आज पहले से कहीं ज्यादा वैश्विक स्तर पर महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता की मांग हो रही है। कई महिलाएं खुद काम भी कर रही हैं। महिलाओं के मामले में कई ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें आज भी महत्व नहीं दिया जाता। शिक्षा, स्वास्थ्य या रोजगार कुछ ऐसे ही मामले हैं जहां सिर्फ महिला की नहीं बल्कि समुदाय और परिवार की भी भूमिका होती है। स्वास्थ्य सेवा संबंधी निर्णय लेने में महिलाओं की स्वायत्तता के संबंध में अभी भी बहुत असमानताएं और रूढ़ियां हैं। माना जाता है कि महिलाओं की स्वायत्तता उनके स्वास्थ्य संबंधी परिणामों को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण है। घरों में महिलाओं का सबसे आखिर में खाना, पीरियड्स में स्वास्थ्य की अनदेखी ऐसे कई स्वास्थ्य समस्याओं पर महिलाओं का फैसला लेने का अधिकार नहीं होता या सीमित अधिकार होता है। महिलाओं का अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं का उचित उपयोग करने की क्षमता, कुछ हद तक उनकी निर्णय लेने की स्वायत्तता पर निर्भर होती है। समाज में विशेष रूप से विकासशील या कम आय वाले देशों में, महिलाओं की स्थिति अक्सर उनकी स्वायत्तता और अपने जीवन के कई पहलुओं के बारे में निर्णय लेने की क्षमता को सीमित करती है।
ऐसे समाज में अभी भी मजबूत सामाजिक संरचनाएं हैं, जो पुरुषों और महिलाओं की भूमिकाओं को कट्टरता से परिभाषित करती हैं, जो आमतौर पर धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं से जुड़ी है। ये बाधाएं अक्सर उन परिस्थितियों को जटिल बनाती है, और दायरे निश्चित करती है जिनके तहत महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के संबंध में निर्णय लेने की छूट नहीं होती है या बहुत कम होती है। स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च करने की क्षमता और आज़ादी न सिर्फ महिलाओं के रोजगार से जुड़ा है, बल्कि शैक्षिक, पारिवारिक और सामाजिक स्थिति से भी जुड़ा है। हालांकि साल 2019-21 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के डेटा के अनुसार वर्तमान में विवाहित भारतीय महिलाओं में से लगभग 88.7 फीसद अपने लिए स्वास्थ्य देखभाल के बारे में प्रमुख घरेलू निर्णयों में भाग लेती हैं, या बड़ी घरेलू खरीदारी करती हैं। एनएचएफएस-4 में यह 84 फीसद था। लेकिन यह स्वास्थ्य से जुड़े किस तरह के फैसले हैं, यह रिपोर्ट से साफ नहीं है। वहीं जिन महिलाओं के पास बैंक खाता है, जिसका उपयोग वे स्वयं करती हैं, उनके डेटा में एनएचएफएस-4 से 5 तक 35.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है।
स्वास्थ्य से जुड़े अहम फैसलों में महिलाओं की स्वायत्तता
स्वास्थ्य देखभाल संबंधी निर्णय लेने में महिलाओं की स्वायत्तता पर शोध मानवाधिकारों और स्वास्थ्य देखभाल परिणामों दोनों के संदर्भ में आज इसे समझने और इसपर बातचीत करने को महत्व दिया जा रहा है। किसी की स्वायत्तता को व्यक्ति की अपनी व्यक्तिगत चिंताओं से संबंधित मामलों पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की तकनीकी, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक क्षमता के रूप में परिभाषित