इंटरसेक्शनलजेंडर रोहतास टू राजस्थान- ब्राइड ट्रैफिकिंग का नया रूट

रोहतास टू राजस्थान- ब्राइड ट्रैफिकिंग का नया रूट

कोविड-19 की चौतरफा मार से इसका विस्तार अब दक्षिण बिहार के विभिन्न ज़िलों के ग्रामीण क्षेत्रों में भी हो गया है। यानी बिहार में जहां-जहां गरीबी दस्तक देती है, शादी के नाम पर बेटियों को बेचने का सिलसिला चल पड़ता है।

ऐसा नहीं है कि ब्राइड ट्रैफिकिंग के मामले सिर्फ बिहार के सीमांचल या उत्तर बिहार तक ही सीमित हैं। कोविड-19 की चौतरफा मार से इसका विस्तार अब दक्षिण बिहार के विभिन्न ज़िलों के ग्रामीण क्षेत्रों में भी हो गया है। यानी बिहार में जहां-जहां गरीबी दस्तक देती है, शादी के नाम पर बेटियों को बेचने का सिलसिला चल पड़ता है। उत्तर बिहार के वैशाली और मुज़फ्फरपुर से लेकर दक्षिण बिहार के रोहतास तक, कई ज़िले हैं जहां कोविड के दौरान ब्राइड ट्रैफिकिंग (शादी के नाम पर लड़कियों की तस्करी) के मामले सुर्खियों में आए थे। इनमें से हर ज़िले में तस्कर अपनी सहुलियत के हिसाब से अपना रूट और राज्य तय करते हैं। जैसे रोहतास से नाबालिग बच्चियों को ब्राइड ट्रैफिकिंग के जरिए तकरीबन 1300 किलोमीटर दूर राजस्थान ले जाया जाता है। राजस्थान की किसी नामालूम सी जगह, पूरी जिंदगी बिताने के लिए।

जून 2021 में रोहतास थाना में एक एफआईआर दर्ज हुई थी जिसमें एक शब्द लिखा था, “मेरी खरीद फरोख्त न हो।” यह एफआईआर 17 साल की सुलोचना (बदला हुआ नाम) ने दर्ज करवाई थी। उसकी शादी उसकी मां आरती देवी, नाना महेश चौधरी और मामा सागर कुमार चौधरी ने राजस्थान के किसी अनजान लड़के से तय कर दी थी। हालांकि, बारहवीं में पढ़ने वाली सुलोचना के साथ-साथ उसके दादा–दादी और हैदराबाद में ड्राइवर का काम करनेवाले पिता नगीना चौधरी को यह शादी मंजूर नहीं थी। सुलोचना की दादी इस जबरन शादी को लेकर अपने गांव के मुखिया से मिली। मुखिया ने उन्हें रोहतास के तिलौथू प्रखंड में इसी मुद्दे पर काम कर रही एक संस्था ‘परिवर्तन विकास’ से संपर्क करवाया।

इस संस्था की मदद से न केवल यह शादी रुकवाई गई बल्कि रोहतास थाने में इस मामले में सुलोचना की मां, नाना और मामा को अभियुक्त बनाते हुए एक एफआईआर भी दर्ज करवाई गई। एफआईआर में यह बात दर्ज है कि सुलोचना का सौदा ढाई लाख में राजस्थान के किसी आदमी से हुआ था। तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी सुलोचना बताती हैं, “नाना और मामा के साथ मेरी मां भी जेल में हैं। सभी लोग मुझे उन्हें जेल भेजने को लेकर ताना देते हैं। सिर्फ दादी और पापा मेरे साथ हैं। इस प्रकरण के बाद मेरी पढ़ाई भी छूट गई है।”

सुलोचना (बदला हुआ नाम) तस्वीर साभार: सीटू

उत्तर बिहार के वैशाली और मुज़फ्फरपुर से लेकर दक्षिण बिहार के रोहतास तक, कई ज़िले हैं जहां कोविड के दौरान ब्राइड ट्रैफिकिंग (शादी के नाम पर लड़कियों की तस्करी) के मामले सुर्खियों में आए थे। इनमें से हर ज़िले में तस्कर अपनी सहुलियत के हिसाब से अपना रूट और राज्य तय करते हैं। जैसे रोहतास से नाबालिग बच्चियों को ब्राइड ट्रैफिकिंग के जरिए तकरीबन 1300 किलोमीटर दूर राजस्थान ले जाया जाता है। राजस्थान की किसी नामालूम सी जगह, पूरी जिंदगी बिताने के लिए।

