संस्कृतिसिनेमा वुमेन टॉकिंग: हिंसा मुक्त औरतों के जीवन की ‘कल्पना’ करती एक फिल्म

वुमेन टॉकिंग: हिंसा मुक्त औरतों के जीवन की ‘कल्पना’ करती एक फिल्म

फिल्म हमारे रोज़मर्रा के जीवन में मौजूद स्त्रीद्वेष और भेदभावपूर्ण नीतियों पर सवाल उठाती है, जिन्हें व्यवस्था का हिस्सा होने के कारण हम अनदेखा कर देते हैं। महिलाओं की 24 घंटे की बातचीत ज़रिये फिल्म की पूरी कहानी आगे बढ़ती है, पितृसत्तात्मक व्यवस्था और इसके स्थापित होने की प्रक्रिया को बताती है।

वुमेन टॉकिंग 2022 में सारा पोली द्वारा निर्देशित एक फिल्म है। यह फिल्म मीरियम टोज द्वारा 2018 में ‘वीमेन टॉकिंग‘ नाम से लिखे गए उपन्यास पर आधारित है। यह उपन्यास 2005 से 2009 के बीच बोलिविया में मेनोनाइट समुदाय की महिलाओं के साथ हुई रेप की घटनाओं पर आधारित है। लगातार चार साल तक हुई इन रेप की घटनाओं को ‘मेनोटोबा केस’ के नाम से जाना जाता है। मीरियम टोज ने इन्हीं घटनाओं में काल्पनिकता का पुट डालते हुए इसे साल 2018 में उपन्यास का रूप दिया। उनके मुताबिक उनका यह उपन्यास सच्ची घटनाओं पर आधारित एक काल्पनिक प्रतिक्रिया है।

‘वुमेन टॉकिंग’ को मेल सेवियर कॉम्प्लेक्स से मुक्त फिल्म कहा जा सकता है। महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए मुख्य किरदार के तौर पर किसी पुरुष अभिनेता का सहारा नहीं लिया गया है। रूनी मारा, क्लेयर फ़ोय, जेसी बकले, जूडिथ इवे, बेन व्हिस्वा और फ्रांसिस मैकडोरमैंड जैसी बेहतरीन अभिनेत्रियों ने फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई है। पूरी फिल्म में सिर्फ बेन व्हिस्वा (ओगस्ट) पुरुष अभिनेता के रूप में नज़र आते हैं। यह फिल्म महिला हिंसा से जुड़े तमाम ज़रूरी मुद्दों को एक बातचीत के रूप में हमारे सामने रखती है। फिल्म हमारे रोज़मर्रा के जीवन में मौजूद स्त्रीद्वेष और भेदभावपूर्ण नीतियों पर सवाल उठाती है, जिन्हें व्यवस्था का हिस्सा होने के कारण हम अनदेखा कर देते हैं। महिलाओं की 24 घंटे की बातचीत ज़रिये फिल्म की पूरी कहानी आगे बढ़ती है, पितृसत्तात्मक व्यवस्था और इसके स्थापित होने की प्रक्रिया को बताती है।

तस्वीर साभार: The Guardian

सारा पोली ने अपने निर्देशन के ज़रिये तमाम बारीकियों को ध्यान में रखते हुए पूरी कहानी को पर्दे पर उतारा है। पूरी फिल्म भावना, क्रोध, संवेदनशीलता और उम्मीद का समावेश है। समुदाय की महिलाएं और लड़कियां हिंसा की सर्वाइवर हैं जिसके निशान उनके चेहरे पर देखे जा सकते हैं। उनकी आवाज़ में कंपन है, आँखों में चमक नहीं है और चेहरे पर हताशा छाई हुई है। लगातर उत्पीड़न सहने के कारण उनके व्यवहार में चिड़चिड़ापन और आक्रोश आ गया है। सभी औरतें सपने देखने का साहस जुटा रही हैं। वे अपनी पहचान को टटोल रही हैं। भेदभावपूर्ण और उत्पीड़न पर आधारित पितृसत्तातमक समाज के उलट वे सभी एक ऐसा समाज बनाने की कल्पना करती हैं जो समानता, सामूहिकता, सुरक्षा और प्रेम पर आधारित हो। एक ऐसा समाज जो औरतों के द्वारा बनाया गया हो 

