समाजख़बर पीएम आवास योजना के दावों के बीच क्या सचमुच महिलाएं सशक्त हो रही हैं?

पीएम आवास योजना के दावों के बीच क्या सचमुच महिलाएं सशक्त हो रही हैं?

पीएमएवाई-ग्रामीण के आवेदन के लिए, आधार, आधार का उपयोग करने के लिए लाभार्थी की ओर से सहमति का दस्तावेज, अगर आवेदक मनरेगा पंजीकृत है, तो उसका जॉब कार्ड नंबर, लाभार्थी के स्वच्छ भारत मिशन योजना की संख्या, बैंक खाते का विवरण जरूरी है।

रोटी, कपड़ा और मकान। ये तीन बुनियादी जरूरतों के विषय में हम सबने बचपन से सुना है। लेकिन आज़ादी के 76 सालों बाद भी ऐसे गाँव हैं, जहां न लोगों के पास अच्छा रोजगार है, न रहने का मकान और न पौष्टिक और पर्याप्त खाने के पैसे और संसाधन तक पहुंच। आवास के मुद्दे को ध्यान में रखते हुए साल 2015-16 से सरकार ने प्रधान मंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) की शुरुआत की और इसके तहत ग्रामीण भारत में विशेषकर महिलाओं के सशक्तिकरण का दावा किया। पीएमएवाई केंद्र सरकार की एक आवास योजना है, जिसका उद्देश्य शहरी और ग्रामीण गरीबों को किफायती आवास उपलब्ध कराना है।

पीएमएवाई-ग्रामीण ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत एक ग्रामीण आवास योजना है, और पीएमएवाई-शहरी आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत है। पिछले हफ्ते केंद्र सरकार ने बजट पेश करते हुए एक बार फिर पीएम आवास योजना पर ज़ोर दिया। इस साल के अंतरिम बजट में प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए 80,671 करोड़ रुपये का दूसरा सबसे बड़ा आवंटन किया गया, जो साल 2023-24 के संशोधित अनुमान से 49.1 फीसद अधिक है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि परिवारों की संख्या में वृद्धि से उत्पन्न होने वाली आवश्यकता को पूरा करने के लिए अगले पांच वर्षों में दो करोड़ और घर बनाए जाएंगे।

पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने पीएम आवास योजना के माध्यम से शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के निम्न और वंचित समुदायों के लोगों के लिए आवास सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया है। लेकिन दिखने और सुनने में महत्वाकांक्षी लगने वाले इस योजना के लिए कुछ निश्चित कारक हैं। वित्त मंत्री ने इससे महिलाओं के सशक्तिकरण का दावा किया है। पीएमएवाई ग्रामीण वेबसाईट के अनुसार, इस योजना के तहत लगभग 29.4 मिलियन घर स्वीकृत किए गए थे, जिनमें से 1 फरवरी 2024 तक 25.5 मिलियन घर पूरे हो गए थे। यह योजना 2022 तक सभी को आवास उपलब्ध कराने के लक्ष्य के साथ 2015-16 में शुरू की गई थी। बाद में समय सीमा मार्च 2024 तक बढ़ा दी गई थी।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार ऐसी महिलाएं जो घर और/या जमीन की (अकेली या दूसरों के साथ संयुक्त रूप से) मालिक हैं, उनका प्रतिशत मात्र 43.3 फीसद है।

क्या महिलाओं को मिल रहा है घर

पीएमएवाई-जी दिशानिर्देशों में यह प्रावधान है कि घर का आवंटन विधवा/अविवाहित/अलग रह रहे व्यक्ति के मामले को छोड़कर, पति और पत्नी के नाम पर संयुक्त रूप से किया जाएगा। आवास योजना के तहत परिवार की महिला मुखिया को घर की मालिक या सह-मालिक होना चाहिए। राज्य पूरी तरह से महिला के नाम पर घर आवंटित करने का विकल्प भी चुन सकता है। इसके अलावा, पीएमएवाई-जी के तहत सभी घरों में मंजूरी विवरण/स्वामित्व विवरण (या तो पूरी तरह से या संयुक्त स्वामित्व में) में परिवार की महिला सदस्यों के नाम शामिल होने चाहिए। महिला सदस्य या सदस्यों को मंजूरी पत्रों में द्वितीय स्वामी या मालिकाना के रूप में जोड़ा जा सकता है, जहां पुरुष सदस्य के नाम पर प्रारंभिक मंजूरी पहले ही दी जा चुकी है।

