भारतीय ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं का नितांत अभाव है तो यहां यौन स्वास्थ्य पर बात करना बहुत आगे की बात है लेकिन एक मनुष्य की जो सामान्य इच्छाएं होती हैं अगर उसकी पूर्ति नहीं होती ,उसे लगातार दबाया जाए तो वे दमित इच्छाएं विकार भी बन जाती हैं। अगर भारतीय गाँवों की यथार्थ स्थिति को परखा जाए तो वहां स्त्रियों की यौन इच्छा पर कोई बात ही नहीं हो सकती ।अजीब विडंबना है गाँव में लोग पुरुषों की यौन-इच्छाओं उनकी जरूरतों पर बात करते हैं लेकिन स्त्री की यौन इच्छा पर बात नहीं करते ।
भारतीय ग्रामीण समाज में स्त्रियों की यौन दमित इच्छाओं की पहचान बहुत जटिल होती है लेकिन अध्ययन और उनके व्यवहार को देखते-समझते हुए यौन दमित इच्छाओं की एक सामान्य पहचान हो जाती है। जैसे देखा जाता रहा है कि गाँवों में कुछ स्त्रियां आपस मे ही बहुत अधिक अश्लील मज़ाक करती हैं। मज़ाक करते हुए वो यौन-क्रियाओं से जुड़ी बातें दोहराती रहती हैं। हालांकि ये सब मसखरेपन के अंदाज़ में कहा जाता है लेकिन उन बातों की तह में उतरा जाए तो पता चलता है कि वहां स्त्रियों की दमित यौन इच्छा का मसला है।
गाँव में इसे दमित यौन इच्छाओं को चिन्हित करना बेहद जटिल है क्योंकि पूरा समाज और खुद स्त्री भी यहां अपनी दमित यौन इच्छा को स्वीकार नहीं करेगी। स्त्री की दमित यौन इच्छा पर बात रखते हुए यहां मैं ग्रामीण समाज में आए दिन घटित हो रही कुछ घटनाओं का ज़िक्र करके समाज में स्त्री की दमित यौन इच्छा को चिन्हित करने की कोशिश कर रही हूं। हालांकि, यह विषय ग्रामीण समाज के लिए बहुत नाजुक और संवेदनशील है इस लिए जगह और नाम दोनों बदले गए हैं।
अभी पिछले दिनों की बात है बेलही गाँव की स्त्री संगीता* को ‘हिस्टीरिया’ नाम की बीमारी के दौरे पड़ने लगे। संगीता ब्याह के बाद पति के साथ बस तीन महीने रहीं और पति नौकरी के लिए बाहर चला गया। दो साल में बस एक हफ्ते के लिए आया। संगीता पति के साथ जाना चाहती थीं लेकिन ससुरालवाले नहीं चाहते थे। उसके के लाख कहने पर भी पति साथ ले जाने को तैयार नहीं हुआ और संगीता को गाँव में छोड़कर चला गया। इस घटना के बाद से संगीता घर में उदास रहती थीं। हालांकि, घर के सब कामकाज करती लेकिन अनमनी और असहज रहतीं।
एक दिन अचानक रात को संगीता जोर-जोर से रोने लगीं । घर के लोगों को अचरज हुआ कारण जानने ,समझाने की कोशिश में संगीता अजीब सा व्यवहार करने लगीं। घर में सबने कहा कि किसी ऊपरी बाधा का चक्कर है। उन्होंने एक झाड़-फूंक करने वाले ओझा को बुलवाया। उसने आकर संगीता की काफी झाड़-फूंक की। जाने कैसे कुछ दिन संगीता सामान्य रहीं। लेकिन एकदिन दोपहर में फिर चिल्लाने लगीं और फिर वही झाड़फूंक वाला बुलवाया गया। अभी तक यही सिलसिला चल रहा है। कोई इस बात को मानने को तैयार नहीं कि यह उसकी दमित इच्छाओं का परिणाम भी हो सकता है।
ग्रामीण समाज की संरचना देखी जाए तो सबसे कठिन है यहां स्त्री की यौन इच्छा पर बात करना। खु़द स्त्रियां भी अपनी यौन इच्छा पर कतई बात नहीं कर सकतीं। भले वे उसी दमित इच्छाओं को केंद्र बनाते हुए यौन संबंधों से जुड़े अश्लील मज़ाक करें, गीत गाएं लेकिन खुद के मन में यौन क्रिया की इच्छाएं उठती हैं उस पर यहां कोई भी स्त्री बात करने को तैयार नहीं। स्त्री की यौन इच्छाओं के स्वरूप भी बहुत अलग-अलग होते हैं जरूरी नहीं कि हर स्त्री में यौन इच्छा का आवेग एक जैसा हो।
गाँव में सोलह वर्षीय कविता* की दमित यौन इच्छा और शारीरिक बदलाव के कारण जब वह मानसिक रूप से बेहद प्रभावित हो गई तो यह उसके परिवार के लिए एक शर्मिंदगी का विषय बन गया। घर का हर सदस्य ये बीमारी छुपाता रहा। वे थोड़े शिक्षित लोग थे उन्होंने बीमारी के लक्षण को देखकर बच्ची को मनोचिकित्सक को तो दिखाया लेकिन यह बात सबसे छिपाते रहे। बच्ची को घर से बाहर नहीं निकलने देते कि कहीं बच्ची गलती से किसी से इस बारे में कुछ बता न दे। बच्ची का स्कूल छूट गया। गाँव-दोस्त सब छूट गये तो वह एक अलग तरह के अवसाद में चली गई।
