इंटरसेक्शनलजेंडर ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक पद्धति की पोसक मशहूर हस्तियों की भव्य शादियां

ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक पद्धति की पोसक मशहूर हस्तियों की भव्य शादियां

फैशन का लबादा ओढ़े ये प्रतीक मनभावन लगने लगे हैं लेकिन इससे यह जिस व्यवस्था का प्रतीक हैं वह तस्वीर नहीं बदल जाती है। ट्रेडिशंस को साथ लेकर मॉडर्न इंडिया के विचार को गढ़ती ये हस्तियां डुअल इमेज (द्वी छवि) को अपना स्टेटस बनाए रखने के लिए अपना रही हैं।

बीते 24 सितंबर को बॉलीवुड अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा और आम आदमी पार्टी के युवा नेता राघव चड्डा की उदयपुर के लीला पैलेस में शादी हुई है। इससे पहले सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी की शादी के भी तमाम चर्चे सप्ताह भर से ज़्यादा सोशल मीडिया पर चलते रहे। विक्की कौशल-कटरीना कैफ़, रणबीर-आलिया, आदि मनोरंजन, बिज़नेस राजनीति के क्षेत्रों से आने वाली मशहूर हस्तियों की भव्य शादियां लोगों के बीच चर्चा का विषय रहे हैं। मीडिया ने इन शादियों को कैसे कवर किया है उसकी एक झलक मीडिया के विभिन्न समूहों द्वारा इस्तेमाल की गई हेडलाइंस के नज़रिये से देखते हैं।

“आज सात जन्मों के लिए राघव की हो जाएंगी परिणीति, उदयपुर का ताज पैलेस बनेगा साक्षी”, “सिद्धार्थ और कियारा की शादी के जोड़े बनाने में लगा था 6700 घंटे का समय, जानें पूरी डिटेल्स”, “90 करोड़ का खूबसूरत जोड़ा पहन दुल्हन बनी थीं अंबानी की बेटी, यहां देखिए शाही शादी की तस्वीरें”, “क्या नेहा कक्कड़ ने कॉपी किया दीपिका, अनुष्का और प्रियंका का वेडिंग लुक?” हज़ारों हेडलाइंस में से ये चंद हेडलाइंस ये समझने के लिए काफ़ी हैं कि मीडिया इन भव्य शादियों को किस तरह कवर करता है।

रिसर्च गेट पर किशोरों पर फिल्मी हस्तियों का सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव: एक अनुभवजन्य अध्ययन पर मौजूद स्टडी के अनुसार अधिकांश लोग फैशन, प्रभावशाली जीवन शैली और व्यक्तिगत सौंदर्य के लिए मशहूर हस्तियों और पसंदीदा अभिनेताओं की ओर देखते हैं। भव्य शादियों की जो लहर चली है जिसे सोशल मीडिया ने एक फैशन तूफ़ान में बदल दिया है वह आम जन मानस तक पहुंचता है। आप सोचें कि जैसी शादियां आम जन मानस के आर्थिक हालात से परे हैं उनके बारे में हर छोटी से छोटी जानकारी हमें क्यों दी जा रही है? यह इसीलिए भी बताई जा रही है ताकि आखिरकार हम इस बारे में बात करें। हमारी चाह ऐसे हसीन विवाहों के बारे में और मज़बूत हो जाए लेकिन इससे क्या होता है? हमारे समाज में लड़की के परिवार की ओर से सभी बड़े खर्चे झेले जाते हैं, ये शादियां जो इतने पैसों पर हो रही हैं, आम लोग ऐसे विवाह करेंगे तो पैसा लड़कियों के परिवार की ओर से ही ज़्यादा लगेंगे, सामाजिक प्रेशर और ‘ख़्वाब’ के तले शादियों में एक दूसरे से बढ़कर पैसा लगाने के लिए जिसमें आखिरकार कर्ज़ परिवार के हिस्से आता ही है।

लेकिन क्या भव्य शादियां सिर्फ़ मीडिया, मार्केट के लिए ही फायदेमंद हैं? ऐसा नहीं है। ये भव्य शादियां ब्राह्मणवादी विवाह पद्धति को आकर्षक भी बना रही हैं और वैधता भी दे रही हैं।

लॉजिकल इंडियन में प्रकाशित एक लेख के अनुसार साल 2018 में एक विवाह वेबसाइट द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार, लगभग 20.6% भारतीय महिलाएं अपने विशेष दिन पर ₹10-₹20 लाख तक खर्च करने को तैयार हैं। इस सर्वे से पता चलता है कि लगभग 31.84% महिलाएं ₹2-5 लाख खर्च करना चाहती हैं और 7.87% महिलाएं ₹5 लाख से अधिक खर्च करने का लक्ष्य रखती हैं। दूसरा, इन सेलेब्रिटी शादियों जैसा लुक, कपड़े, फुटवियर आदि जो भी चाहिए वे मिलने लगता है। हमें वे प्रोडक्ट बेचा जाने लगता है, जो वर्ग आर्थिक रूप से समर्थ नहीं होते उन्हें ओरिजनल प्रोडक्ट की कॉपी मिलती है और जो समर्थ होते हैं उन्हें ब्रांडेड इंस्पायर्ड प्रोडक्ट मिलता है।

