समाजकानून और नीति लैंगिक समानता हासिल करने में संपत्ति के अधिकार की भूमिका

लैंगिक समानता हासिल करने में संपत्ति के अधिकार की भूमिका

189 देशों के संपत्ति और विरासत कानूनों की समीक्षा में पाया गया कि "महिलाओं को संपत्ति तक पहुंच, स्वामित्व और प्रशासन के लिए कई कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।" लगभग 40 प्रतिशत देशों में जेंडर एक बाधा है, 36 देशों में, विधवाओं को विधुरों के समान विरासत के अधिकार नहीं दिए गए हैं और 39 देश बेटियों को बेटों के समान संपत्ति का हिस्सा विरासत में देने से रोकते हैं।

विकास परिणामों को बढ़ावा देने के लिए महिला सशक्तिकरण के उपकरण के रूप में महिलाओं का भूमि में समान अधिकार की व्यापक रूप से वकालत की जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि प्रमुख संपत्ति है और भूमि परिग्रहण का मुख्य मार्ग विरासत के माध्यम से होता है। संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के अनुसार लैंगिक समानता की प्राप्ति के अनुरूप उनके सशक्तिकरण और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं का भूमि स्वामित्व महत्वपूर्ण है। इसके परिणामस्वरूप कई सरकारों ने महिलाओं के भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए अपने भूमि पंजीकरण नियमों को मजबूत किया है।

भारत में महिलाएं सबसे अधिक सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिये पर हैं। कोई भी आपदा हो या हिंसक परिवेश हो, सबसे अधिक महिलाएं ही उससे प्रभावित होती हैं। वैश्विक महामारी के बाद तो महिलाओं की स्थिति और खराब हो गई है। भारत में महिलाओं के भूमि स्वामित्व पर मौजूदा डेटा व्यापक नहीं है, लेकिन यह एक निराशाजनक तस्वीर पेश करता है। हालांकि 80 प्रतिशत आर्थिक रूप से सक्रिय महिलाएं कृषि क्षेत्र में हैं, लेकिन उनमें से केवल 13 प्रतिशत के पास कृषि भूमि है। शहरी क्षेत्र में कितनी महिलाओं के पास भूमि का स्वामित्व है इसका कोई पूर्ण आंकड़ा उब्लब्ध नहीं है।

लैंगिक समानता विरासत कानून का केंद्र बिंदु रही है। लेकिन यह भी सत्य है कि इसके खिलाफ लैंगिक पूर्वाग्रह अभी तक कायम है, इसीलिए विकासशील देशों में भूमि अधिकारों के लिए उत्तराधिकार कानून में असमानताएं बढ़ती जा रही हैं। महिलाओं को भूमि में स्वामित्व न देने का पूर्वाग्रह उनके सशक्तिकरण में बाधा उत्पन्न करता है। महिलाओं के भूमि स्वामित्व के प्रति पूर्वाग्रह का अस्तित्व परिवार और समाज में उनकी स्थिति और उनके आर्थिक और व्यावसायिक विकल्पों के लिए एक गंभीर रुकावट बनता है। यह ग्रामीण महिलाओं को कृषि उत्पादन में निवेश करने के प्रोत्साहन और क्षमता से भी वंचित करता है, उनकी कमाई पर नकारात्मक प्रभाव डालता है और पारिवारिक गतिविधियों या निर्णयों में उनकी भागीदारी या प्रभाव को सीमित करता है।

संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के अनुसार लैंगिक समानता की प्राप्ति के अनुरूप उनके सशक्तिकरण और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं का भूमि स्वामित्व महत्वपूर्ण है। इसके परिणामस्वरूप कई सरकारों ने महिलाओं के भूमि अधिकारों की रक्षा के लिए अपने भूमि पंजीकरण नियमों को मजबूत किया है।

शहरी क्षेत्रों में भी स्थिति वैसी ही है। महिलाओं के पास ज़मीन के मालिकाना अधिकार का अभाव उन्हें आर्थिक और मानसिक कमज़ोर बनाता है। इसके अलावा, महिलाओं के पास भूमि स्वामित्व का अभाव उनकी सामाजिक स्थिति को प्रभावित करता है। महिलाओं के पास भूमि का स्वामित्व न होने के कारण यह उन्हें हल्के पायदान पर रखता है और उनके खिलाफ पितृसत्तात्मक विचारों को कठोरता से लागू करता है और सामाजिक स्तर और उनके परिवार के भीतर महिलाओं की स्थिति निम्न होती है। 

भूमि स्वामित्व का होना क्यों ज़रूरी है?

