इंटरसेक्शनलजेंडर जलवायु परिवर्तन और बढ़ती लैंगिक हिंसा कैसे खतरे में डाल रही औरतों का जीवन

जलवायु परिवर्तन और बढ़ती लैंगिक हिंसा कैसे खतरे में डाल रही औरतों का जीवन

कुछ न कमा पाने का गुस्सा, काम न कर पाने की खीझ, घर में होने वाली आर्थिक तंगी से उत्पन्न निराशा हिंसा की एक बड़ी वजह बनती है।

जलवायु वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार आनेवाले सालों में, बढ़ते तापमान के कारण अत्यधिक गर्मी, तूफ़ान, बाढ़ और भूस्खलन जैसी विनाशकारी स्थितियों की संख्या बढ़ती जाएगी। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण आनेवाली आपदाओं के लैंगिक आयामों और प्रभावों के बारे में अभी भी बहुत कम जानकारी मौजूद है। औरतें हमेशा आपदाओं के प्रभाव से सबसे अधिक पीड़ित होती हैं। वे विशेष रूप से जलवायु आपदाओं के विनाशकारी प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं, इनमें से प्रभाव लैंगिक हिंसा है। मौसम में बदलाव के कारण औरतों  के साथ उन्हीं के साथी द्वारा की जानेवाली हिंसा बढ़ जाती है। जलवायु परिवर्तन और हिंसा का आपस में एक ऐसा संबंध है जो सीधे तौर पर एकदम से नज़र नहीं आता है।

पिछले कुछ अध्ययनों के अनुसार बढ़ते तापमान से खुशहाली में काफी कमी आती है और इसका सीधा असर हिंसा में बढ़त के रूप में देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में साल 2005 में तूफान कैटरीना के बाद लैंगिक हिंसा की दर 4.6/100,000 प्रति दिन से बढ़कर 16.3/100,000 प्रति दिन हो गई। इसी तरह, वानुअतु में आए चक्रवात वानिया और अटू के बाद, तन्ना महिला परामर्श केंद्र में देखभाल की मांग करने वाली नई घरेलू हिंसा पीड़ितों में 300% की वृद्धि हुई थी। स्पेन में किए गए एक अध्ययन में भी पाया गया कि हीटवेव के तीन दिन बाद अंतरंग साथी हिंसा का जोखिम 40% बढ़ गया। गर्मी के बाद हिंसा की पुलिस रिपोर्ट्स और हेल्पलाइन कॉल्स में भी वृद्धि हुई है।

तस्वीर साभार: The Guardian

यह हाल सिर्फ पश्चिमी देशों का नहीं है। एशिया महाद्वीप भी इससे अछूता नहीं रहा है। जलवायु वैज्ञानिकों द्वारा दक्षिण एशिया को दुनिया में जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक माना जाता है। हाल ही में प्रकाशित एक नये अध्ययन के अनुसार दक्षिण एशिया में औसत तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़त और अंतरंग साथी हिंसा (आईपीवी) में 4.5% की वृद्धि के बीच संबंध पाया गया है। अध्ययन का अनुमान है कि इस सदी के अंत तक इस क्षेत्र में पारिवारिक हिंसा में 21% की वृद्धि होगी। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में तीन देशों में सबसे अधिक 23.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है, अन्य दो देश नेपाल और पाकिस्तान हैं। यह अध्ययन ‘एसोसिएशन ऑफ़ एम्बिएंट टेम्परेचर विद दा प्रेवेलेन्स ऑफ़ इंटिमेट पार्टनर वायलेंस अमंग पार्ट्नरड वीमेन इन लौ एंड मिडिल-इनकम साउथ एशियन कन्ट्रीज’- मेडिकल जर्नल JAMA साइकाइट्री में प्रकाशित किया गया है।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि कृषि उत्पादन और श्रम दक्षता में कमी से आर्थिक तनाव और बढ़ जाता है। चरम मौसम की घटनाओं के कारण होने वाले नुकसान घरेलू हिंसा को बढ़ावा देते हैं। कम आय वाले घरों में औरतें आर्थिक मंदी और रोजगार के अवसरों के नुकसान के कारण अपने पुरुष साथियों की हिंसा का खामियाजा भुगतती हैं।

