समाजकानून और नीति प्रेम विवाह पर माता-पिता की सहमति का गुजरात के मुख्यमंत्री का बयान है मौलिक अधिकारों का हनन

प्रेम विवाह पर माता-पिता की सहमति का गुजरात के मुख्यमंत्री का बयान है मौलिक अधिकारों का हनन

मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल का कहना है कि उनकी सरकार एक ऐसी प्रणाली को लागू करने की व्यवहार्यता की जांच करेगी जो प्रेम विवाह के लिए माता-पिता की मंजूरी को अनिवार्य बनाती है, लेकिन केवल तभी जब यह संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप हो।

“गुजरात सरकार प्रेम विवाह के लिए माता-पिता की सहमति अनिवार्य करने पर विचार करेगी, मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल ने यह बयान एक अगस्त को दिया गया है। हिंदुस्तान टाइम्स में छपी ख़बर के अनुसार गुजरात राज्य सरकार ने 2021 में ‘गुजरात फ्रीडम ऑफ़ रिलीजन ऐक्ट’ में संशोधन के बाद विवाह द्वारा या ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन कराने पर सजा का प्रावधान है। अगर आरोप साबित होते है तो दस साल की सजा हो सकती है। हालांकि गुजरात हाई कोर्ट ने कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई हुई है जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में अभी तक मामला लंबित है। मार्च में गुजरात विधानसभा में एक चर्चा के दौरान, भाजपा विधायक फतेह सिंह चौहान ने प्रेम विवाह को अपराधों से जोड़ा और दावा किया कि माता-पिता की मंजूरी अनिवार्य करने से राज्य में अपराध दर कम हो जाएगी। वहीं मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल का कहना है कि उनकी सरकार एक ऐसी प्रणाली को लागू करने की व्यवहार्यता की जांच करेगी जो प्रेम विवाह के लिए माता-पिता की मंजूरी को अनिवार्य बनाती है, लेकिन केवल तभी जब यह संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप हो।

स्कूल में छठी कक्षा से ही सोशल साइंस/एसएसटी यानी सामाजिक विज्ञान की किताब में बच्चों को संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को दिए गए मौलिक अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) के बारे में पढ़ाया जाता है। कहना मुश्किल है किसी राज्य के मुख्यमंत्री ने मौलिक अधिकारों को भी थोड़ी सी गहराई से पढ़ा भी है या नहीं क्योंकि पढ़ा होता और समझा होता तो ऐसा बयान आता ही नहीं। बरहाल मुख्यमंत्री पढ़ें हो या न हों लेकिन हम समझ लेते हैं। संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार के अनुच्छेद 14 और 21 के अनुसार इस देश के नागरिक को अपना जीवनसाथी खुद चुनने का अधिकार है।

गुजरात राज्य सरकार ने 2021 में ‘गुजरात फ्रीडम ऑफ़ रिलीजन ऐक्ट’ में संशोधन के बाद विवाह द्वारा या ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन कराने पर सजा का प्रावधान है। अगर आरोप साबित होते है तो दस साल की सजा हो सकती है।

शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ, (2018) 7 एससीसी 192 मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जीवन साथी चुनने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। अदालत ने माना कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने की स्वतंत्रता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21, 19(1)(ए), और 14 के तहत संरक्षित है। मुख्यमंत्री जो बयान दे रहे हैं वह एक पल में असंवैधानिक करार हो चुका है। तो अपने बयान की संवैधानिक पुष्टि ढूंढने के लिए किसी टीम का गठन करें इससे उन्हीं के व्यक्तित्व की गागर में ज्ञान के सागर का मालूम होता है। बहरहाल असल बात करते हैं जो है बयान के पीछे की सोच, रणनीति और राजनीति की। गुजरात के मुख्यमंत्री बयान दें तो उसका अर्थ इतना भी सीधा भला कैसे हो सकता है?

