समाजकैंपस सामाजिक संस्थानों के ज़रिये सपनों की उड़ान भरती ग्रामीण लड़कियां

सामाजिक संस्थानों के ज़रिये सपनों की उड़ान भरती ग्रामीण लड़कियां

भारतीय शिक्षा प्रणाली में आमतौर पर विशेषकर परीक्षा-मुख्य ध्यान दिया जाता है, जिससे बच्चों का टुकड़ा-टुकड़ा ज्ञान बढ़ता है, लेकिन यह ज्ञान हमारी दीर्घकालीन स्मृति और जीवन कौशलों में असर नहीं डालता है। शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए कि छात्र न केवल परीक्षा में पास हो, बल्कि उन्हें अच्छी तरह से समझने और अपनाने की क्षमता भी प्राप्त कर पाए।

बचपन से बड़े होने तक के सफर में हम सभी ने गणित और विज्ञान की दुनिया में अपने कदम रखे हैं। जब हम छोटे थे, तो हमें स्कूल की किताबों के पन्नों पर उतरकर इन दो विषयों को समझने का प्रयास करना पड़ता था। और हाँ, यह सच है कि गणित और विज्ञान कुछ एक बच्चों के लिए मजेदार हुआ करता था लेकिन कुछ बच्चों को इसमें रूचि नहीं होती थी। लेकिन क्या हमने कभी यह सोचा है कि इसका कारण क्या है? क्यों हमें दोनों विषयों की शिक्षा को रटने के लिए कहा जाता है? क्यों हमें गणित की कक्षा में पहाड़े याद करने को कहा जाता था? 

किसी भी विषय पर समझ तभी बन पाती है जब आपको उस विषय का मूल ज्ञान हो। एक अध्यापक की स्नातक डिग्री ही एक मात्र गुण नहीं है कि वह अच्छे से पढ़ाना जानता हो। शिक्षक का कार्यक्षेत्र न केवल पाठ्यक्रम के पाठन में सीमित रहना चाहिए, बल्कि वे छात्रों को ज्ञान का मूल सिद्धांत समझाने, उनके प्रश्नों का जवाब देना और उन्हें सोचने पर प्रोत्साहित करने के लिए अग्रसर करने का होना चाहिए।

दिव्या बताती है, “यहां आने से पहले उम्मीद छोड़ दी थी कि अब जीवन में कुछ नहीं हो सकता। सबके पास अच्छे-अच्छे कॉलेज की डिग्री है। आगे पढ़ने के लिए पैसा है। मेरे पास कुछ नहीं था। एक दीदी से पता चला, उन्होंने साझे सपने के बारे में बताया। अब मैं भी सपनेवाली हो गई।”

भारतीय शिक्षा प्रणाली में आमतौर पर विशेषकर परीक्षा-मुख्य ध्यान दिया जाता है, जिससे बच्चों का टुकड़ा-टुकड़ा ज्ञान बढ़ता है। शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए कि छात्र न केवल परीक्षा में पास हो, बल्कि उन्हें अच्छी तरह से समझने और अपनाने की क्षमता भी प्राप्त कर पाए। यह अवश्यक है कि शिक्षा प्रणाली में प्रायोगिक ज्ञान, कौशल को समझाया जाना चाहिए ताकि छात्र अपने दैनिक जीवन में उन्हें उपयोग कर भविष्य में आगे बढ़ सके।

गणित और विज्ञान विषयों की आसान बनाता शिक्षा

पालमपुर स्थित अविष्कार एनजीओ।

भारत के दूर-दराज के क्षेत्रों और समुदाय में गणित और विज्ञान की शिक्षा के लिए ‘अविष्कार’ नामक एनजीओ काम कर रहा है। साल 2014 में इसकी स्थापना संध्या गुप्ता और सरित शर्मा ने की थी। अमेरिका में काम करने के बाद समाज के हित में कुछ बेहतरी का सपना लेकर हिमाचल प्रदेश आए। भारत की शिक्षा पद्धति में बदलाव के लिए काम करना शुरू किया। अपनी संस्था के ज़रिये इन्होंने वैकल्पिक शिक्षा पद्धति की दिशा में प्रयास करने शुरू किए। यह संस्थान पालमपुर से करीब 12 किलोमीटर दूर कंडबाड़ी गांव में स्थित है। सरित ने विस्तार से बात करते हुए भारतीय शिक्षा व्यवस्था की खामियों और उन्हें खत्म करने के बारे में बात की। ‘अविष्कार’ संस्था में भारत के अलग-अलग राज्यों के ग्रामीण इलाकों से आकर लड़कियां ज्ञान अर्जित कर रही हैं। कोई उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से है, तो कोई बिहार के किशनगढ़ से। कोई झारखंड से है तो कोई राजस्थान से। 

‘आविष्कार’ में अलग-अलग राज्यों से ग्रामीण महिलाएं यहां इंटर्नशिप, फ़ेलोशिप और ट्रेनिंग के लिए आती हैं जिन्हें गणित और विज्ञान में अभिनव शिक्षक बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। साथ ही प्रोजेक्ट मैनेजमेंट और कोडिंग जैसे टेक्नोलॉजी पर काम करना भी सिखाया जाता है। यह संगठन उन युवा शिक्षकों के लिए फ़ेलोशिप कार्यक्रम भी प्रदान करता है जो भारतीय शिक्षा व्यवस्था में बदलाव और नवीनीकरण की दिशा में काम करना चाहते हैं। आविष्कार से जुड़े हुए साथी यहां बच्चों के लिए अलग-अलग प्रकार से पढ़ने की समाग्री भी बनाते हैं। अक्सर यहां कक्षा छह से आठ तक के उन छात्रों को पढ़ाया जाता हैं। ये बच्चे पांच दिवसीय कार्यशालाओं के लिए यहां आते हैं। 