तस्वीर साभार: The Print

इतने दिशानिर्देश के बावजूद सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2023 के जुलाई तक कुल 2.41 करोड़ घरों के पूरा हो चुके घरों में 64,31,304 पूर्ण घर पूरी तरह से महिलाओं के नाम पर हैं। वहीं 1,02,52,451 संयुक्त रूप से पत्नी और पति के नाम पर हैं, जो इस योजना के तहत पूरे हुए कुल घरों का 69.08 फीसद है। वहीं राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार ऐसी महिलाएं जो घर और/या जमीन की (अकेली या दूसरों के साथ संयुक्त रूप से) मालिक हैं, उनका प्रतिशत मात्र 43.3 फीसद है। वहीं यह ग्रामीण इलाकों के लिए 45.7 फीसद है और शहरी इलाकों के लिए 38.3 फीसद है।

‘सभी के लिए आवास’ योजना की घोषणा मूल रूप से 2015-16 के बजट भाषण में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने की थी, जिसमें 2022 तक शहरी क्षेत्रों में 20 मिलियन घर और ग्रामीण क्षेत्रों में 40 मिलियन घर बनाने का लक्ष्य था। बाद में साल 2016 में ग्रामीण क्षेत्रों में 29.5 मिलियन घरों के लक्ष्य के साथ इसे बदला गया था।

बजट आवंटन और लक्ष्य में बदलाव के बावजूद कमी   

साल 2016-17 के बाद से, सरकार की प्रमुख आवास योजना, प्रधान मंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) का बजट 2016-17 के संशोधित अनुमानों में 20,936 करोड़ रुपये से 280 फीसद बढ़कर 2023-24 में 79,590 करोड़ रुपये था। फिर भी, इस योजना के तहत बनाए जाने वाले घरों की संख्या का लक्ष्य अभी तक पूरा नहीं हुआ है। ‘सभी के लिए आवास’ योजना की घोषणा मूल रूप से 2015-16 के बजट भाषण में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने की थी, जिसमें 2022 तक शहरी क्षेत्रों में 20 मिलियन घर और ग्रामीण क्षेत्रों में 40 मिलियन घर बनाने का लक्ष्य था। बाद में साल 2016 में ग्रामीण क्षेत्रों में 29.5 मिलियन घरों के लक्ष्य के साथ इसे बदला गया था। साल 2023-24 के लिए आवास योजना के बजट अनुमान में पीएमएवाई-शहरी के लिए 25,103 करोड़ रुपये और पीएमएवाई-ग्रामीण के लिए 54,487 करोड़ रुपये का आवंटित किए गए थे। आवास योजना के लिए पूरे आवंटन में वृद्धि के बावजूद, 2023-24 के लिए पीएमएवाई-शहरी बजट अनुमान 2022-23 से 10 फीसद कम रखा गया। पीएमएवाई-ग्रामीण परिव्यय में 172 फीसद की वृद्धि हुई।

पीएमएवाई-ग्रामीण के आवेदन के लिए, आधार, आधार का उपयोग करने के लिए लाभार्थी की ओर से सहमति का दस्तावेज, अगर आवेदक मनरेगा पंजीकृत है, तो उसका जॉब कार्ड नंबर, लाभार्थी के स्वच्छ भारत मिशन योजना की संख्या, बैंक खाते का विवरण जरूरी है। जहां आज ग्रामीण भारत डिजिटल सेवाओं में पिछड़ रहा है, ऐसे में महिलाओं के लिए वे विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है।

ग्रामीण क्षेत्रों में क्यों है सही पात्र नागरिक खोजना मुश्किल  

ग्रामीण विकास और पंचायती राज की स्थायी समिति के एक साल 2021-22 की रिपोर्ट अनुसार पीएमएवाई-ग्रामीण के लिए ग्राम पंचायतों द्वारा पात्र नागरिकों की पहचान करना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है। रिपोर्ट के अनुसार ग्राम पंचायतों में कार्यक्रम के लिए पात्र नागरिकों की पहचान करने वाले अधिकारी पक्षपाती हो सकते हैं या वे जिसे चुनते हैं वह राजनीति से प्रेरित हो सकते हैं। कार्यक्रम के लिए पक्षपातपूर्ण पात्रता की यह संभावना, आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित वर्गों के लिए शिकायत निवारण तंत्र तक पहुंच की कमी से बढ़ गई है। बात अगर गांवों और विशेषकर पात्रता के अनुसार महिलाओं की करें, तो समझ आता है कि पात्र नागरिक खोजना क्यों मुश्किल है।

