संस्कृतिसिनेमा ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ यूपी की थोड़ी काल्पनिक और थोड़ी सच्ची राजनीति

‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ यूपी की थोड़ी काल्पनिक और थोड़ी सच्ची राजनीति

तारा सीएम बनी रहेगी या दूसरी पार्टी सरकार गिरा देगी और दूसरा सीएम कौन बनेगा इसके लिए आपको फिल्म तक पहुंचना होगा। यह ज़रूरी फिल्म है, कुछ सच्ची और कुछ काल्पनिक घटनाओं पर आधारित देखी जानी चाहिए। यह फिलहाल नेटफ्लिक पर उपलब्ध है।

सुभाष कपूर निर्देशित ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ फिल्म शुरू होने से पहले डिस्क्लेमर में यह बताती है कि यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है और इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति, संस्था या स्थान से संबंध महज संयोग होगा। इसके उलट फिल्म देखने पर आप पाएंगे कि करीब 70 फीसदी कहानी सच्ची लगती है। फिल्म तारा (ऋचा चड्ढा) नाम की एक दलित महिला पर आधारित है जो कॉलेज छोड़कर राजनीति में उतरती है और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनती है। एक पार्टी के संस्थापक जिन्हें सब ‘मास्टर जी’ (सौरभ शुक्ला) के नाम से जानते हैं, वही तारा को राजनीति में लेकर आते हैं।

इन तीन-चार वाक्यों से ही समझ आता है कि फिल्म की अधिकतर कहानी भारत की पहली सबसे युवा और पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बहन मायावती और साहब कांशीराम के इर्द-गिर्द बुनी गई है। फिल्म के ट्रेलर लॉन्च होते ही सभी ने इसे बहन मायावती के जीवन पर आधारित या उनकी बायोपिक ही माना था। हालांकि, फिल्ममेकर्स की ओर से इससे इनकार किया गया और न ही राइट्स खरीदे गए। यह बात और है कि फिल्म के कुछ हिस्से हटा दिए जाएं तो यह पूरी तरह बहन मायावती की बायोपिक ही नज़र आती है। 

बता दें कि फिल्म के पोस्टर को लेकर भी काफी विवाद हुआ था। दरअसल पोस्टर में फिल्म की मुख्य किरदार तारा हाथ में झाड़ू लिए नज़र आई थीं जिसे देखकर दलित समाज को काफी नाराज़ हुआ। यह नाराज़गी जायज़ भी थी। दक्षिण भारत के आंबेडकरवादी डायरेक्टर की जितनी भी फिल्में हैं काला, कबाली, असुरन, कर्णन, पेरियम पेरूमल, सरपट्टा परंबराई, जय भीम और सैराट आदि, इन सभी में दलित कैरेक्टर को लगान फिल्म के कचरे की तरह असहाय, लाचार, दरिद्र और निर्बल नहीं दिखाया जाता बल्कि आत्मविश्वास और स्वाभिमान से जीनेवाले हीरो के रूप में पेश किया जाता है।

तस्वीर साभार: Bollywood Hungama

यह फिल्म बॉलीवुड की है और दूसरा यह सवर्ण डायरेक्टर ने बनाई है तो इस तरह के सीन फिल्म में होना ‘आम’ बात है। हालांकि, विरोध के बाद फिल्म से ही यह सीन हटा लिया गया था। अब वापिस कहानी पर आते हैं। भारतीय राजनीति के इतिहास में कुछ ऐसी घटनाएं घटी हैं जिन्हें हमेशा सबसे बुरे दिनों के रूप में याद किया जाएगा। उनमें से एक घटना है ‘गेस्ट हाउस कांड।’ इशारा इस तरफ है कि यह गेस्ट हाउस कांड भी फिल्म में ज्यों का त्यों दिखाया गया है। 

राजनीति में कैसे रिश्ते बनते टूटते हैं। राजनीति के पीछे पैसों की भरी बोरियों से नेता और अफसर कैसे तोले जाते हैं यह भी बारीकी से दिखाया गया है। खासकर यूपी की राजनीति में क्राइम की चरम सीमा भली-भांति फिल्म से आंकी जा सकती है। इन सबसे परे एक दलित महिला का सीएम बनने का सफर से दिखाया गया है। फिल्म के सभी किरदार सधे हुए हैं। हंसी-मज़ाक की बात के अगले ही पल का डायलॉग आपको सीरियस होने पर मजबूर कर देता है। तारा के भाषण देते समय की आवाज़ नॉन सीरियस ज़रूर है लेकिन बांधे रखती है। पार्टी का नारा ‘जय भीम जय भारत, तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार’ जैसे नारे मंच के माध्यम से बोले जाते हैं।

