिला टीचर को स्कूल ने नौकरी से निकाला, अब स्कूल को प्रशासन ने दी क्लीनचिट

लैंगिक पहचान के कारण ट्रांस महिला टीचर को स्कूल ने नौकरी से निकाला, अब स्कूल को प्रशासन ने दी क्लीनचिट

स्कूल प्रशासन ने उन्हें अपनी लैंगिक पहचान छुपाने के लिए कहा था और फिर एक हफ्ते के भीतर ही उनपर रिजाइन करने का दबाव बनाया गया। उन्होंने स्कूल में अपने साथ बुरा व्यवहार करने का आरोप भी लगाया। स्कूल की और उन्हें निकालने की वजह ये दी गई कि वे सोशल साइस पढ़ाने में अच्छी नहीं है।

अक्सर शिक्षा और यौनिकता पर बात करते ही ये सवाल सामने आता है कि यौनिकता के मुद्दे का शिक्षा के क्षेत्र से क्या लेना देना है? लेकिन फिर भी स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर की लैंगिक पहचान क्या है? ये बात भारतीय समाज में ज्यादा महत्व रखती है। स्कूल में पढ़ाने वाला पुरुष है या स्त्री या फिर कोई अन्य लैंगिक पहचान रखता ये बहुत मायने रखता है। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि उत्तर प्रदेश में हाल में हुई घटना के बाद कहा जा रहा है। बीते महीने उत्तर प्रदेश के लखीमपुरी जिले के एक निजी स्कूल में एक टीचर को केवल उनकी लैंगिक पहचान की वजह से नौकरी से निकाल देने की ख़बर सामने आई। ट्रांस समुदाय से ताल्लुक रखने वाले टीचर को नौकरी देने के महज कुछ दिनों के भीतर निकाल दिया गया।

द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के अनुसार दिल्ली की रहने वाली 29 वर्षीय ट्रांस महिला को उत्तर प्रदेश के लखीमपुरी जिले के एक निजी स्कूल में 22 नवंबर 2022 को टीचर के पद पर नियुक्त किया गया था। उन्हें स्कूल के कुछ लोगों और विद्यार्थियों के सामने अपनी लैंगिक पहचान जाहिर करने पर स्कूल प्रशासन ने नौकरी से निकाल दिया है। प्रशासन ने आरोप लगाया है कि वह सामाजिक विज्ञान पढ़ाने में अच्छी नहीं थी इस वजह से उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया है।

टीचर ने आरोप लगाया है कि वह अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान के शिक्षक तौर पर नियुक्त की गई थी। स्कूल प्रशासन ने उन्हें अपनी लैंगिक पहचान छुपाने के लिए कहा था और फिर एक हफ्ते के भीतर ही उनपर रिजाइन करने का दबाव बनाया गया। उन्होंने स्कूल में अपने साथ बुरा व्यवहार करने का आरोप भी लगाया। स्कूल की ओर से उन्हें निकालने की वजह ये दी गई कि वे सोशल साइस पढ़ाने में अच्छी नहीं है। इस पूरे मामले को बाद में दिल्ली में राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी संज्ञान में लिया। जिला स्तर पर एक कमेटी द्वारा जांच की बात कही गई। मीडिया में छपी ख़बर के अनुसार जिला स्तरीय जांच कमेटी में स्कूल को क्लीनचिट दे दी गई। एनसीडब्ल्यू को भेजी जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि टीचर के द्वारा लगाए आरोप सही नहीं मिले हैं। दूसरी तरफ ट्रांस महिला टीचर इस रिपोर्ट को चुनौती देने के लिए कानूनी सलाह ले रही है।

इस मामले में फिलहाल क्या चल रहा है फेमिनिज़म इन इंडिया ने टीचर जेन कौशिक से बात करके उनका पक्ष जानने की कोशिश की। हमसे बात करते हुए जेन कौशिक ने हमें इस मामले के बारे में बताते हुए कहा, “इस स्कूल में मेरे चार इंटरव्यू राउंड होने के बाद जब ज्वाइनिंग के लिए गई तो रिपोर्टिंग के दौरान यहां लोगों को पता लगा कि मैं ट्रांसजेंडर महिला हूं। लेकिन इन्होंने फिर वही शर्त रखी कि आपको अपनी पहचान छुपानी है। तब मैने भी सोचा कि अब ये बात मान लेनी चाहिए तो मैंने कहा कि ठीक है मैं अपनी पहचान नहीं बताऊंगी। उसके बाद एक हफ्ते के बाद प्रिंसिपल ने अपने ऑफिस में बुलाकर मुझे ये कहा कि किसी बच्चे को पता चला है और अब आपको जाना पड़ेगा। उस दौरान जब मुझे ये कहा गया वहां प्रिसिंपल के अलावा स्कूल के दो अन्य पुरुष टीचर भी मौजूद थे। उस समय मैं अपना पक्ष रखने की कोशिश कर रही थी और मुझे प्रिंसिपल द्वारा बोला जाता है कि अगर तुम्हें ये नौकरी इतनी ही ज़रूरी थी तो किसी बच्चे को क्यों बताया। हालांकि मुझे ऐसा लगता है कि एक तरह की संभावना की जा रही थी स्कूल प्रशासन अब आपको यहां काम नहीं करने दे सकता इसलिए आप इस्तीफा दे दो। मैं लगातार अपनी बात कहने को कोशिश कर रही थी लेकिन वो लोग मेरी बात सुन नहीं रहे थे और ये सारा इल्जाम भी मुझ पर ही डाल दिया गया।”