महिला सशक्तिकरण के साधन के रूप में भूमि अधिकारों का महत्व काफी स्पष्ट है, क्योंकि यह महिलाओं को वित्तीय सुरक्षा, आश्रय, आय और आजीविका के अवसर प्रदान करता है। कुछ शोध से पता चला है कि महिलाओं के भूमि स्वामित्व और घर में निर्णय लेने में भागीदारी के बीच एक संबंध हैं। जब कोई महिला आर्थिक रूप से मज़बूत होती है तो घर के निर्णयों में उसको भी भागीदार बनाया जाता है। उसके साथ हिंसा होने की संभावना काम हो जाती है क्योंकि आर्थिक रूप से मज़बूत होने के कारण उसका उस हैंसिक परिवेश से निकलना आसान हो जाता है।

एक महिला कई प्रकार से भूमि में स्वामित्व हासिल कर सकती है। खुद खरीद कर, हालांकि ऐसा करने वाली महिलाओं की संख्या बेहद कम है। लेकिन विरासत में हासिल करके महिलाओं को विरासत में भूमि न देने के पूर्वाग्रहों के कारण इसका आंकड़ा भी अच्छा नहीं है। पति द्वारा खरीदी गयी ज़मीन में स्वामित्व लेकिन ऐसा अधिकतर पति द्वारा टैक्स से बचने के लिए ही किया जाता है।

गृहणियों का पति की संपत्ति में अधिकार

विश्व की अधिकतर गृहणियां हाशिये पर जी रही हैं। उनके द्वारा किए गए काम अवैतनिक होते हैं। पूरे दिन उनके द्वारा किए गए कार्यों के बदले में उन्हें ढंग से सराहा भी नहीं जाता है। संपत्ति में बराबरी या भागीदारी तो दूर की बात है। किसी भी देश में गृहणियों के संपत्ति अधिकारों के संबंध में, यह कमोबेश इस बात पर निर्भर है कि देश का कानून शादी के दौरान संपत्ति प्रबंधन को कैसे नियंत्रित करते हैं।

कुछ शोध से पता चला है कि महिलाओं के भूमि स्वामित्व और घर में निर्णय लेने में भागीदारी के बीच एक संबंध हैं। जब कोई महिला आर्थिक रूप से मज़बूत होती है तो घर के निर्णयों में उसको भी भागीदार बनाया जाता है। उसके साथ हिंसा होने की संभावना काम हो जाती है क्योंकि आर्थिक रूप से मज़बूत होने के कारण उसका उस हैंसिक परिवेश से निकलना आसान हो जाता है।

चूंकि महिलाओं द्वारा घर को लाभ पहुंचाने वाली अवैतनिक गतिविधियाँ करने की अधिक संभावना होती है, इसलिए उनके पास आम तौर पर कम मुद्रीकरण योगदान होता है। वे अपना योगदान घर के कार्य को करके देती हैं। एक रिपोर्ट जो अवैतनिक देखभाल कार्य के मौद्रिक मूल्य का अनुमान लगाती है, उसके एक अध्ययन में कहा गया है कि गृहणियों का अवैतनिक कार्य देश के सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत से 50 प्रतिशत है।

संपत्ति का अधिकार और मद्रास हाई कोर्ट का फ़ैसला

कुछ समय पहले मद्रास हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति द्वारा अपने पैसे से खरीदी गई संपत्ति पर विशेष स्वामित्व का दावा करते हुए अपनी पत्नी के खिलाफ दायर एक मामले में फैसला सुनाया कि एक पत्नी अप्रत्यक्ष रूप से घरेलू काम करके पारिवारिक संपत्ति हासिल करने में समान योगदान देती है, पति की मदद करती है। पत्नी पति को लाभप्रद रोजगार पाने में मदद करती है, और इस प्रकार, दोनों पति-पत्नी अपने संयुक्त प्रयासों से जो कुछ भी कमाते हैं उसे साझा करने के समान रूप से हकदार हैं।

