देश में लोकसभा चुनाव होने वाला है। जैसा कि आम तौर पर हर चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य का मुद्दा प्रमुख होना चाहिए। लेकिन हमारे भारतीय समाज में जातीय संरचना का समीकरण हमेशा इन मुद्दों पर भारी पड़ जाता है। अब जब महिला मतदाता अपने मतदान के अधिकार के लिए काफी हद तक सजग हुई हैं, तो देश के चुनावों में महिला मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका समझ आ रही है। राजनीतिक दल महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए लोक लुभावन नीतियां भी लेकर आते हैं। हालांकि ज्यादातर नीतियां सिर्फ चुनाव के मद्देनजर लाई जाती हैं। लेकिन देश में अब महिला मतदाता निर्णायक भूमिका में दिखाई दे रही हैं।
ग्रामीण इलाकों में आज विकास और शिक्षा स्वास्थ्य को लेकर महिलाएं काफी हद तक जागरूक हैं। वे अपने मतदान के अधिकार का उपयोग विकास के मुद्दे पर भी कर रही हैं। हालांकि जाति अब भी मतदान में बड़ा आधार बनता है। जाति से बना भारतीय समाज पितृसत्ता का बनाया हुआ ढांचा है, जहां महिलाओं के अधिकार को प्राथमिकता नहीं दी जाती है। महिलाएं घर-परिवार के प्रभाव में जातिगत आधार पर मतदान करती भी हैं। लेकिन ये देखा जाता रहा है कि महिला मतदाताओं को महंगाई का मुद्दा ज्यादा प्रभावित करता है। रसोई से लेकर बच्चों की पढ़ाई और स्वास्थ्य और शिक्षा का मुद्दा उनके लिए इतना अहम है कि वो महंगाई को नजरअंदाज नहीं कर सकतीं। इसी प्रकार महिला शिक्षा और महिला सुरक्षा का मुद्दा भी महत्त्वपूर्ण है।
बनारस जिले की भिमाई गाँव की श्रमिक रामरती देवी कहती हैं, “महंगाई और बहन-बेटियों की सुरक्षा मेरे लिए मतदान में महत्वपूर्ण मुद्दे होंगे क्योंकि रोज बढ़ती महंगाई के कारण मेरी गृहस्थी गड्डमड्ड हो गई है। पहले मैं मजदूरी करती थी। अपनी बेटियों को स्कूल भेजती थी।
क्या है महिला श्रमिकों, छात्राओं के लिए महत्वपूर्ण
बनारस जिले की भिमाई गाँव की श्रमिक रामरती देवी कहती हैं, “महंगाई और बहन-बेटियों की सुरक्षा मेरे लिए मतदान में महत्वपूर्ण मुद्दे होंगे क्योंकि रोज बढ़ती महंगाई के कारण मेरी गृहस्थी गड्डमड्ड हो गई है। पहले मैं मजदूरी करती थी। अपनी बेटियों को स्कूल भेजती थी। लेकिन इन दिनों महंगाई के कारण अपनी बेटियों की पढ़ाई बंद करवानी पड़ी और वे सब मजदूरी करती हैं।” महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध को देखते हुए रामरती को बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंता में रहती हैं। उनका कहना है कि वो चुनाव में महंगाई और सुरक्षा के मुद्दे पर ही मतदान करेंगी।
आगामी लोकसभा चुनाव में महिला मतदान के मुद्दे क्या होंगे इस विषय पर फेमिनिज्म इन इंडिया ने कुछ ग्रामीण और शहरी इलाकों की छात्राओं से बातचीत की। छात्राओं से बातचीत में देखा गया कि रोजगार उनके लिए प्रमुख मुद्दा है। वे सब पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बनने की इच्छा को जाहिर कर रही थीं। ज्यादातर छात्राओं ने मतदान के लिए रोजगार मिलने के हवाले से ही बात की। हालांकि शिक्षा व्यवस्था इतनी ज्यादा महंगी हो गयी है, इस बात को लेकर कई छात्राओं में आक्रोश दिखा। वे बढ़ती फीस को लेकर काफी नाराज दिखीं। साथ ही क़िताब-कापियों पर बढ़े टैक्स को लेकर भी उन्होंने बात की।
हम औरतें मजदूरी करने के बाद साँझ को घर लौटने पर वो फिर से घर के काम में लग जाती हैं। वहीं घरों के पुरुष शाम को पीकर लौटते हैं। ज्यादातर घरों में महिलाओं के साथ हिंसा होती है।
फीस वृद्धि, रोजगार और शिक्षा व्यवस्था में कमी
