संस्कृतिकिताबें आइए जानते हैं हिंदी साहित्य नाट्य लेखन पंरपरा को आगे बढ़ाने वाली कुछ महिला लेखिकाओं के बारे में

आइए जानते हैं हिंदी साहित्य नाट्य लेखन पंरपरा को आगे बढ़ाने वाली कुछ महिला लेखिकाओं के बारे में

महिलाओं ने भी नाट्य लेखन पंरपरा में काफी योगदान दिया है लेकिन उनकी चर्चा न के बराबर होती है। नाटक लिख कर सामाजिक कुरीतियों, रूढ़िवादिता, भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं को उजागर किया है।

वर्षों से लिखे हिंदी साहित्य ने अनेक विधाओं जैसे- कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, जीवनी, रिपोर्ताज इत्यादि को जन्म दिया। भारत में नाटक की परंपरा कई हजार वर्षों से चली आ रही है। नाटक साहित्य की एक विशिष्ट विधा होती है। नाटक चाहे लिखा कभी भी जाए लेकिन उसका रंगमंच वर्तमान समय में भी हो रहा है। नाटक एक ऐसा क्षेत्र है जो हर देश और काल के मुद्दों को सशक्त ढंग से प्रकट करता है।

हिंदी नाटक का नाम आते ही हमारे जेहन में भारतेंदु, जयशंकर प्रसाद, मोहन राकेश, धर्मवीर भारती आदि का नाम आता है। भारतेंदु ने कई नाटक अनुदूति किए और कई मौलिक नाटक लिखें है। जयशंकर प्रसाद की ऐतिहासिक नाटकों की लंबी फेहरिस्त है। धर्मवीर भारती का ‘अंधायुग’ नाटक काफी प्रसिद्ध है। जयशंकर, भारतेंदु और धर्मवीर भारती के नाटकों का मंचन वर्तमान समय में भी किया जाता है। महिलाओं ने भी नाट्य लेखन पंरपरा में काफी योगदान दिया है लेकिन उनकी चर्चा न के बराबर होती है।

महिलाओं ने भी नाटक लिखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। नाटक लिख कर सामाजिक कुरीतियों, रूढ़िवादिता, भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं को उजागर किया है। लेकिन उनके लिखे नाटक का मंचन न के बराबर हुआ है। आज हम हिंदी नाटक की विकास-यात्रा में महिलाओं के योगदान के बारे में चर्चा करेंगे, जिन्होनें नाटक तो बहुत लिखे लेकिन उनके द्वारा लिखे नाटक हमेशा उपेक्षित रहे।

 कुसुम कुमार

तस्वीर साभारः Rajkamal Prakashan

हिंदी नाट्य लेखन की परंपरा में डॉ. कुसुम कुमार का नाम महत्वपूर्ण है। इन्होंने 1970 के अंतिम वर्षों में नाट्य-लेखन की शुरुआत की। नाटक लिखते समय हमेशा प्रयोग किया है, किसी एक लीक पर चलकर नाटक नहीं लिखा। कुसुम कुमार न केवल नाटकों की संख्या की दृष्टि से बल्कि नाटकों के मंचन की दृष्टि से भी हिंदी रंगमंच की अग्रणी महिला नाटककार हैं। कुसुम कुमार द्वारा लिखें नाटक ‘संस्कार को नमस्कार’, ‘दिल्ली ऊंचा सुनती है’, ‘सुनो शेफाली’ तथा ‘लश्कर चौक’ आदि है। इन्होंने भ्रष्टाचार, दलितों का शोषण, निम्न वर्ग की समस्या और नारी शोषण जैसे विषयों को आधार बनाकर अपने नाटक लिखे हैं।