पूरी फिल्म का केन्द्र घटना, दृश्य और किरदार न होकर महिलाओं की यह बातचीत है। अपनी बातचीत में इन तीन विकल्पों के सहारे स्थापित व्यवस्था का पर्दाफाश करती हैं जिसके कारण लगातार उन्हें शोषण का सामना करना पड़ा।

फिल्म की कहानी की बात की जाए तो फिल्म फ्लैशबैक में शुरू होती है जहां ऑटजे, ओना के बच्चे को पूरी कहानी सुना रही है। फिल्म की शुरुआत में ओना को दिखाया गया है। वह अपने बिस्तर पर लेटी हुई है। ओना का बिस्तर खून से सना हुआ है। उसकी जांघों पर हिंसा के निशान देखे जा सकते हैं। ओना ऐसी पहली लड़की नहीं है जिसके साथ यौन हिंसा हुई है। कॉलोनी की अधिकतर महिलाएं एक लंबे समय से यौन हिंसा का सामना कर रही हैं। वे रात को अपने शरीर पर अनजान स्पर्श महसूस करती है पर जब सुबह उनकी आंखे खुलती हैं तो सामने कोई चेहरा नहीं होता है। महिलाओं और बच्चों के साथ की गई हिंसा जो कि मेनोनाइट समुदाय की औरतों और बच्चों के साथ हुई सच्ची घटनाओं पर आधारित है, भावनात्मक और मानसिक रूप से झकझोर देने वाली हैं।

हिंसा की इन घटनाओं के बाद ये सर्वाइवर महिलाएं अपने लिए तीन विकल्प तैयार करती हैं। पहला- वे सभी अपराधियों को माफ कर देंगी, दूसरा सभी अन्याय के खिलाफ संघर्ष करेगी और तीसरा सभी महिलाएं उस समुदाय को छोड़कर कहीं दूर चली जाएंगी। तीन परिवारों की महिलाओं को सभी औरतों की तरफ से निर्णय लेने को कहा जाता है। इन तीन परिवारों में ओना और ऑटजे का परिवार भी शामिल है। सारी महिलाएं तीनों विकल्पों पर बातचीत करती हैं और अपने तर्क रखती हैं। ओगस्ट पूरी बातचीत और तीनों विकल्पों के फायदे और नुकसान दर्ज करता है ताकि अंत में एक निर्णय लिया जा सके।

समुदाय की कोई भी महिला अपने रहने के आलावा किसी और जगह को नहीं जानती है न किसी ने कोई अन्य जगह देखी है। सभी को बताया गया है कि ये कॉलोनी ही उनके लिए स्वर्ग है जहां वे ईश्वर से मिल सकती हैं। ईश्वर और स्वर्ग के नाम पर सारी औरतों को उनकी घर की चार दीवारी तक सीमित रखा गया है।

पूरी फिल्म का केन्द्र घटना, दृश्य और किरदार न होकर महिलाओं की यह बातचीत है। अपनी बातचीत में इन तीन विकल्पों के सहारे स्थापित व्यवस्था का पर्दाफाश करती हैं जिसके कारण लगातार उन्हें शोषण का सामना करना पड़ा। समाधान के तौर पर क्या निर्णय लिया जाता है यह सिर्फ फिल्म देखकर ही पता लगाया जा सकता है। पर यह फिल्म किसी समाधान या निर्णय पर पहुंचने से अधिक महिलाओं के साथ हुए शोषण और उसके कारण पर महिलाओं के नज़रिये से एक बहस है। समाज में विक्टिम ब्लेमिंग के ज़रिये महिलाओं को उनके साथ हो रहे भेदभाव और उत्पीड़न के लिए दोषी ठहरा दिया जाता है। अक्सर सुनने को भी मिलता है कि अगर भेदभाव हो रहा है तो अपने अधिकारों के लिए क्यों आवाज़ नहीं उठाती? महिलाएं परिस्थितियों के साथ समझौता कर लेती हैं इसलिए वे खुद ही अपने पिछ्ड़ने का कारण है। 