“इसके बाद न्यूजपेपर में ये बात आई राष्ट्रीय महिला आयोग ने इसे संज्ञान में लिया। दरअसल, ख़ासतौर पर ट्रांसजेंडर समुदाय के मामलों में लोग चुप होकर बैठ जाते हैं। लेकिन जब मैंने इसका विरोध किया, मीडिया और एनसीडब्ल्यू के मामले में आने के बाद फिर मुझे स्कूल प्रशासन की तरफ से एक नोटिस मिला। इस नोटिस में मुझ पर एक करोड़ की मानहानि की बात कही गई। स्कूल वालों ने कहा कि आपने हमारे स्कूल की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है। मामले को मीडिया में ले गई है और हम मामला कोर्ट में ले जाएंगे। इसके बाद हमने भी लीगल नोटिस के जवाब में कुछ प्रूफ के साथ स्कूल को एक नोटिस बनाना शुरू कर दिया। उसके बाद हम स्कूल को अपनी तरफ से एक नोटिस भेजते हैं जिसमें लिखा होता है कि एक तो आपने गलत तरीके से मेरा टर्मिनेशन किया है। दूसरा आपने ट्रांसजेंडर ऐक्ट 2019 का उल्लघंन किया है और मैंने मानहानि का विरोध किया गया।” 

स्कूल में अपने अनुभव के बारे में बताते हुए जेन का कहना है, “इसको समझने के लिए हमें व्यापक तौर पर चीजें देखनी होगी। देखिए 2014 में नालसा जजमेंट के बाद कुछ सिफारिशें सामने रखी गई थी। ट्रांसजेंडर को अधिकार मिलें, उन्हें सम्मान मिलें। हम भारत के अन्य लोगों की तरह अपना जीवन जिएं लेकिन सरकार ने हमें आरक्षण के माध्यम से नौकरी नहीं दी। हमारा रिप्रेजंटेशन बनाने के लिए कोई पहल नहीं की है। जब पब्लिक सेक्टर में हमें लाने की पहल नहीं की जा रही है तो फिर प्राइवेट सेक्टर कैसे आगे बढ़ेगा।

“इसी बीच एनसीडब्ल्यू में डीएम की रिपोर्ट आ जाती है। इसमें जो डीएम की कमेटी बनी थी और मैंने जो प्रूफ दिए थे उनको कंसीडर न करके जो रिपोर्ट बनाकर भेजी है उसमें स्टूडेंट्स और टीचर का मेरे ख़िलाफ़ बयान दिए गए हैं। मुझे ऐसा लगता है उनको एक तरह से इंफ्यूलेंस किया गया है क्योंकि ऐसा कुछ नहीं था। आप खुद ही देखिए वे स्कूल के बच्चे हैं, स्कूल के टीचर हैं वे स्कूल से ऊपर उठकर क्यों बोलेंगे। मैं उस रिपोर्ट पर यही कहूंगी कि मेरे हिसाब से वो एक पक्षीय रिपोर्ट है जिसमें सिर्फ स्कूल का पक्ष रखा गया है। उसमें स्कूल के बच्चों और टीचर के द्वारा जो बयान दिए गए उनको ही ध्यान में रखा गया। मेरी कंप्लेन और पक्ष को नज़रअंदाज कर दिया। एनसीडब्ल्यू ने वह रिपोर्ट हमारे साथ शेयर की है और हमसे पूछा है कि आप इससे संतुष्ट हो या नहीं।” जेन कौशिक ने बताया कि जांच रिपोर्ट के जवाब के लिए वह अपने वकीलों से बात कर रही है।

