संस्कृतिकिताबें सेक्सवर्कर्स की चुनौतियों का दस्तावेज़ है ‘यौन दासियां: एशिया का सेक्स बाज़ार’

सेक्सवर्कर्स की चुनौतियों का दस्तावेज़ है ‘यौन दासियां: एशिया का सेक्स बाज़ार’

पिछले कुछ सालों में वेसेक्स वर्क अध्ययन का विषय इसलिए बन गया क्योंकि स्वास्थ्य संगठनों को लगता है कि सेक्सवर्कर्स ग्राहकों को जो सेवा दे रही हैं उससे एड्स फैल रहा है। इन संगठनों को कोई चिंता नहीं कि इन्हीं पुरुषों के चलते ये लड़कियां अपना जीवन गंवा दे रही हैं। इनके अधिकारों और स्वास्थ्य की चिंता शायद ही किसी स्वास्थ्य संगठन या सरकार को हो।

ये दुनिया ज़रूर किसी पुरुष की कल्पना रही होगी। यहां सब कुछ पुरुषों के हिसाब से ही है। स्त्री बस एक देह है। देह जिस पर पुरुष अपना अधिकार समझते हैं। सभ्यता और संस्कृति का बखान करने वाली दुनिया उन दास्तानों को छिपा लेती है जो स्त्रियों के शोषण से भरी पड़ी हैं। नैतिकता और परिवार की पवित्रता की दुहाई देने वाले पुरुषों ने स्त्रियों को यौन दासियां बनाया। पूरी दुनिया में जाने कितनी लड़कियां और औरतें यौन दासी होने को मजबूर हैं। दुनिया के किसी नक्शे पर उनका कोई ‘देश’ नहीं जहां वे नागरिक हों। जहां उनके भी कोई अधिकार हो।

सेक्सवर्कर्स पर जब भी कोई शोध होता है तो इसलिए कि वे समाज को पतित कर रही हैं। किस तरह वे समाज और परिवार के लिए अराजक हैं। इन औरतों की ज़िन्दगी कितनी बदतर हो गई है उस पर कोई बात नहीं होती है। लुइज़ ब्राउन ने एशियाई देशों में सेक्सवर्क पर शोध किया। अपनी किताब ‘यौन दासियां : एशिया का सेक्स बाज़ार‘ में उन्होंने वह सब कुछ दर्ज किया जिससे दुनिया अंजान है या कम से कम अंजान होने का नाटक करती है।

कोई सेक्सवर्क का पेशा क्यों चुनता होगा, लेखिका इस सवाल की पड़ताल करती हैं। ज्यादातर मामलों में लड़कियों की गरीबी उन्हें इस पेशे में उतरने के लिए मजबूर करती है। उनके पास और कोई विकल्प नहीं होता है। कुछ मामले ऐसे भी आते हैं जहां माँ-बाप की मृत्यु हो जाती है और उनके रिश्तेदार इन लड़कियों को बेच देते हैं। लुइज़ ब्राउन एक सर्वे के हवाले से लिखती हैं कि 86 फीसदी लड़कियों को पता नहीं था कि घर छोड़ते वक़्त वे सेक्सवर्क की राह पर चल पड़ी थीं। उन्हें तो रोज़गार का वादा किया गया था। रोज़गार के नाम पर हजारों लड़कियों को इस पेशे में धकेल दिया गया।

लुइज़ ब्राउन ने एशियाई देशों में सेक्सवर्क पर शोध किया। अपनी किताब ‘यौन दासियां : एशिया का सेक्स बाज़ार’ में उन्होंने वह सब कुछ दर्ज किया जिससे दुनिया अंजान है या कम से कम अंजान होने का नाटक करती है।

कई बार लड़कियों को प्रेम के जाल में फंसाकर बेच दिया जाता है। इन लड़कियों को लगता है कि वे प्रेम में हैं लेकिन उनका तथाकथित प्रेमी उन्हें बेचने की तैयारी में होता है। दिल्ली के जीबी रोड के एक सेक्सवर्कर ने लेखिका को बताया, “मैं एक बड़े परिवार की थी। तेरह की उम्र में मुझे अपने शहर के एक लड़के से प्यार हो गया। उसने मुझसे शादी करने का वादा किया तो मैंने उससे यौन संबंध बनाया क्योंकि मुझे लगा कि इसमें कोई हर्ज नहीं है क्योंकि यह जल्द से मेरा पति बन जाएगा। फिर मैं गर्भवती हो गई। मेरे प्रेमी ने कहा कि हमें घर से भाग कर कर लेनी चाहिए। हम दोनों भाग कर दिल्ली आ गए। उसने मुझे इस वेश्यालय के हाथों बेच दिया। मुझे यहां रहना पड़ा। मैं बरबाद हो गई। मेरे परिवार ने मुझे कबूल नहीं किया और चूंकि में गर्भवती थी इसलिए किसी ने मुझसे शादी नहीं की। यहां मैं सत्रह वर्षों से हूं।”

