इंटरसेक्शनलजेंडर औरतों के कपड़ों में जेब और लिपिस्टिक के लाल रंग पर रोक के पीछे पितृसत्ता की गहरी जड़ें

औरतों के कपड़ों में जेब और लिपिस्टिक के लाल रंग पर रोक के पीछे पितृसत्ता की गहरी जड़ें

पितृसत्ता का यह रूप एक गहरी जड़ बनकर हमारे समाज और जीवन में स्थापित हो चुका है जिस पर बिना कोई प्रश्नचिह्न उठाए आगे बढ़ा जा रहा है। यही सोच लिपिस्टिक के रंग और औरतों के कपड़ों में लगी जेब को गैर-ज़रूरी बताती है।  

हमारा पूरा समाज ही पितृसत्ता द्वारा संचालित समाज है। लेकिन क्या यह संचालन हम पहचान पाते हैं? पितृसत्ता का इतिहास किस प्रकार नारी के जीवन को आज भी प्रभावित करता है। कैसे वह उसके जीवन की हर छोटी-छोटी ज़रूरत या पसंद को नियंत्रित करता है। पितृसत्ता का यह रूप एक गहरी जड़ बनकर हमारे जीवन में स्थापित हो चुका है जिस पर बिना कोई प्रश्नचिह्न उठाए आगे बढ़ा जा रहा है। यही सोच लिपिस्टिक के रंग और औरतों के कपड़ों में लगी जेब को गैर-ज़रूरी बताती है।  

लाल लिपस्टिक का इतिहास 

लाल लिपस्टिक जिस तरह का आत्मविश्वास प्रदान करती है शायद कोई और चीज़ वह काम करती हो! लेकिन इसका इतिहास कुछ और ही कहता है। आज से 5000 वर्षों पूर्व मेसोपोटामिया में पहली लाल लिपिस्टिक पाई गई थी। यह लाल पत्थर या जेमस्टोन, सफेद सीसा यानी व्हाइट लेड का पाउडर बनाकर औरतों और पुरुषों दोनों द्वारा लगाई जाती थी। प्राचीन मिस्र के लोग लाल लिपस्टिक को एक अभिजात वर्ग, शक्ति, ताकत का प्रतीक मानते थे। यहां तक कि मिस्र के राजा और रानी भी लाल लिपस्टिक लगाया करते थे। मिस्र में लाल लिपस्टिक भले ही शक्ति और ऊंचे वर्ग का प्रतीक थी लेकिन ग्रीस में इससे भिन्न स्थिति थी। यहां इसे वेश्यावृत्ति का प्रतीक माना गया। कानूनी तौर पर सेक्स वर्कर्स को सार्वजनिक रूप से लाल लिपस्टिक लगाना ज़रूरी था। ऐसा न करने पर उन्हें इस बात की सज़ा मिलती थी कि वे अन्य औरतों के जैसा दिखने की कोशिश कर रही थी।

1770 में इंग्लैंड में किसी भी तरह का कॉस्मेटिक प्रयोग करना बैन कर दिया गया था। ख़ासकर, लिपस्टिक क्योंकि कॉस्मेटिक के इस्तेमाल का अर्थ जादू टोना कर पुरुषों को शादी के लिए रिझाना माना जाता था।

इंग्लैंड का सोहलवीं सदी में लाल लिपस्टिक से परिचित हुआ। यहां भी तब इसकी छवि बुरे से ही जुड़ी हुई थी। इसके बावजूद रानी एलिज़ाबेथ की कई तस्वीरों में उन्हें हल्की लाल लिपस्टिक से साथ देखा जा सकता है। लेकिन वह उनके वर्ग, शक्ति आदि के कारण स्वीकार किया गया। 1770 में इंग्लैंड में किसी भी तरह का कॉस्मेटिक प्रयोग करना बैन कर दिया गया था। ख़ासकर लिपस्टिक क्योंकि कॉस्मेटिक के इस्तेमाल का अर्थ जादू टोना कर पुरुषों को शादी के लिए रिझाना माना जाता था। ऐसा ही नियम अमेरिका के कुछ राज्यों में था।