तस्वीर साभार: The NYT

फिल्म में महिलाएं अपनी बहस से स्पष्ट करती हैं कि उन्हें समाज के द्वारा हमेशा से ही समझौता करने की ट्रेनिंग दी गई। उनका व्यवहार उन्हें बचपन से सिखाए गए जेंडर आधारित भूमिकाओं का परिणाम है। उनकी कंडीशनिंग हमेशा से ही अन्याय सहने और माफ करने के लिए की गई। फिल्म दिखाती है कि कैसे मान्यताओं के सहारे महिलाओं की गतिविधियों को सीमित किया जाता है। समुदाय की कोई भी महिला अपने रहने के आलावा किसी और जगह को नहीं जानती है न किसी ने कोई अन्य जगह देखी है। सभी को बताया गया है कि ये कॉलोनी ही उनके लिए स्वर्ग है जहां वे ईश्वर से मिल सकती हैं। ईश्वर और स्वर्ग के नाम पर सारी औरतों को उनकी घर की चार दीवारी तक सीमित रखा गया है।

फिल्म की बातचीत के एक हिस्से में मैरिके जो कि घरेलू हिंसा की सर्वाइवर हैं, कहती है कि उसकी कभी अपनी कोई इच्छा रही ही नहीं। वह अपने पति की मारपीट को सहती रही क्योंकि उसे हमेशा से यही सिखाया गया। उसे कभी विरोध करने का विकल्प बताया ही नहीं गया। 

ईश्वर के नाम पर पुरुषों की सत्ता स्थापित की जाती है। इस सत्ता को बनाए रखने के लिए शक्ति का अनुक्रम बनाकर सारी शक्ति पुरुषों के हाथ में दी जाती है। तमाम धारणाएं और विश्वास गढे जाते हैं जो पुरुषों की सत्ता को पोषित करते हो। इसी कारण जैन्ज ( Janz) समुदाय की महिलाओं के साथ रेप करनेवाले पुरुषों को माफ कर देना का प्रस्ताव रखती है क्योंकि उन्होंने हमेशा से ही पुरुषों को उनके खिलाफ किए गए अन्याय के लिए माफ किया है। अगर अपराधियों को माफ नहीं किया जाएगा तो समुदाय की महिलाएं कभी स्वर्ग नहीं जा पाएंगी।

यह फिल्म समाजीकरण और सीखने-सिखाने की प्रक्रिया जो बचपन से लेकर बूढ़े होने तक चलती है पर सवाल उठाती है। शुरुआती देखभाल, कपड़े पहनने के ढंग, खेल, शिक्षा, काम के बंटवारे आदि सबके ज़रिये समाज सिखाता है कि स्त्री और पुरुष होने के क्या मायने और जिम्मेदारियां हैं। फिल्म इस बात को लेकर चलती है कि पुरुष और औरतें पैदा नहीं होते बल्कि बनाए जाते हैं। स्त्री और पुरुष का व्यवहार समाज के सिखाए तौर तरीकों और व्यवस्था का परिणाम है। एक लंबे समय से महिलाओं को स्वतंत्रता, समानता और चुनने की शक्ति से वंचित रखा गया है। उन्हें अपनी इच्छाओं को मारते हुए परिस्थितियों से समझौता करना सिखाया गया। इसलिए फिल्म की बातचीत के एक हिस्से में मैरिके जो कि घरेलू हिंसा की सर्वाइवर हैं, कहती है कि उसकी कभी अपनी कोई इच्छा रही ही नहीं। वह अपने पति की मारपीट को सहती रही क्योंकि उसे हमेशा से यही सिखाया गया। उसे कभी विरोध करने का विकल्प बताया ही नहीं गया। 

