आज ज़माने में प्यार की पारंपरिक परिभाषा, रिश्ते में पावर डाइनैमिक्स भले बदल रही हो, प्यार के एहसास और लोगों की उम्मीदें और जरूरतें शायद एक जैसी ही हैं। हमारे समाज में हर चीज के लिए एक निश्चित उम्र है। शादी, बच्चे पैदा करने का उम्र और यहां तक कि डेटिंग की उम्र भी। हैरानी की बात ये है कि जहां एक ओर भारतीय समाज प्यार, रिश्ते और परिवार की बात करता है, वहीं उम्रदराज लोगों विशेषकर महिलाओं के लिए वह प्यार पाने, परिवार या डेटिंग के रास्ते बंद करता चला जाता है। हमारी सामाजिक व्यवस्था ऐसी है कि आम तौर आपको यह महसूस कराया जाता है कि जीवन बिना किसी ‘साथी’ के नहीं चल सकती। वहीं आजीवन एकल रहने वाली महिलाओं को ‘कठिन’ और ‘चरित्रहीन’ कहकर अपमान किया जाता है, तो कभी ‘फेमिनिस्ट’ कहकर तंज कसा जाता है।
अक्सर उम्रदराज महिलाएं विशेषकर जब कोई सामाजिक जमावड़े में होती हैं, तो यह उम्मीद की जाती है कि वे अपने जीवनसाथी के साथ ही आएंगी। आपके किसी रिश्तेदार का अचानक आना और यह पूछना कि आप आखिर शादी कब कर रही हैं, या क्यों नहीं कर रही, मानसिक या भावनात्मक रूप से परेशान करने वाला हो सकता है। शादियों या फंगक्शन में एकल महिलाओं को शर्मिंदा करने से अक्सर लोग नहीं चूकते। अमूमन महिलाएं चाहे अपने जीवन में कितनी भी सफल क्यों न हो, उनकी सफलता तभी मान्य होती है, जबतक वे शादी न कर लें या गृहस्थी के विषय में न सोच रही हों। बम्बल के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में सर्वेक्षण में शामिल लगभग 5 में से 2 यानि 39 फीसद डेटर्स का दावा है कि उनके परिवार शादी के सीजन के दौरान उन पर पारंपरिक मैचमेकिंग के लिए दबाव डालते हैं। 39 फीसद प्रतिभागी दबाव महसूस करते हैं क्योंकि उनसे पूछा जाता है कि वे शादी करने की योजना कब बना रहे हैं। वहीं सर्वेक्षण में शामिल एकल भारतीयों में से लगभग एक तिहाई ने यह भी दावा किया कि भारत में शादी के सीजन के दौरान गंभीर, प्रतिबद्ध रिश्ते में शामिल होने के लिए दबाव डाला जाता है।
पहले मैं उस इंसान को समझाने की कोशिश करती थी। मुझे अब समझ आता है कि मैं ‘अवैतनिक ईमोशनल लेबर’ किए जा रही थी। पर आज मैं किसी ऐसे इंसान को डेट ही नहीं करूंगी जहां मुझे समझ आए कि समस्या है। मेरे लिए डेटिंग पहले से आसान है। इसलिए, मैं सभी महिलाओं से कहती हूँ कि किसी एक इंसान को चुनने से पहले आपको बहुत से लोगों को डेट जरूर करना चाहिए।
क्या उम्रदराज महिलाओं के लिए डेटिंग आसान है
हमारे समाज में कम उम्र में डेटिंग की तुलना में जीवन के दूसरे पड़ाव पर डेटिंग का अनुभव अलग हो सकता है। अपने टीनैज या उसके आस-पास की उम्र में डेटिंग और उम्रदराज होने के बाद डेटिंग में अंतर के विषय में कोलकाता के एमएनसी में काम कर रही इंस्ट्रक्शनल डिज़ाइनर इंद्राणी मुखर्जी कहती हैं, “मैं 40 साल की हूँ। जब मैं तुलनामूलक कम उम्र की थी, उस दौरान प्यार या लव मैरेज एक बहुत बड़ी बात थी। खासकर एक बाइसेक्शूअल महिला के तौर पर किसी महिला को डेट करना मुश्किल था। हालांकि आज भी सेक्स एक टैबू है, लेकिन कुछ हद तक प्यार और डेटिंग सामान्य बन चुका है। हमारे पास डेटिंग ऐप्स हैं। पहले किसी को पसंद करने पर भी सामाजिक कारणों के जाहिर करना मुश्किल होता था। टेक्नॉलजी, सामाजिक बदलाव और खुद की समझ के बाद इस उम्र में डेटिंग पहले की तुलना में आसान है।”