तस्वीर साभार: Factchecker

पीएमएवाई-ग्रामीण के आवेदन के लिए, आधार, आधार का उपयोग करने के लिए लाभार्थी की ओर से सहमति का दस्तावेज, अगर आवेदक मनरेगा पंजीकृत है, तो उसका जॉब कार्ड नंबर, लाभार्थी के स्वच्छ भारत मिशन योजना की संख्या, बैंक खाते का विवरण जरूरी है। जहां आज ग्रामीण भारत डिजिटल सेवाओं में पिछड़ रहा है, ऐसे में महिलाओं के लिए वे विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है। विशेषकर तब जब पितृसत्तात्मक समाज में आम तौर ग्रामीण महिलाएं घरेलू कामों या दिहाड़ी मजदूरी से जुड़ी रहती हैं और ये सारे तकनीकी काम ऑनलाइन निपटाना भी बहुत मुश्किल है।

क्या महिलाओं को पारंपरिक कामों से मुक्ति मिल रही है

गौर करने वाली बात है कि एक ऐसे ग्रामीण परिवेश में जहां घरों में आज भी चूल्हा पर खाना पकाया जाता है, जहां कई जगहों पर महिलाएं सार्वजनिक शौचलयों में या खुले में जाती हैं, वहां महज कागजों पर घरों के मालिकाना के रूप में नाम होना हल नहीं। अगर हमें सचमुच महिलाओं को सशक्त होते हुए देखना चाहते हैं, तो न सिर्फ उनके नाम पर घर बल्कि उन तमाम हानिकारक परंपराओं को बंद करना होगा जिससे उनका स्वास्थ्य और सुरक्षा का नुकसान हो रहा है। मध्य प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में पीएमएवाई-जी के प्रभाव के आकलन पर एक स्टडी के अनुसार पीएमएवाई-जी घरों में भी खाना पकाने के लिए पारंपरिक चूल्हा और जलाऊ लकड़ी मुख्य ईंधन बने हुए हैं। एमपी में केवल 14 फीसद, ओडिशा में 20 फीसद; और पश्चिम बंगाल में 8 फीसद पीएमएवाई-जी घरों में एलपीजी का उपयोग किया जाता है।

पीएमएवाई-जी ने घर के अंदर खाना पकाने की जगह यानि रसोईघर उपलब्ध कराई है। लेकिन यह आज भी उतना नहीं बदला है जितना बदल सकता था। ऐसा लगता है कि पीएमएवाई-जी लाभार्थी रसोई के स्थान पर एक और कमरा रखना पसंद करते हैं। कुछ लोगों ने अपने घरों को इस प्रकार डिजाइन किया है कि सभी कमरे हों और रसोई न हो। उनमें से कुछ जिन्होंने रसोईघर का निर्माण किया है, वे रसोईघर के स्थान को दूसरे बैठक कक्ष के रूप में उपयोग करने के लिए बाहर खाना पकाना पसंद करते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि क्यों प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना जो खाना पकाने के लिए एलपीजी उपलब्ध कराती है, पीएमएवाईजी घरों में उस हद तक लोकप्रिय नहीं हो पाई है। अपना घर का सपना हर परिवार देखता है। लेकिन तमाम रिपोर्टों और शोधों के समझ आता है कि न सिर्फ महिलाओं का मालिकाना आज भी खुद के घरों पर कम है, बल्कि वे ऐसे घरों में रह रही हैं जहां बुनियादी सुविधाओं की कमी है और ऐसे सामाजिक व्यवस्था में रह रही हैं जहां समाज सरकारी कागज़ी कामों में उन्हें आगे आने की इजाजत नहीं देता। ऐसे में महज संशोधित लक्ष्य पूरा करते हुए सरकार का यह महिला सशक्तिकरण का दावा जमीनी स्तर पर कारगर होते नहीं दिखता।     

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