इंटरसेक्शनलयौनिकता सवाल महिलाओं की यौनिकता और सहमति के

सवाल महिलाओं की यौनिकता और सहमति के

आप ‘सेक्स’ करने के लिए कितने ‘शुद्ध’ हैं इस मामले में आपकी वर्जिनिटी बहुत अहम हो जाती है। ख़ासकर जब भी वर्जिनिटी को लेकर हम बात करते हैं तो यह शब्द लड़कियों और महिलाओं के लिए और अहम हो जाता है। पितृसत्ता के बनाए पैमानों के मुताबिक मर्दों का इससे कोई लेना-देना ही नहीं होता।

मेरी यौन इच्छा समाज के लिए गलत क्यों? मेरे ज़हन में हमेशा यह सवाल घूमता है कि मेरी यौन इच्छा या सेक्स प्रति अपने रुझान को बताना सही है या गलत। इस पितृसत्तात्मक समाज में जहा शादीशुदा महिलाएं इन सवाल से बचती हैं, वहीं मुझ ‘कुंवारी’ का यह इच्छा जताना सही है कि नहीं? देखा जाए तो यह बहुत ही साधारण सी बात है जब हम किशोरावस्था को पार कर युवा अवस्था में जाते हैं तो हमारे शारीरिक और मानसिक रूप में बहुत से बदलाव आते हैं। इस उम्र में यौन इच्छा जागना गलत नहीं होता। 

यौन इच्छा के बारे में बात करना गलत तब माना जाता है अगर यही इच्छा एक लड़की जता दे। अपनी यौन इच्छा के बारे में बात करती औरतों और लड़कियों को कई अलग-अलग नामों से यह पितृसत्तात्मक समाज बुलाने लगता है। जैसे अपवित्र, चरित्रहीन, कुलटा आदि। जब भी एक लड़की सेक्स के बारे में बात करती है या अपनी इच्छा को जाहिर करती है तो उन्हें बहुत सी बातों और सवालों का सामना करना पड़ता है। लेकिन इसी यौनिकता के मायने और इस पर लगनेवाली पाबंदियों का रूप औरतों की शादी के बाद बदल जाते हैं। इस तरह सदियों से लड़कियों और महिलाओं की यौनिकता पर पितृसत्ता लगाम कसती आई है।

आप ‘सेक्स’ करने के लिए कितने ‘शुद्ध’ हैं इस मामले में आपकी वर्जिनिटी बहुत अहम हो जाती है। ख़ासकर जब भी वर्जिनिटी को लेकर हम बात करते हैं तो यह शब्द लड़कियों और महिलाओं के लिए और अहम हो जाता है। पितृसत्ता के बनाए पैमानों के मुताबिक मर्दों का इससे कोई लेना-देना ही नहीं होता।

आज भी मुझे अपनी ज़िंदगी का एक किस्सा याद है जब एक दिन शाम को मैं अपने एक साथी के साथ बैठी थी। तब उन्होंने यह सवाल किया था,”क्या तुम वर्जिन हो?” इस पर मैंने पूछा था कि यह क्या होता है? उसने हंसकर कहा, “जाने दो कुछ नहीं।” मेरे बहुत पूछने पर भी कुछ जवाब न दिया। तब उस समय मैं इस शब्द से अनजान थी लेकिन इस को जानने के लिए एक दोस्त के पास गई तब मुझे पता चला कि जिस व्यक्ति ने कभी सेक्स न किया हो उसे हम वर्जिन कहते हैं। 

आप ‘सेक्स’ करने के लिए कितने ‘शुद्ध’ हैं इस मामले में आपकी वर्जिनिटी बहुत अहम हो जाती है। ख़ासकर जब भी वर्जिनिटी को लेकर हम बात करते हैं तो यह शब्द लड़कियों और महिलाओं के लिए और अहम हो जाता है। पितृसत्ता के बनाए पैमानों के मुताबिक मर्दों का इससे कोई लेना-देना ही नहीं होता। कहने का मतलब यह है कि औरत की योनि पवित्र होनी चाहिए। शादी से पहले लड़की का किसी से भी शारीरिक संबंध नहीं होना चाहिए और उसका हाईमन बचा रहना चाहिए। इसे ही समाज शुद्धता और पवित्रता से जोड़ता है। पितृसत्तात्मक समाज में पवित्र होना एक औरत के लिए सबसे ज़रूरी बना दिया जाता है। अगर उस ‘पवित्रता’ पर कैसी भी आंच आ जाती है तो उस औरत का जीवन लगभग ‘नष्ट’ माना जाता है।

