6 जुलाई 2023 को यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी नयी रिपोर्ट ‘प्रोग्रेस ऑन हाउसहोल्ड ड्रिंकिंग वाटर, सेनिटेशन एंड हाइजीन (वॉश) 2000-2022 : स्पेशल फोकस ऑन जेंडर’ में वॉश में लैंगिक असमानताओं का पहला गहन विश्लेषण जारी किया है। इस नयी रिपोर्ट के अनुसार, विश्व स्तर पर, 1.8 बिलियन लोग ऐसे घरों में रहते हैं जहां पानी की कोई सुविधा नहीं है। ऐसे हर 10 में से 7 घरों में जल संग्रह की ज़िम्मेदारी 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र की औरतों और लड़कियों की है। हर 10 में से 3 घरों में उनके पुरुष सहकर्मी पानी लाने के लिए जिम्मेदार हैं। 15 साल से कम उम्र की लड़कियों में भी पानी लाने की संभावना 15 साल से कम उम्र के लड़कों की तुलना में अधिक होती है। ज्यादातर मामलों में, महिलाएं और लड़कियां इसे इकट्ठा करने के लिए लंबी यात्रा करती हैं। पानी लाने में वे शिक्षा, काम और आराम का समय खर्च करती हैं और रास्ते में खुद को शारीरिक चोट और खतरों के जोखिम में डालती हैं।
इस आंकड़े से सीधे तौर पर दो सवाल खड़े होते हैं। पहला कि तमाम देशों की सरकारें अपने प्रत्येक नागरिक तक पानी जैसी मूलभूत जरूरत को आसानी से अभी तक क्यों नहीं पहुंचा पाई हैं? वहीं, दूसरा सवाल बनता है कि इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं ही परिवार के लिए इतनी लंबी दूरी नापकर पानी क्यों ला रही हैं? घर के पुरुष, लड़के बराबर की ज़िम्मेदारी क्यों नहीं निभा रहे हैं? पितृसत्तात्मक समाजों में महिलाओं का परिवार का हर तरह से ध्यान रखना उनकी मुख्य ज़िम्मेदारियों में शामिल है इसीलिए परिवार में पानी की कमी न रहे उसकी ज़िम्मेदारी भी महिलाओं के कंधों पर आती है। बता दें कि दुनियाभर में महिलाएं पानी इकट्ठा करने में सामूहिक रूप से 200 मिलियन घंटे खर्च हर रोज खर्च करती हैं। यही महिलाएं अगर इतने घंटे किसी आर्थिक क्षेत्र में काम करें या शिक्षित होने में दें तो शायद कुछ सालों में यूनिसेफ की ये रिपोर्ट सकारात्मक आंकड़े प्रस्तुत कर सकती है।
वॉश संकट और महिलाएं
वॉश और सीड की यूनिसेफ निदेशक सेसिलिया शार्प कहती हैं कि एक लड़की पानी इकट्ठा करने के लिए जो कदम बढ़ाती है वह उसे सीखने, खेलने और सुरक्षा से एक कदम दूर करता है। वॉश का यह संकट महिलाओं के लिए उनके वर्तमान और भविष्य को निसंदेह दिशाहीन कर रहा है। यह संकट लड़कियों, महिलाओं के लिए एक दुश्चक्र तैयार कर रहा है जिसमें चलते हुए वह गरीबी, शोषण से मुश्किल ही निकल पाएंगी। वे पानी लाने में जो वक्त खर्च कर रही हैं उस वक्त में वे स्कूल नहीं जा सकतीं, इन घरों में पानी का संकट घर में सैनिटेशन, टॉयलेट न होने की स्थिति की ओर भी इशारा कर रहा है।
घरों में साफ़ पानी, टॉयलेट की व्यवस्था न होने पर महिलाओं को शौच आदि के लिए घर से बाहर (अंधेरे में ताकि कोई उन्हें देख न ले) जाना पड़ता है। रिपोर्ट यह उजागर करती है कि आधे अरब लोग अभी भी अन्य घरों के साथ स्वच्छता सुविधाएं साझा करते हैं। इससे महिलाओं और लड़कियों की गोपनीयता, गरिमा और सुरक्षा से समझौता होता है। उदाहरण के लिए, 22 देशों के हालिया सर्वेक्षणों से पता चलता है कि साझा शौचालय वाले घरों में, पुरुषों और लड़कों की तुलना में महिलाओं और लड़कियों को रात में अकेले चलने में असुरक्षित महसूस होने और यौन उत्पीड़न और अन्य सुरक्षा जोखिमों का सामना करने की अधिक संभावना है। दुनियाभर में महिलाएं और लड़कियां अपनी निजी स्वच्छता के लिए जगह ढूंढने में हर दिन 266 मिलियन घंटे बिताती हैं।
