समाजख़बर आज भी 12% लड़कियां नहीं जानतीं पीरियड्स होने की वजह: रिपोर्ट

आज भी 12% लड़कियां नहीं जानतीं पीरियड्स होने की वजह: रिपोर्ट

सर्वे में मेंस्ट्रुएशन होने के कारणों पर यह सामने आया कि 11.3% लड़कियों को मेंस्ट्रुएशन होने के सही कारणों की जानकारी नहीं थी बल्कि वे इसे ईश्वर द्वारा दिया गया श्राप, और किसी बीमारी के रूप में समझ रही थीं।

अधिकतर लोगों के लिए मां ही वह पहली व्यक्ति होती हैं जो पीरियड्स से उनका परिचय करवाती हैं। कई परिस्थितियों में दोस्तों के माध्यम से भी हम इस बारे में सीखते हैं। पीरियड्स को लेकर स्कूल्स में बातें अब भी सामान्य नहीं है इसीलिए इसे लेकर कच्ची, आधी अधूरी जानकारी ही लोगों तक आती हैं। जैसे जब मुझे पीरियड्स शुरू हुए थे तो मां ने कहा था कि यह गंदा खून होता है जो हर महीने हमारे शरीर से बाहर निकलता है।

पीरियड्स होने के कारणों के बारे में भी बहुत बाद में या बहुत से केस में कभी ही मालूम नहीं चलता है। इसी अनभिज्ञता पर एक सर्वे मई 2023 में एनजीओ चाइल्ड राइट्स एंड यू (सीआरवाई) ने मेंस्ट्रुएशन हेल्थ पर जारी किया था। 2022 में एनजीओ द्वारा पीरियड शेम कैंपेन के तहत ‘स्टडी ऑन नॉलेज, एटीट्यूड एंड प्रैक्टिस’ के अंतर्गत यह सर्वे किया गया था। यह सर्वे केंद्र सरकार द्वारा मेस्ट्रुअल हेल्थ स्कीम, ‘राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम’ के लिए पीरियड संबंधी समझ निर्मित करने के लिए किया गया था। जुलाई 2022 से लेकर अगस्त 2022 के बीच 38 जिलों की 3964 लड़कियों ने, जिनकी उम्र दस वर्ष से लेकर सत्रह वर्ष के बीच थी भाग लिया था। इनमें से 66.1% लड़कियां शहरी क्षेत्र से थीं, 30.2% लड़कियां ग्रामीण क्षेत्र से थीं और 3.7% लड़कियां शहर की गरीब झुग्गी बस्तियों से थीं।

सर्वे में मेंस्ट्रुएशन होने के कारणों पर यह सामने आया कि 11.3% लड़कियों को मेंस्ट्रुएशन होने के सही कारणों की जानकारी नहीं थी बल्कि वे इसे ईश्वर द्वारा दिया गया श्राप, और किसी बीमारी के रूप में समझ रही थीं। वहीं 84% लड़कियों को मेंस्ट्रुएशन के सही कारण पता थे कि यह एक जैविक प्रक्रिया है और 4.6% लड़कियों को मेंस्ट्रुएशन होने के कारण के बारे में कुछ भी पता नहीं था। भारतीय समाज में यह पहले से सोच लिया जाता है कि वक्त के साथ लड़कियों को अपने शरीरों के बारे में पता अपने आप चल ही जाएगा जबकि वयस्क होने तक भी वह अपने शरीर संबंधी जानकारियों से अनभिज्ञ रहती हैं। ऐसी ही शारीरिक प्रक्रिया है मेंस्ट्रुएशन जिसे पीरियड, माहवारी के नाम से भी हम जानते हैं।

लड़कियों को मेंस्ट्रुएशन के बारे में पूरी जानकारी नहीं होना उनके जीवन को, काम के अधिकार, स्कूल जाने के अधिकार, अच्छा स्वास्थ्य, स्वच्छता, साफ़ पानी के अधिकार, आदि और सबसे महत्वपूर्ण गरिमामय जीवन जीने के अधिकार को प्रभावित करता है मेंस्ट्रुएशन की जानकारी का अभाव लड़कियों के स्वास्थ्य को और गंभीर रूप से प्रभावित करता हैलड़कियों को पीरियड संबंधी जानकारी जानने की आवश्यकता भी है और यूनाइटेड नेशंस डिक्लेरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स के अंतर्गत यह उनका मानवीय अधिकार भी है। पीरियड संबंधी जानकारी से अभावग्रस्त लड़कियां मेंस्ट्रुएशन को नकारात्मक सोच के साथ ग्रहण करती हैं (आसपास के लोग इस नकारात्मकता का बीज बोते हैं क्योंकि पीरियड्स अभी भी एक “गंदगी” के रूप में लिए जाते हैं) जिसकी वजह से पीरियड के दिनों में खून सोखने के लिए गंदे कपड़े, राख, मिट्टी, पत्ते आदि का इस्तेमाल करती हैं, इसी वजह से आगे चलकर वे विभिन्न बीमारियों से जूझती हैं जैसे डर्मेटाइटिस, यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, बैक्टिरियल वेजिनोसिस और यहां तक कि सर्वाइकल कैंसर तक अस्वस्थ्य, अस्वच्छ मेंस्ट्रुअल मैनेजमेंट की वजह से हो सकता है। यह लड़कियों को उनके स्वास्थ्य के अधिकार से वंचित करता है।