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शुद्धता और वर्जिनिटी का यह बोझ इस पितृसत्तात्मक समाज में एक औरत को अकेले उठाना पड़ता है। इस शुद्धता को बचाने के नाम पर बचपन से लड़कियों पर पाबंदियां लगाई जाती हैं, उन्हें चारदीवारी के भीतर रखा जाता है। इस पवित्रता को बचाने के लिए उन्हें पढ़ाई से लेकर काम तक करने की मनाही होती है। वक्त आने पर इस कैद से आज़ाद करने की जगह उनकी शादी कर दी जाती है।

औरत की योनि पवित्र होनी चाहिए। शादी से पहले लड़की का किसी से भी शारीरिक संबंध नहीं होना चाहिए और उसका हाईमन बचा रहना चाहिए। इसे ही समाज शुद्धता और पवित्रता से जोड़ता है। पितृसत्तात्मक समाज में पवित्र होना एक औरत के लिए सबसे ज़रूरी बना दिया जाता है।

लेकिन शादी औरतों की पवित्रता को मापने का ब्राह्मणवादी पितृसत्ता द्वारा अपनाया गया एक और तरीका होता है। शादी के बाद अगर औरतों की पवित्रता में कमी पाई जाए तो उन्हें फिर छोड़ भी दिया जाता है। हमने न जाने कितनी ऐसी खबरें सुनी होंगी कि कैसे एक पति ने पहली रात के बाद अपनी पत्नी को छोड़ दिया या फिर महिला को इस तरह की परीक्षा देनी पड़ती है जहां संबंध बनाने के बाद सफेद चादर पर खून के दाग दिखे। खून के धब्बों से उस औरत की ‘पवित्रता’ तय की जाती है।

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पिछले साल की बात है। घर की तीन औरतें आपस में बातचीत कर रही थीं और मैं वहीं बैठी स्कूल का फॉर्म भर रही थी। फॉर्म भरते-भरते मैं उनकी बातें सुनने लगी। उनमें से एक बता रही थी हंसते-हंसते कि वह रात में कैसे अपने पति से बचती फिरती है। एक महिला ने कहा था कि कैसे उसका पति नाराज़ है क्योंकि उसने यौन संबंध बनाने से इनकार कर दिया था। हर बार ऐसा ही होता है कि उसका मन हो या न हो उसे अपने पति की बात माननी ही पड़ती है। तीसरी ने बताया कि उसका पति दारू पीकर आता है और अगर बुलाने पर न जाओ तो पीटता भी है। जब मैंने उनसे पूछा कि वे इस पर कुछ करती क्यों नहीं हैं तो उनका जवाब कुछ यूं था, “अब तो रोते जाओ, मुंह धोते जाओ, जिंदगी जीते जाओ l”

लेकिन ऐसे नियम-कानून, पवित्रता के पैमाने मर्दों के लिए नहीं बनाए गए हैं। पितृसत्तात्मक समाज में मर्दों को हक दिया जाता है इस पाबंदी को बनाए रखने का, औरतों की ‘पवित्रता’ की जांच करने का। इस ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक व्यवस्था में शादी के पहले तक औरतों की यौनिकता को बिना उसकी सहमति के कैद रखा जाता है, वहीं शादी के बाद उनकी इस यौनिकता को एक दूसरे मर्द के हवाले कर दिया जाता है, और यहां भी उनकी सहमति कोई मायने नहीं रखती।

जहां पितृसत्तात्मक समाज ने मर्दों को हक दिया वहीं औरतों को गुलाम बना दिया। ऐसा गुलाम जहां उनकी यौनिकता पर उनका अपना अधिकार न हो, जहां उनकी सहमति के कोई मायने न हो। इतना ही उन्हें ऐसे दायरे में बांध दिया जहां ‘अच्छी औरत’ बनना ही उनका एकमात्र लक्ष्य रह जाता है।

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तस्वीर: फेमिनिज़म इन इंडिया

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