समाजख़बर गुजरात उच्च न्यायालय का फैसला ‘मैरिटल’ रेप के मामले में उम्मीद की किरण है

गुजरात उच्च न्यायालय का फैसला ‘मैरिटल’ रेप के मामले में उम्मीद की किरण है

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चलता है कि 18-49 आयु वर्ग की विवाहित महिलाओं में से, जिन्होंने कभी यौन हिंसा का अनुभव किया है, उनमें से 83 फीसद अपने वर्तमान पति को अपराधी बताती हैं, और 13 फीसद पूर्व पति को अपराधी बताती हैं।

हाल ही में गुजरात उच्च न्यायालय ने कहा है कि बलात्कार एक गंभीर अपराध है, भले ही यह सर्वाइवर के पति ने ही क्यों न किया गया हो। साथ ही न्यायालय ने दुनिया भर के कई देशों का उदाहरण दिया जहां वैवाहिक बलात्कार को कानूनी अपराध माना गया है। न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा पर चुप्पी को तोड़ने की जरूरत है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की वास्तविक घटनाएं संभवतः आंकड़ों से कहीं अधिक हैं और महिलाओं को विरोध का सामना करना पड़ सकता है। उन्हें ऐसे वातावरण में रहना पड़ सकता है जहां उन्हें हिंसा का शिकार होना पड़ता है। 8 दिसंबर के एक फैसले में, न्यायमूर्ति दिव्येश जोशी ने एक महिला की जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिस पर अपने बेटे का अपनी पत्नी के खिलाफ कथित रूप से यौन उत्पीड़न के लिए उकसाने का आरोप था। न्यायमूर्ति जोशी ने आदेश में कहा कि पचास अमेरिकी राज्यों, तीन ऑस्ट्रेलियाई राज्यों, न्यूजीलैंड, कनाडा, इज़राइल, फ्रांस, स्वीडन, डेनमार्क, नॉर्वे, सोवियत संघ, पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया जैसे कई अन्य राष्ट्र में मैरिटल रेप कानूनी अपराध है।

अपराध को ‘अपराध’ की तरह देखने की जरूरत

मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ने कहा कि यूनाइटेड किंगडम में, जो काफी हद तक भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) से लिया गया है, ने भी 1991 के एक फैसले के अनुसार (भारतीय दंड संहिता की धारा 376 से) अपवाद को हटा दिया है। इसलिए, तत्कालीन शासकों द्वारा जो संहिता बनाई गई थी, उसने पतियों को दिए जाने वाले अपवाद को ही समाप्त कर दिया है। न्यायमूर्ति ने आगे कहा कि किसी महिला के साथ यौन हिंसा या बलात्कार करने वाला पुरुष आईपीसी की धारा 376 के तहत सजा का पात्र है। न्यायमूर्ति जोशी ने कहा कि किसी महिला पर यौन हिंसा या बलात्कार के अधिकांश मामलों में, सामान्य रूप से पाया जाता है कि यदि पुरुष पति है, और दूसरे पुरुष के समान ही ऐसे अपराध करता है, तो उसे छूट दी जाती है। न्यायमूर्ति ने कहा कि उनके विचार में इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। कोई भी आदमी तो ‘आदमी’ है, हिंसा एक हिंसा है; बलात्कार तो बलात्कार है, चाहे वह किसी पुरुष ने किया गया हो, या ‘पति’ ने किया गया हो, किसी महिला ने किया गया हो, या फिर ‘पत्नी’ का किया गया हो। न्यायालय के आदेश में कहा गया है कि संविधान एक महिला को एक पुरुष के बराबर मानता है और विवाह को समान लोगों का एक संगठन मानता है। 

कोर्ट ने यह नोट किया कि लैंगिक हिंसा अक्सर चुप्पी की संस्कृति में छिपी रहती है, और पुरुष-प्रधान समाज में महिलाओं के लिए यौन हिंसा की रिपोर्ट करने की उच्च लागत पर चर्चा की गई। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कारणों और कारकों में पुरुषों और महिलाओं के बीच स्थापित असमान पावर डाइनैमिक्स शामिल हैं।

