हम अपने शहर, जिला, देश के प्रशासन की कितनी ही खामियां क्यों न निकाल लें इससे यह सच नहीं बदलता है कि भारत में अधिकांश स्थिरता का श्रेय यहां के प्रशासन में काम कर रहे अफसरों को जाता है। और जनता की परेशानियों का हल भी यही नौकरशाही निकालती है। प्रशासनिक सेवाओं में पुरुषों के साथ साथ महिलाएं भी शामिल हैं। हालांकि संख्या में यहां भी वे पुरुषों की तुलना में कम हैं। अशोक विश्वविद्यालय में त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा (टीसीपीडी) द्वारा संकलित भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के आंकड़ों पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण से पता चलता है कि 1951 और 2020 के बीच सिविल सेवाओं में प्रवेश करने वाले 11,569 आईएएस अधिकारियों में से केवल 1,527 महिलाएं थीं। इन्हीं चयनित महिलाओं में से उन पांच महिलाओं के बारे में हम जानने जा रहे हैं जिन्होंने समाज में अपने सिविल सेवा के ओहदे पर रहते हुए समाज में सकारात्मक और जन केंद्रित काम किए हैं।
1- पुमा तुडू
आईएएसपुमा ओडिशा कैडर, 2012 की आईएएस हैं। वर्तमान में वह ओडिशा स्टेट मेडिकल कॉर्पोरेशन लिमिटेड भुवनेश्वर की एमडी के रूप में कार्यरत हैं। पुमा जनता की समस्याओं का हल कम वक्त में प्रभावित तरीके से निकालने के लिए जानी जाती हैं यही वजह है कि उनकी पोस्टिंग किसी एक जगह लंबे वक्त तक रखी नहीं जाती है। साल 2019 में वह कोरतपुर जिले की जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त हुई थीं, कोडिंगमली गांव के लोग दस दिन से बॉक्साइट खनन कर रहे फर्म के खिलाफ़ आंदोलन कर रहे थे। तुडु की पोस्टिंग जब यहां हुई तो उन्होंने लोगों से बात की और जल्द ही मसले को सुलझा दिया लेकिन तीन सप्ताह के भीतर उनकी पोस्टिंग वहां से हटा दी गई।
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साल 2020 में वे नौपाड़ा जिले की जिला मजिस्ट्रेट बनकर आईं पुमा को पोस्टिंग के बाद मालूम हुआ कि आदिवासी गांव समत्पदार के लोग नब्बे किलोमीटर दूर पहाड़ी के चार किलोमीटर ऊंचाई को पर करके जिला मुख्यालय तक अपनी समस्याएं लेकर आते हैं। यह जानकर पुमा खुद यह रास्ता तय करते हुए हर कुछ समय में लोगों के पास जाती और समस्याएं सुनती, अपनी पहली विजिट के बाद ही उन्होंने रोड़ जुड़ाव और संवाद स्थापित करने के आदेश दिए थे और लोगों को सरकारी नीतियों के बारे में बताया और उन तक सभी जरूरतमंद सुविधाएं मुहैया कराई। लेकिन जल्द ही उनका यहां से भी तबादला कर दिया गया था।
2- स्मिता सभरवाल
आईएएस स्मिता सभरवाल 2001 की तेलांगना कैडर की आईएएस हैं। वर्तमान में वह तेलांगना सरकार में मुख्यमंत्री दफ़्तर में बतौर सेक्रेटरी कार्यरत हैं। यह मुकाम हासिल करनेवाली वह पहली कम उम्र की महिला अफसर हैं। उनके पास ग्रामीण जल आपूर्ति विभाग और मिशन भागीरथ के सचिव का अतिरिक्त प्रभार भी है। उन्होंने अपने दूसरे प्रयास में ऑल इंडिया रैंक 4 के साथ 2000 में यूपीएससी क्रैक किया था। स्मिता सभरवाल ‘पीपल्स ऑफिसर’ के नाम से मशहूर हैं। जब वह वारंगल में म्युनिसिपल कमिश्नर थीं उन्होंने ‘फंड योर सिटी’ कार्यक्रम शुरू किया था। इस स्कीम के अंतर्गत शहर के पार्क, ट्रैफिक, पुल आदि सुविधाएं पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के माध्यम से पूरी की थीं। इसके इतर जब वह करीमनगर और मेडक में जिला मजिस्ट्रेट थीं तब स्वास्थ्य, शिक्षा पर ज़्यादा ज़ोर देते हुए सरकारी नीतियां पूरी तरह लागू हो, यह सुनिश्चित किया था। यही कारण है कि लोगों के जीवन में बदलाव लाकर वह ‘पीपल्स अफसर’ कही जाती हैं।
