समाजकैंपस “यौन हिंसा के बावजूद मेरे लिए कॉलेज जाने का मतलब आज़ादी था”

“यौन हिंसा के बावजूद मेरे लिए कॉलेज जाने का मतलब आज़ादी था”

इतने कड़वे अनुभवों के बाद भी मुझे कॉलेज प्रिय था। वही एक जगह थी जहाँ हम इतनी सारी लड़कियां इकट्ठा होती थीं, खूब हँसी, मजाक होता था। पढ़ाई के साथ-साथ हम बहुत सी चीजें एक-दूसरे से सीखते हैं। दुनिया को हम रोज कुछ नया जानते, हमारे सुख-दुख वहाँ सामुदायिक हो गए थे।

कॉलेज कैंपस की बात सुनते ही आम तौर पर बड़े शहर का ख्याल आता है। लेकिन जब मैं यहाँ कॉलेज कैंपस की बात कर रही हूँ, तो मैं अपने गांव के कॉलेज कैंपस के अनुभव की बात कहना चाहती हूं। मैं कॉलेज जाने के लिए बहुत खुश रहती थी। मुझे कॉलेज जाना इसलिए भी बहुत पसंद था क्योंकि कॉलेज ही ऐसी जगह थी जहां मैं घर की चहारदीवारी से बाहर रह सकती थी। मुझे कैंपस की हरियाली से लगाव था। वैसे तो मैं गांव से ही थी, पर निर्माण कार्यों का असर गांव की हरियाली को भी नष्ट करता जा रहा है। लेकिन कॉलेज के कैम्पसों को आज भी हरा भरा रखा गया है। जब ध्यान से सोचती हूँ तो ये अनुभव होता है मेरा कॉलेज जाना अच्छे और बुरे अनुभव का समावेशन है। 

ग्रामीण लड़कियों का पढ़ना है चुनौतीपूर्ण

आज भी गांव में लड़कियों को रोजाना कॉलेज जाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। ऐसी कई लड़कियां मेरे ही परिवेश की थी जो घर में आर्थिक कारणों की वजह से नियमित स्कूल नहीं जा पाती थी। उनका एडिमिशन तो करा दिया जाता है पर पैसे कमाने और परिवार की मदद के लिए उन्हें बाहर निकलना पड़ता था। इनमें कई काम शामिल होते हैं। जैसे, खेतों में काम करना, ट्यूशन पढ़ाना या किसी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाना। मेरे ही साथ की कुछ लड़कियां जो कभी-कभी मेरे ही साथ कॉलेज जाया करती थीं, उनसे उनके कॉलेज रोज न जाने के कारण पूछने पर मुझे यही कारण पता चला।

कॉलेज जाने के रास्ते यौन हिंसा

हम लड़कियों की इसी तरह की और भी कठिनाइयाँ थी। हमें अक्सर कॉलेज के रास्ते में यौन हिंसा और कभी-कभी बहुत भद्दे टिप्पणियों का सामना करना पड़ता। घर से कॉलेज की दूरी लगभग पाँच किलोमीटर थी। कुछ दूर तक गाँव के खड़ंजे से जाना होता। फिर दूसरे गाँव की नहर पर सड़क थी और उसके बाद हाइवे पड़ता था। हाइवे की सड़क पर अक्सर मोटरसाइकिल वाले लड़कियों के साथ यौन हिंसा करते हुए निकल जाते। कभी-कभी अश्लील बातें कहते थे। ये सब याद करके अब भी मन दुख से भर जाता है। तब हम लड़कियाँ बहुत परेशान होतीं। लेकिन हमारी मजबूरी होती थी कि अगर हम घर पर शिकायत करेंगे, तो घरवाले हमारी पढ़ाई बंद करवा देंगे। इस पढ़ाई छूटने के डर से हम कभी घर पर शिकायत नहीं करते थे। 

ये सब याद करके अब भी मन दुःख से भर जाता है। तब हम लड़कियाँ बहुत परेशान होतीं लेकिन हमारी मजबूरी होती थी कि अगर हम घर पर शिकायत करेंगे, तो घरवाले हमारी पढ़ाई बंद करवा देंगे। इस पढ़ाई छूटने के डर से हम कभी घर पर शिकायत नहीं करते थे। 