अपने ही परिवार द्वारा बेचे जाने का रोहतास में यह अकेला मामला नहीं है। अपनों से ही ये दर्द पानेवाली इन बच्चियों की एक लंबी फेहरिस्त है। इसी साल फरवरी माह में बंजारी नाम की जगह में दो सगी नाबालिग बच्चियों की शादी राजस्थान के किन्हीं पुरुषों से करवाई जा रही थी। इस शादी में भी राजस्थान से आए लोगों ने नाबालिग बच्चियों को उसके भाई उपेन्द्र भुइया और भाभी सुनीता देवी से महज दस हजार रूपये में खरीद लिया था। इन दोनों बच्चियों के माता-पिता की मृत्यु हो चुकी है। इनका सौदा रोहतास के बकनौरा की बुंचिया कुंवर और समहुता पंचायत की संतोषी देवी नाम की महिला ने करवाया था। हालांकि, बाद में यह शादी भी परिवर्तन विकास संस्था की पहल पर रुक गई। इस तरह के मामले लगातार सामने आने के बाद फ़रवरी 2022 में रोहतास के जिलाधिकारी धर्मेन्द्र कुमार ने एक जांच टीम का गठन भी किया था, लेकिन अब तक इसका नतीजा सिफर ही रहा।

नवंबर 2022 में ही ज़िले के नासरीगंज थाने की एक लड़की को राजस्थान के नीमाका थाना (सीकर) से बरामद किया गया था। इस मामले में रोहतास के पिपरडीह की ही रहनेवाली सुमित्रा देवी ने लड़की को एक लाख साठ हज़ार रुपये में बेचा था। परिवर्तन विकास संस्था, जो चाइल्ड लाइन का काम भी जिले में देख रही है, उससे जुड़े विनोद कुमार कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि कोविड से पहले रोहतास में शादी के नाम पर लड़कियों की खरीद फरोख्त नहीं होती थी। लेकिन इसकी दर बहुत कम थी। कोविड ने लोगों को आर्थिक तौर पर मोहताज बनाया जिसके चलते ये मामले एकदम से बढ़े हैं और अब कई दलाल इसे एक बिजनेस के तौर पर देख रहे हैं।”

बिहार के सीमांचल की तरह ही ऐसी शादियों में सार्वजनिक उत्सव ना के बराबर होता है। तिलौथू की रहनेवाली रीना कुमारी जो इलाके में किशोरियों के बीच चल रहे सुकन्या क्लब की सदस्य भी है, कहती हैं, “हम लोग शादी में गड़बड़ी है, इसी बात से समझ लेते हैं कि शादी कहां हो रही है? राजस्थान वाली शादियां मंदिर या लॉज में छिपकर होती हैं। उसमें घर पर बहुत कुछ रस्म या रिवाज नहीं होते हैं।” वह आगे बताती हैं कि गरीबी, बिन मां-बाप की बच्चियों और बेटियों को बोझ मानने की प्रवृत्ति तस्करों का काम आसान करती है। ट्रैफिकिंग के लिए एक पूरी चेन काम करती है जिसमें स्थानीय दलाल के साथ-साथ दूसरे राज्य के दलाल भी शामिल होते हैं और एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं।

तिलौथू की सेवही पंचायत की उषा देवी के पास भी उनके ही पंचायत की एक दलाल संगीता आई थी। उषा देवी के देवर–देवरानी की मौत हो चुकी है। देवर की अनाथ बेटी के लिए शादी का रिश्ता संगीता लेकर आई थी। उषा देवी बताती हैं, “वह मेरी बच्ची की शादी राजस्थान करवाना चाहती थी। संगीता ने कहा था कि दहेज तिलक के बिना शादी होगी और शादी करने के लिए हमें पैसा भी मिलेगा। उसकी इस बात से मुझे गुस्सा आ गया। हमें जब पैसे की कोई कमी नहीं है तो हम अपनी लड़की की ऐसी शादी क्यों करेंगे?”

