फिल्मों में मुख्य रूप से माँ का किरदार निभाने के लिए जानी जाने वाली रीमा लागू एक प्रसिद्ध थिएटर और फिल्म अभिनेत्री थीं, जिन्होंने दमदार अभिनय किया। उन्होंने अपने अभिनय करियर की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में की। साल 1958 में गुरिंदर भदभदे के रूप में जन्मी रीमा लागू का बचपन थिएटर, फ़िल्मी सेट्स और कलाकारों के बीच गुजरा। उनकी मां मंदाकिनी भदभदे एक मराठी मंच अभिनेत्री थीं, जिन्होंने उन्हें अपने परिवार के नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रेरित किया। अपनी माँ से प्रेरणा पाकर ही रीमा लागू ने आगे अपने घराने के काम को जारी रखा। अपनी माँ की ही मदद से रीमा लागू कम उम्र में ही परफार्मिंग आर्ट्स के जरिए बतौर एक चाइल्ड आर्टिस्ट काम करने लगी। उन्होंने कई फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में काम किया। विशेष रूप से 1964 में मास्टरजी में दुर्गा खोटे के साथ काम किया, जो अपने समय की सबसे लोकप्रिय अभिनेताओं में से एक थीं।
निजी जीवन और करियर की शुरुआत
रीमा लागू जब पुणे के हुजुरपगा एचएचसीपी हाई स्कूल में छात्रा थीं, तब उन्हें उनकी अभिनय क्षमता के लिए जाना जाता था। उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद मंच पर पेशेवर रूप से अभिनय करना शुरू कर दिया था। इनकी माँ एक अभिनेत्री थीं, जो लेकुर उदण्ड जाहली नामक नाटक के कारण मराठी मंच में जानी जाती थी। रीमा के अभिनय की कला का पता पुणे में पता चला जब वे हुजूरपगा उच्च माध्यमिक विद्यालय में विद्यार्थी थीं। उच्च माध्यमिक विद्यालय की पढ़ाई पूरी करने के बाद से ही उनकी पेशेवर के रूप में अभिनय की शुरुआत हुई। इनकी अभिनय में पहली नौकरी मराठी मंच पर लगी थी।
इसके बाद 1979 में इन्होंने मराठी फिल्म ‘सिंहासन’ से अपने अभिनय के सफर में कदम रखा। इसके एक वर्ष बाद, 1980 में उनका फ़िल्मी करियर श्याम बेनेगल की फ़िल्म ‘कलयुग’ से शुरू हुआ था। रीमा लागू ने 1978 में विवेक लागू से शादी के बाद अपना जन्म नाम बदल लिया था। उनके पति एक अभिनेता और निर्देशक थे, और जिस बैंक में वह काम करती थीं, उनके सहकर्मी थे।
मराठी और हिंदी फिल्मों में नाम
उन्होंने जल्द ही मराठी फिल्मों में बड़ी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं। रीमा लागू को हिंदी सिनेमा में काम करते हुए लगातार पहचान मिली और उन्होंने 31 साल की कम उम्र में फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ में महिला नायक की मां के रूप में अपनी पहली प्रतिष्ठित भूमिका निभाई। उसी वर्ष, 1988 में, उन्होंने अन्य फिल्मों में भी काम किया। ‘रिहाई’, एक विवादास्पद फिल्म है, जो शहरी भारत में प्रवासी पुरुषों की संकीर्णता और ग्रामीण क्षेत्रों में छोड़ी गई महिलाओं की कामुकता को संबोधित करती है। यह फिल्म उन दोहरे मानकों को प्रस्तुत करती है जिनका सामना महिलाएं अपने अनुभवों की बारीकियों को तलाशते समय करती हैं।
वास्तव जैसी फिल्मों का चुनाव
रीमा लागू को 1989 में प्रसिद्धि मिली और ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ में मां की भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। आगे उनकी गति बढ़ी और उन्होंने 1991 में फिल्म ‘साजन’, 1993 में ‘एक्शन ड्रामा’ और ‘क्राइम थ्रिलर गुमराह’, 1994 में ‘जय किशन’ और 1995 में रंगीला में उसी तरह की भूमिकाओं में अभिनय किया। ये फिल्में न केवल व्यावसायिक रूप से सफल रहीं, बल्कि अपने-अपने वर्षों में सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्मों में भी शामिल रहीं।
