इंटरसेक्शनलLGBTQIA+ क्लॉड काहुन और मार्सेल मूर: क्वीयर युगल जिसने कला के ज़रिये फासीवाद और पितृसत्ता को दी थी चुनौती

क्लॉड काहुन और मार्सेल मूर: क्वीयर युगल जिसने कला के ज़रिये फासीवाद और पितृसत्ता को दी थी चुनौती

काहुन एक फ्रांसीसी लेखक, फोटोग्राफर, अतियथार्थवादी और प्रदर्शन कलाकार के रूप में इतिहास में दर्ज हैं।

क्लॉड काहुन, जिनका मूल नाम लूसी रेनी मैथिल्डे श्वॉब था, एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने अपनी कला के ज़रिए न केवल नाजी सत्ता से लोहा लिया बल्कि अपने होमोसेक्सुल प्रेम को भी अभिव्यक्ति प्रदान की। काहुन एक फ्रांसीसी लेखक, फोटोग्राफर, अतियथार्थवादी और प्रदर्शन कलाकार के रूप में इतिहास में दर्ज हैं। लेकिन बीसवीं सदी का उनका क्रांतिकारी प्रेम, स्वयं को अस्पष्ट लिंग के रूप में चित्रित करना और अपने लैंगिक और यौन पहचान को महज सामाजिक निर्माण कहकर उसे सिरे से ख़ारिज करना, इतिहास के पन्नों में कहीं दब सा गया है। चूंकि काहुन ने हमेशा अपने समय की लैंगिक रूढ़ियों को चुनौती दी और खुद को जेंडर-फ्लूइड बताया, उन्हें संबोधित करने के लिए हम जेंडर-न्यूट्रल सर्वनामों का प्रयोग करेंगे। 

जन्म और शुरुआती जीवन

क्लॉड काहुन का जन्म 25 अक्टूबर, 1894 में फ्रांस के नैनटेस नामक शहर के एक समृद्ध परिवार में हुआ था जिनका काफ़ी गहरा साहित्यिक जुड़ाव था। उनके पिता, मौरिस, एक क्षेत्रीय समाचार पत्र ‘ले फारे डे ला लॉयर’ के मालिक थे। जब काहुन छोटे थे तब उनकी मां मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रही थी और उन्हें स्थायी रूप से मानसिक चिकित्सालय में भर्ती होना पड़ा। काहुन जो उस समय लूसी ही थे, को कई वर्षों के लिए उनकी दादी मैथिल्डे काहुन के साथ रहने के लिए भेज दिया गया।

टिरजा ट्रू लैटिमर कहती हैं, “ये दो क्वीयर महिलाएं थीं जो तमाम बाधाओं के बीच रह रही थीं। तस्वीरें, अभिनय, लेख, यह वास्तव में किसी कला वस्तु के निर्माण के बारे में नहीं था, बल्कि यह उनके लिए स्वतंत्र होने का एक तरीका था।”

छोटी उम्र से ही उनका परिचय यहूदी विरोधी भावना से हो गया था। हालांकि, उनकी माँ यहूदी नहीं थी, काहुन अपने पैतृक पक्ष से यहूदी थे। पुराने स्कूल में कुछ यहूदी विरोधी घटनाओं का सामना करने के बाद उनकी रक्षा के लिए उनके पिता ने उन्हें दो साल की स्कूली शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेज दिया। 1909 में वह वापस नैनटेस लौट आए और सुज़ैन मल्हेर्बे से मिले, जो अंततः न केवल उनकी सौतेली बहन बनीं बल्कि उनकी आजीवन साथी और सहयोगी भी बनीं। बाद में सुज़ैन मल्हेर्बे ने भी अपना नाम बदलकर मार्सेल मूर रख लिया।

क्लॉड के पिता ने आठ साल बाद सुज़ैन की मां, मेरी से शादी कर ली और इस प्रकार दोनों सौतेली बहन बन गए। समाज में बहन का दर्जा मिलना और वास्तविकता में प्रेमी युगल होना एक ऐसा अनोखा संयोग था जो क्लॉड और मूर को और भी करीब लेते आया। साथ ही, उन्हें अपने प्रेम में अधिक स्वायत्तता भी मिली। कुछ समय बाद यह लेस्बियन युगल पेरिस चले गए और वहीं बस गए। क्लॉड और मार्सेल ने अपने निवास को कलाकारों, लेखकों और बुद्धिजीवियों के लिए एक सुरक्षित और समावेशी स्थान बनाया।