अविष्कार कैंपस में गणित पढ़ती लड़कियां और पढ़ाई से जुड़ी अलग-अलग सामग्री।

यह संस्थान सरकारी स्कूल के शिक्षकों को अपनी नवीन शिक्षण तकनीकों को अपनाने में भी मदद करता है। यहां परिसर में शिक्षकों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसके साथ ही, वे आवासीय कार्यशालाओं का भी आयोजन करते हैं जिनका उद्देश्य छात्रों की जिज्ञासा, रचनात्मकता और महत्वपूर्ण सोच को विज्ञान और गणित में प्रोत्साहित करना है। ये कार्यक्रम शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। 

सपनों को पंख लगाता साझे सपना

इसी कैंपस के परिसर में ही ‘साझे सपने’ नाम से एक केंद्र चल रहा है। जिसमें देश के ग्रामीण इलाकों की लड़कियों को प्रशिक्षण देकर आधुनिक श्रमबल में शामिल होने के लिए तैयार किया जाता है। समाज में महिलाओं को अपनी योग्यता निखारने के मौके नहीं मिलते हैं। जहां जन्म होता है वहीं धंसी हुई रह जाती हैं। इस पहल के पीछे सुरभि यादव का प्रमुख योगदान है। उनका मानना है कि हमारी बातचीत का दायरा केवल महिलाओं की समस्याओं तक सिमट कर नहीं रह जाना चाहिए। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि उनके सपनों को हासिल करने में मदद करें।

साझे सपने कार्यक्रम का मकसद ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को आधुनिक कार्यस्थल के ट्रेनिंग देना है। इस केंद्र में तीन तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। पहला है ‘उमंग: डेवलपमेंट मैनेजमेंट’ इस कोर्स की अवधि एक साल तक की है। इस कार्यक्रम में 17 से 24 वर्ष की लड़कियों को शामिल किया जाता है। नाममात्र का शुल्क लिया जाता है। परिसर में खाने-पीने और ठहरने की सुविधा दी जाती है।

“अब मैं भी सपने वाली हो गई हूं”

कैंपस परिसर में लैपटॉप पर काम करती लड़कियां।

इस कार्यक्रम के तहत बहुत सी लड़कियां प्रशिक्षण ले रही हैं। आजमगढ़ की रहने वाली 20 वर्षीय दिव्या भी उन्हीं में से एक है। वह पिछले छह महीनों से यहां रह रही है। दिव्या बताती है, “यहां आने से पहले उम्मीद छोड़ दी थी कि अब जीवन में कुछ नहीं हो सकता। सबके पास अच्छे-अच्छे कॉलेज की डिग्री है। आगे पढ़ने के लिए पैसा है। मेरे पास कुछ नहीं था। एक दीदी से पता चला, उन्होंने साझे सपने के बारे में बताया। अब मैं भी सपनेवाली हो गई।”

लैंपटॉप पर काम करती आशा।

साझे सपने की ही कुछ लड़किया समूह में खड़ी थी। लड़कियों के चेहरों पर मुस्कान खिली हुई थी, जैसे कि सपनों की साझी जगह पा ली हो। उनमें से खड़ी आशा बताती है कि यहां होकर ऐसा लग रहा है जैसे कि वो खुद ही सपनों की पूर्ति कर रही हो। झारखण्ड के जोंझा गांव की रहने वाली आशा यहां प्रोजेक्ट मैनेजमेंट का कोर्स कर रही हैं। बातचीत के दौरान वह हमें अपने आप से बनाया हुआ एक वीडियो दिखाती हैं, जिसमें सम्मोहन से भरपूर शब्दों के साथ वो अपने सपनों की यात्रा को प्रकट कर रही हैं। वीडियो में वह उत्साह और आत्मविश्वास से अपने सपनों की दांस्तान सुना रही थी।

वहां खड़ी सब लड़कियां कुछ न कुछ सवाल-जवाब करती हैं और अपने अनुभवों के बारे में कहती है हमे यहां सबसे अच्छा नेचर लगता हैं। पहाड़ों के बीच आबाद यह जगह उनकी दुनिया में उनके सपनों को उड़ान देती है। इस केंद्र में प्रशिक्षण ले रही अधिकांश लड़कियां सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े परिवार की है। यहां से प्रशिक्षण मिलने के बाद, जब तक रोजगार नहीं मिल जाता इन लड़कियों को यही रखा जाता है। एक मायने में यह केंद्र रोजगार की गारंटी देता है।

दूसरा कार्यक्रम है ‘आरोहण: प्राथमिक स्तर की गणित का शिक्षण’ इस कार्यक्रम के अंतर्गत लड़कियों का भविष्य गणित विषय के क्षेत्र में तैयार किया जाता है। इसके लिए गणित विषय को रुचिकर बनाया जाता है ताकि गांव की लड़कियां अलग-अलग स्कूलों में जाकर गणित पढ़ा सकें। एक अन्य कार्यक्रम में वेब डिजाइनिंग का काम सिखाया जाता है। तकनीकी के युग में वेब डिजाइनिंग के क्षेत्र में कई रोजगार के अवसर सृजित हुए हैं। लेकिन, बिना प्रशिक्षण के इन रोजगार के अवसर को भुनाना संभव नहीं है। ये संस्थाएं दूर-दराज के क्षेत्रों की लड़कियों को शिक्षित कर रही है और उनमें अलग-अलग कौशल विकसित कर रही है ताकि वे ज्ञान हासिल कर आत्मनिर्भर हो सकें।


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content