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आउटलुक मैगजीन ने उन पर स्टोरी करते हुए उन्हें फैशन रैंप पर किसी मॉडल की तरह चलते हुए इलस्ट्रेट किया था क्योंकि वे अक्सर काफ़ी वैल ड्रेस्ड नज़र आती हैं। इसे लेकर बीबीसी हिंदी को दिए गए एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था,”जो बात मुझे सबसे ज्यादा परेशान करती है वह यह सुझाव है कि एक महिला अपनी सुंदरता के कारण अपने करियर में आगे बढ़ने में सक्षम होती है। यह उन हज़ारों महिलाओं के लिए बहुत निराशाजनक है जो अपने घरों से बाहर निकल रही हैं और अपना करियर बना रही हैं।”
3- अनीता कौल
आईएएस अनीता कौल 1979 बैच की आईएएस अधिकारी थीं। उनकी मृत्यु 10 अक्टूबर 2016 को हुई थी। वह न्याय विभाग के सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुईं थीं। अनीता कौल को जानना अहम है क्योंकि शिक्षा के अधिकार आंदोलन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वे निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 की प्रमुख वास्तुकार थीं जिसने शिक्षा को भारत में प्रत्येक बच्चे के लिए एक मौलिक अधिकार बना दिया था।
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मैसूर, कर्नाटक में पोस्टिंग के दौरान उन्होंने नाली काली प्रोग्राम शुरू किया था। नाली काली का अर्थ है खेलना और सीखना। वह नेशनल लिटरेसी मिशन की डायरेक्टर रही थीं जिसका काम देश के सभी जिलों में शिक्षा के प्रति जागृति के लिए कैंपेन करना था। कर्नाटक में महिला सामिख्य नाम से महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम भी चलाया था। कुल मिलाकर नौकरशाही में रहते हुए वे शिक्षा की पहुंच के लिए एक सोशल एक्टिविस्ट बन चुकी थीं।
4- दुर्गा शक्ति नागपाल
आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल उत्तर प्रदेश कैडर की 2010 की आईएएस हैं और वर्तमान में बांदा ज़िले की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट हैं। दुर्गा शक्ति नागपाल 2013 में देश भर में एक जाना पहचाना नाम बन गई थीं। उनके सस्पेंशन को लेकर लोग, सीनियर आईएएस अधिकारी सभी लोग निंदा कर रहे थे और उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले पर आंदोलनरत भी थे। लेकिन वजह क्या थी कि एक आईएएस अफसर के लिए जनता सड़क पर थी? वजह थी दुर्गा शक्ति द्वारा गौतम बुद्ध नगर जिले में चल रहे अवैध बारूद खनन माफिया और भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करना।
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उन्होंने अवैध खनन की सालाना बाइस हज़ार करोड़ के उद्योग को जॉइंट मजिस्ट्रेट रहते हुए पकड़ा था। उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। जब लोग दुर्गा शक्ति नागपाल के सस्पेंशन का विरोध जोरों से करने लगे थे तब सरकार द्वारा यह कह दिया गया था कि बारूद खनन माफिया के पर्दाफाश की वजह से नहीं बल्कि हिन्दू मुस्लिम सौहार्द को बिगाड़ने के लिए उन्हें सस्पेंड किया गया है। इस सब प्रकरण के बाद देशभर के सिविल अधिकारियों की ओर से यह सुझाव रखा गया कि सरकार के ऐसे रवैये से ईमानदार अफसरों को बचाने के लिए सिविल सेवा संबंधित कानूनों में कुछ ठोस बदलाव किए जांए।
5- हरी चंदना दसारी
हरी चंदना दसारी 2010 की तेलांगना कैडर की आईएएस हैं। उनका काम सस्टेनेबल डेवलपमेंट की ओर है। वह स्वच्छता और पर्यावरण के प्रति अधिक झुकाव रखती हैं इसीलिए इस दिशा में अधिक काम किया है। फुटपाथ में इस्तेमाल होने वाली टाइल्स, यूज्ड प्लास्टिक बनवाकर लगवाना हो या प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग।
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उनके ऐसे कामों की वजह से उन्हें अन्य हरित क्रांति की रचनाकार के रूप में भी जाना जाता है। पेट पार्क्स, शी टॉयलेट्स, शी मार्ट, फीड द नीड, गिव एंड शेयर उनके द्वारा अस्तित्व में लाई गईं नीतियां हैं।