साल 2012 में दिल्ली की यात्रा करने पर ट्रैफिक की रेड लाइट होने पर दो बच्चियां पेन बेचती ऑटो के पास आई, तभी ड्राइवर ने उन्हें मना करते हुए आगे बढ़ने को कहा। उसके बाद दूसरा वाक्य हमें सुनाते हुए कहा कि आज दिख रही हैं लेकिन अगले साल तक यहां नज़र नहीं आएगी। इससे पहले दो लड़कियां अक्सर नज़र आती थी और फिर पता नहीं कहां एकदम से गायब हो गई। हमेशा सिग्नल पर घूमती लड़कियां एक दिन अचानक से दिखना बंद हो जाती हैं। ये अनुभव एक ऑटो ड्राइवर के थे जो रोज नई दिल्ली के एक तय रूट पर चलने की वजह से नोट कर पाए बिना यह जाने की दिल्ली भारत का वह शहर है जहां बड़ी संख्या में महिलाएं और लड़कियों की गुमशुदा होने के मामले सामने आते हैं।
बीते सप्ताह संसद में केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि साल 2019 और 2021 के बीच देश में लगभग 13.13 लाख लड़कियां और महिलाएं लापता हुई हैं। द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़ इन तीन वर्षों 2019-21 के बीच 18 साल से ऊपर 10,61,648 महिलाएं और 18 साल से कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां लापता हो गई। यह आंकड़ा नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के आधार पर बताया गया है। मध्य प्रदेश में गुमशुदा महिलाओं की संख्या लगभग दो लाख के करीब है। संसद में पेश किए गए डेटा के मुताबिक़ मध्य प्रदेश में 1,60,180 महिलाएं और 38,234 लड़कियां लापता दर्ज की गई हैं।
इसके बाद पश्चिम बंगाल में 1,56,905 महिलाएं और 36,606 लड़कियों के गुमशुदगी के मामले हुए हैं। महाराष्ट्र में यह संख्या 1,78,400 महिलाएं और 13,033 लड़कियां लापता हुई। इससे आगे ओडिशा में तीन सालों में 70,222 महिलाएं और 16,649 लड़कियां और छत्तीसगढ़ में 49,116 महिलाएं लापता हुई। केंद्र शासित राज्यों में राजधानी दिल्ली सबसे ऊपर है जहां 61,054 महिलाएं और 22,919 लड़कियां 2019 से 2021 के समय में लापता हुईं। महिलाओं की गुमशुदगी के आंकड़ें संसद में पेश करने के साथ सरकार ने यह भी बताया है कि देश भर में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई पहल की हैं जिसमें यौन अपराधों के ख़िलाफ़ प्रभावी रोकथाम के लिए आपराधिक कानून (संशोधन) ऐक्ट, 2013 का अधिनियम शामिल है।
एनसीआरबी के 2016, 2017 और 2018 के आंकड़ों के अनुसार भारत में 5,86,024 महिलाएं लापता हुई थी। इस आंकड़े के मुताबिक़ भारत में 550 महिलाएं हर दिन लापता होती है। महिलाओं और बच्चियों के गुमशुदा होने के कारणों में मुख्य तौर पर मानसिक स्वास्थ्य, बुरा व्यवहार, घरेलू हिंसा और अपराध का शामिल होना है। जबकि तस्करी यानी ट्रेफिकिंग का मुख्य कारण जबरन विवाह, बाल मजदूरी, घरेलू कामगार और यौन शोषण आदि है।
साल 2016 से 2021 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार भारत में 18 लाख से अधिक लड़कियां और महिलाएं लापता हो चुकी हैं। महिलाओं की लापता होने की संख्या साल दर साल बढ़ रही है। हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार इसी वर्ष के शुरुआती तीन महीनों में महाराष्ट्र में महिलाओं के लापता होने के 5,610 मामले सामने आए। महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रूपाली चाकणकर ने कहा था कि यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है। ज्यादातर लड़कियों को शादी या नौकरी का लालच देकर फंसाया है। अगर पुलिस ने उन्हें तुरंत नहीं ढूढ़ा तो उनके यौन शोषण का खतरा बढ़ जाता है।
