सीमा हैदर ,अंजू विश्वकर्मा ,ज्योति मौर्या या मणिपुर जिन महिलाओं के साथ यौन हिंसा हुई, ये सब सत्ता के लिए, उनकी हार-जीत का सामान हैं। सत्ताएं हमेशा से स्त्री-देह पर कब्जा जमाने में ही अपना शौर्य समझती रही हैं। मर्दवादी सत्ता में हमेशा औरतों को वस्तु की तरह देखा जाता है। स्त्री उनके भद्दे मज़ाक, गाली, फूहड़ चुटकुले बनाने की चीज़ होती है।
अपनी किताब “नारीवादी निगाह से’ में निवेदिता मेनन दसवीं शताब्दी के एक शिवभक्त देवर दासिमय्या का लिखा हुआ उद्घृत करती हैं, “अगर उन्हें उन्नत वक्ष और लंबे बाल आते देखते हैं तो उसे वह औरत कहते हैं जब उन्हें दाढ़ी और मूंछें दिखाई देती है तो वह उसे मर्द कहने लगते हैं। लेकिन गौर करिए कि इन दोनों के बीच में जो आत्म मंडराता रहता है वह मर्द होता है न औरत।” सवाल है कि समाज स्त्री को देह से अलग देखता ही नहीं। उसकी इच्छाएं, उसका चयन उसका निर्णय जैसे उनके लिए कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है महत्वपूर्ण है तो बस स्त्री की देह, जिसपर उन्हें हमेशा से अधिकार चाहिए था।
ध्यान से देखा जाए तो इन सभी केसों में स्त्री की देह पर वर्चस्व का ही मसला है। मणिपुर हिंसा में स्त्रियों के साथ यौन हिंसा इसलिए की गई क्योंकि वे एक दूसरे समुदाय की स्त्रियां थीं। ज्योति मौर्या को इसलिए लगातार ज़लील किया जा रहा है क्योंकि उसने अपने चयन के अधिकार का उपयोग किया जो कि एकदम मानवीय संवेदनाओं पर आधारित था। इसी तरह सीमा हैदर पाकिस्तान से भारत आई एक मुस्लिम महिला है। जैसा कि सीमा बता रही हैं कि उन्हें ऑनलाइन गेम खेलते हुए नोएडा के एक लड़के से प्रेम हो गया था। बाद में वह अपने चार बच्चों के साथ नेपाल के रास्ते भारत पहुंच गईं। सीमा हैदर का कहना है कि वह अपने प्रेमी सचिन से धर्म परिवर्तन करके विवाह करना चाहती हैं।
यह खबर चैनलों पर ,सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से वायरल हो गई। लोग इसे हिंदुस्तान की बहुत बड़ी जीत की तरह देखने लगे। तमाम लोग स्त्री पुरुष सीमा हैदर को देखने-मिलने के लिए आने लगे। भारतीय मर्दवादी समाज इसे गदर फ़िल्म से जोड़कर देखने लगा। किसी राजनीतिक दल ने सीमा हैदर को टिकट देकर चुनाव लड़वाने की बात कर दी। किसी फिल्म निर्देशक ने सीमा हैदर पर फ़िल्म बनाने की बात कर दी। सारा भारतीय सोशल मीडिया राष्ट्रीय चैलन और लोकल चैलन सब सीमा हैदर का इंटरव्यू करने लगे। लोग सीमा हैदर को लेकर बहुत से गीत और रील्स वीडियो बनाने लगे।
पूरा समाज उस स्त्री को एक जीत में मिली स्त्री देह की तरह मानकर लहालोट ही था कि इसी बीच जयपुर में रहने वाली अंजू नाम की एक भारतीय लड़की वैध वीज़ा लेकर पाकिस्तान पहुंचती है और बताती है कि वह अपने एक दोस्त नसीरुल्लाह से मिलने के पाकिस्तान चली गई है। अंजू के पास पाकिस्तान जाने के लिए लिए वैध कागज़ात भी थे। वह बताती हैं कि उनका प्रेम नसीरुल्लाह से ऑनलाइन गेम खेलने के दौरान हुआ था। वह कहती है कि वह उससे प्रेम भी करती है, शादी भी कर सकती है। अंजू के भारत में दो बच्चे हैं पति और परिवार है।
यहां दोंनो स्त्रियों की स्थिति में बेहद समानता दिखती है। अंजू कहती हैं कि उसका पति और ससुराल वाले उसे बहुत तंग करते थे। सीमा हैदर के पास भी कुछ ऐसी ही तकलीफ़ की कहानियां हैं। अंजू का कहना है कि मीडिया और उसके परिवारवालों ने इतना ग़लत प्रचार किया है कि अब भारत में उसकी जान को ख़तरा है। सीमा हैदर भी यही कहती है कि अगर वह पाकिस्तान भेजी गई तो उसकी जान को ख़तरा है। अपने देश को छोड़ने को लेकर उसपर अलग-अलग बहस हो सकती है लेकिन ये जो दोनों स्त्रियां कह रही हैं कि उनके देश में उनकी जान को खतरा है। ये बात दोनों देशों की मर्दवादी ज़मीन को देखते हुए एकदम सच मानी जा सकती है। दोनों देशों में स्त्री के चयन के अधिकार पर लगातार उनकी हत्याएं हो रही हैं।