महिलाओं द्वारा नाटक लिखने के विषय में उनका कहना है- “मेरा अपना विचार है कि महिलाओं को नाटक लिखने चाहिए। प्रत्येक बाधा, प्रत्येक विलम्ब और विधा सम्बन्धी त्रुटियों के बावजूद। महिलाओं का इस क्षेत्र में उतरना इसलिए भी आवश्यक है कि यदि वे लिखें तो करूणा एक नदी-सी प्रवाहित, जहाँ-जहाँ सूखा है क्रूरता है। दरार है, सारे भेद मिटा सकती है। पुरूष और स्त्री का भेद कुछ यहां तो कम होता दिखाई दें। महिला जब लिखती है तभी चेहरों के दाग प्राकृतिक दिखते हैं, सहज और संभले हुए। पुरूष यदि मर्यादा टूटते कहीं दिखाता भी है तो उसे पुन: इसे जोड़ने की चिंता नहीं किन्तु स्त्री लेखन की चिंता सकारात्मक सृजनकारी है।”।

मन्नू भंडारी

तस्वीर साभारः Nai Dunia

हिंदी की प्रतिष्ठित लेखिका मन्नू भंडारी का उपन्यास ‘महाभोज’ काफी चर्चित है। अगर आप साहित्य में रूचि रखते है तो आपने इस उपन्यास का नाम पढ़ा या सुना ज़रूर होगा। मन्नू भंडारी ने कहानी, उपन्यास के अलावा तीन बेहतरीन नाटकों की भी रचना की है- ‘बिना दीवारों का घर’, ‘महाभोज’, और ‘उजली नगरी चतुर राजा’ इनके चर्चित नाटक है। ‘बिना दीवारों का घर’ मन्नू भंडारी का पहला नाटक है, इसका प्रकाशन 1965 में हुआ था। इस नाटक में तीन अंक है। नाटक में मध्यवर्गीय परिवार में स्त्री-पुरूष के टूटते सम्बन्धों को दिखाया गया है। यह समस्या एक परिवार की न होकर पूरे समाज की समस्या है। इस नाटक का पहली बार मंचन दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस में हुआ था।

‘महाभोज’ नाटक मन्नू भंडारी के स्वयं के उपन्यास महाभोज का नाट्य रूपांतरण है। महाभोज एक सामाजिक राजनीतिक नाटक है। इस नाटक में एक दलित नेता की शक्तिशाली गुंडों के द्वारा हत्या कर दी जाती है। वैसे तो यह नाटक कई दशक पहले लिखा गया है लेकिन वर्तमान राजनीतिक संदर्भों में यह नाटक आज भी प्रासंगिक है। महाभोज हिंदी साहित्य में एक अनोखी कृति है। जिसे उपन्यास और नाटक दोनों विधाओं में प्रकाशित किया गया। महाभोज नाटक की भूमिका में मन्नू भंडारी ने लिखा है- ‘महाभोज पहले उपन्यास और फिर नाटक के रूप में लिखना मेरे लिए बिल्कुल दो भिन्न रचनात्मक अनुभवों से गुजरना रहा है।’

मीराकांत

तस्वीर साभारः meerakant.com

हिंदी साहित्य में आधुनिक नाटककार के रूप में मीराकांत का विशेष स्थान है। मीराकांत ने साहित्य की अनेक विधाओं में रचना की लेकिन नाटक लिखने में उनकी अधिक रूचि रही। मीरा कांत के नाटकों के केन्द्र में स्त्री समस्याएं है किंतु मीराकांत ने नाटक लेखन के क्षेत्र में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज नहीं कराई है। ‘ईहामृग’, ‘नेपथ्य राग’, ‘कंधे पर बैठा था शाप’, ‘काली बर्फ’, ‘हुमा का उड़ जाने दो’, ‘अंत हाजिर हो’, ‘उत्तर-प्रश्न’ आदि उनके प्रमुख नाटक है।

मीरांकात द्वारा रचित ईहामृग नाटक में लगभग हजार वर्ष पहले के समय का चित्रण किया गया है। ईहा का अर्थ होता है इच्छा या मृगमरीचिका, जो पूरी नहीं होती और यदि हो भी जाये तो उस रूप में पूरी नही होती जैसा हम चाहते हैं। इस नाटक के लिए मीराकांत को 2003 में सेठ गोविन्द दास सम्मान से सम्मानित किया गया था। ‘नेपथ्य राग’ मीराकांत द्वारा रचित महत्वपूर्ण नाटक है। इस नाटक में पितृसत्तामक समाज में स्त्री की दयनीय स्थिति का चित्रण किया गया है। इस नाटक को साल 2003 में साहित्य कला परिषद द्वारा मोहन राकेश सम्मान से नवाज़ा गया था।