तस्वीर साभारः After Ellen

 न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित लेख के अनुसार यहां उन्होंने “सामाजिक न्याय की बात की और साम्यवाद को फासीवाद से लोहा लेने का हथियार बताया।” टिरजा ट्रू लैटिमर कहती हैं, “ये दो क्वीयर महिलाएं थीं जो तमाम बाधाओं के बीच रह रही थीं। तस्वीरें, अभिनय, लेख, यह वास्तव में किसी कला वस्तु के निर्माण के बारे में नहीं था, बल्कि यह उनके लिए स्वतंत्र होने का एक तरीका था।” उन्होंने अपनी पीएचडी में क्लॉड काहुन पर लिखा है।

कला के माध्यम से तोड़ी जेंडर बाइनरी

1912 में, जब क्लॉड 18 वर्ष के थे, उन्होंने अपना पहला ‘सेल्फ-पोर्ट्रेट’ बनाया। अपने छायाचित्रों में उन्होंने खुद को कभी पुरुष के रूप में दिखाया तो कभी स्त्री के रूप में, कभी बाईसेक्सुअल तो कभी खुद को इतने अधिक मेकअप और वेशभूषा में प्रस्तुत किया कि उनकी लैंगिक पहचान को निर्धारित करना असंभव हो। यह जेंडर और यौन मानदंडों का विरोध करने का उनका अनोखा तरीका था। अपना नाम लूसी से बदलकर क्लॉड रखना भी उनके विद्रोह का ही एक प्रतीक था क्योंकि यह नाम उनके लिंग को निर्धारित नहीं करता था। उन्होंने अपनी पुस्तक “एवेक्स नॉन एवेनस” में लिखा, जो अंग्रेजी में “डिसावोवल्स” के नाम से प्रकाशित हुई। “मर्दाना या स्त्रियोचित? यह परिस्थिति पर निर्भर करता है। न्यूट्रल ही एकमात्र ऐसा लिंग है जो हमेशा मुझ पर सूट करता है।”

क्लॉड ने अतियथार्थवाद क्रांति को भी अपने स्व-चित्रों में बखूबी दर्शाया। अतियथार्थवाद एक ऐसा सांस्कृतिक आंदोलन था जिसमें कलाकारों ने अतार्किक, विचलित करने वाले दृश्य या अलौकिक, अकल्पित दृश्यों को चित्रित किया। उनका मानना था कि इस प्रकार वे अपने अवचेतन मन को अभिव्यक्ति प्रदान कर रहे हैं। कला का यह रूप प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में विकसित हुआ था। मशहूर नेता आंद्रे ब्रेटन ने काहुन को लिखी एक चिट्ठी में कहा, “काहुन हमारे समय के सबसे जिज्ञासु व्यक्ति हैं। स्वयं को जानने की यह जिज्ञासा और खुद को ज्यों का त्यों अभिव्यक्त करने की कला ही काहुन को सबसे अलग बनाती है।” 

क्लॉड काहुन, तस्वीर साभारः Art & Object

अपने एक पोर्ट्रेट श्रृंखला में काहुन ने खुद को एक पुरुष के रूप में दिखाया है जिसके चेहरे पर लाल लिपस्टिक से दिल बना है, सिर मुंडा है और उसने काले निपल्स वाली शर्ट पहन रखी है जिसपे लिखा है, “आई एम इन ट्रेनिंग, डोंट किस मी!” (मैं अभी प्रशिक्षण में हूं, मुझे मत चूमो!) इसी श्रृंखला की अन्य तस्वीर में वह बारबेल पकड़े दिखते हैं। इस प्रकार उन्होंने तमाम लैंगिक रूढ़ियों को एक ही चरित्र में पिरोकर धूमिल कर दिया था।

