फ्रांस की सरकार ने हाल ही में फ़ैसला किया था कि वह 18-25 साल के सभी लोगों को मुफ्त में कॉन्डम मुहैया करवाएगी। अनसेफ सेक्स के कारण बढ़ते सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन के मामलों को देखते हुए फ्रांस की सरकार ने यह फ़ैसला लिया है। हाल ही में बेंगलुरु के एक स्कूल में स्टूडेंट्स के बैग से कॉन्डम, कॉन्ट्रसेप्टिव पिल्स मिले। यहां हमारे मीडिया ने सेफ सेक्स पर बात करने की जगह इन स्टूडेंट्स को शर्मिंदा करनेवाली हेडलाइंस का इस्तेमाल किया।
ऐसी स्थिति को हैंडल करने का सही तरीका क्या होता, स्टूडेंट्स से बात की जाती, डिबेट इस बात पर होती कि ये घटना बताती है कि हमारे स्कूलों में सेक्स एजुकेशन को लागू किया जाना कितना ज़रूरी है। सेफ सेक्स से स्टूडेंट्स को परिचित करवाया जाना कितना अहम है। लेकिन सेक्स, कॉन्डम, कॉन्ट्रसेप्टिव्स, ये कुछ ऐसे शब्द हैं जिनके आस-पास हमारे समाज में तो सिर्फ और सिर्फ शर्मिंदगी जुड़ी हुई है। इसलिए इन स्टूडेंट्स को शर्मिंदा करके, मसले को वहीं खत्म कर दिया गया।
लेकिन क्या आपको लगता है कि शर्मिंदा करने से स्टूडेंट्स, किशोरों के बीच सेक्स को लेकर जो सवाल हैं वो खत्म हो जाएंगे? वे ये जानने की कोशिश नहीं करेंगे कि सेक्स होता कैसे है? अचानक से वे दूसरों के प्रति आकर्षित क्यों महसूस करने लगे हैं? क्यों उनके शरीर में बदलाव हो रहे हैं? जवाब है नहीं। लेकिन क्या इन मुद्दों पर चुप रहना, दूसरों को शर्मिंदा करना इसका सही उपाय है, इसका जवाब भी न में है।
सेक्स और इससे जुड़े मुद्दों पर ज़रूरत है ईमानदारी से जवाब देने की
आपने ज़रूर इस बात पर ध्यान दिया होगा कि जब हम अपने अभिभावकों या स्कूल में रिप्रोडक्शन से जुड़ा सवाल पूछते हैं तो कैसे जवाब हमें दिए जाते हैं। कभी परियां, कभी भगवान तो कभी मम्मी-पापा का प्यार! अगर हम सेफ सेक्स पर जागरूकता को बढ़ावा देना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे ज़रूरी है कि हम सही और ईमानदारी से इन सवालों का जवाब दें। अक्सर इन मुद्दों पर बात करने के लिए हमारे पास सही शब्द नहीं होते हैं लेकिन सवाल पूछने वाले की उम्र को ध्यान में रखते हुए हमें तथ्यों पर ही बात करनी चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि हमारे जवाब की भाषा बेहद मेडिकल या कठिन शब्दों से भरी न हो, बल्कि ऐसी हो जिसे सामने वाले को समझने में आसानी हो!
अहमियत एक सेफ स्पेस और पूर्वाग्रहों से मुक्त बातचीत की
न जाने कितने स्टूडेंट्स के साथ ऐसा होता होगा कि स्कूल में या कहीं बाहर अचानक ही पहली बार उनके पीरियड्स शुरू हो गए हो। किशोर उम्र में किसी को एहसास होने लगे कि वो मेल-फीमेल की पितृसत्तात्मक बाइनरी में खुद को फिट नहीं पाते। बाज़ार और पॉप कल्चर ने परफेक्ट बॉडी की जो छवि बेची है वह उनकी बॉडी से कितनी अलग है! ऐसे अनगिनत सवालों से हर रोज़ किशोर जूझते हैं। आपने फिल्मों में वह सीन ज़रूर देखा होगा जहां अभिभावक अपने बच्चों को डांटते नज़र आते हैं कि पहले मेरे पास क्यों नहीं आए? लेकिन आपने कभी सोचा है कि वे पहले अपने पेरंट्स के पास क्यों नहीं गए?