हमारे देश में संविधान व्यक्ति को महत्व देता है लेकिन समाज परिवार, समुदाय को अंततः सामाजिक जीवन में समाज व्यक्ति से ऊपर है और उसके हितों (अच्छे, बुरे जैसे भी हो) को सर्वोपरि रखा जाता है। प्रेम विवाह समाज की इस कार्य पद्धति के विपरीत है जो जाति, धर्म, वर्ग, समुदाय की संरचना को भी चुनौती देता है। अगर प्रेम विवाह होना समाज में सामान्य बनता है तो जाति, धर्म, वर्ग, समुदाय ने जो हायरार्की समाज में निरंतर बनाए रखी हैं जिससे एक वर्ग को बाकियों पर सामाजिक राज करने की शक्ति देते हैं वह संकट में आ जाएगी। इस तरह अपने हाथों से जाती हुई शक्ति, सत्ता किसे अच्छी लगती है? किसी को नहीं! इस सत्ता को बनाए रखने के लिए ज़रूरी होता है परिवार संरचना का जस का तस बने रहना जिसके संरचना का आधार एक जाति, एक समुदाय, एक वर्ग, एक ही धर्म से विवाहित दंपत्ति होना अनिवार्य है।

जे.एच. लार्सन और टी.बी. होल्मन (1994) ने अपने रिसर्च पेपर में विवाह को सबसे महत्वपूर्ण और मौलिक रिश्ता बताया क्योंकि यह परिवार की स्थापना और अगली पीढ़ी के पालन-पोषण के लिए बुनियादी संरचना प्रदान करता है। एक पीढ़ी में बदलाव आया तो आगे वाली पीढ़ियां भी प्रभावित होंगी। ऐसे में विवाह में दोनों व्यक्ति अलग-अलग सामाजिक पहचान से होंगे तो उनके बीच की भिन्नता धीरे-धीरे मिटने लगेगी जिसका अर्थ होगा कि तथाकथित उच्च और नीच की धारणा का मिटना जिससे जाति आधारित समाज में खलल पड़ सकता है। इसीलिए जब मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल प्रेम विवाह में मां-पिता की मंजूरी को प्राथमिकता देना चाहते हैं तब वे बयान की आड़ में कास्ट मेंटेनेंस की बात कर रहे हैं क्योंकि वे जानते हैं भारत के माता-पिता को अपने बच्चों के जीवन, खुशी से ज़्यादा अपनी जाति प्यारी है, धर्म, वर्ग, समुदाय प्यारा है।

अगर ऐसा नहीं होता तो हरियाणा में प्रेमियों को मौत के घाट उतारती खाप पंचायतें कभी जन्म ना लेती। इंडिया टुडे में प्रकाशित ख़बर के अनुसार साल 2017 से 2019 के बीच हमने ऑनर क्राइम के 145 मामले में नहीं सुने होते। हालांकि असल में मामले इससे ज़्यादा ही होंगे क्योंकि पुलिसिया तंत्र को प्रेमियों को बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। मार्च में गुजरात विधानसभा में एक चर्चा के दौरान, भाजपा विधायक फतेह सिंह चौहान ने प्रेम विवाह को अपराधों से जोड़ा और दावा किया कि माता-पिता की मंजूरी अनिवार्य करने से राज्य में अपराध दर कम हो जाएगी। ऐसा प्रतीत होता है भाजपा विधायक चौहान विधानसभा चर्चा में कुछ ख़ास तथ्य जानकारी इकट्ठा किए बगैर ही अपना भाषण दे रहे थे वरना ऑनर क्राइम, बाल विवाह पर भारत सरकार के आंकड़ों पर ही ध्यान देते तो पितृसत्ता, जाति नशा से लैंस माता-पिता इतने महान नज़र नहीं आते।