परिवर्तन विकास संस्था, जो चाइल्ड लाइन का काम भी जिले में देख रही है, उससे जुड़े विनोद कुमार कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि कोविड से पहले रोहतास में शादी के नाम पर लड़कियों की खरीद फरोख्त नहीं होती थी। लेकिन इसकी दर बहुत कम थी। कोविड ने लोगों को आर्थिक तौर पर मोहताज बनाया जिसके चलते ये मामले एकदम से बढ़े हैं और अब कई दलाल इसे एक बिजनेस के तौर पर देख रहे हैं।”

रोहतास ज़िले को बिहार का धान का कटोरा कहा जाता है यानी यह वह इलाका है जो राज्य की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में संपन्न है। इसके बावजूद जिले से ब्राइड ट्रैफिकिंग के साथ-साथ गरीब आदिवासी बच्चियों की पढ़ाई के नाम पर ट्रैफिकिंग हो रही है। स्थानीय पत्रकार कमलेश जो लगातार ब्राइड ट्रैफिकिंग के मामलों पर रिपोर्टिंग कर रहे हैं, बताते हैं, “रोहतास ज़िले से जो ब्राइड ट्रैफिकिंग हो रही है, उसमें से 90 फीसदी राजस्थान और 10 फीसदी उत्तर प्रदेश में हो रही है। इसके लिए लड़कियां सामान्य तौर पर दस हजार से ढाई लाख में बिक रही हैं।”

इन मामलों के अलावा हाल ही में ट्रेन से महाराष्ट्र के नागपुर में ले जाई जा रही 59 नाबालिग आदिवासी बच्चियों की बरामदगी हुई थी। इन बच्चियों को पढ़ाई के नाम पर नागपुर ले जाया जा रहा था। जिले के आदिवासी क्षेत्र में से एक पिपरली पंचायत के सरपंच लक्ष्मण उरांव बताते हैं, “इस क्षेत्र के लोग स्वभाव से सीधे हैं। उन्हें पढ़ाई के नाम पर बहका उनकी लड़कियों को बाहर के लोग ले जा रहे थे, जिसमें कुछ इलाके के दलाल भी थे। अब इसका खुलासा हुआ है तो हम लोग ध्यान दे रहे हैं।”

रोहतास ज़िले से ब्राइड ट्रैफिकिंग के साथ-साथ गरीब आदिवासी बच्चियों की पढ़ाई के नाम पर ट्रैफिकिंग हो रही है। स्थानीय पत्रकार कमलेश जो लगातार ब्राइड ट्रैफिकिंग के मामलों पर रिपोर्टिंग कर रहे हैं, बताते हैं, “रोहतास ज़िले से जो ब्राइड ट्रैफिकिंग हो रही है, उसमें से 90 फीसदी राजस्थान और 10 फीसदी उत्तर प्रदेश में हो रही है। इसके लिए लड़कियां सामान्य तौर पर दस हजार से ढाई लाख में बिक रही हैं।”

दरअसल पूरे कोविड के दौरान रोहतास जिले के भीतर भी ट्रैफिकिंग के नए केंद्र उभरे हैं। रोहतास डिस्ट्रिक्ट डॉट कॉम नाम की वेबसाइट चलाने वाले अंकित कुमार कहते हैं, “रोहतास का पहाड़ी इलाका जैसे तिलौथू, रोहतास, नौहट्टा प्रखंड तकरीबन पांच साल पहले अच्छी रोड कनेक्टिविटी से जुड़ गए हैं। यह राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2 से जुड़ा है। इससे इन इलाकों में जाना अधिक आसान हो गया है, इसलिए ट्रैफिकर्स भी अब यहां खूब जाते हैं।” हालांकि, बिहार के सीमांचल जिलों से इतर दक्षिण बिहार के जिले रोहतास में ऐसे केस ज्यादा संख्या में रिपोर्ट हो रहे हैं।

इसकी एक वजह जो साफ-साफ समझ में आती है, वह है शिक्षा की कमी। रोहतास की साक्षरता दर जहां 75.59 प्रतिशत है वहीं सीमांचल के अररिया की 53.53 प्रतिशत, कटिहार की 52.24 प्रतिशत, पूर्णिया की 51.1 प्रतिशत और किशनगंज की 57.04 प्रतिशत है। सीमांचल के इन सभी ज़िलों में महिलाओं की साक्षरता दर की बात करें तो ये महज 45 प्रतिशत के आसपास है जबकि रोहतास में ये 63 प्रतिशत है यानी ब्राइड ट्रैफिकिंग को परास्त करने का एक रास्ता शिक्षा के उजाले से ही निकलता नज़र आता है।


(यह रिपोर्ट संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2022 के अंतर्गत लिखी गई है)

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