सेक्स और इससे जुड़े मुद्दों पर लगातार बातचीत बेहद मायने रखती है। इसमें सहमति, गर्भनिरोध, शरीर, यौनिकता, जेंडर, पितृसत्तात्मक और रूढ़िवादी सोच, लैंगिक व यौन हिंसा जैसे कई मुद्दे शामिल हैं जिन पर चर्चा कर हम सेफ सेक्स को बढ़ावा दे सकते हैं।
लेकिन उनके पास कोई ऐसा ज़रिया या समर्थन नहीं होता जहां वे अपनी बात खुलकर, बिना किसी जजमेंट के रख सकें। ऐसा बिलकुल मुमकिन है कि यौनिकता और जेंडर से जुड़े उनके कई सवालों के जवाब आपके पास न हो, ऐसे में आप किसी एक्सपर्ट की सलाह ले सकते हैं, उनके शिक्षक से बात कर सकते हैं। कई बार सवालों के सही जवाब से अधिक किशोर उम्र के बच्चों को सबसे अधिक ज़रूरत होती है समर्थन और सेफ स्पेस की जहां कम से कम बिना डरे या झिझके अपनी बात रखी जा सकें।
सिर्फ एक बार चर्चा काफी नहीं
ऐसा नहीं है कि एक बार बच्चों से सेक्स एजुकेशन पर बात कर ली और बस ज़िम्मेदारी ख़त्म। यह एक रोज़मर्रा का मुद्दा है। सवाल बच्चे कैसे पैदा होते हैं से लेकर कौन सा गर्भनिरोधक सुरक्षित है, अबॉर्शन की स्थिति में क्या करें तक जा सकता है। ऐसे में सेक्स और इससे जुड़े मुद्दों पर लगातार बातचीत बेहद मायने रखती है। इसमें सहमति, गर्भनिरोध, शरीर, यौनिकता, जेंडर, पितृसत्तात्मक और रूढ़िवादी सोच, लैंगिक व यौन हिंसा जैसे कई मुद्दे शामिल हैं जिन पर चर्चा कर हम सेफ सेक्स को बढ़ावा दे सकते हैं।
अक्सर इन मुद्दों पर बात करने के लिए हमारे पास सही शब्द नहीं होते हैं लेकिन सवाल पूछने वाले की उम्र को ध्यान में रखते हुए हमें तथ्यों पर ही बात करनी चाहिए।
क्या सेक्स एजुकेशन देने से किशोर छोटी उम्र से ही सेक्सुअली ऐक्टिव हो जाएंगे?
रिसर्च बताती है कि सेफ सेक्स पर छोटी उम्र से ही चर्चा करना किशोर और युवाओं में इस बात को बढ़ावा देता है कि वे तब ही सेक्सुअली ऐक्टिव होते हैं जब उनके पास अपने शरीर, गर्भनिरोध आदि को लेकर जागरूकता होती है। सही उम्र में इन मुद्दों पर बातचीत करके, उन्हें जानकारी देकर हम उनकी जागरूकता ही बढ़ाते हैं। UNESCO ने सेक्स एजुकेशन से जुड़ी 87 स्टडीज़ का आंकलन किया और पाया कि इनमें से एक ने भी युवाओं या किशोरों में सेक्सुअल एक्टिविटी को बढ़ावा नहीं दिया बल्कि एक तिहाई सेक्स एड प्रोग्राम ने कॉन्डम और गर्भनिरोधक के इस्तेमाल पर जागरूकता फैलाई। होलैंड, जर्मनी और फ्रांस जहां प्राइमरी स्कूलों से ही सेक्स एजुकेशन को शामिल किया जाता है वहां टीनएज प्रेग्नेंसी के मामले दुनिया में सबसे कम पाए जाते हैं।
याद रखें कि सेक्स और इससे जुड़े मुद्दों पर शर्मिंदगी की जगह बातचीत और जागरूकता को बढ़ावा देकर हम किशोर और युवाओं के जीवन को आसान और सुरक्षित ही बनाते हैं। साथ ही हमें यह समझने की ज़रूरत है कि यह न सिर्फ उनके पसंद और अधिकार बल्कि उनके स्वास्थ्य से भी जुड़ा एक बेहद अहम मुद्दा है।