जे.एच. लार्सन और टी.बी. होल्मन (1994) ने अपने रिसर्च पेपर में विवाह को सबसे महत्वपूर्ण और मौलिक रिश्ता बताया क्योंकि यह परिवार की स्थापना और अगली पीढ़ी के पालन-पोषण के लिए बुनियादी संरचना प्रदान करता है। एक पीढ़ी में बदलाव आया तो आगे वाली पीढ़ियां भी प्रभावित होंगी।

इस देश में हर दिन, गौर से पढ़िए दहेज न दे पाने की वजह से हर दिन 20 महिलाओं की हत्या होती है। न्यूज मिनट में छपी ख़बर के अनुसार राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 18 से 49 वर्ष की आयु की विवाहित महिलाएं जिन्होंने 15 साल की उम्र से शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है उनमें से 84% ने बताया है कि उनका वर्तमान पति हिंसा का अपराधी है। इन हिंसाओं पर कितने मां-बाप अपनी लड़कियों के हक़ में उनकी लड़ाई लड़ते हैं? पुलिसिया तंत्र, न्यायिक तंत्र उन्हें कितना न्याय देता है? बल्कि हम अपनी माँ, मौसियों, पड़ोसी महिलाओं से यही सुनते रहे हैं बल्कि आपने भी सुना और महसूस किया होगा जब वे कहती हैं कि उनके मायके वालों ने साथ दिया होता तो से ऐसे पति के साथ कभी नहीं रहतीं।

हम घरों में लड़कियों को यह सिखाते हैं कि उन्हें अंत में विवाह करना है, अपने पति की हर बात माननी है, वो हिंसा भी करे तो उफ्फ नहीं करनी और क्योंकि शादी में मां -बाप इतना पैसा खर्च करते हैं, दहेज देते हैं, कर्जा लेते हैं इसीलिए हर छोटी-छोटी बात (हिंसा पढ़ें) पर मायके का रुख नहीं करना है इससे बाप की इज्ज़त कम होगी। हम यह सिखाते हैं कि वे प्रेम न करें क्योंकि प्रेम करने से परिवार की इज्ज़त चली जाती है, लड़कियों पर तथाकथित इज़्ज़त का बस्ता बहुत भारी कर देते हैं। इस बस्ते को उतारने की हिम्मत जो लड़कियां करती हैं और संविधान में दिए जीवन साथी चुनने के अधिकार को समाज से लड़कर, डरकर अपने जीवन में लागू करती हैं उन्हें सुरक्षा देने के, उनके लिए कानून की राह, जीवन जीने का रास्ता आसान बनाने की बजाय ऐसे “बयान” उनकी मौत के रास्ते तय करना चाहते हैं।

जहां परिवार यह कहकर कहते है कि आओ तुम्हारी शादी तुम्हारे ही प्रेमी से कराएंगे और घर आने पर दोनों को या दोनों में से जो निम्न होगा उसे मौत दे देंगे। फिल्म मेकर नकुल साहनी की डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘इज्जतनगरी की असभ्य बेटियां’ जैसी ना जाने कितने बबली और मनोज मारे जाएंगे और समाज, परिवार को ऐसी मृत्युओं पर गर्व होगा कि अंततः जाति बची रही। प्रेम विवाह में लड़कियों के प्रति अपराधों की दर कम करने की बात मुख्यमंत्री, विधायक कर रहे हैं लेकिन सिर्फ़ प्रेम विवाह में क्यों? उससे पहले सामान्यतः महिलाओं के प्रति होती तमाम हिंसाओं के ख़िलाफ़ इनका रवैया स्पष्ट क्यों नहीं है? अरेंज मैरिज में रहकर घरेलू हिंसा सहने वाली महिलाओं के लिए इंतजाम की बात ये लोग क्यों नहीं कर रहे हैं? काम की करने जगहों पर महिलाओं के शोषण की बात क्यों नहीं कर रहे हैं? क्योंकि इन हिंसाओं से समाज की बुनियादी संरचना तंत्र को कोई खतरा नहीं है। इन स्थितियों में महिला का हिंसा सहना सामान्य है, प्रेम विवाह सामान्य नहीं है।


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