अब लोग मेकअप कैसा चाहते हैं? परिणीति चोपड़ा जैसा, शादी के कपड़े कैसे चाहते हैं? विराट अनुष्का जैसे, यही है ट्रेंड सेट करना जिसे पब्लिक में लाती हैं मशहूर हस्तियां और फैलाती है मीडिया जिससे फायदा होता है मार्केट का, बाज़ार का। इससे तीनों संस्थाओं को फायदा होता है, हस्तियां शादी के बाद और अधिक मशहूर होती हैं लोगों के बीच ‘आदर्श दंपत्ति’ बनकर उभरती हैं। इससे कंपनियां और ब्रांड्स उन्हें अपने प्रॉडक्ट प्रमोट करने के लिए इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के तौर पर मान्यवर क्लोथिंग फैशन ब्रांड ने विराट अनुष्का को ब्रांड एंबेसडर चुना था।

मीडिया को ऐसी कवरेज पर ज़्यादा व्यूअरशिप मिलती है। लेकिन क्या भव्य शादियां सिर्फ़ मीडिया, मार्केट के लिए ही फायदेमंद हैं? ऐसा नहीं है। ये भव्य शादियां ब्राह्मणवादी विवाह पद्धति को आकर्षक भी बना रही हैं और वैधता भी दे रही हैं। जितनी भी मशहूर हस्तियों की तस्वीरें पब्लिक में मीडिया के हवाले से आती हैं उनमें हल्दी से लेकर मेंहदी, फेरे जितनी भी रस्में होती हैं एकदम पैसे और दिखावे से भरपूर होती हैं। लेकिन ब्राह्मणवादी विवाह पद्धति क्या इतनी ही खुशी का कारण असल में है?

भारत के परिपेक्ष्य में ये हस्तियां ब्राह्मणवादी सोच को पोस भी रहे हैं और इसे पोसने का अर्थ है जातिवाद और वर्ग भेदभाव को भी पोसना। वहीं, राजकुमार राव का पत्रलेखा के साथ-साथ सिंदूर लगाना, दिया मिर्ज़ा की शादी में महिला पंडित का आना इनके अनुसार प्रगतिशील हो सकता है लेकिन क्या असल में ये कदम प्रगतिशील हैं? राजकुमार राव द्वारा सिंदूर लगाना क्या इस तथ्य से मुंह फेर लेना नहीं है कि महिलाओं द्वारा सिंदूर लगाना, मंगलसूत्र पहनना दरअसल समाज में पुरुष का महिला पर आधिपत्य स्थापित करे रखने का ज़रिया है। वहीं, क्या महिला पंडित द्वारा शादी करवाना, शादी की संस्था में महिला की स्थिति को बेहतर बना सकता है? निसंदेह नहीं, फिर भी विवाह को इतने भव्य रूप से मनाने, प्रतीकों से दर्शाने का मतलब है कि आप इस पद्धति के प्रति सहमति दर्ज़ करवा रहे हैं। इस पद्धति को अपनी जड़ों से जुड़े रहने का परिचायक बनाकर यह मान्यता प्रदान कर रहे हैं कि ब्राह्मणवादी पितृसत्ता जो ब्राह्मणवादी विवाह पद्धति के साथ मिलकर और सशक्त होती है सही है, जायज़ है।

आप सोचें कि जैसी शादियां आम जन मानस के आर्थिक हालात से परे हैं उनके बारे में हर छोटी से छोटी जानकारी हमें क्यों दी जा रही है? यह इसीलिए भी बताई जा रही है ताकि आखिरकार हम इस बारे में बात करें। हमारी चाह ऐसे हसीन विवाहों के बारे में और मज़बूत हो जाए लेकिन इससे क्या होता है?

वहीं परिणीति चोपड़ा, दीपिका पादुकोण, आदि भव्य शादियों में दुल्हन बनीं यह महिलाएं शादी के बाद की तस्वीरों में सिंदूर, चूड़ा, मंगलसूत्र पहने नज़र आती हैं इससे इनकी ‘संस्कृति (सनातन/हिंदू धर्म) को ना भूलने वाली महिला’ की छवि बनती है। इसके साथ साथ सर पर घूंघट, कन्यादान, विदाई की इनकी तस्वीरें सामने आती हैं, जो पितृसत्तात्मक का एक प्रतीक हैं। फैशन का लबादा ओढ़े ये प्रतीक मनभावन लगने लगे हैं लेकिन इससे यह जिस व्यवस्था का प्रतीक हैं वह तस्वीर नहीं बदल जाती है। ट्रेडिशंस को साथ लेकर मॉडर्न इंडिया के विचार को गढ़ती ये हस्तियां डुअल इमेज (द्वी छवि) को अपना स्टेटस बनाए रखने के लिए अपना रही हैं।


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