पोस्टर में फिल्म की मुख्य किरदार तारा हाथ में झाड़ू लिए नज़र आई थीं जिसे देखकर दलित समाज को काफी नाराज़ हुआ। यह नाराज़गी जायज़ भी थी। दक्षिण भारत के आंबेडकरवादी डायरेक्टर की जितनी भी फिल्में हैं काला, कबाली, असुरन, कर्णन, पेरियम पेरूमल, सरपट्टा परंबराई, जय भीम और सैराट आदि, इन सभी में दलित कैरेक्टर को लगान फिल्म के कचरे की तरह असहाय, लाचार, दरिद्र और निर्बल नहीं दिखाया जाता बल्कि आत्मविश्वास और स्वाभिमान से जीनेवाले हीरो के रूप में पेश किया जाता है।

सब जानते हैं कि यह नारा साहब कांशीराम ने दिया था। फिल्म हर मोड़ पर जाकर बहन मायावती का ही संघर्ष और जीवन याद दिलाती है। बहुजनों की राजनीति में उनका योगदान अविस्मरणीय है जिसे किसी भी सूरत में नकारा नहीं जा सकता। बहुजनों के हित में किए काम के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, सड़क, चौराहे, यूनिवर्सिटी, नगरों के नाम महापुरुषों के नाम पर रखकर उन्होंने इन सभी को दोबारा से जिंदा किया है। फिल्म में भी काफी कुछ दिखाने की कोशिश है और अब आते हैं फिल्म की कहानी पर…

फिल्म शुरू होती है दलितों की एक बारात से जो सवर्णों के मोहल्ले से बम, पटाखों, बैंड बांजों के साथ गुज़र रही होती है। इसी बीच उधर से एक त्रिपाठी आकर रोकता है और कहता है, “तुम्हारा दूल्हा घोड़ी पर कैसे बैठा है। क्या तुम अब हमारे सामने पगड़ी पहनकर नाचोगे।” लेकिन दूल्हा घोड़ी पर ही बैठा रहता है तो उधर से कुछ युवक आकर जबरदस्ती दूल्हे को नीचे खींचने लगते हैं। तभी बारात में से एक युवक आगे आकर हवाई फायर करता है। इतने में त्रिपाठी बारात में सबसे आगे चल रहे आदमी को गोली मार देता है। उनका शव खाट पर लेटाकर घर लाते हैं और घर पर उनकी पत्नी तभी एक बेटी को जन्म देती है। उसे बच्ची की दादी जहर चटाकर मार देना चाहती है क्योंकि इससे पहले भी वह तीन बच्चियों के साथ ऐसा ही कर चुकी है। लेकिन इस बार बच्ची की मां अड़ जाती है और उसे ऐसा नहीं करने देती। यह बच्ची तारा होती है।

राजनीति में कैसे रिश्ते बनते टूटते हैं। राजनीति के पीछे पैसों की भरी बोरियों से नेता और अफसर कैसे तोले जाते हैं यह भी बारीकी से दिखाया गया है। खासकर यूपी की राजनीति में क्राइम की चरम सीमा भली-भांति फिल्म से आंकी जा सकती है।

अब सीधे तारा को कॉलेज में लाइब्रेरियन दिखाया जाता है। इस दौरान तारा इंदुमणि त्रिपाठी से प्यार करने लगती है। यह उसी त्रिपाठी का बेटा है जिसने तारा के पिता की उनके सामने पगड़ी पहनकर नाचने पर जान ले ली थी। जैसे ही तारा शादी का नाम लेती है तो इंदुमणि तिलमिला जाता है क्योंकि उसे तारा से शादी नहीं करनी थी। यहीं से दोनों अलग हो जाते हैं। तारा ये सब इंदुमणि के पिता को बताकर आती है जिसके बाद तारा पर जानलेवा हमला होता है। इसी बीच एंट्री होती है गले में नीला साफा डाले साइकिल से चले आ रहे परिवर्तन पार्टी के संस्थापक मास्टर सूरजभान की। वह तारा को बुरी तरह पिटते देख कार्यकर्ताओं को इशारा कर छुड़वाते हैं।