 लर्निंग प्रोसेस के जरिए समाज स्त्री, पुरुष और इस बाइनरी के बाहर की कडिशनिंग करता है। एक तबके पर दूसरे का प्रभुत्व बनाने के लिए अलग अलग धारणाएं बनाई जाती हैं। लड़कों को बचपन से ही घर के मालिक के रूप में बड़ा किया जाता है, उन्हें कठोरता, साहस और डोमिनेट करने के गुण सिखाए जाते हैं। लड़कियों को बहन, बेटी, मां और पत्नी के रूप में पुरुषों पर निर्भर के लिए तैयार किया जाता है। अगाता ( Agata) अपनी बात रखते हुए कहती है कि अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए पुरुष सारी शक्ति को अपने नियंत्रण में रखते हैं और यही सीख वह लड़कों को भी देते हैं ताकि भविष्य में वह भी इसी तरीके से अपना प्रभुत्व बनाए रख सके। 

संवाद के अलग अलग हिस्सों में महिलाएं पूरी लर्निंग और कंडिशनिंग की प्रक्रिया जो पितृसत्ता को मजबूत करती है को समाज में स्थापित शोषण और भेदभाव के लिए जिम्मेदार ठहराती हैं। हालांकि फिल्म के अतिंम हिस्सों में लर्निंग प्रोसेस को एक उम्मीद की तरह देखा जाता है जो जहां शिक्षा, प्रेम और संवेदनशीलता के सहारे समानता और न्याय सिखाया जा सकता है। ओगस्ट सैम्युल टेलर कॉलरिज की एक कविता पढ़ता है और कहता है कि सही शिक्षा के सहारे व्यवहार को बदला जा सकता है। ओगस्ट इस बात पर ज़ोर देता है कि किशोरावस्था में बच्चों के अंदर बहुत ऊर्जा और जानने की इच्छा होती है। इस दौरान उनकी ऊर्जा और उत्सुकता को सही दिशा देने की ज़रूरत है। जिस तरीके से उन्हें जेंडर रोल्स सिखाए जाते हैं उसके उलट लर्निंग प्रोसेस के ज़रिये महिला और पुरुष दोनों को समानता, स्वतंत्रता और प्रेम के मूल्य सिखाए जा सकते हैं।

फिल्म का यथार्थवादी चित्रण दर्शकों को अंत तक फिल्म से जोड़कर रखता है। महिलाओं के साथ हुई यौन हिंसा के दृश्य मन को विचलित करते हैं। संवाद स्पष्ट और प्रभावशाली हैं जिसमें संवेदनशीलता बखूबी देखी जा सकती है। महिलाएं अपने भविष्य के लिए निर्णय ले रही हैं। उनके चेहरे पर गंभीरता है। सभी की अपनी अपनी चिंताए हैं और उनके बीच असहमति है। यही असहमति कई बार बातचीत के दौरान एक दूसरे के लिए कठोर वाक्यों में बदल जाती है। सभी अलग-अलग विकल्पों पर बहस करती हैं। कई बार सभी की आँखें भीग जाती हैं, वे भावुक हो जाती लेकिन दूसरी ही तरफ अचानक से सब एक दूसरे के चेहरे को देखकर खूब हंसती हैं। एक दूसरे को सांत्वना देते हुए सभी उम्मीद में प्रार्थनाएं गाती हैं। पूरी बातचीत के दौरान ऑटजे (Autje) और नीत्जे (Nietje) का बचकानापन बना रहता है। वे एक दूसरे के साथ खेलने और चोटियां बनाने में व्यस्त हैं। दोनों पूरी प्रक्रिया से मानो ऊब गई हैं पर इसके बावजूद दोनों अपने भविष्य के लिए चिंतित हैं और बड़े ध्यान से सारी बातचीत सुनती हैं।