मेरे लिए मेरी नौकरी बहुत मायने रखती है

आगे की कार्रवाई के बारे में जेन कौशिक का कहना है, “अब मैं अपने वकील के साथ मिलकर आगे के बारें में योजना बना रही हूं। देखिए मेरे लिए जॉब बहुत महत्वपूर्ण है तो मामले में सहमति की बात भी की गई। जब मैंने लीगल नोटिस भेजा तो उन्होंने वही स्टेटमेंट रखा कि वह सोशल साइंस पढ़ाने में कमजोर थी और अगर वह कॉम्पिटेटिव फील करे तो वह हमारे स्कूल में आ सकती है। इसके बाद स्कूल के जो डॉयरेक्टर हैं संजीव गुप्ता उनसे मेरी बात हुई है। मैंने उनके सामने बात रखी की मेरी जेंडर आइडेंटिटी को लेकर जिस तरह का व्यवहार मेरे साथ हुआ है और मुझे अपमानित किया गया है उसपर माफी मांगी जाएं। दूसरा स्कूल में एक कंप्लेन कमेटी बनाई जाएं क्योंकि जब मेरे साथ ये सब हो रहा था तो स्कूल में ऐसा मैकेनिज़म नहीं था मैं अपनी बात रख सकूं। वहां का माहौल संवेदनशील बनाने के लिए कुछ सेशन किए जाएं। मेरी सबसे ज़रूरी मांग केवल ये है कि मुझे मेरी नौकरी वापस की जाएं। हमारी अनौपचारिक तौर पर बात हुई है वाह्टऐप के माध्यम से जिसमें उन्होंने कहा है कि सेशन कर सकते हैं और दूसरा आप नौकरी में वापस आना चाहती है तो आपको टेस्ट देना पड़ेगा। अगर आप टेस्ट में पास होती है तो हम आपको नौकरी में वापिस रख लेंगे। इसके बाद मुझे स्कूल मैनेजमेंट की तरफ से एक मेल मिला है जिसमें एग्जाम के बारे में ज़िक्र है कि कब होगा, कैसे होगा और क्या लेवल होगा इन सब बातों के बारे में ज़िक्र किया गया।” 

“साल 2020 के बाद से मैं नौकरी ढूढ़ रही हूं। दिल्ली में कई जगह से नकार दिए जाने के बाद मैंने लखीमपुर खीरी के स्कूल में अप्लाई किया था। ऐसा अक्सर होता है मेरे इंटरव्यू क्लीयर हो जाते है, सैलरी पर बात बन जाती है और जैसे ही मैं अपनी जेंडर आइडेंटिटी के बारे में बताती हूं वे लोग कहते है कि मैम यहां ऐसा नहीं हो सकता। दिल्ली में कहा जाता है कि ये मुंबई नहीं है। छोटे शहरों में कहा जाता है कि ये दिल्ली, मुंबई नहीं है। और ज़रूर मुंबई में दिल्ली का नाम लेकर नकार दिया जाता होगा। इससे पहले जहां मैंने नौकरी पाने के लिए अप्लाई किया था जैसे ही मैंने उन्हें बताया कि मैं एक ट्रांस महिला हूं उन्होंने मेरा रेज्यूमे देखना भी पसंद नहीं किया था।”

स्कूल में अपने अनुभव के बारे में बताते हुए जेन का कहना है, “इसको समझने के लिए हमें व्यापक तौर पर चीजें देखनी होगी। देखिए 2014 में नालसा जजमेंट के बाद कुछ सिफारिशें सामने रखी गई थी। ट्रांसजेंडर को अधिकार मिलें, उन्हें सम्मान मिलें। हम भारत के अन्य लोगों की तरह अपना जीवन जिएं लेकिन सरकार ने हमें आरक्षण के माध्यम से नौकरी नहीं दी। हमारा रिप्रेजंटेशन बनाने के लिए कोई पहल नहीं की है। जब पब्लिक सेक्टर में हमें लाने की पहल नहीं की जा रही है तो फिर प्राइवेट सेक्टर कैसे आगे बढ़ेगा। प्राइवेट स्कूल मुझे आज नौकरी देने के लिए मना कर सकता है लेकिन जब प्राइवेट स्कूल देखेगा कि सरकारी स्कूल में ट्रांसजेंडर टीचर पढ़ा रही है तो इस तरह से प्राइवेट संस्थानों में नौकरी मिलना नॉर्मल हो जाएगा। नालसा जजमेंट आ गया लेकिन जबतक सरकार नीयत के साथ काम नहीं करेंगी तबतक कुछ नहीं होने वाला। हम लोगों को ऐसे ही ट्रीट किया जाएगा। और सच कहूं तो ये सिर्फ मेरा मुद्दा नहीं है ये पूरी कम्यूनिटी का सवाल है। मेन स्ट्रीमिंग जबतक नहीं होगी तबतक ऐसा ही चलता रहेगा। हमें समाज के करीब जाने का जो अवसर होता है वो कब मिलता है जब हम नौकरी में जाते हैं, जब हम एजुकेशनल संस्थान में जाते हैं, तो हमें ना तो एजुकेशन में रिप्रेजेंटेशन मिला है और न ही नौकरी में कुछ मिला है तो मेन स्ट्रीमिंग कैसे होगी। देखिए सरकार जब साफ नीयत से पहल करेंगी तो चीजें बदलेगी।”