लैंगिक हिंसा पर चुप्पी है खतरनाक

न्यायालय ने यह टिप्पणी की कि महिलाओं पर हिंसा और दुर्व्यवहार के मामले में एक ऐसा माहौल तैयार किया हुआ है जो पीड़ितों को चुप करा देता है और उनकी गरिमा और खुद के महत्व को कमजोर करता है। कोर्ट ने यह नोट किया कि लैंगिक हिंसा अक्सर चुप्पी की संस्कृति में छिपी रहती है, और पुरुष-प्रधान समाज में महिलाओं के लिए यौन हिंसा की रिपोर्ट करने की उच्च लागत पर चर्चा की गई। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कारणों और कारकों में पुरुषों और महिलाओं के बीच स्थापित असमान पावर डाइनैमिक्स शामिल हैं। यह देखा गया है कि भारत में, अपराधी अक्सर महिला के परिचित होते हैं। ऐसे अपराधों की रिपोर्ट करने की सामाजिक और आर्थिक ‘लागत’ अधिक होती है। परिवार पर सामान्य आर्थिक निर्भरता और सामाजिक बहिष्कार का डर महिलाओं को किसी भी प्रकार की यौन हिंसा, दुर्व्यवहार या घृणित व्यवहार की रिपोर्ट करने के लिए हतोत्साहित करता है। 

क्यों मैरिटल रेप पर होनी चाहिए बातचीत

मैरिटल रेप पूरे भारत में आम है। हालिया राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चलता है कि 18-49 आयु वर्ग की विवाहित महिलाओं में से, जिन्होंने कभी यौन हिंसा का अनुभव किया है, उनमें से 83 फीसद अपने वर्तमान पति को अपराधी बताती हैं, और 13 फीसद पूर्व पति को अपराधी बताती हैं। सामाजिक मानदंडों के मद्देनजर कहा जा सकता है कि भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की वास्तविक घटनाएं आंकड़ों से कहीं अधिक हैं। वहीं महिलाओं को अपने अंतरंग साथी के खिलाफ हिंसा की रिपोर्ट पर विरोध का भी सामना करना पड़ सकता है और उन्हें ऐसे वातावरण में रहना पड़ सकता है जहां वे किन्हीं लोगों के अधीन रखी गई हों। अदालत ने कहा कि इस चुप्पी को तोड़ने की जरूरत है। ऐसा करने में, महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने और उसका मुकाबला करने में पुरुषों का शायद महिलाओं से भी अधिक कर्तव्य और भूमिका है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चलता है कि 18-49 आयु वर्ग की विवाहित महिलाओं में से, जिन्होंने कभी यौन हिंसा का अनुभव किया है, उनमें से 83 फीसद अपने वर्तमान पति को अपराधी बताती हैं, और 13 फीसद पूर्व पति को अपराधी बताती हैं।

क्या है मामला

न्यायमूर्ति ने एक महिला द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिस पर उसके पति और बेटे के साथ बलात्कार, क्रूरता और आपराधिक धमकी के आरोप में मामला दर्ज किया गया था। उन पर सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत भी मामला दर्ज किया गया था। महिला की बहू ने अपने पति और सास-ससुर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी और उन पर उसके अंतरंग पलों का वीडियो और तस्वीरें रिकॉर्ड करने का आरोप लगाया था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि कथित तौर पर उसके ससुर ने उसके पति को पैसे कमाने के लिए उनके अंतरंग पलों को अपने मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड करने और उन्हें एक वेबसाइट पर अपलोड करने के लिए प्रोत्साहित किया। महिला के अनुसार शादी के कुछ समय बाद, ससुर ने उसके पति को अपनी पत्नी की नग्न तस्वीरें और वीडियो रिकॉर्ड करने के लिए उकसाना शुरू कर दिया ताकि वे इसे विशेष वेबसाइट पर अपलोड कर सकें और फिर पैसा कमा सकें।

तस्वीर साभारः फेमिनिज़म इन इंडिया

इसके बाद कथित रूप से पति ने अपने मोबाइल में वीडियो रिकॉर्ड करना शुरू कर दिया और उसे उसके ससुर के मोबाइल पर भेज दिया। इसकी जानकारी महिला की सास को भी थी। महिला के अनुसार, चूंकि उसके वैवाहिक परिवार को अपने होटल को अन्य साझेदारों द्वारा बेचे जाने से रोकने के लिए पैसे की सख्त जरूरत थी, इसलिए उन्होंने महिला के वीडियो को अश्लील वेबसाइट पर अपलोड करने का फैसला किया, ताकि उन्हें पैसे मिले। महिला का यह भी आरोप है कि जब महिला घर पर अकेली रहती थी, तो उसके ससुर उसके साथ यौन हिंसा करते थे। आरोप के अनुसार महिला के पति ने उससे ऐसे काम करवाए जो कथित रूप से अप्राकृतिक थे।