इंद्राणी का तलाक हो चुका है और आज वह दोबारा शादी के बजाय डेट करना और जीवन जीना चाहती हैं। पितृसत्तात्मक समाज के लिए यह समझना और मानना आसान नहीं कि महिलाओं की अपनी जरूरतें हो सकती हैं या वे शादी से पहले या शादी के बिना भी किसी के साथ रह सकती हैं। वहीं इस विषय मुंबई में रहने वाली मनोचिकित्सक तनुश्री थॉमस (नाम बदला हुआ) कहती हैं, “हालांकि आज भी डेटिंग में यौन हिंसा और झूठ शामिल हैं, लेकिन जब उम्र कम थी, उसके तुलना में आज मैं जानती हूँ कि मुझे क्या चाहिए। पहले मैं उस इंसान को समझाने की कोशिश करती थी। मुझे अब समझ आता है कि मैं ‘अवैतनिक ईमोशनल लेबर’ किए जा रही थी। पर आज मैं किसी ऐसे इंसान को डेट ही नहीं करूंगी जहां मुझे समझ आए कि समस्या है। मेरे लिए डेटिंग पहले से आसान है। इसलिए, मैं सभी महिलाओं से कहती हूँ कि किसी एक इंसान को चुनने से पहले आपको बहुत से लोगों को डेट जरूर करना चाहिए।” तनुश्री बताती हैं कि आज वह ऐसी उम्मीद नहीं रखती कि उनकी सभी जरूरतें एक इंसान से ही पूरी हो जाएगी।
मेरे लिए अपनी आज़ादी और स्पेस जरूरी है और मैं ये किसी से भी बांटना नहीं चाहूँगी। अकेलापन मेरे लिए शारीरिक से ज्यादा भावनात्मक है। मैं जरूर चाहूँगी कि कोई हो जिससे दिन के अंत में अपनी बातें साझा कर सकूँ। लेकिन मैं यह नहीं चाहूँगी कि 24 घंटे वह साथ रहे।
क्या सशक्त महिलाओं को डेट करने के लिए तैयार हैं लोग
भारतीय परिप्रेक्ष्य में कई बार पुरुष अपने साथी का ज्यादा पढ़ी-लिखी, ज्यादा कमाने वाली या ज्यादा सामाजिक होने की उम्मीद नहीं करते हैं। इस विषय पर तनुश्री कहती हैं, “मुझे किसी ने इस बुनियाद पर मना किया था कि मैं उनसे ज्यादा बुद्धिमान हूँ और ज्यादा कमाती हूँ जो मेरे लिए कड़वा अनुभव था। मुझे लगता है कि आज भी भारतीय मर्द सशक्त महिलाओं को डेट करते वक्त उन्हें कुछ हद तक नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं।” आज जहां सिर्फ महनगरों में ही नहीं, छोटे शहरों में भी महिलाएं एकल रहना चुन रही हैं, हमारे समाज या परिवार में यह ‘विरोध’ या ‘बेतुका इच्छा’ के रूप में देखा जाता है। वहीं अक्सर एकल रहने को जीवन में कमी, हताश होने या नाकामयाबी से जोड़ा जाता है। इस विषय पर इंद्राणी कहती हैं, “मेरे लिए अपनी आज़ादी और स्पेस जरूरी है और मैं ये किसी से भी बांटना नहीं चाहूँगी। अकेलापन मेरे लिए शारीरिक से ज्यादा भावनात्मक है। मैं जरूर चाहूँगी कि कोई हो जिससे दिन के अंत में अपनी बातें साझा कर सकूँ। लेकिन मैं यह नहीं चाहूँगी कि 24 घंटे वह साथ रहे।”
उम्रदराज महिलाओं का डेटिंग और डेटिंग से जुड़ी बाउन्ड्री
एक ऐसे समाज में जहां सेक्स पर बातचीत टैबू है, वहां महिलाओं के लिए अपनी जरूरतों पर बात करना और रिश्तों में दायरा कायम करना बेहद मुश्किल हो सकता है। खासकर तब जब वह टीनैज हों। इस विषय पर तनुश्री बताती हैं, “मैं अपनी सेक्शुअल जरूरतों के विषय पर हमेशा मुखर रही हूँ। लेकिन इसके बावजूद भी मेरे साथ यौन हिंसा हुई है। कई बार लोग सुनने को तैयार नहीं होते। लेकिन यौन संबंध के मामले में निश्चित ही मैं बेहतर स्थिति में हूँ।”
वहीं इस विषय पर बिहार की अनामिका कुमारी (नाम बदला हुआ) कहती हैं, “हालांकि मैं खुद को काफी जागरूक मानती हूँ लेकिन पिछले रिश्ते में कई बार मेरे साथ भावनात्मक और यौन हिंसा हुई है। आज जब मैं दोबारा डेट कर रही हूँ, तो आज मैं पहले से दायरा बनाने की कोशिश करती हूँ।”
