इंटरसेक्शनलहिंसा लैंगिक हिंसा के सर्वाइवर्स के लिए ‘सुरक्षित शेल्टर’ की सुविधा होना क्यों है ज़रूरी

लैंगिक हिंसा के सर्वाइवर्स के लिए ‘सुरक्षित शेल्टर’ की सुविधा होना क्यों है ज़रूरी

कई रिसर्च और रिपोर्ट्स भी इस बात का हवाला देती हैं कि घर महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित स्थानों में से एक हैं। लैंगिक हिंसा सबसे अधिक परिचित और परिवारवालों द्वारा ही की जाती है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि लैंगिक/घरेलू हिंसा के सर्वाइवर्स सबसे अधिक अपने घरों में ही रहने को मजबूर होते हैं। वहां शेल्टर्स की भूमिका और अहम हो जाती है। 

नेटफ्लिक्स पर एक सीरीज़ है-मेड। सीरीज़ में मुख्य भूमिका निभा रही ऐलेक्स पेशे से घरेलू कामगार है और दूसरों के घरों में साफ-सफाई का काम करती है। वह एक मां भी है और घरेलू हिंसा की सर्वाइवर भी है। अपने पार्टनर की घरेलू हिंसा से तंग आकर वह घर छोड़ देती है। लंबे वक्त तक हिंसा का सामना करने के बाद वह शेल्टर को एक ‘लास्ट रिसॉर्ट’ यानि आखिरी विकल्प के रूप में चुनती है। चूंकि ऐलेक्स के साथ शारीरिक नहीं मानसिक और भावनात्मक हिंसा होती है इसलिए शेल्टर वाले पहले उसे घरेलू हिंसा का सर्वाइवर के रूप में देखते ही नहीं हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐलेक्स के शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं थे।

इस सीन से दो अहम बिंदु निकलकर आते हैं। पहले घरेलू हिंसा की परिभाषा को शारीरिक हिंसा तक सीमित रखना। दूसरा लैंगिक हिंसा के सर्वाइवर्स के लिए शेल्टर्स की अहमियत। किसी भी लैंगिक हिंसा के सर्वाइवर्स के लिए शेल्टर का रुख़ करना एक अहम फ़ैसला होता है। एक हिंसक माहौल से खुद को सर्वाइवर मदद की उम्मीद में अलग करते हैं। एक ऐसे समाज में जहां लैंगिक हिंसा के मामले में विक्टिम ब्लेमिंग एक अहम भूमिका निभाता है। जहां सर्वाइवर्स सबसे अधिक इसी सवाल से जूझते हैं कि अगर उन्होंने घर छोड़ दिया तो उनके सामने क्या विकल्प होगा और इसी जद्दोजहद में वे हिंसा का सामना सालों-साल करते रहते हैं। कई रिसर्च और रिपोर्ट्स भी इस बात का हवाला देती हैं कि घर महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित स्थानों में से एक हैं। लैंगिक हिंसा सबसे अधिक परिचित और परिवारवालों द्वारा ही की जाती है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि लैंगिक/घरेलू हिंसा के सर्वाइवर्स सबसे अधिक अपने घरों में ही रहने को मजबूर होते हैं। वहां शेल्टर्स की भूमिका और अहम हो जाती है। 

घरेलू हिंसा को एक व्यक्ति के आवास के अधिकार का उल्लंघन के तौर पर देखा जाना बेहद ज़रूरी है। ऐसा इसलिए क्योंकि आवास के अधिकार के तहत एक सुरक्षित, शांत, सम्मानित आवास हर व्यक्ति के लिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए लेकिन घरेलू हिंसा के मामले में ये सारे अधिकार ही हाशिये पर चले जाते हैं।