कई मामलों में लड़कियां यह बताती हैं कि कम उम्र में हुए बलात्कार ने उन्हें इस पेशे में जाने को मजबूर कर दिया। लेखिका को बंगाल में एक नाबालिग सेक्सवर्कर ने बताया, “जब मैं तेरह साल की थी, गाँव के कुछ लड़के मुझे गाँव से दूर खेत में ले गए और मेरा बलात्कार किया। वे पांच थे और तथाकथित ऊंची जाति के थे। मैं रोती हुई गाँव में लौटी मगर उन लड़कों ने कह दिया कि मैं उनके साथ अपनी मर्जी से गई थी। गाँव की पंचायत ने मुझे चरित्रहीन ठहरा दिया।”

लुइज़ ब्राउन लिखती हैं, “कलकत्ता में मैं ऐसी नाराज़ औरतों से मिली जिनका दावा था कि उनका ‘पुनर्वास’ किया गया और आश्रमों में रखा गया जहां उन्हें नये हुनर सिखाए गए। उनका कहना था कि इन कार्यक्रमों को सिखाने वाले शिक्षक उनके साथ लगातार यौन हिंसा करते थे और ग्राहकों के विपरीत कोई पैसा नहीं देते थे। आश्चर्य नहीं कि वे औरतें ‘पुनर्वास’ कार्यक्रम समाप्त होने के बाद फिर सेक्सवर्क करने लगीं।”

ऐसी हजारों कहानियां जहां हाशिये की जाति से आनेवाली लड़कियों और औरतों का बलात्कार किया गया, वे गरीब थीं इसलिए उनका बलात्कार किया गया, उनके साथ हुई इस हिंसा ने उन्हें सेक्सवर्क को बतौर पेशा चुनने पर मज़बूर किया। ज्यादातर वेश्यालयों की हालत यह है कि वहां बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिलती हैं। न तो आसपास कोई सफाई होती है और न खाने को अच्छा भोजन। कमरे में चूहे घूमते रहते हैं। इन लड़कियों को बाहर जाने की आज़ादी नहीं होती है। इन लड़कियों को अपने अधिकारों से वंचित रहने का मलाल नहीं। इन्हें मालूम ही नहीं कि इनके पास कोई अधिकार है।

किताब के मुताबिक इस पेशे में अधिकतर पुरुषों को कम उम्र की लड़कियां चाहिए होती हैं। पहला तो वे प्रतिरोध नहीं कर पाती हैं। पुरुषों का अहंकार वहीं पर तुष्ट होता है जहां उनका दबदबा होता है। दूसरा उन्हें एड्स का खतरा कम रहता है। लेकिन इन लड़कियों के लिए बराबर खतरा बना रहता है। पिछले कुछ सालों में वेसेक्स वर्क अध्ययन का विषय इसलिए बन गया क्योंकि स्वास्थ्य संगठनों को लगता है कि सेक्सवर्कर्स ग्राहकों को जो सेवा दे रही हैं उससे एड्स फैल रहा है। इन संगठनों को कोई चिंता नहीं कि इन्हीं पुरुषों के चलते ये लड़कियां अपना जीवन गंवा दे रही हैं। इनके अधिकारों और स्वास्थ्य की चिंता शायद ही किसी स्वास्थ्य संगठन या सरकार को हो।

सेक्सवर्क केपेशे के बारे में जब लुइज़ ब्राउन ने लड़कों से सवाल किया तो उन्होंने बताया कि शादी से पहले यौन संबंध न बनाने के चलते वे सेक्सवर्कर के पास जाते हैं। दूसरी तरफ़ इन पुरुषों को पत्नी ‘वर्जिन’ चाहिए होती है। वर्जिन न होने पर उन्हें कैसे ‘विश्वसनीय’ माना जा सकता है। पुरुषों की दुनिया ऐसे पितृसत्तात्मक विरोधाभासों से पटी पड़ी है।

ख़ुद के खिलाफ़ शोषण से बचाव के लिए अगर सेक्सवर्कर्स थानों का रुख़ करती हैं तो वहां पुलिस वाले शोषण करते हैं। इस पेशे से निकलकर भी इनकी चुनौतियां ख़त्म नहीं होती हैं तो वे इसी पेशे में रहना स्वीकार कर लेती हैं। कुछ संगठनों की तरफ़ से दावा किया गया कि वेश्यालयों से भागकर आनेवाली सेक्सवर्कर्स का पुनर्वास किया जाएगा। लुइज़ ब्राउन इस बारे में लिखती हैं, “कलकत्ता में मैं ऐसी नाराज़ औरतों से मिली जिनका दावा था कि उनका ‘पुनर्वास’ किया गया और आश्रमों में रखा गया जहां उन्हें नये हुनर सिखाए गए। उनका कहना था कि इन कार्यक्रमों को सिखाने वाले शिक्षक उनके साथ लगातार यौन हिंसा करते थे और ग्राहकों के विपरीत कोई पैसा नहीं देते थे। आश्चर्य नहीं कि वे औरतें ‘पुनर्वास’ कार्यक्रम समाप्त होने के बाद फिर सेक्सवर्क करने लगीं।”


Comments:

  1. Geeta says:

    Shuruaat hi bhot umda thi , lekh toh badiya hai hi !

Leave a Reply to GeetaCancel reply

संबंधित लेख

Skip to content