केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया ने बीते शुक्रवार को प्रसव से पहले भ्रूण के लिंग चयन के लिए आधुनिक तकनीक के होने वाले गलत इस्तेमाल के बारे में कहा है कि तकनीक लिंग असंतुलन को बढ़ा सकती है। स्वास्थ्य मंत्री मंडाविया ने आईवीएफ, एआईपीटी, नए उपकरण जैसी आधुनिक तकनीकों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों पर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि यह ये प्रोद्योगिकी बदलाव लिंग चयन की सुविधा प्रदान भी करते है।
केंद्रीय सुपरवाइजरी बोर्ड की 29वीं मीटिंग में मंडाविया ने कहा है कि लड़कियों और महिलाओं के ख़िलाफ़ लैंगिक भेदभाव के विषय को संबोधित करते हुए देश की प्रतिबद्धता को दोहराया। द प्रिंट में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़ इस बैठक में देश में घटते बाल लिंगानुपात और जन्म के समय लिंगानुपात पर चर्चा की गई। साथ ही लैंगिक भेदभाव के ख़िलाफ़ चल रही लड़ाई में देश लड़कियों और महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव के मुद्दे को संबोधित किया।
कार्यक्रम में 2020 की नवीनतम सैम्पल रजिस्ट्रेशन सर्वे (एसआरएस) रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि डेटा से पता चला है कि जन्म के समय लिंग अनुपात में 2017-19 में 904 से 2018-20 में 907 तक तीन अंकों का सराहनीय सुधार हुआ है। मंत्री ने कहा है कि सर्वे में शामिल 22 में से 12 राज्यों ने सुधार दिखाया है, जो गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक विनियमन अधिनियम 1994 और बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओ योजना को लागू करने और राज्यों के संयुक्त प्रयासों को रेखाकिंत करता है। एसआरएस की नई रिपोर्ट ने संकेत दिया है कि 2015 में पांच अंकों के अंतर की तुलना में 2020 में यह बदलाव आया है जिससे महिलाओं के जीवित रहने की दर पर सकारात्मक असर पड़ा है।
लड़कियों के जीवित रहने की दर से संबंधित डेटा को प्रस्तुत करने के साथ-साथ कार्यक्रम में यौन प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़े तकनीक के इस्तेमाल पर स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि तकनीक का चिकित्सा में सकारात्मक प्रयोग के बावजूद दुरुपयोग भी किया जा सकता है और जिसे लिंग असंतुलन को बढ़ाया जा सकता है। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है कि यौन प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार के लिए इस्तेमाल आईवीएफ प्रक्रियाओं, नॉन-इनसेविस प्रीनेटल टेस्ट और कॉम्पैक्ट डायग्नोस्टिक उपकरण जैसी आधुनिक तकनीकों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों पर भी चिंता व्यक्त की जो परिवार के संतुलन के बहाने लिंग चयन की सुविधा भी प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा है कि सकारात्मक इस्तेमाल के साथ-साथ इनका गलत इस्तेमाल भी हो सकता है। इस तरह से लिंग असंतुलन को बढ़ाया जा सकता है।
पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम के तहत केंद्र सरकार पर लिंग निर्धारण और चयन के लिए चिकित्सा तकनीक के दुरुपयोग का मुकाबला करने की जिम्मेदारी है। साथ ही उन्होंने कहा है कि इस अधिनियम का इस्तेमाल किसी के द्वारा निर्दोष डॉक्टरों को परेशान करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। मंत्री ने इस संबंध में हरियाणा, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों द्वारा उठाए गए सक्रिय कदमों की सराहना की है। उन्होंने लिंग आधारित चयन से निपटने के लिए स्टिंग ऑपरेशन और मुखबिर योजनाओं सहित उनकी नवीन रणनीतियों की सराहना की है। केंद्रीय मंत्री ने अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से भी इसका अनुसरण करने के लिए कहा है।
लिंगानुपात के बढ़ने में तकनीक को दोष देना कहां तक सही
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने लिंगानुपात के बढ़ने में नई प्रोद्योगिकी को बड़ा कारण बतााया है। उन्होंने विशेष रूप से यौन प्रजनन स्वास्थ्य के क्षेत्र में तकनीक विकास को लिंगानुपात बढ़ाने वाला कहा है। कई आधुनिक यौन प्रजनन स्वास्थ्य वाले बदलाव विशेष रूप से महिलाओं की स्वतंत्रता और एजेंसी को मजबूत करने वाले है। आमतौर पर इलेक्ट्रानिक उपकरण, सॉफ्टवेयर और महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य तकनीक उन्हें सशक्त बनाकर प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल और स्वास्थ्य परिणामों में असमानताओं को दूर करने वाली भी साबित हुई है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के डेटा के मुताबिक़ देश में शिशु लड़के और लड़कियों का व्यापक अनुपात जो 1970 के दशक में लिंग-चयनात्मक अबॉर्शन की सुविधा के लिए वह प्रीनेटल डायग्नोस्टिक टेक्नोलॉजी से बना था वह अब कम होता दिख रहा है। प्यू रिसर्च में प्रकाशित जानकारी के अनुसार सरकारी आंकड़ें से पता चलता है कि भारतीय परिवारों में बेटियों के बजाय बेटों के जन्म को तय करने लिए अबॉर्शन का सहारा लेने की संभावना कम होती जा रही है। यह लिंग-चयन पर अंकुश लगाने के सरकार के वर्षों के प्रयासों के कारण है जिसमें जन्म से पहले लिंग परीक्षण पर रोक और लड़कियों को बचाने के अभियान शामिल है। भारत में लिंग चयन की सबसे बड़ी कमी उन समूहों में देखी गई है जिनमें पहले सबसे अधिक लिंग असंतुलन था।
नवाचार और प्रौद्योगिकी में महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाने और उनके यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों को मजबूत करने का काम किया है। इसके ज़रिये महिलाएं पीरियड्स स्वास्थ्य, परिवार नियोजन और क्रॉम्प्रिहेसिव सेक्सुअल एजुकेशन की जानकारी आसानी से हासिल कर रही हैं। इतना ही नहीं कोविड-19 महामारी और जलवायु संकट के मौजूदा समय में यौन प्रजनन स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। इस तरह का असर मातृत्व स्वास्थ्य देखभाल सहित आवश्यक बेसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक को प्रभावित किया है। यूएनएफपीए के अनुसार कोविड-19 में यह अनुमान लगाया गया है कि महिलाओं तक गर्भनिरोधक आपूर्ति और सेवाओं में बाधा की वजह से कम से कम 14 लाख अनचाहे गर्भधारण हुए है।
स्वास्थ्य अधिकारों में यौन प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार एक अहम हिस्सा है। तकनीकी प्रगति ने बदलने और विस्तारित करने की क्षमता रखती है। प्रजनन अधिकार और स्वास्थ्य देखभाल के मुद्दे अति सूक्ष्म और जटिल है जिससे अनेक सामाजिक और नैतिक विषय भी जुड़े हुए है इसलिए इन पर बहुत ही उचित तरीके से विचार रखने की आवश्यकता है। मंत्री का एक बयान की तकनीक लिंगानुपात को बढ़ाने का काम कर सकती है जैसी बात चिकित्सा के क्षेत्र में तकनीकी विकास में अवरोध की सोच को प्रदर्शित करता है।