हमारे ही देश में ज्योति मौर्या को लेकर जिस तरह सामान्य जनों से लेकर पढ़े-लिखे समाज के जिम्मेदार लोगों की बातें सामने आई वे स्त्री अधिकार के मद्देनज़र एक भयावह तस्वीर पेश करती हैं। ज्योति मौर्या अगर किसी प्रशासनिक पद पर बैठी महिला न होती तो अब तक इस मर्दवादी ज़मीन पर खड़े लोग उस स्त्री को संभवत: घसीटकर मार देते। मणिपुर की हिंसा में जिन निर्वस्त्र स्त्रियों को घसीटा गया आखिर उनका क्या दोष था। जंतर-मंतर पर महिला पहलवानों को जिस तरह से घसीटा गया वो इस राज्य-समाज की पितृसत्तात्मक सोच का परिणाम था। फिलहाल भारत-पाकिस्तान के मीडिया में अंजू और सीमा हैदर को लेकर जिस तरह की बहस चल ही रही है, वे सब स्त्री को महज़ एक ‘ऑब्जेक्ट’ समझने के आधार पर हो रही हैं। ये घटनाएं सिर्फ़ सीमा हैदर और अंजू विश्वकर्मा जैसी दो स्त्रियों भर का सच नहीं है बल्कि यह दोनों समाजों में स्त्री के जीवन की घुटन का सच है।
सीमा हैदर भारत आई अपने चार छोटे छोटे बच्चों को लेकर। पता नहीं उसे उस लड़के सचिन से प्रेम है कि नहीं, पता नहीं इस यात्रा में वह कैसे आई लेकिन सबसे बड़ा सच जो उसके जीवन को लेकर समझ में आता है वह यह कि जिस समाज में वह रह रही थी उसका वहां दम घुट रहा था। वह किसी भी हालत में उस समाज में लौटना नहीं चाहती। अंजू विश्वकर्मा का भी कुछ ऐसा ही हाल है। वह अपने परिवेश में लौटना नहीं चाहती। दोनों को अपनी हत्या की आशंका है। आखिर ये कैसा हिंसक और क्रूर है दोनों देशों का समाज की स्त्री के चयन को बर्दाश्त ही नहीं कर पाता।
न्यूज़क्लिक पर छपे एक लेख के मुताबिक पाकिस्तान के एक चर्चित प्रगतिशील लेखक जियो न्यूज़ चैनल पर कहते हैं कि देखिए ये सारा मामला नैतिकता के प्रश्न से जुड़ा है। एक शादीशुदा औरत अपने आदमी को छोड़कर बच्चों को लेकर दूसरे देश चली जाती है और धर्म बदलकर विवाह करने की बात करती है। यह धार्मिक और नैतिक दोनों दृष्टि से गलत है, इस तरह की प्रवृत्तियों को समर्थन देना देश और समाज दोनों के लिए बहुत अनर्थकारी है। विडंबना है कि दोनों देशों के ये लोग कोई पुरातनपंथी लोग नहीं हैं। सब आधुनिकता का दंभ भरनेवाले बुद्धिजीवी हैं। भारत में अंजू के लिए आप इसी तरह के बयान देख सकते हैं। दोनों देशों में स्त्री के लिए समता और न्याय का मानदंड पुरुषकेंद्रित है।
इसी लेख में एक और पाकिस्तानी प्रगतिशील पत्रकार के बयान का जिक्र है। आफ़ताब इकबाल पाकिस्तान के एक वरिष्ठ और जनपक्षधर पत्रकार हैं। सैनिक शासन का विरोध करने के कारण उन्हें अनेक बार जेल जाना पड़ा। उनके यूट्यूब चैनल पर भारत और पाकिस्तान के लाखों फ़ॉलोअर्स हैं। वह अपने यूट्यूब के एक प्रोग्राम में कहते हैं, “मुझे जब सीमा हैदर के बारे में पता लगा, तो मुझे लगा कि यह कोई बेवा होगी या फ़िर उसके आदमी ने उसे छोड़ दिया होगा, लेकिन पता लगा कि चार बच्चों की मां है। इसका आदमी बेचारा मेहनत मज़दूरी करके सऊदी अरब से पैसा भेजता था। वह उसी के पैसे से बने घर को बेचकर शादी करने के लिए हिंदुस्तान चली गई।” फिर वे सोशल मीडिया पर खींझते हुए कहते हैं कि ये हाथ-हाथ में मोबाइल सारी नैतिकता और सामाजिक मान्यताओं को नष्ट कर देगा।
ये बात हास्यास्पद होने के साथ-साथ दोनों देशों की पितृसत्तात्मक मानसिकता से कितनी मेल खाती है। ठीक यही बात ज्योति मौर्या के लिए भारत में कही गई कि उसके पति ने मेहनत-मजदूरी करके उसे पढ़ाया, एसडीएम बनाया और वह किसी और के साथ चली गई। दोनों देशों का मर्दवादी समाज इन स्त्रियों को लेकर बेहद भद्दी टिप्पणियां कर रहा है। दोनों देशों में स्त्री दूसरे देश से प्राप्त हुई स्त्री देह है जो एक जीत की तरह उन्हें हासिल हुई है। दोनों देशों का धर्म स्त्रियों को उपभोग की वस्तु कहता है। लेकिन सवाल है कि आखिर ऐसे भेदभाव भरे समाज में स्त्री का दम क्यों न घुटेगा। इसलिए उसे जहां भी, ज़रा सा भी आज़ादी का झरोखा दिखता है वहां चल पड़ती है।