अब तारा मास्टर जी के साथ ही चली जाती है। मास्टरजी पार्टी ऑफिस में ही रहते हैं। ऑफिस की दीवारों पर गौतम बुद्ध, गुरु रविदास, गुरु वाल्मीकि, डॉ.आंबेडकर, भगत सिंह और दूसरे कोने में साहब कांशीराम की दो तस्वीरें टंगी हैं। फिल्म की असली कहानी यहीं से शुरू होती है। मास्टरजी उसे समझाते हैं, “तुम्हें अगर बदला ही लेना है तो वह तुम्हारे साथ नहीं हैं लेकिन समाज के लिए कुछ करना चाहती हो तो मास्टरजी तुम्हारे साथ खड़े हैं।”

तस्वीर साभार: Smashboard

तारा किताबें पढ़ने लगती है और महापुरुषों के बारे में जानती है। बैठकों में रुचि बढ़ती है। चुनाव का समय आता है तो एक अन्य पार्टी से अरविंद सिंह गठबंधन का प्रस्ताव लेकर आते हैं। अलग विचारधारा होने के चलते मास्टरजी यही कहते हैं कि वह सभी सलाह करके बताएंगे। जब पार्टी के वरिष्ठ नेता गठबंधन न करने की सलाह देते हैं वहीं तारा कहती है कि गठबंधन करके पावर बढ़ेगी और समाज में काम ज्यादा किया जा सकता है। इसके बाद मास्टर जी गठबंधन की बात करने के लिए तारा को ही भेजते हैं। 

चुनाव करीब आता है और नामांकन दर्ज किया जाता है। सीएम की सीट को टक्कर देने के लिए पार्टी से कोई नेता आगे नहीं आना चाह रहा था तो वहां से तारा का नामांकन भरवाया जाता है। वह इलेक्शन जीत जाती है और मास्टर जी सीएम के लिए तारा का नाम फाइनल कर देते हैं। तारा सीएम बनती है। उन्हें दानिश खान के रूप में पर्सनल सेक्रेटरी मिलता है। वह बताता है कि सहयोगी पार्टी की ओर से 5 नेताओं के नाम की लिस्ट आई है जो मंत्री बनाए जाने हैं।

तारा साथ ही राज्य में बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, जन सुविधाओं से जुड़े कार्य भी बखूबी कर रही थी। नई नई योजनाएं बनाना और उसे लागू कराना जारी था। सहयोगी पार्टी के विरोध करने पर बात सीएम के इस्तीफे तक आ पहुंचती है। शाम को जब मास्टर जी और तारा साथ होते हैं तो मास्टरजी भी कहते हैं कि अब इस्तीफा दे देना चाहिए। वहीं, मास्टर जी सुबह सभी विधायकों की बैठक में साफ-साफ यह एलान करते हैं कि चाहे पार्टी समर्थन वापिस लेले और सरकार गिर जाए लेकिन सीएम तारा ही रहेगी। इसके कुछ समय बाद विरोधी पार्टी मास्टर जी की हत्या करवा देती है। 

इसके बाद तारा सहयोगी पार्टी के सभी विधायकों को उठवा लेती है और अपने पास आवास पर ही रखती है।ताकि सुबह राज्यपाल के सामने शपथ दिलवा सके। यह सुनते ही दूसरी पार्टी से अरविंद अपने गुंडों को लेकर गेस्ट हाउस पहुंचते हैं। इस दौरान वहां क्या होता है, अगर यह बता दिया जाए तो फिल्म देखने का रोमांच ही खत्म हो जाएगा। इस बीच तारा सीएम बनी रहेगी या दूसरी पार्टी सरकार गिरा देगी और दूसरा सीएम कौन बनेगा इसके लिए आपको फिल्म तक पहुंचना होगा। यह ज़रूरी फिल्म है, कुछ सच्ची और कुछ काल्पनिक घटनाओं पर आधारित देखी जानी चाहिए। यह फिलहाल नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है।


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