हालांकि यहां ये समझना मुश्किल है कि यह किसी महिला की समस्या या अपराध कैसे हो सकता है कि कोई पुरुष किसी लाल रंग को देखकर अनियंत्रित हो जाते थे? इससे मुझे भारतीय परिवारों की याद आ जाती हैं जहां माता-पिता, भाई आदि घर की लड़कियों को कहते हैं “इतनी गाढ़ी लिपस्टिक क्यों लगाई है?” “किसको दिखाना है?” “अच्छी घर की लड़कियां इतना मेकअप नहीं करती”। इंग्लैड, ग्रीस आदि से इतने दूर भारत में लिपस्टिक से जुड़े ख्याल और सोच आ गई तो इसी तरह बाकी दुनिया भी इससे अछूती नहीं रही क्योंकि पितृसत्ता सिर्फ भारत की समस्या नहीं, पूरे विश्व की है।

तस्वीर साभारः CNN

वीमंस राइट्स मूवमेंट के फैलने से लाल लिपस्टिक को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता मिली। उस समय लाल लिपस्टिक को अपने मताधिकार और आज़ादी का प्रतीक बनाकर आंदोलन में इस्तेमाल किया गया। आंदोलन की नेताओं ने इस रंग की लिपस्टिक का इस्तेमाल किया और आगे भी यह प्रतीक के रूप में फैला। 

आज भी लाल लिपस्टिक राजनीतिक कथन के रूप में काम करती है। सीएनएन में छपे लेख के अनुसार साल 2018 में निकारागुआ के पुरुषों और महिलाओं ने सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाले प्रदर्शनकारियों की रिहाई में अपना समर्थन प्रकट करने के लिए लाल लिपस्टिक लगाई और सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें अपलोड की। 2019 में चिली में, देश में यौन हिंसा की निंदा करने के लिए लगभग 10,000 महिलाएं आंखों पर काली पट्टी और लाल रंग की लिपस्टिक लगाकर सड़कों पर उतरी थीं। इस तरह से समय के साथ लाल लिपिस्टिक को विद्रोह का प्रतीक बनाकर और महिला सशक्तिकरण के तौर पर इस्तेमाल किया गया।

प्राचीन मिस्र के लोग लाल लिपस्टिक को एक अभिजात वर्ग, शक्ति, ताकत का प्रतीक मानते थे। यहां तक कि मिस्र के राजा और रानी भी लाल लिपस्टिक लगाया करते थे।

यहीं बात करते हैं महिलाओं के कपड़ों में पॉकेट यानी जेब न होने की। जिसकी पृष्ठभूमि में भी पितृसत्ता खड़ी है। कपड़े में जेब होना महज जेब तक सीमित नहीं है बल्कि इसके कई व्यापक मायने हैं। औरतों के कपड़ों में जेब उनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति से जुड़ी हुई हैं। कपड़े में जेब लगाना महिलाओं के लिए एक संघर्ष के समान है क्योंकि कपड़ों की संरचना के द्वारा भी उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है। 

महिलाओं के कपड़ों में जेब लगाने का इतिहास

तस्वीर साभारः VOX

मैं उन औरतों में से हूं जो अपने किसी भी कपड़े में पूरी, इस्तेमाल की जाने वाली जेब को देखकर खुश होती हूं। लेकिन क्या कभी आपने यह गौर किया है कि औरतों के कपड़ों में जेब होना अलग क्यों है? इसका सीधा सा एक जवाब यह है कि हमारे कपड़ों में कार्यात्मक इस्तेमाल करने लायक जेबें होती ही नहीं। इसीलिए जब भी हमें अपने कपड़ों में जेबें मिलती हैं तो हम खुश हो जाते हैं। औरतों के कपड़ों में जेब न होने का भी एक इतिहास है।

मध्यकालीन समय में औरतें और पुरुष दोनों ही कमर पर बांधने वाला छोटा बैग साथ रखा करते थे। जैसे-जैसे समय बदलता गया और चोरी के मामले सामने आने लगे तो लोगो ने अपने बैग अपने कपड़ों की एक परत नीचे बांधने शुरू कर दिए। पुरुषों ने अपनी जैकेट के अंदर वह बैग रखने शुरू किए और औरतों ने अपने पेटीकोट के नीचे। छोटे से चीरे द्वारा पेटीकोट के अंदर बंधे बैग का इस्तेमाल औरतें कर पाती थीं लेकिन सार्वजनिक जगहों पर इसका इस्तेमाल नहीं कर पाती थीं।