भारतीय समाज की पुरातन पंथी सोच से निकल कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह बहुत ही सामान्य सी बात है कि जब हम किशोरावस्था को पार कर युवा अवस्था में जाते हैं तो हमारे शारीरिक और मानसिक स्वरूप में अनेक प्रकार के परिवर्तन होने लगते हैं इस उम्र में देह में जो परिवर्तन होते उससे मन में यौन इच्छा का उठना एक सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन समाज की संरचना ऐसी है कि यहाँ मनुष्य में यौन इच्छाओं का उठना जैसे कोई गलीज क्रिया की इच्छा का उठना है। गाँव में बचपन के दिनों में हम बच्चे खूब घरों में भटकते ,किसी छत पर ,किसी बाग में ,दालान में खेलते उन्हीं दिनों की स्मृतियों में कुछ ऐसे दृश्य उभरते हैं जो स्त्री की दमित यौन इच्छाओं का परिणाम होता था। जिसमें बहुत सी क्रियायों का समावेश होता था।जैसे खूब यौन जनित गालियां देना , दमित यौन इच्छाओं का किसी अन्य रूप में प्रकट होना । ज्यादातर ये भूत प्रेत ब्याधा के रूप में दिखता था। कभी ये यौन दमित इच्छायें अपराध के रूप में भी दिखी हैं।
गाँव स्त्री की यौन इच्छा का सबसे ज्यादा दमन होता है। अब थोड़ा समय बदला नहीं तो लगभग एक दशक पहले तक पुरुष घर से बाहर सोते थे और स्त्री घर के अंदर। इस तरह दोंनो एक जगह एक कमरे या बिस्तर पर नहीं अलग-अलग सोते थे। ज़ाहिर सी बात है कि इससे स्त्री और पुरुष दोनों की यौन संबंधों पर असर पड़ता होगा लेकिन गाँव की लजाधुर संस्कृति में इस बात का बड़ा महिमामंडन था। लोग ऐसे पुरुषों को श्रेष्ठ की संज्ञा देते जो रात को अपनी पत्नी के साथ नहीं सोते थे। अब इसमें दोनों की इच्छाओं का दमन होता था लेकिन स्त्री की इच्छा का ज्यादा दमन होता था क्यों कि पुरुषों को समाज ने कई तरह के विशेषाधिकार दिए थे। लेकिन घर में कैद स्त्री के लिए बाहर की दुनिया का कोई रास्ता नहीं था वह अपनी यौन दमित इच्छाओं के कारण भी ज्यादातर बीमार और अनमनी रहती लेकिन सामाजिक कंडीशनिंग इस तरह की अपनी इस पीड़ा को वह किसी से कह नहीं सकती थी।
स्त्री की यौन इच्छाओं और उसके दमन की बात पर गाँव की ही एक भाभी की स्मृति जेहन में उभर आती है। घर के लोग भईया को अर्थात भाभी के पति को पढ़ा-लिखाकर अफसर बनाना चाहते थे और उनकी धारणा थी कि पत्नी के साथ संबंध बनने से भईया की पढ़ाई पर प्रभाव पड़ेगा इसलिए ब्याह के बाद भाभी का गौना नौ साल बाद कराया गया लेकिन भईया तब तक भी अफ़सर नहीं बन पाए थे तो घरवाले भाभी से उनको दूर रखते थे। उनको शहर भेज दिया जाता भाभी को गाँव के घर में रहना होता था। भाभी ढ़ी-लिखी और स्वतंत्र चेतना की स्त्री थीं वह अपने पति के साथ रहने की इच्छा को व्यक्त करने लगीं तो उनको बेशर्म, कुलटा जाने क्या-क्या कहा जाने लगा। गाँव में किसी स्त्री को उनके पास जाने नहीं दिया जाता था कि वह किसी से कुछ कह न दें। केवल हम बच्चों को छूट थी भाभी के पास जाने की।
उन्हें अपने जीवनसाथी का साथ चाहिए था और घरवाले उन्हें दूर रखना चाहते थे। अंत तक वो मानसिक रूप से बेहद कमज़ोर हो गयीं इतनी कि हम बच्चों से ही अपना सारा दुख कहने लगतीं। दिनभर अपने पति की राह देखती साँझ को फफक-फफक रोने लगतीं लेकिन घर मे कोई नहीं पसीजा। सब उनको औरतों के त्याग और सतीत्व के उदाहरण देते। लेकिन भाभी को कोई फर्क नहीं पड़ता। आखिरकार वह गहरे अवसाद में चली गई लेकिन घरवाले भूत-प्रेत की ब्याधा ही कहते रहते। फिर भी गाँव की बस यही एक घटना है जिसमें आखिरकार स्त्री सफल हुई। भाभी अपने मनुष्य होने की सामान्य इच्छाओं को लगातार कहतीं रहीं , लड़तीं रहीं और एक समय आया कि सब बंधन तोड़कर वह गाँव के उस जकड़ भरे वातावरण से निकल कर पति के साथ शहर चलीं गई।
भारतीय ग्रामीण समाज में स्त्री का यौन इच्छा के बारे में बात करना इतना शर्मिंदगी का विषय माना जाता है कि कोई स्त्री कभी हिम्मत ही नहीं कर पाती इस सच को कहने की उसे एक जायज़ जरूरत की तरह रखने की। यहां हालात यह है कि अपनी यौन इच्छा के बारे में बात करती औरतों और लड़कियों को मर्दवादी सांचे में ढला समाज तरह- तरह की अश्लील गालियों और अपशब्दों से संबोधित करता है। उन्हें अपवित्र ,चरित्रहीन जाने क्या-क्या समझा जाता है। अपनी यौनिकता और इच्छा को लेकर समाज स्त्री में इतने डर भर चुका है कि अब वे इसे व्यक्त करते हुए खुद को दोषी की तरह देखती हैं।