मुझे किसी ने इस बुनियाद पर मना किया था कि मैं उनसे ज्यादा बुद्धिमान हूँ और ज्यादा कमाती हूँ जो मेरे लिए कड़वा अनुभव था। मुझे लगता है कि आज भी भारतीय मर्द सशक्त महिलाओं को डेट करते वक्त उन्हें कुछ हद तक नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं।
महिलाओं का डेटिंग और शादी का सफर
हमारे पितृसत्तात्मक समाज में जहां महिलाओं के लिए लगभग सब कुछ तय किया जाता है, वहाँ किसी महिला के लिए एकल रहना समाज के नियमों के खिलाफ है। आदर्श महिला के खांचे में ऐसी महिला अक्सर फिट नहीं बैठती, जो अपनी मर्जी से एकल है या उम्रदराज होते हुए भी शादी नहीं बल्कि डेटिंग का सोचती है। कई बार अपने अनुभवों के आधार पर भी विशेषकर उम्रदराज महिलाएं दोबारा शादी या किसी साथी के साथ आजीवन नहीं रहना चाहती। चूंकि भारतीय समाज में शादियाँ या जीवनसाथी का चुनाव आम तौर पर एक पारिवारिक मामला है, जब महिलाएं खुद अपनी एजेंसी तय करती हैं, पितृसत्तात्मक समाज के लिए यह दोहरी चुनौती है। आज कुछ हद तक बड़े शहरों में लोग अलग-अलग यौनकिता को भी समझ रहे हैं। इसलिए महानगरों में रह रहे लोगों के लिए अब हेटरोसेक्सुअल मानदंडों के बाहर डेटिंग आसान लग सकता है।
लेकिन आज भी डेटिंग निश्चित कारण से की जाती है, जहां सीमित समय में शादी तक पहुँचने की कोशिश की जाती है। इस विषय पर इंद्राणी कहती हैं, “हालांकि डेटिंग मेरे लिए कभी भी गोल ऑरिएन्टेड नहीं था। पर मेरे पास विशेषाधिकार है कि मैं डेटिंग को सिर्फ डेटिंग तक सीमित रख सकती हूँ।” वहीं तनुश्री कहती हैं, “कभी-कभी मेरे माता-पिता के नियंत्रण से बाहर निकलने के लिए लगता है कि अगर मैं शादीशुदा होती तो यह नहीं होता। यह मान्यता कि अगर महिला एकल है, तो वह परिवार की देखभाल करेगी, यह भी समस्याजनक है।”
हालांकि आज भी सेक्स एक टैबू है, लेकिन कुछ हद तक प्यार और डेटिंग सामान्य बन चुका है। हमारे पास डेटिंग ऐप्स हैं। पहले किसी को पसंद करने पर भी सामाजिक कारणों के जाहिर करना मुश्किल होता था। टेक्नॉलजी, सामाजिक बदलाव और खुद की समझ के बाद इस उम्र में डेटिंग पहले की तुलना में आसान है।
एक उम्र के बाद डेट कर रही महिलाएं भले ही डेटिंग से कुछ आशंकाएं रखती हों, लेकिन आम तौर वे डेटिंग पार्टनर में क्या चाहती हैं या किस बात पर वे समझौता करने को तैयार नहीं, इसे लेकर ज्यादा मुखर पाई जाती हैं। आज महिलाओं के लिए डेटिंग के कई मायने हैं। कुछ महिलाओं के लिए, डेटिंग का मतलब शादी या पुनर्विवाह है, जबकि किन्हीं के लिए डेटिंग का मतलब बिना किसी शर्त के किसी का ‘साथ’ है। डेटिंग का मतलब किसी के साथ अंतरंग संबंध बनाना भी है, जहां शारीरिक अंतरंगता के अलग-अलग मायने हो सकते हैं।
वहीं यह डर का सामना करना भी हो सकता है। चाहे वह एक विफल शादी या रिश्ते, या लंबे समय तक डेटिंग न करने से पैदा हुआ हो या अन्य महिलाओं से नकारात्मक कहानियां सुनने से बाद हुआ हो जिन्होंने डेट किया था। डेटिंग अपनेआप में परिपूर्ण, संतुष्ट करने वाला और जीवन में विकास का अनुभव भी हो सकता है और उसका उलट भी। जरूरी यह है कि महिलाओं को डेटिंग के लिए न ही दबाव दिया जाए और न ही राय बनाई जाए। किसी महिला को किस के साथ रहना है या नहीं रहना है, ये फैसला निजी होना चाहिए। साथ ही, यह भी जरूरी है कि डेटिंग के कड़वे अनुभवों के लिए महिलाओं को शर्मिंदा न किया जाए।