अठारहवीं शताब्दी में स्कर्ट और बॉडी से चिपके कपड़ों का चलन चला जिसमें जेबों की कोई जगह ही नहीं बची। दूसरी तरफ़, पुरुषों के कपड़े इस्तेमाल को ध्यान में रखकर बनाए जा रहे थे। वहीं औरतों के कपड़े मात्र शोभा और सुंदरता को ध्यान में रखकर ही बनाएं जा रहे थे।

सत्रहवीं शताब्दी के आखिर तक आते-आते पुरुषों के कपड़ों में जेबों ने जगह बनाईं। लेकिन औरतों के कपड़ों में अब भी जेब नहीं थी। वे अब भी पेटीकोट के अंदर बांधे बैग से ही काम चला रही थीं। अधिकतर वह भी इस्तेमाल नहीं कर पाती थी क्योंकि वह बैग हर जगह इस्तेमाल नहीं हो सकता था। इसके बाद फ्रांस की क्रांति ने सबकुछ बदल दिया। अठारहवीं शताब्दी में स्कर्ट और बॉडी से चिपके कपड़ों का चलन चला जिसमें जेबों की कोई जगह ही नहीं बची। दूसरी तरफ़, पुरुषों के कपड़े इस्तेमाल को ध्यान में रखकर बनाए जा रहे थे। वहीं औरतों के कपड़े मात्र शोभा और सुंदरता को ध्यान में रखकर ही बनाएं जा रहे थे। यहीं हम जेंडर रोल्स को साक्षात देख सकते हैं। किस तरह लैंगिक भेदभाव के चलते महिलाओं के कपड़ों को सहजता और आवश्यकता से दूर कर दिया गया। साथ ही औरतों के कपड़ों में जेबें इसीलिए नहीं होती क्योंकि उनके पति उनकी ज़रूरत का सामान रखेंगे और रुपए रखेंगे।

तस्वीर साभारः The Daily Beast

1800 के दौरान रेशनल ड्रेस सोसायटी ने एक कैंपेन चलाया। जिसका मकसद महिलाओं को कार्यात्मक कपड़े प्रदान करने के लिए लड़ना था। 1910 में, “सफ्रेजेट सूट” जिसमें कम से कम छह जेबें हों; चर्चा का विषय रहा। विश्व युद्ध के शुरू होने के बाद औरतें खुद भी ज्यादा कार्यात्मक कपड़ों के इस्तेमाल पर जोर देने लगीं। लेकिन विश्व युद्ध के अंत के बाद, औरतों से यह उम्मीद रखी गई कि वह “मर्दाना कपड़े” छोड़ स्लिम कपड़े पहनें। जहां पितृसत्ता फिर अपना रंग दिखाने लगी। एक अध्ययन के अनुसार महिलाओं की जेब का आकार पुरुषों के जेब के आकार के मुकाबले 50 प्रतिशत छोटा होता है।

अंततः हम देख सकते हैं लिपिस्टिक का लाल रंग और कपड़े में जेब दोनों के पीछे एक सोच और इतिहास है और कहीं न कहीं आज भी वह हमारे बीच व्याप्त है। लिपस्टिक कहने और देखने भर में कितनी छोटी और मामूली है लेकिन उसका इतिहास और पुरुष प्रधान सोच से उपजी धारणा और मानसिकता उसे कितना जटिल बना रही है। दूसरी तरफ़, हम से कई औरतें आज भी यह नहीं जान पाईं कि उन्हें जो अपना सामान रखने में समस्या होती है वह कहां से उपजी है। पुरुष प्रधान समाज ने वह सब इतना ज़्यादा आम कर दिया है कि महिलाएं उसे ही “सामान्य” कहने और मानने लगीं हैं। जो एक बहुत गंभीर स्थिति है और चर्चा का विषय है।


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content