मेंस्ट्रुएशन को लेकर अशिक्षा लड़कियों को कर रही है शिक्षा से दूर यूएनएफपीए के अनुसार, खराब मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता महिलाओं, लड़कियों और मासिक धर्म वाले लोगों के मौलिक अधिकारों, जिसमें काम करने और स्कूल जाने का अधिकार भी शामिल है, कम कर देता है। इसकी प्रामाणिकता एनजीओ दसरा द्वारा 2019 में जारी की गई एक रिपोर्ट करती है जिसके अनुसार भारत में 23 मिलियन लड़कियां हर साल स्कूल में मेंस्ट्रुएशन संबंधी सुविधाओं ना होने की वजह से पढ़ाई छोड़ देती हैं। हमारे स्कूल आधारिक संरचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) में बेहद खराब हैं, सेनेटरी पैड्स, महिलाओं के लिए अलग टॉयलेट्स, पानी की व्यवस्था तक बेहतर रूप से मौजूद नहीं है।

कक्षा छह से लेकर बारहवीं तक की लड़कियों को पैड्स और अलग टॉयलेट्स बनाई जाने को लेकर दाखिल की गई पिटीशन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा है कि “स्कूलों में छात्राओं के लिए सैनिटरी पैड, वेंडिंग और निपटान तंत्र और विशेष शौचालय प्रदान करके मासिक धर्म स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के परामर्श से केंद्र द्वारा एक “समान राष्ट्रीय नीति” बनाई जा सकती है।”लड़कियों का स्कूल छोड़ना, पढ़ाई से दूर हो जाना सामाजिक और आर्थिक असमानताओं की खाई को और गहरा करता है। इस तथ्य को सिर्फ़ व्यक्तिगत ही नहीं सामुदायिक, राष्ट्रीय स्तर पर भी देखने की जरूरत है।

लाखों की संख्या में जो लड़कियां स्कूल छोड़ रही हैं सोचिए ये मिलियन लड़कियां जब पढ़ेंगी, अलग अलग क्षेत्रों में जाएंगी, कमाएंगी तब क्या इससे इस देश की अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव नहीं आएंगे? क्या देश की ह्यूमन कैपिटल में इज़ाफा नहीं होगा? मेंस्ट्रुएशन से जुड़ी सामाजिक रूढ़िबद्धता विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मेंस्ट्रुअल स्वास्थ्य की परिभाषा है, “पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण की स्थिति, न कि केवल मेंस्ट्रुअल साइकिल के संबंध में बीमारी या दुर्बलता की अनुपस्थिति।”

लेकिन हमारे समाज में पीरियड्स शुरू होते ही लोगों के मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक स्थिति को ही सबसे ज़्यादा नुकसान पहुंचाया जाता जिस कारणवश जीवन का जो पड़ाव सामान्य होना चाहिए वह उनके लिए शर्म का कारण बन जाता है। मेंस्ट्रुएशन संबंधी जानकारी ना तो स्कूल द्वारा, ना ही आसपास के लोगों द्वारा लड़कियों तक पहुंच रही है क्योंकि मेंस्ट्रुएशन को अशुद्धता की धारणा से जोड़ा जा रहा है जिसकी वजह से लड़कियां भेद भाव भी सहती हैं, जीवन में मिलने वाले मूलभूत अधिकार जैसे स्वच्छता, स्वास्थ्य, स्कूल आदि से भी वंचित करी जाती हैं।

गरीबी, पितृसत्ता, लैंगिक भेदभाव, सामाजिक बहिष्कार, इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी, सेक्स एजुकेशन न होना, महिला स्वास्थ्य हितकारी नीतियां न होना ये वे मुख्य कारण हैं जिसकी वजह से मेंस्ट्रुएशन एक सकारात्मक, प्रक्रिया ना होकर लोगों के लिए गरिमारहित जीवनशैली बन जाता है।मेंस्ट्रुएशन को नॉर्मलाइज करने के लिए क्या हो सकते हैं सकारात्मक कदमभारत, विश्व स्वास्थ्य संगठन का सदस्य है इसीलिए न सिर्फ़ संवैधानिक तौर पर बल्कि एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन का सदस्य होने के नाते मेंस्ट्रुएशन पर जारी किए गए एक्शंस को लागू करना एक नैतिक ज़िम्मेदारी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन, बेहतर मेंस्ट्रुएशन मैनेजमेंट के लिए तीन मुख्य बिंदुओं की बात करता है। पहला, मेंस्ट्रुएशन को स्वच्छता का मुद्दा ना मानकर, स्वास्थ्य का विषय समझा जाना चाहिए जिसके शारीरिक, मानसिक और सामाजिक पहलू हैं। दूसरा, वे सभी व्यक्ति जो मेंस्ट्रुएट करते हैं उन्हें मेंस्ट्रुएशन के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए और मेंस्ट्रुअल प्रोडक्ट्स, साफ़ पानी और प्रोडक्ट्स निस्तारण की सुविधा भी दी जानी चाहिए। तीसरा, यह एक्शंस कार्य प्लान, बजट में प्रासंगिक तौर पर दिखने भी चाहिए। मेंस्ट्रुएशन को लेकर हर तरह की जानकारी पहुंचाने के लिएज़रूरी है कि सरकार, प्राइवेट सेक्टर, एनजीओ सभी मिलकर सबसे पहले मेंस्ट्रुएशन को एक सामान्य मुद्दा बनाएं, उस पर बात करना शुरू करें, स्कूलों में मुफ़्त सैनिटरी पैड्स दिए जाएं, उनके लिए पीरियड संबंधी कार्यशाला आयोजित की जाएं, पीरियड्स मैनेजमेंट की चीजें जैसे पैड्स, मेंस्ट्रुअल कप, आदि पर मिनिमल टैक्स लगाया जाए ताकि गरीबी रेखा वाले परिवारों से आनेवाले लोग भी इन सुविधाओं का लाभ ले सकें।


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