ठीक इसी तरह महिलाओं के लापता होने का मुद्दा बीते दिनों केंद्र में फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ की रिलीज के दौरान बना था। मीडिया में आई ख़बरों के अनुसार साल 2016 से 2020 तक गुजरात में 40,000 से अधिक महिलाओं के लापता होने की ख़बरे सामने आई थी। हालांकि गुजरात पुलिस ने इस संख्या को भ्रामक बताते हुए कहा था कि 94.90 फीसदी मामलों में लापता महिलाओं को उनके परिवार से मिला दिया गया है।
लापता स्त्रियां और यौन तस्करी
हर साल बड़ी संख्या में लापता होने वाली भारतीय लड़कियां और महिलाओं की मानव तस्करी की जाती है। भारत के बड़े शहरों से होकर गुजरा यह रूट दुनिया के अन्य देशों तक पहुंच जाता है। संयुक्त राष्ट्र ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम में प्रकाशित जानकारी के अनुसार बहुत सी युवा लड़कियां और महिलाओं की सेक्स वर्क और जबरन शादी के लिए दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब में तस्करी की जाती है। पश्चिम बंगाल उन एजेंटों और केंद्र के रूप में उभरा है जो महिलाओं और बच्चों को जबरन श्रम के लिए मध्य पूर्व में भेज रहे हैं। काम की कमी, प्राकृतिक आपदाएं महिलाओं और बच्चों को तस्करों के हाथों में धकेल देती हैं।
भारत में समय के साथ महिलाओं के लापता होने और तस्करी, अवैध काम, जबरन विवाह और यौन हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे हैं। पिछड़े जिले की रहने वाली महिलाओं को काम, पैसा, झूठी शादी, शोहरत का लालच दिया जाता है। आउटलुक में प्रकाशित जानकारी के अनुसार 2019 में महाराष्ट्र में ट्रैफिकिंग पर हुए एक अध्ययन के मुताबिक़ घर आधारित साइट, स्पा, साइलेंट बार जो नियमित डांस बारे से चुपचाप चलाए जाते हैं। इन बारों में कोई संगीत नहीं होता है और ये कम रोशनी वाले और अंधेरे में चलते हैं। दलाल खुद को बीमा एंजेंट बताते हैं। तस्करी की गई लड़कियों को राज्य के पिछड़ों जिलों में ले जाया जाता है, ग्राहकों की पत्नी के रूप में पेश करके धार्मिक स्थलों या पर्यटन स्थलों पर ले जाया जाता है। तस्करी की गई लड़कियों की उम्र नौ से 35 साल के बीच होती है। इन्हें कई बार बेचा जाता है जिस वजह से ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है।
जुलाई 2022 में पश्चिम बंगाल सरकार ने महिलाओं के प्रवासन इऔर तस्करी को रोकने के लिए महाराष्ट्र सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। ख़बर के अनुसार तस्करी की जाने वाली महिलाओं और लड़कियों की सबसे ज्यादा आवाजाही इन दोंनो राज्यों के बीच होती है इसलिए इस ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। महाराष्ट्र में वर्ष के शुरू में तेजी से महिलाओं के लापता होने के मामलों की बढ़ती संख्या पर महिला आयोग ने यह भी कहा था कि महिलाओं की तस्करी करके पुणे से दुबई और ओमान में की जा रही है।
लैंगिक भेदभाव के कारण भारत अनेक तरह की मानव तस्करी का केंद्र बनता जा रहा है और लड़कियां और महिलाओं के लापता होने के रिपोर्ट के मामलों की संख्या बढ़ती जा रही हैं। भारत में लापता होने वाले दर्ज मामलों में दो-तिहाई महिलाएं होती हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार बीते छह सालों में 1,235 ट्रांसजेंडर के लापता होने की रिपोर्ट भी दर्ज हुई हैं। हमारे समाज में जेंडर के आधार पर होने वाले भेदभाव के चलते महिलाओं, बच्चियों, जेंडर माइनॉरिटी को अनेक तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। संसद में रिपोर्टे पेश होती आ रही है, प्रोपागैंडा के तहत लापता हुई महिलाओं के मुद्दे को सिर्फ राजनीति के लिए मुद्दा बनाया जाता है इससे अलग स्तिथि में सुधार होता नज़र नहीं आता है।