किया गया है। स्वास्थ्य देखभाल निर्णय लेने में स्वायत्तता, अपने और खुद के ऊपर आश्रित लोगों के जीवन के मामलों में प्रासंगिक जानकारी और स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच रखते हुए बिना प्रतिबंध तरीके से काम करने या फैसला लेने की क्षमता और स्वतंत्रता है। महिलाओं की स्वायत्तता के आयाम और उत्तर भारतीय शहर में मातृत्व स्वास्थ्य देखभाल उपयोग पर प्रभाव पर एक शोध के मुताबिक लगभग 60 फीसद महिलाओं के पास कमाई या परिवार के सदस्यों से निरंतर समर्थन के माध्यम से पैसों तक बिना प्रतिबंध पहुंच थी। इनमें से एक छोटा हिस्सा कुछ हद तक स्वतंत्र रूप से पैसा खर्च करने में सक्षम थीं। लेकिन निर्णय लेने के मामले में अधिकांश महिलाओं यानि 81 फीसद ने घर के भीतर छोटे निर्णय लिए। वहीं केवल एक-चौथाई ने कहा कि उन्होंने घर छोड़ने से पहले अनुमति नहीं मांगी थी।
‘स्वायत्तता’ से जुड़ी है शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता
महिलाओं की ‘स्वायत्तता’ का संबंध उनकी स्वतंत्र रूप से काम करने की क्षमता से भी है। उदाहरण के लिए, महिलाओं की स्वास्थ्य सुविधाओं या बाज़ार जैसी जगहों पर जाने की क्षमता, गर्भनिरोधक उपयोग में उनका निर्णय या घरेलू खरीदारी के संबंध में अकेले और किसी की अनुमति के बिना जाने और निर्णय लेने की क्षमता उनकी स्वायत्तता बताती है। महिलाएं अपने लिए निर्णय लेती हैं या नहीं, इस बात का संबंध उसके घरेलू स्थिति से भी है। मेरी सहेली अनीता (नाम बदला हुआ) बिहार के मुंगेर जिले में रहती है। बहुत कम उम्र में शादी और उसके बाद गर्भवती होने से उसे शारीरिक समस्याएं हो रही थी। जिले के स्त्री विशेषज्ञ को दिखाने के मामले में उसकी सास और पति ने यह निर्णय लिया था। इसके बाद उस इलाज से तबीयत बिगड़ने के बावजूद, वह दोबारा किसी दूसरे डॉक्टर के पास तब तक न जा सकी, जबतक कि जिले के डॉक्टर ने यह नहीं कह दिया कि वे अब कुछ नहीं कर सकते। अनीता कामकाजी नहीं हैं। उसकी शादी स्नातक में अड्मिशन होते ही करा दी गई थी। इसके बाद उसने बड़ी मुश्किल से स्नातक की पढ़ाई पूरी की।
स्प्रिंगर नेचर ने मुंबई के शहरी बस्तियों में गर्भावस्था के दौरान और बाद में महिलाओं की स्वास्थ्य देखभाल संबंधी निर्णय लेने से जुड़े कारक पर शोध किया। इस शोध मुताबिक लगभग दो-तिहाई महिलाओं ने प्रसवकालीन देखभाल के बारे में खुद या अपने पति के साथ संयुक्त रूप से निर्णय लिया, जिससे लगभग एक-तिहाई महिलाएं निर्णय लेने की प्रक्रिया से बाहर हो गईं। इसमें महिलाओं के उम्र, माध्यमिक और उच्च शिक्षा और वैतनिक रोज़गार के साथ उनकी निर्णय लेने में भागीदारी बढ़ी, लेकिन शादी की उम्र और घर के आकार के साथ इसमें कमी आई। एक शोध के अनुसार गृहणियों के मुकाबले कामकाजी महिलाओं की स्वास्थ्य देखभाल संबंधी निर्णय लेने में भाग लेने की अधिक संभावना थी, जबकि बेरोजगार महिलाओं की स्वास्थ्य देखभाल संबंधी निर्णय लेने में स्वायत्त होने की संभावना 45.1 फीसद कम थी।
महिलाओं की वैवाहिक स्थिति और स्वायत्तता