उनकी सबसे यादगार भूमिकाओं में से एक उनकी फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ थी, जहां उन्होंने फिल्म की उथल-पुथल में एक सहायक, मिलनसार और मज़ेदार मां की भूमिका निभाई, जिसने एक भारतीय मां के आदर्श संस्करण को और अधिक सुलभ बना दिया। 1999 में वास्तव: द रियलिटी के लिए उनकी सबसे कठिन भूमिकाओं में से एक है। उन्होंने एक ऐसी माँ की भूमिका निभाई जो अपने बेटे के प्रति अपने प्यार और उसके गैरकानूनी और अनैतिक काम का विरोध करती थी, जिसके कारण अंत तक उसके हाथों उसकी मृत्यु हो गई।
सशक्त अभिनय से ‘भारतीय मां’ की बदली धारणा
जहां बॉलीवुड ने उन्हें एक मां की भूमिका में टाइपकास्ट किया है, वहीं रीमा लागू ने अपने सशक्त अभिनय से अपनी भूमिकाओं में जटिलता ला दी है। उन्होंने अपने काम और प्रदर्शन से सिनेमा में ‘भारतीय मां’ की बदलती धारणाओं के प्रतिनिधित्व से भर दिया और उन भूमिकाओं से पीछे नहीं हटीं जो समाज में पितृसत्तात्मक व्यवस्था पर सवाल उठाती थीं। इसके अलावा, थिएटर के प्रति उनका जुनून कायम रहा, जिसने उन्हें अपने कौशल को निखारते हुए लगातार सुधार करने की अनुमति दी। रीमा लागू को हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में टेलीविजन उद्योग में भी सराहना मिली। उन्होंने 1985 में हिंदी टेलीविजन शो खानदान से सिल्वर स्क्रीन पर डेब्यू किया। धारावाहिक ‘श्रीमान श्रीमती’ में कोकिला कुलकर्णी के रूप में और ‘तू-तू मैं-मैं’ में देवकी वर्मा के रूप में उनका प्रदर्शन उनके सबसे सफल टीवी प्रोग्राम थे। रीमा लागू के बेहतरीन प्रदर्शन ने उन्हें कॉमिक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का इंडियन टेली अवार्ड दिलाया।
कॉमेडी से लेकर भावुक किरदार
उन्हें मराठी शो ‘मनाचा मुज़रा’ में भी दिखाया गया था, जो मराठी हस्तियों का सम्मान करता है, और उन्होंने 2012 में टीवी सीरीज ‘लाखों में एक’ और 2016 में ‘नामकरण’ में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। म्यूज़िकल रोमांटिक फ़िल्म ‘मैंने प्यार किया’ के लिए उन्हें 1990 में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के लिए फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड का नोमिनेशन भी मिला। हालांकि ज्यादातर फिल्मों में इन्होंने एक अधेड़ उम्र की माँ की भूमिका निभाई और ज्यादातर हिंदी फिल्म उद्योग के कुछ बड़े नामों के साथ सहायक भूमिकाओं में काम किया है।
लेकिन रीमा लागू के साथ काम करने वाली एक अन्य भारतीय अभिनेत्री सोनाली कुलकर्णी ने एक साक्षात्कार में रीमा लागू की दयालुता और दूसरों के प्रति विचार का उल्लेख किया है। अभिनेत्री सोनाली कुलकर्णी ने कहा है कि यह शर्म की बात है कि बॉलीवुड एक मां के रूप में उनकी भूमिका से आगे नहीं बढ़ पाया, क्योंकि वह एक प्रतिभाशाली कलाकार थीं, जो किसी भी तरह की भूमिका बहुत उत्साह से निभा सकती थीं। अपने दर्शकों से जुड़ने के लिए उनकी शारीरिक भाषा पर उनकी मजबूत पकड़ थी, जो उनके थिएटर प्रदर्शनों में स्पष्ट है।
18 मई 2017 को दिल का दौरा पड़ने से रीमा लागू की मृत्यु हो गई। पेट दर्द की शिकायत करने के बाद, रीमा लागू को 18 मई 2017 को मुंबई में कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह 59 वर्ष की थीं। रीमा लागू को बॉलीवुड की पसंदीदा माँ के रूप में जाना जाता था। उन्होंने अन्य भूमिकाओं में भी विविधता लाई और खुद को फिर से खोज निकालने की कोशिश की, जिसमें 1980 में आक्रोश में एक नर्तकी की भूमिका और 1994 में ये दिल्लगी में एक ठंडे दिल वाली व्यवसायी महिला की भूमिका शामिल थी। लेकिन दुनिया उन्हें ‘बॉलीवुड की मॉडर्न माँ’ के नाम से याद रखेगा।