फिल्म स्त्री और पुरुष की बनाई गई बाइनरी को बेहद बारीकी से पर्दे पर उतारती है। ऐसा लगता है मानो दोनों के संसार बिल्कुल अलग हों। दोनों के कपड़े पहनने का ढंग बिल्कुल अलग है। समुदाय के सारे पुरुष काम करने के लिए बाहर जाते हैं और लड़के स्कूलों में पढ़ाई करते हैं। समुदाय की सारी महिलाएं घर का काम संभालती हैं किसी को भी स्कूली शिक्षा नहीं मिली है। लड़कियां घर के तमाम कामों मे हाथ बंटाती हुई नजर आती हैं। वे स्कूल नहीं जाती हैं। फिल्म दुनिया की तमाम महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती हुई नज़र आती है और एक यथार्थ तस्वीर दर्शकों के सामने रखती है।

फिल्म में अगस्त का किरदार, तस्वीर साभार: The Playlist

ओगस्ट का किरदार मैसकुलिनिटी और फेमिनिटि की बाइनरी को चुनौती देता है। ओगस्ट के चेहरे पर मासूमियत है। वह भावुक और संवेदनशील है। मर्दानगी के पैमाने पर खरे उतरने की जगह वह अपने आसूओं को बहने देता है। फिल्म के कई हिस्सों में ओगस्ट भावुक हो जाता और वह रोने लगता है। मेल्वीन को एक ट्रांस मैन के रूप में फिल्म में दिखाया गया है जहां फिल्म महिला और पुरुष के दायरे से निकलती हुई नज़र आती है। मेल्वीन को लेकर बहुत कम संवाद देखने को मिलता है। सारी फिल्म का केन्द्र महिलाएं होने के कारण मेल्वीन के जरिए क्वीयर समुदाय को कोई खास स्पेस या मंच फिल्म में मिलता हुआ नज़र नहीं आता है।

फिल्म का यथार्थवादी चित्रण दर्शकों को अंत तक फिल्म से जोड़कर रखता है। महिलाओं के साथ हुई यौन हिंसा के दृश्य मन को विचलित करते हैं। संवाद स्पष्ट और प्रभावशाली हैं जिसमें संवेदनशीलता बखूबी देखी जा सकती है। महिलाएं अपने भविष्य के लिए निर्णय ले रही हैं। उनके चेहरे पर गंभीरता है। सभी की अपनी अपनी चिंताए हैं और उनके बीच असहमति है।

कई बार लगता है कि फिल्म जेंडर से हटकर नैतिक मुल्यों पर बल दे रही है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि फिल्म में जेंडर के अलावा आस्था, माफी जैसे कई नैतिक मुल्यों को समेटने की कोशिश की गई है। इसी कोशिश में कई जगह संवाद कमज़ोर और बिखरे हुए लगने लगते हैं। फिल्म की कहानी सरल है पर फिर भी दर्शक फिल्म का मूल समझने के लिए सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। फिल्म के अंत में महिलाओं के निर्णय पर असहमति दर्ज की जा सकती है। अंत बहुत स्पष्ट नहीं लगता है जिसमें बहस के लिए काफी स्पेस देखा जा सकता है।

हालांकि, इसे फिल्म की खूबसूरती भी समझी जा सकती है जहां दर्शक सोचने पर मजबूर हो जाते हैं । यह फिल्म एक उम्मीद पर खत्म होती है जहां सारी महिलाएं पितृसत्तातमक व्यवस्था के विकल्प रूप में समानता, स्वतंत्रता और प्रेम पर आधारित एक नई व्यवस्था बनाने का सपना देखती हैं। बता दें कि इस फिल्म ने 2023 में सर्वश्रेष्ठ पटकथा रूपांतरण के लिए 95वां ऑस्कर अवार्ड अपने नाम किया है और सर्वश्रेष्ठ पिक्चर अवार्ड के लिए नॉमिनेशन भी प्राप्त किया। अभी तक यह फिल्म 80 से अधिक फिल्म अवार्ड और 200 से अधिक अवार्ड नोमिनेशन अपने नाम दर्ज कर चुकी है।


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