इस अध्ययन में भारत, नेपाल और पाकिस्तान की 15-49 आयु वर्ग की 1,94, 871 औरतों को शामिल किया गया। 1 अक्टूबर, 2010 से 30 अप्रैल, 2018 तक इकट्ठा किए गए आंकड़ों और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (डीएचएस) कार्यक्रम से रिपोर्ट किए गए डेटा का इस्तेमाल किया गया। अध्ययन में पाया गया कि बढ़ते जलवायु परिवर्तन के कारण इन क्षेत्रों में शारीरिक हिंसा सबसे अधिक 23 प्रतिशत प्रचलित है, इसके बाद भावनात्मक हिंसा 12.5 प्रतिशत और यौन हिंसा 9.5 प्रतिशत है। अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि 2090 के दशक में, असीमित कार्बन उत्सर्जन परिदृश्य के तहत, भारत में सबसे अधिक 23.5 प्रतिशत इंटिमेट पार्टनर वॉयलेंस की वृद्धि होगी, इसके बाद नेपाल में 14.8 प्रतिशत और पाकिस्तान में 5.9 प्रतिशत की वृद्धि होगी। हालांकि, अध्ययन में सभी आय समूहों में बढ़ती गर्मी के कारण हिंसा में वृद्धि देखी गई, लेकिन सबसे अधिक हिंसा में वृद्धि निम्न-आय और ग्रामीण परिवारों में हुई है ।

बढ़ते तापमान और घरेलू हिंसा के बीच संबंध

भारत में, हीट वेव्स एक वार्षिक घटना बनती जा रही है। मई में, देश के बड़े हिस्से में भीषण गर्मी पड़ी, तापमान 45 डिग्री सेल्सियस (113 डिग्री फ़ारेनहाइट) तक पहुंच गया। जीवन और आजीविका को तबाह करके, सबसे गरीब और सबसे कमजोर समुदायों पर असमान रूप से प्रभाव डालकर और लड़कियों और औरतों के खिलाफ लैंगिक हिंसा में योगदान देकर जलवायु की चरम सीमा अधिक कठोर और विकट होती जा रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा होती चुनौतियों से घरेलू हिंसा की स्थिति बदतर होती जा रही है।

अत्यधिक गर्मी के कारण फसल की बर्बादी/कम उत्पादन, आय में व्यवधान और घर में कैद होने जैसे सामाजिक-आर्थिक परिणाम होते हैं, जिससे परिवारों पर महत्वपूर्ण वित्तीय तनाव और जीवित रहने के लिए साधन ढूंढने का दबाव पैदा होता है। इसके अलावा, उच्च तापमान का मानसिक स्वास्थ्य के साथ विपरीत संबंध होता है, जिससे लंबा अवसाद, पुरानी चिंता, आक्रामकता और व्यवहार संबंधी समस्याएं जैसी स्थितियां पैदा होती हैं। ऐसे में पितृसत्तात्मक सोच और मूल्य और सामाजिक रूढ़िवाद औरतों  के खिलाफ हिंसा की संभावना को और बढ़ाते हैं।

इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि कृषि उत्पादन और श्रम दक्षता में कमी से आर्थिक तनाव और बढ़ जाता है। चरम मौसम की घटनाओं के कारण होने वाले नुकसान घरेलू हिंसा को बढ़ावा देते हैं। कम आय वाले घरों में औरतें आर्थिक मंदी और रोज़गार के अवसरों के नुकसान के कारण अपने पुरुष साथियों की हिंसा का खामियाजा भुगतती हैं। वे अपने ही परिवार में असुरक्षित हो जाती हैं।

निम्न आय और ग्रामीण परिवारों में तापमान के बढ़ने के साथ-साथ हिंसा में बढ़त

जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम संबंधी आपदाएं एक किसान के परिवार में कई तरह के तनाव पैदा कर सकती हैं। फसल की बर्बादी, पशुधन और संपत्ति के नुकसान के परिणामस्वरूप वित्तीय नुकासन और भोजन की कमी उन लोगों पर एक महत्वपूर्ण बोझ डालती है जिनपर अपने परिवारों को पालने की ज़िम्मेदारी होती है। मौसम के बदलते मिजाज के कारण किसान अपनी फसल से सही उत्पादन नहीं ले पा रहे हैं। बढ़ते तापमान ने किसानों के इस फैसले को चुनौती दी है और चुनौती देते रहेंगे कि उन्हें अपनी फसलें कब बोनी चाहिए। इसके अलावा, किसानों को बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए लगातार पर्याप्त भोजन उगाने में कठिनाई हो रही है। किसान परिवारों के बीच चिंता, खीझ बढ़ जाती है। किसी भी प्रकार का तनाव घरेलू हिंसा को जन्म देता है। किसानों के लिए यह जलवायु संकट अधिक घरेलू और सामाजिक कलह को जन्म देता है।

तस्वीर साभार: CS Monitor

अत्यधिक गर्मी के कारण श्रमिकों के लिए काम के घंटे कम हो जाते हैं, जिससे आय कम हो जाती है और परिवार के सदस्य मजबूरन घर पर अधिक समय बिताते हैं। इससे औरतों पर घरेलू काम का बोझ बढ़ जाता है और पुरुषों में तनाव और गुस्सा पैदा होता है क्योंकि वे खुद को अपने घर के लिए कुछ भी प्रदान करने में असमर्थ पाते हैं। परिणामस्वरूप सारा गुस्सा घर की औरतों खासकर पत्नी पर निकलता है।