यौन उत्पीड़न में सेक्शुअल या भद्दे किस्से या चुटकुले साझा करना, अवांछित स्पर्श, जिसमें किसी अन्य व्यक्ति को चुटकी काटना, थपथपाना, रगड़ना या जानबूझकर परेशान करना, किसी व्यक्ति से बार-बार डेट के लिए पूछना या सेक्स के लिए पूछना, कपड़े या शरीर के अंगों के बारे में सेक्शुअल टिप्पणियां करना शामिल है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यौन हिंसा क्या है

संयुक्त राष्ट्र संगठन ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा को ‘लैंगिक हिंसा’ के किसी भी कार्य के रूप में परिभाषित किया है, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं को शारीरिक, यौन या मनोवैज्ञानिक नुकसान या पीड़ा होने की संभावना है, जिसमें ऐसे कृत्यों की धमकियां, जबरदस्ती या मनमानी शामिल है। साथ ही स्वतंत्रता से वंचित करना, चाहे वह सार्वजनिक या निजी जीवन में हो, महिलाओं के खिलाफ आक्रामक व्यवहार का प्रभाव, जो कानून शारीरिक, मौखिक या अन्य कृत्यों को अपराध मानता है जो उन्हें धमकी देते हैं या गंभीर असुविधा देते हैं, उनकी गरिमा, आत्म-सम्मान और सम्मान को कम करते हैं, उत्तरजीवी को चुप कराना या वश में करना है। यौन उत्पीड़न में सेक्शुअल या भद्दे किस्से या चुटकुले साझा करना, अवांछित स्पर्श, जिसमें किसी अन्य व्यक्ति को चुटकी काटना, थपथपाना, रगड़ना या जानबूझकर परेशान करना, किसी व्यक्ति से बार-बार डेट के लिए पूछना या सेक्स के लिए पूछना, कपड़े या शरीर के अंगों के बारे में सेक्शुअल टिप्पणियां करना शामिल है। अफसोस की बात है कि इस तरह के अपराधों को न केवल तुच्छ या सामान्यीकृत किया जाता है, बल्कि इन्हें हमारे फिल्मों के जरिए रोमांटिक भी बनाया जाता है। सिनेमा जैसी लोकप्रिय माध्यम से कहानियों के जरिए लड़की का पीछा करना, न मतलब हाँ समझना जैसी चीजों को प्यार बताया जाता है। ये दृष्टिकोण कि ‘बॉय्ज़ विल बी बॉय्ज़’ को सामान्य बताकर यौन हिंसा को बढ़ावा देना, सर्वाइवर को चुप कराना, उनसे आरोपी को माफ करने की उम्मीद रखना, न सिर्फ समाज और सर्वाइवर के लिए बल्कि सभी के लिए हानिकारक है।

समाज में बदलाव की आवश्यकता

महिलाओं को एक ‘सब्जेक्ट’ के तौर पर देखने वाली पितृसत्तात्मक सोच को भी बदलने की जरूरत है। इस सोच के तहत महिलाओं के बुनियादी मानवधिकारों का हनन होता है। हाल के महीनों में,  भारतीय अदालतों ने उन याचिकाओं पर सुनवाई की है, जिन्होंने बलात्कार के अपराध के लिए मौजूदा ‘मैरिटल रेप’ पर छूट को चुनौती दी है। आने वाले महीनों में उच्चतम न्यायालय से ‘मैरिटल रेप’ को अपराध घोषित किये जाने वाले फैसले के आने की उम्मीद है, जो भारत को उन लगभग 150 देशों की कतार में ला सकती है, जिन्होंने पहले से ही मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर दिया है। कोई क़ानून न होने और उच्चतम न्यायालय के फैसले न होने की वजह से भारतीय अदालतें मैरिटल रेप के विषय पर बंटी हुई है। उच्चतम न्यायालय से सकारात्मक फैसला आने से के बाद ही हम सभी अदालतों से मैरिटल रेप को ‘अपराध’ मानने की उम्मीद कर सकते हैं। लेकिन इससे भी पहले जरूरी है कि हम खुद मैरिटल रेप को अपराध माने और सिर्फ पति होने के कारण रेप जैसे अपराध के लिए दलील न दें।

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