महिलाओं और लड़कियों को कैसी कैसी, कितनी दूर जगह तलाशनी पड़ती है कि वे अपनी ज़रूरी स्वच्छता को अंजाम दे सकें। महिलाओं के लिए अलग टॉयलेट न होना उनकी स्वास्थ्य के साथ भी एक खिलवाड़ है। वे पीरियड्स के दिनों में स्वच्छता का ख्याल नहीं रख पाती हैं। गर्भवती, विकलांग महिलाओं के लिए यह संघर्ष रोज़ जीने-मरने जैसा संघर्ष है। रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं और लड़कियों को न केवल दस्त जैसे वॉश से संबंधित संक्रामक रोगों का सामना करना पड़ता है, बल्कि उन्हें अतिरिक्त स्वास्थ्य जोखिमों का भी सामना करना पड़ता है। अधिकतर लड़कियों और महिलाओं को जब पानी लेने या सिर्फ टॉयलेट का उपयोग करने के लिए घर से बाहर जाना पड़ता है तो वे उत्पीड़न, हिंसा और चोट की चपेट में आ जाती हैं।
वॉश और सीड की यूनिसेफ निदेशक सेसिलिया शार्प कहती हैं कि एक लड़की पानी इकट्ठा करने के लिए जो कदम बढ़ाती है वह उसे सीखने, खेलने और सुरक्षा से एक कदम दूर कर रहा है। वॉश का यह संकट महिलाओं के लिए उनके वर्तमान और भविष्य को निसंदेह दिशाहीन कर रहा है, यह संकट लड़कियों, महिलाओं के लिए एक दुश्चक्र तैयार कर रहा है जिसमें चलते हुए वह गरीबी, शोषण से मुश्किल ही निकल पाएंगी।
हम सभी बचपन से यह सुनते आए हैं कि स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। महिलाओं तक स्वस्थ होने का अधिकार पूर्ण रूप से पहुंचा ही नहीं है। ऐसे में जब वे आर्थिक, सामाजिक रूप से अपने बूते खड़ी नहीं हो पाती तो गरीबी, शोषण की जंजीरों से भी नहीं निकल पाती हैं। यह सिलसिला पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है।
केयरगिवर की भूमिका निभा रही महिलाओं की जान ताक पर है
साफ़-सफाई के काम, खाना बनाने से लेकर घरों में किसी भी बीमार की देखभाल घर की महिलाएं करती हैं और संक्रमित व्यक्ति के आसपास रहती हैं। यह संक्रमण किसी भी रूप में उन्हें प्रभावित न करे इसके लिए जरूरी है कि वे अपने हाथों को नियमित रूप से साबुन से साफ़ करती रहें। लेकिन रिपोर्ट यह खुलासा करती है कि लगभग 2 अरब लोग यानी हर चार में से एक घर में लोग पानी की कमी के कारण साबुन और पानी से अपने हाथ नहीं धो सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अपर्याप्त पानी, सेनिटेशन और हाइजीन के कारण हर साल 1.4 मिलियन लोगों की जान चली जाती है।
डब्ल्यूएचओ निदेशक, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग डॉ मारिया नीरा ने कहा है कि सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी)- 6 और वॉश के संकट को ख़त्म करने की जरूरत है। साल 2030 तक सतत विकास लक्ष्य में सभी के लिए जल और स्वच्छता की उपलब्धता और स्थायी प्रबंधन सुनिश्चित करना शामिल है।
2030 में सात साल बाकी हैं लेकिन मौजूदा स्थिति क्या है?
रिपोर्ट में वॉश तक सार्वभौमिक पहुंच प्राप्त करने की दिशा में कुछ प्रगति देखी गई है। 2015 और 2022 के बीच, सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल तक घरेलू पहुंच 69% से बढ़कर 73% हो गई। सुरक्षित रूप से प्रबंधित स्वच्छता 49 से बढ़कर 57% हो गई और बुनियादी स्वच्छता सेवाओं में 67% से 75% की वृद्धि हुई।
प्रतिशत में देखने पर आंकड़े में सकारात्मकता है लेकिन अंकों में देखने पर लाखों-करोड़ों लोगों तक पानी की पहुंच अभी भी एक संकट है जिससे महिलाएं सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रही हैं। जेंडर को लेकर हम आसपास की बहस देखें तो पाते हैं महिलाओं को सेकंड जेंडर से संबोधित किया जाता है, यानी प्राथमिकता पुरुष हैं जिनके पास संसाधन से लेकर नीतियां बनाने तक का विशेषाधिकार बाकी सभी जेंडर से पहले पहुंचता है।