आर्थिक तनाव की अवधि के दौरान, पुरुषों के बीच शराब की खपत अक्सर बढ़ जाती है, जिसका सीधा संबंध घरेलू हिंसा में वृद्धि से होता है। जब परिवार गंभीर मौसम से नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं, तो पुरुष अपनी महिला साथियों के खिलाफ भावनात्मक, शारीरिक और/या यौन हिंसा को निर्देशित करके चिंता और निराशा व्यक्त करते हैं। इसके अलावा, चूंकि छोटे पैमाने पर निर्वाह करने वाले किसान/श्रमिक/ घरेलू कामगर अपने परिवारों के भरण-पोषण के लिए पूरी तरह से अपने खेतों के उत्पादन पर/रोज़ाना के काम पर निर्भर रहते हैं, ऐसे में प्राकृतिक आपदा का उनकी आजीविका पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। 

दुनिया के कई हिस्सों में, जलवायु परिवर्तन पुरुषों और लड़कों की तुलना में औरतों, लड़कियों और हाशिये की पहचान से आनेवाले अन्य लोगों के जीवन को सीधे प्रभावित करता है। यह देखा गया है कि मौसम संबंधी काम करने से औरतों  में यौन उत्पीड़न और घरेलू हिंसा का खतरा बढ़ जाता है। उदाहरण के तौर पर स्कूल में बिताया जाने वाला उनका समय कम हो जाता है और इस प्रकार औरतों की आर्थिक स्वतंत्रता हासिल करने की क्षमता कम हो जाती है।

भारत के कई राज्यों में पानी की कमी है खासकर राजस्थान। पुरुष काम पर जाते हैं और औरतें घर के लिए पानी लाने की ज़िम्मेदारी उठाती हैं। जल स्रोतों तक पहुंचने के लिए कई बार औरतों को कई-कई किलोमीटर तक पैदल सफर करना पड़ता है। सूखे की बढ़ती तीव्रता के साथ, औरतों को जल स्रोतों तक पहुंचने के लिए आगे की यात्रा करने की आवश्यकता होती है, और लंबी यात्रा के समय से औरतों और लड़कियों के यौन उत्पीड़न का खतरा बढ़ जाता है। यात्रा समय में इस बढ़ोतरी से लड़कियों के स्कूल जाने के समय में भी कमी आती है, जिससे वे शिक्षा से दूर होती चली जाती हैं।

अत्यधिक गर्मी के कारण दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों के लिए काम के घंटे कम हो जाते हैं, जिससे आय कम हो जाती है और परिवार के सदस्यों को घर पर अधिक समय बिताने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इससे औरतों  पर घरेलू काम का बोझ बढ़ जाता है और पुरुषों में तनाव और गुस्सा पैदा होता है क्योंकि वे खुद को अपने घर के लिए कुछ भी प्रदान करने में असमर्थ पाते हैं। परिणामस्वरूप सारा गुस्सा घर की औरतों  खासकर पत्नी पर निकलता है।

कुछ न कमा पाने का गुस्सा, काम न कर पाने की खीझ, घर में होनेवाली आर्थिक तंगी से पैदा हुई निराशा हिंसा की एक बड़ी वजह बनती है। जलवायु परिवर्तन और इसके परिणामस्वरूप होने वाली गंभीर मौसमी घटनाएं दुनिया के लिए चुनौती बनी हुई हैं। जैसे-जैसे ये चुनौतियां बनी रहती हैं, औरतों के जोखिम को कम करने के लिए औरतों की सुरक्षा बढ़ाने और औरतों  की स्थिति दोनों को बढ़ाने के लिए हस्तक्षेप की ज़रूरत होती है। औरतों और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को खत्म करने के लिए चल रही लड़ाई में ‘क्लाइमेट ऐक्शन’ एक आवश्यक घटक है। 

जब जलवायु परिवर्तन और हिंसा की बात आती है तो औरतें एक प्रमुख हितधारक होती हैं। जलवायु परिवर्तन से निपटने और औरतों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए हस्तक्षेप विकसित करते समय औरतों को निर्णय लेने की शक्ति देने की ज़रूरत है। जब औरतों  के लिए निर्णय भी पुरुष लेंगे और हिंसा भी पुरुष करेंगे तो स्थिति ठीक कैसे होगी? जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर औरतों को बराबर की आवाज़ उठाने के लिए निर्णय लेने की क्षमता के इस असंतुलन को ठीक करने की ज़रूरत है।


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