शेल्टर की भूमिका और घरेलू/लैंगिक हिंसा

लैंगिक हिंसा के सर्वाइवर्स के लिए सुरक्षित शेल्टर्स की अहमियत को चिन्हित किया गया है। न्याय के लिए सामाजिक, आर्थिक, कानूनी मदद के साथ-साथ रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान भी सर्वाइवर्स की एक अहम ज़रूरत में शामिल होते हैं। इन शेल्टर्स की मौजूदगी में सर्वाइवर्स के लिए न्याय तक पहुंच की प्रक्रिया सुरक्षित तरीके से हो यह सुनिश्चित की जा सकती है। इन शेल्टर होम्स की गैर-मौजूदगी यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स का उल्लंघन भी है। इसके मुताबिक़ हर शख़्स को अपने और अपने परिवार की बेहतरी के लिए भोजन, कपड़ा, आवास, स्वास्थ्य सुविधाएं, सामाजिक सेवा का अधिकार है। साथ ही बेरोज़गारी, बीमारी, विकलांगता, पार्टनर की मौत होने या बुढ़ापे की स्थिति या किसी अन्य स्थिति में जहां परिस्थितियों के कारण आजीविका की कमी हो, सुरक्षा का अधिकार है।

तस्वीर साभारः Outlook India

घरेलू हिंसा को एक व्यक्ति के आवास के अधिकार का उल्लंघन के तौर पर देखा जाना बेहद ज़रूरी है। ऐसा इसलिए क्योंकि आवास के अधिकार के तहत एक सुरक्षित, शांत, सम्मानित आवास हर व्यक्ति के लिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए लेकिन घरेलू हिंसा के मामले में ये सारे अधिकार ही हाशिये पर चले जाते हैं। ऐसे में आवास घरेलू हिंसा का एक अहम पहलू उभरकर आता है।

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 भी सर्वाइवर्स के लिए शेल्टर होम की मौजूदगी सुनिश्चित करता है। ऐक्ट के मुताबिक़ अगर सर्वाइवर व्यक्ति या उसकी जगह प्रोटेक्शन ऑफिसर या सर्विस प्रोवाइडर शेल्टर होम की मांग करता है तो शेल्टर होम के इंचार्ज की यह ज़िम्मेदारी है कि वह सर्वाइवर के लिए यह सुनिश्चित करे कि उसे शेल्टर होम में जगह ज़रूर मिले।

एक रिपोर्ट बताती है कि लैंगिक हिंसा के सर्वाइवर्स के लिए सबसे पहले शेल्टर्स की शुरुआत 1970 के दशक में इंटिमेट पार्टनर वायलेंस का सामना कर रही महिलाओं के लिए इंग्लैंड में की गई थी। पहले इन शेलटर्स को लैंगिक हिंसा के सर्वाइवर्स के रहने के लिए सिर्फ एक सुरक्षित स्थान मुहैया करवाने के रूप में देखा गया था। लेकिन वक्त के साथ इन शेल्टर्स की रूप-रेखा बदली है। अब यहां सर्वाइवर्स को आर्थिक और मानसिक तौर पर बेहतर करने से जुड़े प्रावधानों को भी शामिल किया जा रहा है।

शेल्टर होम्स को लेकर यही सोच मौजूद है कि ये हाशिये से आनेवाली महिलाओं के लिए ही होते हैं। यहां सेक्स वर्कर्स, मानव तस्करी से बचाई गई महिलाएं, बेघर महिलाएं ही रहती हैं। ऐसी स्थिति में जबतक महिलाओं की जान को खतरा नहीं होता वे तबतक शेल्टर होम का रुख़ नहीं करती हैं।

क्यों सर्वाइवर्स शेल्टर होम का रुख़ करने से कतराते हैं?

एक सर्वाइवर जब घर छोड़ते हैं तो उनके साथ जुड़ी होती है शेल्टर में रहने की ‘शर्म।’ वह पहले से ही कई पूर्वाग्रहों से घिरे होते हैं। ऐसे में लैंगिक हिंसा के सर्वाइवर्स के लिए बने इन शेल्टर्स के लिए यह अहम हो जाता है कि उनका रवैया सर्वाइवर्स के प्रति संवेदनशील हो। लेकिन ये शेल्टर होम फिलहाल सर्वाइवर बेस्ड अप्रोच से कोसों दूर नज़र आते हैं। साल 2019 में (Lam-lynti Chittara Neralu) जो कि शेल्टर होम का एक राष्ट्रीय नेटवर्क है उसने ‘बियॉन्ड द रूफ‘ नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट बताती है कि शेल्टर होम के साथ जुड़ी शर्मिंदगी एक बड़ी वजह है कि सर्वाइवर अपना घर नहीं छोड़ पाते हैं। 