अपने स्तर पर नाज़ियों का किया विरोध 

1937 में क्लॉड और मूर जर्सी चले गए, क्योंकि अव्वल तो जर्मनी में फासीवाद तेज़ी से फल-फूल रहा था, साथ ही युद्ध-पूर्व पेरिस में तनाव बढ़ गया था और यहूदी विरोधी भावनाओं का प्रसार हो रहा था। 1940 में नाज़ियों ने जर्सी सहित फ्रांस पर भी कब्ज़ा कर लिया। क्लॉड और मूर के लिए राजनीति एक बेहद व्यक्तिगत मुद्दा थी और उनका प्रेम वह एकमात्र हथियार था जो उन्हें अत्याचार और भेदभाव से लड़ने की शक्ति देता।

न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, “क्लॉड और मूर ने नाज़ियों की ख़िलाफ़त अपने टाइपराइटर और पेन के ज़रिए की। उन्होंने एक नाखुश सिपाही का मुखौटा लगाकर, जर्मनों को छोटे-छोटे संदेश लिखे और उनका विरोध किया। इस गुप्त सिपाही को उन्होंने ‘बिना नाम का सिपाही’ कहा।” इन छोटे नोटों को वे लॉन्ड्री में पड़ीं सिपाहियों की वर्दियों में, विंडशील्ड वाइपर के नीचे, अधिकारियों की कारों में, और कैफे टेबल पर छोड़े गए सिगरेट के पैक में डाल दिया करते थे।

नाज़ी सेना ने किया गिरफ्तार

उन्होंने कभी कागज़ के छोटे टुकड़ों पर तो कभी टॉयलेट पेपर पर “जर्मन ट्रूप्स को अपना ख्याल रखना चाहिए।” या “हमारी रक्षा कौन करेगा?” जैसे व्यंग्यात्मक वाक्य लिखे और हिटलर की तुलना किसी ‘नर पिशाच’ से की। दोनों ने कई प्रतीकात्मक तस्वीरों के माध्यम से भी अपना विरोध जताया। क्लॉड और मूर की गतिविधियां इतनी गुप्त और संदिग्ध थीं कि नाज़ियों को लगने लगा था कि यह किसी बड़े गुट का षड्यंत्र है। लेकिन वास्तव में यह बस दो कलाकार महिलाओं का काम था।

हालांकि, ख़िलाफ़त भरे इन बयानों के गंभीर दुष्परिणाम हुए। नाज़ी सेना का प्रभाव इतना बढ़ गया था कि जर्सी में अपने मूल नामों पर वापस लौटने और खुद को बहनों के रूप में पेश करने के बावजूद, 1944 में उनकी प्रतिरोध गतिविधियों का खुलासा हो गया। क्लॉड और मूर को अंततः नाज़ी सेना ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई। साल 1945 में जर्सी, नाज़ी कब्जे से मुक्त हो गया और इस प्रकार उनकी सज़ा रद्द हो गई। हालांकि उनके घर और संपत्ति को जब्त कर लिया गया था और उनकी अधिकांश कलाकृतियों को जर्मनों ने नष्ट कर दिया था।

न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, “क्लॉड और मूर ने नाज़ियों की ख़िलाफ़त अपने टाइपराइटर और पेन के ज़रिए की। उन्होंने एक नाखुश सिपाही का मुखौटा लगाकर, जर्मनों को छोटे-छोटे संदेश लिखे और उनका विरोध किया। इस गुप्त सिपाही को उन्होंने ‘बिना नाम का सिपाही’ कहा।”

युद्धकालीन कारावास के दौरान क्लॉड काहुन का स्वास्थ्य ख़राब हो गया था और परिणामगत 1954 में उनकी मृत्यु हो गई, जिसके बाद मूर एक छोटे से घर में स्थानांतरित हो गईं। मूर ने लगभग बीस वर्ष अकेलेपन में गुज़ारने के बाद 1972 में उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें सेंट ब्रेलेड चर्च  में उनकी साथी काहुन के साथ दफनाया गया। उनके साथ ही दफन हो गया बीसवीं सदी का वह बागीपन, वह इंकलाब, वह प्रेम, जो फासीवाद, पितृसत्ता और उसकी रूढ़ियों को आंखों में आंखें डालकर ललकारता था।

स्रोतः

  1. Wikipedia
  2. The New York Time
  3. Artnet
  4. Britannica

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