हर शहर में नौकरी देने से किया जाता है मना

नौकरी पाने के अनुभव के बारें में जेन का आगे कहना है, “साल 2020 के बाद से मैं नौकरी ढूढ़ रही हूं। दिल्ली में कई जगह से नकार दिए जाने के बाद मैंने लखीमपुर खीरी के स्कूल में अप्लाई किया था। ऐसा अक्सर होता है मेरे इंटरव्यू क्लीयर हो जाता है, सैलरी पर बात बन जाती है और जैसे ही मैं अपनी जेंडर आइडेंटिटी के बारे में बताती हूं वे लोग कहते है कि मैम यहां ऐसा नहीं हो सकता। दिल्ली में कहा जाता है कि ये मुंबई नहीं है। छोटे शहरों में कहा जाता है कि ये दिल्ली, मुंबई नहीं है। और ज़रूर मुंबई में दिल्ली का नाम लेकर नकार दिया जाता होगा। इससे पहले जहां मैंने नौकरी पाने के लिए अप्लाई किया था जैसे ही मैंने उन्हें बताया कि मैं एक ट्रांस महिला हूं उन्होंने मेरा रेज्यूमे देखना भी पसंद नहीं किया था। मैं काम करना चाहती हूं, जीवन में खुश रहना चाहती हूं। लेकिन समाज की तरफ से यह पहल ही नहीं की जा रही हैं। कानूनी कार्रवाई लंबी होती है। सच कहूं तो मैं खुद इसे लंबा नहीं करना चाहती मुझे नौकरी की ज़रूरत है। मुझे काम करना है, पैसा कमाना है। अब देखते है स्कूल की तरफ से भी कितनी बातों को माना जाता है। हालांकि उन्होंने अबतक कुछ भी लिखकर नहीं दिया है। हमारे इस कार्रवाई से अलग जो बात हुई है वो अनौपचारिक तौर पर हुई है। देखते हैं इसमें आगे क्या होता है लेकिन मैं बहुत क्लीयर हूं मुझे तो काम करना है। एक नार्मल लाइफ जीनी है।”

ट्रांस समुदाय को नौकरी मिलने में परेशानी

साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में ट्रांसजेंडर्स की कुल आबादी 4.88 लाख है। बात जब रोजगार की करें तो उनमें से कुछ ही लोगों के पास रोजगार है। भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019, ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए अधिनियमित किया गया था। इस अधिनियम के तहत यह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की पहचान को मान्यता देता है और साथ ही शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, और भेदभाव को रोककर सार्वजनिक और निजी सेवाओं और लाभ तक उनकी पहुंच प्राथमिकता देता है। लेकिन इससे इतर ट्रांसजेंडर की स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। अगर नौकरियों में ही उनकी बात करें तो सरकारी हो या प्राइवेट उनका प्रतिनिधित्व नज़र नहीं आता है। आउटलुक में छपी ख़बर के मुताबिक़ नैशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन की 2018 के अध्ययन के अनुसार 96 प्रतिशत ट्रांसजेंडर्स को नौकरी से नकार दिया गया जिस वजह से वे आजीविका से कम और भीख मांगने या सेक्स वर्कर्स के तौर पर काम किया। इस अध्ययन के अनुसार 89 प्रतिशत ट्रांसजेंडर्स का कहना था कि योग्यता होने के बावजूद उनके पास नौकरी नहीं है। 

उत्तर प्रदेश के स्कूल में हुआ मामला ऐसा पहला या एकलौता मामला नहीं है जिसमें लैंगिक पहचान की वजह से व्यक्ति को नौकरी मिलने में परेशानी हो रही है। ट्रांसजेंडर्स कि स्थिति पर आधारित अनेक अध्ययन और रिपोर्ट में आंकड़े यह स्पष्ट करते हैं कि भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपनी पहचान जाहिर करने से किस-किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। तमाम शैक्षिक योग्यता होने के बावजूद उन्हें काम देने से मना कर दिया जाता है। अभी भी इस समुदाय को मुख्यधारा में लाने के लिए बहुत कदम उठाने की ज़रूरत है।


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