रिपोर्ट के मुताबिक शेल्टर होम्स को लेकर यही सोच मौजूद है कि ये हाशिये से आनेवाली महिलाओं के लिए ही होते हैं। यहां सेक्स वर्कर्स, मानव तस्करी से बचाई गई महिलाएं, बेघर महिलाएं ही रहती हैं। ऐसी स्थिति में जबतक महिलाओं की जान को खतरा नहीं होता वे तबतक शेल्टर होम का रुख़ नहीं करती हैं। इसके साथ ही इन शेल्टर्स की कम संख्या, यहां रहने की चुनौतीपूर्ण स्थिति, बुनियादी सुविधाओं का अभाव, जागरूकता और जानकारी की कमी, सरकारी प्रतिनिधियों का असंवेदनशील रवैया, लंबी और थकाऊ प्रक्रिया जैसी कई और मुश्किलें हैं जिनका सामना एक सर्वाइवर को करना पड़ता है।

सरकारी योजनाओं की मौजूदगी व भूमिका

बात जब शेल्टर होम की आती है तो कई गैर-सरकारी संगठन इस दिशा में अहम भूमिका निभाते नज़र आते हैं। लेकिन इसमें सबसे ज़रूरी भूमिका होती है सरकार की। सरकारी योजनाएं और बजट इसका एक अहम पहलू हैं। इसी कड़ी में ‘स्वाधार गृह योजना’ का ज़िक्र बेहद ज़रूरी है। यह योजना महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अतंर्गत शुरू की गई थी। इसके तहत उन चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना कर रही महिलाओं को पुनर्वास की सुविधा मुहैया करवाई जाती है ताकि वे अपने आगे का जीवन गरिमा के साथ बिता सकें। इसके तहत सर्वाइवर महिलाओं को आवास, भोजन, कपड़े, स्वास्थ्य सुविधाएं और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित किए जाने का प्रावधान है। इसका लाभ 18 साल उससे बड़ी उम्र की महिलाएं उठा सकती हैं। लेकिन ये योजनाएं सुचारू तरीके से चल सकें इसके लिए सरकार द्वारा पर्याप्त बजट आवंटित किया जाना भी बेहद अहम है। साथ ही यहां आनेवाली महिलाएं किन स्थितियों में रह रही हैं इसका आंकलन भी ज़रूरी है। 

राष्ट्रीय महिला आयोग ने साल 2019 में 35 स्वाधार गृहों का निरीक्षण किया था। द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ आयोग ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में मौजूद ये स्वाधार गृह सरकारी नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। यहां रहनेवाली महिलाओं के लिए काउंसलिंग की सुविधा नदारद थी। उन्हें कोई वोकेशनल ट्रेनिंग नहीं दी जा रही थी। साथ ही ये महिलाएं बेहद असुरक्षित और गंदगी से भरे माहौल में रहने को मजबूर थीं।

तस्वीर साभारः News Click

शेल्टर होम क्या सेफ स्पेस बन पाएंगे?

तमाम कमियों और चुनौतियों के बीच इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि लैंगिक/घरेलू हिंसा के सर्वाइवर्स के लिए शेल्टर होम्स का एक सेफ स्पेस के रूप में स्थापित किया जाना एक ज़रूरी कदम है। आखिरी विकल्प के रूप और छोटी संख्या में ही सही, तमाम शर्मिंदगी के बीच सर्वाइवर्स शेलटर होम का रुख़ ज़रूर करते हैं। वे यहां न्याय से अधिक फौरी सुरक्षा की उम्मीद में आते हैं। इस उम्मीद में कि उन्हें हिंसा के उस माहौल से सुरक्षा या निजात यहां मिल सकती है। वे यहां से एक बेहतर जीवन की उम्मीद करते हैं। ऐसे में इन शेल्टर होम्स को बुनियादी सुविधाओं के बीच एक सुरक्षित स्पेस बनाने की कवायद बेहद ज़रूरी है।


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content