महिलाओं को भूमि में स्वामित्व न देने का पूर्वाग्रह उनके सशक्तिकरण में बाधा उत्पन्न करता है। महिलाओं के भूमि स्वामित्व के प्रति पूर्वाग्रह का अस्तित्व परिवार और समाज में उनकी स्थिति और उनके आर्थिक और व्यावसायिक विकल्पों के लिए एक गंभीर रुकावट बनता है।

यह फैसला, किसी भारतीय अदालत द्वारा दिया गया पहला फैसला था, जिसका महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और परिवार और संपत्ति वकीलों ने स्वागत किया क्योंकि यह अपने पतियों की संपत्ति के संबंध में गृहिणियों के अधिकारों के एक महत्वपूर्ण विस्तार का प्रतीक है। अदालत ने कहा कि आम तौर पर शादी में पत्नी बच्चों को जन्म देती है, उनका पालन-पोषण करती है और घर की देखभाल करती है। इस तरह वह अपने पति को उसकी आर्थिक गतिविधियों के लिए मुक्त कर देती है। चूंकि यह उसके काम का प्रदर्शन है जो पति को अपने कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम बनाता है, इसलिए वह इसके फल में हिस्सा लेने की हकदार है।

मौजूदा केस में, पति सऊदी अरब में काम कर रहा था और पत्नी बच्चों के साथ भारत में ही रहती रही। पति ने उसे अपनी आय को संभालने की जिम्मेदारी सौंपी। पत्नी की अपनी कोई आय नहीं थी। वह केवल विवेकपूर्ण ढंग से पति की आय का प्रबंधन और प्रशासन कर रही थी और उसके खातों का संचालन कर रही थी और इस प्रकार एक भरोसेमंद क्षमता में एजेंट के रूप में कार्य कर रही थी। पति के मामलों का प्रबंधन करते हुए पत्नी ने उनकी ओर से संपत्तियां खरीदीं । दोनों के बीच मतभेद होने के कारण पति ने बाद में उन सब सम्पत्तियों पर अपना पूर्ण स्वामित्व का दावा किया। भारत वापस लौटने के बाद, उसने अपनी पत्नी पर उसके पैसे से खरीदी गई संपत्तियों को हड़पने का आरोप लगाया। इसके अलावा, उसने यह भी दावा किया कि उनकी अनुपस्थिति में उसकी पत्नी का विवाहेतर संबंध था।

एक महिला कई प्रकार से भूमि में स्वामित्व हासिल कर सकती है। खुद खरीद कर, हालांकि ऐसा करने वाली महिलाओं की संख्या बेहद कम है। लेकिन विरासत में हासिल करके महिलाओं को विरासत में भूमि न देने के पूर्वाग्रहों के कारण इसका आंकड़ा भी अच्छा नहीं है। पति द्वारा खरीदी गयी ज़मीन में स्वामित्व लेकिन ऐसा अधिकतर पति द्वारा टैक्स से बचने के लिए ही किया जाता है।

कोर्ट ने कहा कि पत्नी एक गृहिणी है, हालांकि उसने कोई प्रत्यक्ष वित्तीय योगदान नहीं दिया, लेकिन उसने बच्चों की देखभाल, खाना पकाने, सफाई और विदेश में अपने पति को कोई असुविधा दिए बिना परिवार रोजमर्रा के मामलों का प्रबंधन करके घर के कामों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, पत्नी ने अपने सपनों का त्याग कर दिया और अपना पूरा जीवन अपने परिवार और बच्चों के लिए बिता दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि एक पत्नी गृहिणी होने के नाते कई काम करती है। एक पत्नी घर को एक आरामदायक माहौल देती है और परिवार के प्रति अपना योगदान देती है, और निश्चित रूप से यह कोई मूल्यहीन नौकरी नहीं है, बल्कि यह बिना छुट्टियों के 24 घंटे करने वाली नौकरी है, जिसे कमाने वाली नौकरी से कम नहीं आंका जा सकता है। पति तो सिर्फ 8 घंटे काम करता है। न्यायालय ने कहा कि जो पति या पत्नी घर की देखभाल करते हैं और दशकों तक परिवार की देखभाल करते हैं, वे संपत्ति में बराबर की हिस्सेदारी के हकदार हैं।

कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में अगर पत्नी नहीं होती तो निश्चित रूप से पति विदेश जाकर सारा पैसा नहीं कमाता। पत्नी ने बच्चों की देखभाल, भोजन तैयार करना, उन्हें स्कूल ले जाना, उनकी जरूरतों का ख्याल रखना और उनके स्वास्थ्य, घर आदि की देखभाल करके परिवार के लिए 24 घंटे अपनी लगातार सेवाएं दी हैं, जिसे पैसे कमाने से कम नहीं आंका जा सकता। कोर्ट ने टिप्पणी भी की कि अभी तक देश में पत्नी द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परिवार में किए गए योगदान को मान्यता देने के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया है।

सबसे हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, तीन-चौथाई से अधिक (76.4 प्रतिशत) घरेलू देखभाल महिलाओं द्वारा अवैतनिक है। भारत में, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के एक समय-उपयोग सर्वेक्षण से पता चला है कि 82 प्रतिशत गृहिणी महिलाएं हैं।अवैतनिक देखभाल कार्य के मौद्रिक मूल्य का अनुमान लगाने वाले एक अध्ययन में कहा गया है कि यह देश के सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत से 50 प्रतिशत से अधिक है ।

भारतीय संविधान लैंगिक समानता को अनिवार्य करता है, लेकिन अधिकांश संपत्ति अधिकारों को निर्धारित करने वाले धार्मिक और व्यक्तिगत कानून भी प्रचलित हैं। हालाँकि, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में 2005 के संशोधनों ने महिलाओं के संपत्ति के स्वामित्व अधिकारों को बढ़ावा दिया है। NFHS-5 के आंकड़ों के अनुसार उसके बाद से अकेले या संयुक्त रूप से घर और/या जमीन का मालिक बनने वाली महिलाओं में 2.6 प्रतिशत अंक की मामूली वृद्धि दर्ज की गई है। भूमि और संपत्ति अधिकारों में लैंगिक असमानता का मुद्दा एक वैश्विक चिंता का विषय है, महिलाओं के पास दुनिया की 20 प्रतिशत से भी कम भूमि का स्वामित्व है। लगभग 43 प्रतिशत महिलाएं कृषि श्रम बल में हैं, फिर भी, 161 देशों में से केवल 37 देशों में भूमि के स्वामित्व, उपयोग और नियंत्रण के समान अधिकार देने वाले विशिष्ट कानून हैं।

विश्व की अधिकतर गृहणियां हाशिये पर जी रही हैं। उनके द्वारा किए गए काम अवैतनिक होते हैं। पूरे दिन उनके द्वारा किए गए कार्यों के बदले में उन्हें ढंग से सराहा भी नहीं जाता है। संपत्ति में बराबरी या भागीदारी तो दूर की बात है। किसी भी देश में गृहणियों के संपत्ति अधिकारों के संबंध में, यह कमोबेश इस बात पर निर्भर है कि देश का कानून शादी के दौरान संपत्ति प्रबंधन को कैसे नियंत्रित करते हैं।

वास्तव में, विश्व बैंक की 2020 की ‘महिला, व्यवसाय और कानून’ रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के बीस प्रतिशत देश महिलाओं के संपत्ति अधिकारों पर सीमाएं लगाते हैं। भारत में, महिलाओं के भूमि अधिकार का औसत केवल 12.9% है । 41 विकासशील देशों में 2020 के एक सर्वेक्षण से पता चला कि “लगभग सभी देशों में, पुरुषों के पास महिलाओं की तुलना में संपत्ति रखने की अधिक संभावना है।” 189 देशों के संपत्ति और विरासत कानूनों की समीक्षा में पाया गया कि “महिलाओं को संपत्ति तक पहुंच, स्वामित्व और प्रशासन के लिए कई कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ता है।” लगभग 40 प्रतिशत देशों में जेंडर एक बाधा है, 36 देशों में, विधवाओं को विधुरों के समान विरासत के अधिकार नहीं दिए गए हैं और 39 देश बेटियों को बेटों के समान संपत्ति का हिस्सा विरासत में देने से रोकते हैं। मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिण एशिया क्षेत्रों के देशों में सबसे अधिक प्रतिबंधात्मक कानून हैं, खासकर विरासत के संबंध में।


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