शांति मेहरोत्रा

शांति मेहरोत्रा बहुमुखी प्रतिभा की धनी साहित्यकार हैं। उन्होंने कविता, कहानी, नाटक और व्यंग्य काफी कुछ लिखा है। ‘एक और दिन’ और ‘ठहरा हुआ पानी’ इनके प्रसिद्ध नाटक है। इस नाटक में एक एकल परिवार की कहानी है। एकल परिवार होने के बावजूद भी परिवार में टकराहट पैदा होती है। नाटक में दिखाया गया है कि एक परिवार में पति और बच्चे हर छोटी-बड़ी बात के लिए घर की स्त्री को जिम्मेदार ठहराते हैं, जोकि वर्तमान समय की भी सच्चाई है।

मृदुला गर्ग

तस्वीर साभारः Outlook Hindi

हिंदी साहित्य जगत में कथाकार के रूप में विख्यात मृदुला गर्ग सशक्त नाटककार भी है। मृदुला गर्ग को साहित्य पढ़ने में विशेष रूचि थी। साहित्य के प्रति इनका बचपन से लगाव रहा है। यही वजह थी कि गर्ग ने बहुत ही कम उम्र में अधिक साहित्यकार से परिचित हो गई थी। मृदुला गर्ग ने नाटक लेखन के क्षेत्र में अपना जो स्थान बनाया इसके केंद्र में दो विषय रहे है, पहला स्त्री विषयक और दूसरा मध्यवर्गीय जीवन। उन्होंने ‘एक और अजनबी’, ‘जादू का कालीन’, ‘कितने कैदें’, ‘सामदाम दंड भेद’ नाटक लिखें।

नाट्य लेखन के विषय में मृदुला गर्ग कहती है, “इतना जरूरी है कि कुछ कहानियां लिखने के बाद सबसे पहले मैंने एक नाटक ही लिखा था। नाटक था एक और अजनबी। 1973 में नटरंग में प्रकाशित हुआ था। वह नाटक बतौर मैंने मज़े के लिए लिखा था। नाटक में प्रयोग की जितनी गुजांइश लगी, उस समय मुझे उपन्यास में नहीं लगी। बचपन से मुझे नाटक में अभिनय करने और नाटक देखने का शौक़ रहा था इसलिए भी सबसे पहले नाटक लिखने का मन बना होगा।”

हिंदी रंगमंच मे नाटकों के मंचन कम होने के विषय में मृदुला गर्ग कहती है, “नाटक के लोकप्रिय होने के पीछे उसके मंचन का बहुत बड़ा हाथ होता है। इसमें काफी पैसे की भी जरूरत होती है, जिसके अभाव में मंचन नहीं हो पाता। जो नाटककार स्वयं समृद्ध हैं और अपने नाट्यलेखों का मंचन करवाने में समर्थ हैं, वहीं हमें देखने को मिलते हैं। मेरे नाटकों का मंचन करने की कई बार बात हुई पर अर्थाभाव में पूरी नहीं हुई। मुझे सरकारी अनुदान लेना भी नहीं आता। वह मेरी कमी है। शायद और नाटककारों के साथ भी यह कठिनाई रहती हो। दूसरी बात मराठी-बंग्ला के विपरीत, हिंदी भाषा लोग, नाटक के बनिबस्त फिल्म देखना ज्यादा पसंद करते हैं, इसलिए नाटक लोकप्रिय नहीं होते है।”


­­­­­­­­­­­­ ­­­­­­­­­­­­­­सोर्सः

  1. Wikipedia
  2. किताब हिंदी के महिला नाटककार- लेखिका- आशा।

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