स्कूल प्रसाशन का लड़कियों के पहनावे पर रोक

ये इंटर कॉलेज की बात है। उस स्कूल में लड़कियों का जींस पहनकर जाना स्कूल प्रशासन ने मना कर रखा था। उस स्कूल की मान्यता थी कि लड़कियों के जींस पहनकर आने से लड़के बिगड़ जाएंगे। या फिर कुछ इस तरह की धारणा कि वे पढ़ नहीं सकते क्योंकि उनका ध्यान लड़कियों पर होगा। वैसे तो लड़कियां स्कूल के यूनिफार्म सलवार-सूट में जाती थीं। कॉलेज में कोई कार्यक्रम होने पर लड़कियों के लिए अलग से उनके कपड़ों के बारे में कड़ी हिदायत के साथ नोटिस लगाई जाती थी कि कोई भी लड़की वेस्टर्न या फैशनेबल कपड़े नहीं पहन कर आ सकती। कॉलेज में नए एडमिशन होने पर थोड़े दिनों के लिए सिविल यूनिफार्म पहनकर आने की छूट दी जाती है। इसी दौरान एक बार उस कॉलेज में अनजाने में ही एक लड़की जींस पहनकर आ गई। उसके साथ कॉलेज के टीचरों के द्वारा अपराधी का व्यवहार किया जा रहा था। उसे कॉलेज के प्रार्थना में शामिल नहीं किया गया। प्रार्थना के बाद उसे क्लास में जाने नहीं दिया गया और उसे घर जाने के लिए भी नहीं कहा गया। उसे ग्राउंड में स्कूल के इंटरवल तक खड़ा रखा गया बाद में उसे घर भेज दिया गया। उसे लिखकर माफी मांगनी पड़ी तब उसे घर जाने दिया गया।

उस स्कूल में लड़कियों का जींस पहनकर जाना स्कूल प्रशासन ने मना कर रखा था। उस स्कूल की मान्यता थी कि लड़कियों के जींस पहनकर आने से लड़के बिगड़ जाएंगे। या फिर कुछ इस तरह की धारणा कि वे पढ़ नहीं सकते क्योंकि उनका ध्यान लड़कियों पर होगा।

शैक्षिक संस्थानों में की जा रही है विक्टिम बलेमिंग

उसे ये माफीनामा स्कूल के प्रधानाचार्य के नाम को संबोधित करके लिखना था। उसके साथ कोई शारीरिक हिंसा मतलब मार-पिटाई नहीं की गई जिससे कोई कह नहीं सकता था कि उसे कोई सजा मिली है। पर शारीरिक हिंसा के बजाय उसे मानसिक तौर पर बहुत अधिक प्रताड़ित किया गया था। जिस भाषा में उससे बात की गई वह अश्लील थी। उसे शर्मिंदा करने के लिए ऐसी भाषा का प्रयोग किया गया था, जिससे उसे एहसास हो कि जींस पहनकर आना उसकी अंग प्रदर्शन की इच्छा थी। कॉलेज में अक्सर ये होता है कि कॉलेज के साइकिल स्टैंड पर लड़के-लड़कियों की साइकिल गिरा देते, लड़कियाँ लड़कों को कुछ कह नहीं पातीं, चपरासी से शिकायत करतीं तो वो उल्टा लड़कियों को डाँट पड़ती कि घर में रहकर चूल्हा-बर्तन नहीं करती, कॉलेज पढ़ने चली आती हैं जैसे कलेक्टर बन जाएंगी। चपरासी में ये भावना कहाँ से आती थी लड़कियों के लिए कि उन्हें घर में रहना चाहिए, पढ़ाई नहीं करना चाहिए। दरअसल ये उस पूरे समाज की सोच थी। 

कॉलेज मेरे लिए है आज़ादी की जगह

इतने कड़वे अनुभवों के बाद भी मुझे कॉलेज प्रिय था। वही एक जगह थी जहाँ हम इतनी सारी लड़कियां इकट्ठा होती थीं, खूब हँसी- मजाक होता था। पढ़ाई के साथ-साथ हम बहुत सी चीजें एक-दूसरे से सीखते हैं। दुनिया को हम रोज कुछ नया जानते, हमारे सुख-दुख वहाँ सामुदायिक हो गए थे। एक-दूसरे की उलझनों, तकलीफ़ों को कहते-सुनते थे, कोई हल भी खोजते थे। हमारे दुःख-सुख साझा करते। हम लंच हमेशा बांटकर खाते, सबके टिफिन बॉक्स चेक किये जाते और जो अच्छा लगता सब मिलकर खाते। कभी-कभी हम लड़कियां एक-दूसरे के घर जाते, हमारे घर अलग-अलग गांवों में होते, इस तरह कॉलेज जाने के कारण ही हम नया गाँव और परिवार, खेत-खलिहान, बाग बागीचे देखते। ये एक बहुत बड़ी आज़ादी का जीवन हम कॉलेज के कारण ही जी पाते थे । परीक्षा के समय हम साथ-साथ तैयारी करते कौन कितनी देर तक पढ़ाई करता है। बात करते, प्रश्नों पर खूब बहस करते, पढ़ाई में एक-दूसरे से कम्पटीशन करते। अब शहर आ गयी हूँ पढ़ाई करने तो वो दुनिया याद आती है। ऐसा लगता है कि कुछ दिक्कतें आती रही थीं फिर भी वो जीवन ज्यादा सहज और सुंदर था। कुल मिलाकर मेरे कॉलेज के कैंपस का अनुभव खट्टी-मीठी यादों का अनुभव है, जहाँ पढ़ाई के साथ-साथ जीवन से जुड़ी बहुत सी बातें सीखी और जानी। मनुष्य जीवन और पर्यावरण जीवन को बेहतर कैसे बनाया जाए इसकी भी शिक्षा मुझे मिली।

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