भारत के उत्तर-पूर्व के इतिहास में नज़र डालने पर कई सेनानियों, राजाओं, समाज-सुधारकों की बहादुरी के किस्से मिलते हैं। ठीक इसी तरह उत्तर-पूर्व भारत के इतिहास में ऐसी कई महिलाओं की कहानियां भी हैं जिन्होंने अपने राज्य के लिए सब कुछ न्यौछावर कर दिया था। इन्हीं नामों में से एक नाम हैं मुला गभारू। वह अहोम साम्राज्य की मुगलों से रक्षा करनेवाली असम की एक वीरांगना थीं।
मुला गभारू का वास्तविक नाम नांग मुला था। उनका जन्म 1486 में हुआ था। वह अहोम राजा चाओफा सुपिम्फा की बेटी थीं। उनकी शादी अहोम साम्राज्य के अधिकारी फारसेंगमुंग बोर्गोहेन से हुई थी। अहोम साम्राज्य की बड़े अधिकारी की पत्नी होने के कारण उन्हें मुला गभारू कहा जाता है।
1528 से 1532 के बीच मुगल सैनिकों ने अहोम राज्य पर दो बार आक्रमण किया। इन दो आक्रमण के पहले मुगल सैनिकों के द्वारा अहोम राज्य पर चार बार आक्रमण किया था। दोनों हमलों का नेतृत्व मुगलों की ओर से तुर्बक खान ने किया था। इस आक्रमण के दौरान अहोम साम्राज्य के राजा सुहंगनमंग थे। सुहंगनमंग मुला गभारू का बड़ा भाई था।
पति को युद्ध के लिए किया तैयार
मुला के पति को यह पता चला कि मुगलों के साथ युद्ध में ताई-अहोम के मंत्री और अन्य ने युद्ध में जान गंवा दी है। मुला ने अपने पति से युद्ध पर जाने और मातृभूमि की सुरक्षा करने के लिए कहा। मुला गभारू ने कहा था, “असम के आसमान पर काले बादल मंडरा रहे हैं। दुश्मन से असम को मुक्त रखने के लिए युद्ध करो।” बारगोहैन फरसेंगमुंग अपनी पत्नी की बात सुनकर अत्यधिक प्रभावित हुए और युद्ध के लिए रवाना हो गए। उन्होंने बहादुरी से लड़ाई लड़ी और आखिर सांस तक मुगलों का सामना किया। 1527 ई. के अहोम और मुगल साम्राज्य के युद्ध में फरसेंगमुंग युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे।
मुला गभारू की वीरता असम के लोगों के लिए एक बेहतरीन मिसाल है। साल 1532 में वह अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ते हुए रणभूमि में ही वीरगति को प्राप्त हो गई।
अहोम साम्राज्य की स्थिति युद्ध में अत्यधिक खराब हो गई थी। पति की मौत की ख़बर सुनकर मुला गभारू सदमे में आ गई। उस समय अहोम साम्राज्य पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। अहोम साम्राज्य की सेना के कई सैनिक मारे गए थे। मुला गभारू ने अपना गम भुलाकर शांति से पूरे साम्राज्य के बारे में सोचा। उन्होंने मुगलों से युद्ध के लिए खुद को तैयार किया और रणभूमि में शामिल हो गई।
मातृभूमि की रक्षा के लिए औरतों को किया प्रेरित
मुला गभारू ने महिलाओं को युद्ध में सहायता करने के लिए कहा। युद्ध में उनका नेतृत्व पाकर महिलाओं ने अपने मातृभूमि को स्वतंत्र रखने के लिए युद्ध में हिस्सा लिया। असम की आम महिलाएं जयंती, पामिला और ललिता समेत कइयों ने मुला गाबरू का मुगलों के ख़िलाफ़ युद्ध में साथ दिया।
अहोम साम्राज्य की सेना मुगल सैनिकों के मुकाबले कम थी लेकिन उनके जोश में कोई कमी नहीं थी। मुगल सैनिकों की बड़ी सेना का इन महिलाओं ने डटकर विरोध किया। अपनी वीरता का परिचय देते हुए मुगलों की सेना को भारी नुकसान पहुंचाया। सैनिक के बाद मुला गभारू का सामना मुगल नेतृत्वकर्ता तुर्बक खान से हुआ।
मुला गभारू के भीतर मातृभूमि की सुरक्षा और दुश्मन से बदला लेने की भावनाएं भरी हुई थीं। अपने पति के हत्यारे को देखकर रानी क्रोध से भर गई और उस पर टूट पड़ीं। वह अपनी आखिरी सांस तक तुर्बक खान के साथ साहस से लड़ती रहीं। उनकी यह वीरता असम के लोगों के लिए एक बेहतरीन मिसाल है। साल 1532 में वह अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ते हुए रणभूमि में ही वीरगति को प्राप्त हो गई। उनकी मृत्यु ने असम सैनिकों को विचलित नहीं किया बल्कि वे साहस से भर गए और मुग़लों का डटकर सामना किया।
उनकी मृत्यु के कुछ समय बाद ही अहोम साम्राज्य के सैनिकों ने कांसेंग बोरपत्रा गोहेन के नेतृत्व में मोख (भराली नदी) के स्थान पर तुर्बक खान को पराजित कर दिया। कांसेंग बोरपत्रा गोहेन ने उसे मार गिराया और मुगल सेना पराजित हो गई। अहोम साम्राज्य के सैनिकों के इस वीरतापूर्ण शौर्य के कारण अहोम साम्राज्य सुरक्षित रहा।
युद्ध में मुला गभारू का नेतृत्व पाकर महिलाओं ने अपने मातृभूमि को स्वतंत्र रखने के लिए रणभूमि में प्रवेश किया। असम की आम महिलाएं जयंती, पामिला और ललिता समेत कई सखियों ने उनका मुगलों के साथ युद्ध में साथ दिया।
मुला गभारू के साहस के कारण साम्राज्य इतिहास में विद्यमान रहा और एक लंबा इतिहास बना। इसमें उनके संघर्ष को भुलाया नहीं जा सकता कि कैसे उन्होंने लड़ते-लड़ते अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। अपने धीरज का परिचय देते हुए साम्राज्य के आम महिलाओं को भी दुश्मन के ख़िलाफ़ युद्ध करने के लिए प्रेरित किया।
महान योद्धा मुला गभारू की स्मृति में साल 1987 में असम के शिवसागर जिले में एक स्कूल की स्थापना हुई थी। उनकी मृत्यु के दिन 29 मई को असम के लोग उनकी स्मृति में ‘मुला गभारू दिवस’ मनाते हैं। हर साल ताई अहोम युवा परिषद इस मौके पर ‘बिरंगाना मुला गभारू पुरस्कार’ देते हैं। असम के लोगों ने अपनी स्मृतियों में मुला गभारू की इस वीरता को जिंदा रखा हैं। अपने स्मृतियों माध्यम से मुला गाबरू की बहादुरी की दास्ता को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचा रहे हैं जिससे उनके संघर्ष के बारे में पता चल सके और नयी पीढ़ी उनसे सीख सके।
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