भारतीय समाज में महिलाओं के लिए बनाए गए नियम उसके निर्णय लेने की आज़ादी के खिलाफ है। हालांकि कई मामलों जैसे बच्चे की परवरिश में माँओं की सुनी जाती है। लेकिन अक्सर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अमूमन माँओं पर ही छोटे बच्चे का दायित्व होता है। पर पैसों से जुड़े मामले जैसे बच्चे का स्कूल, घर का खाना और चिकित्सा के लिए डॉक्टर के चुनाव में महिलाओं की भागीदारी या तो होती ही नहीं या बहुत कम होती है। शादी भी महिलाओं के स्वायत्तता के होने या न होने में एक कारक के तरह काम करती है। सास-ससुर और ससुराल वालों के साथ एक ही घर में रहने से महिलाओं की स्वायत्तता दो तरह से कम हो सकती है।
चूंकि महिलाएं सास-ससुर के अधिकार के अधीन हैं, इसलिए घर के भीतर उनका पारस्परिक नियंत्रण सीधे तौर पर सीमित होता है। दूसरा, चूंकि आम तौर पर सास महिलाओं के जन्म के रिश्तेदारों के साथ संपर्क में मध्यस्थता करती हैं, इन महिलाओं को माता-पिता और भाई-बहनों से समर्थन का कम अवसर मिलता है। ऐसे में स्वास्थ्य से जुड़े मामलों में वह इनसे न ही चर्चा कर सकती है, न ही ये लोग निर्णय लेने में कोई भूमिका निभा सकते हैं। भले कई परिवारों में महिलाओं के गंभीर रूप से बीमार होने से उन्हें चिकित्सा के लिए ले जाया जाता है। लेकिन वे किस अस्पताल जाएंगी, या बीमारी के किस चरण में जाएंगी, किस डॉक्टर को दिखाएंगी यह मूल रूप से परिवार या पति का फैसला होता है।
निर्णय लेने की स्वायत्तता और महिलाओं की स्वास्थ्य देखभाल
स्वास्थ्य देखभाल की मांग और उपयोग से लेकर उपचार के विकल्पों में से चुनने तक, स्वास्थ्य देखभाल की विभिन्न स्थिति में निर्णय लेने के लिए स्वायत्तता को आवश्यक माना जाता है। साक्ष्य बताते हैं कि विकासशील या कम आय वाले देशों में महिलाओं को अक्सर अपने स्वास्थ्य संबंधी निर्णयों पर सीमित स्वायत्तता और नियंत्रण प्राप्त होता है। नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसन में विकासशील देशों में महिलाओं की स्वायत्तता को मापने के लिए स्वास्थ्य देखभाल के संबंध में महिलाओं की स्वायत्तता और निर्णय लेने को प्रभावित करने वाले सामाजिक-जनसांख्यिकीय कारकों की पहचान कर एक रिपोर्ट जारी की गई। इस रिपोर्ट के अनुसार युवा महिलाओं, बेरोजगार महिलाओं और कम शिक्षा प्राप्त लोगों की स्वास्थ्य एजेंसी कम होने की संभावना है।
सरकार और नागरिक समाज की भूमिका
किसी भी सरकारी योजना या निजी बीमा कंपनियों के विज्ञापनों को देखें, तो यह नजर आता है कि महिलाएं कहीं भी स्वास्थ्य संबंधी फैसले खुद लेने में सक्षम नहीं हैंऔर न ही इन्हें उस फैसले में शामिल करने के इरादे से ये योजनाएं बनाई गई हैं। इनके जीवन की खुशहाली के लिए फैसले या तो परिवार कर रही है या फिर सरकार। समस्या यह भी है कि यह महिलाओं को लाभ पाने वाली के तरह देखा जाता है, न कि घरों में फैसले करने वालों के तरह। इसलिए चुनावों से पहले भी महिलाओं से जुड़े कल्याणकारी योजनाएं घोषित की जाती है जहां महिलाओं की स्वायत्तता के कोई मायने नहीं रखती। महिलाओं को शिक्षित और सशक्त बनाकर उनकी स्वायत्तता को बढ़ावा देने की जरूरत है ताकि वे स्वास्थ्य के मामले निर्णय के लिए किसी और के फैसले पर निर्भर न रहे। महिलाओं का स्वास्थ्य में नुकसान न हो इसके लिए इस गैप को कम करने और सांस्कृतिक, सामाजिक और नीतिगत बदलाव करने की जरूरत है।