मतदान में छात्राओं के प्रमुख मुद्दे को लेकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय और कुछ अलग-अलग कॉलेज की छात्राओं से बातचीत करने पर यह पाया गया कि छात्राओं को महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों के साथ परिवार और समाज में सम्मान, संपत्ति और राजनीति में बराबरी का अधिकार जैसे मुद्दे भी प्रभावित करते हैं। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में छात्र संगठन आइसा की प्रेसिडेंट साक्षी मिश्र कहती हैं, “हमने छात्रों से जुड़े मुद्दों पर 9,10,11 फरवरी को जनमत संग्रह कराया था। इसमें तीन सवाल पूछे गए थे जिसका उत्तर हां या न में देना था। पहला सवाल था कि क्या आप सरकार द्वारा बेतहाशा फीस वृद्धि से सहमत हैं। दूसरा सवाल था कि क्या इस सरकार ने जरूरतमंद छात्रों के लिए पर्याप्त रूप में स्कॉलरशिप और हास्टल की व्यवस्था की है। तीसरा सवाल था कि क्या सरकार ने जो 2 करोड़ नौकरी देना का वादा किया था उसे पूरा किया है।”
इस जनमत संग्रह के आयोजन को लेकर साक्षी कहती है कि इस जनमत संग्रह का मूल उद्देश्य विद्यार्थियों में एक ऐसी सोच पैदा करना था कि आने वाले चुनाव में वह किसी मंदिर और मस्जिद के नाम पर वोट देकर सरकार न बनाए बल्कि लोगों की जरूरतों को पूरा करने वाली सरकार को सत्ता सौंपे। बहुत सी छात्राओं ने बढ़ी हुई फीस वृद्धि को लेकर अपने मत को मार्मिक तरीके से सामने रखा।
मैं बहुत मुश्किल से घर से निकलकर बाहर पढ़ने आई हूं। फीस इतना बढ़ जाने के कारण मेरा बाहर पढ़ना मुश्किल लग रहा है। मैं फिर से घर वापस जाने के कगार पर आ गई हूं। घर वाले खर्चा दे नहीं पा रहे हैं। कोई ऐसी नौकरी नहीं है जिसने पढ़ाई भी जारी रखा जा सके।
फीस को लेकर अलग-अलग विचार
यहाँ मौजूद छात्रा आस्था ने बताती हैं, “मैं बहुत मुश्किल से घर से निकलकर बाहर पढ़ने आई हूं। फीस इतना बढ़ जाने के कारण मेरा बाहर पढ़ना मुश्किल लग रहा है। मैं फिर से घर वापस जाने के कगार पर आ गई हूं। घर वाले खर्चा दे नहीं पा रहे हैं। कोई ऐसी नौकरी नहीं है जिसने पढ़ाई भी जारी रखा जा सके। कैम्पस में ऐसी लड़कियां भी थी जो आस्था की बातों से असहमत थी। वे सरकार की फीस वृद्धि से सहमत थी। उनका मानना था कि सरकार ने इतनी भी फीस नहीं बढ़ाई कि कोई सर्वाइव नही कर सकता। और अगर सरकार इतना भी नही करेगी तो वह यूनिवर्सिटी इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार कैसे करेगी। इस बातचीत में वर्गीय विभिन्नता की दृष्टि से उनके बीच मतभेद दिखे।
क्या जाति के आधार पर ही होगा मतदान
मतदान पर ग्रामीण कामगार महिलाओं से बातचीत के क्रम में शिवदेवी से बातचीत हुई। शिवदेवी जौनपुर से आते हुए बस में सफर के दौरान मिलीं। शिवदेवी से यह जानने के क्रम में कि गाँव में झौउआ (एक प्रकार का बांस से बना बड़ा टोकरा) बनाने वाले समुदाय अब कैसे कार्य करते हैं तो उन्होंने बताया कि पहले जो बांस ग्राम समाज की जमीन से मिल जाता था, अब वो जमीन नहीं रही। सब दूसरे लोगों के नाम पर हो गया तो अब बांस खरीदना पड़ता है। वह मतदान को लेकर बताती हैं, “वे सब अपनी जाति को वोट करते हैं। वर्तमान सत्ता उन्हीं की है। फिर आगे वह कहती हैं कि आपको नहीं पता कि हमारी जाति की पार्टी ने सबसे बड़ी पार्टी से हाथ मिला लिया है।” शिवदेवी ने कहा उनकी जाति की पार्टी ‘निषाद’ पार्टी है। उनका कहना था कि अब तक सारी अस्मिताओं की राजनीतिक पार्टियां बस अपनी जाति के लिए सब करती रही। इसलिए उनकी जाति का उतना विकास नहीं हो पाया जितना होना चाहिए था।
वह मतदान को लेकर बताती हैं, “वे सब अपनी जाति को वोट करते हैं। वर्तमान सत्ता उन्हीं की है। फिर आगे वह कहती हैं कि आपको नहीं पता कि हमारी जाति की पार्टी ने सबसे बड़ी पार्टी से हाथ मिला लिया है।”
शिवदेवी से मतदान के मुद्दे पर बात करने पर वह उसपर कोई बात नहीं करती हैं। वह कहती हैं, “जहाँ मेरी जाति रहेगी मैं भी वहीं रहूँगी।” हालांकि बातचीत के बीच उन्होंने अपनी और अपनी बिरादरी की पट्टे की जमीन न मिलने का दुख कहा। आगे वह कहती हैं कि पहले कभी किसी ग्रामप्रधान ने ग्रामपंचायत की कुछ जमीन उन्हें पट्टे में दी थी जिसे बाद में गाँव के एक दबंग ठाकुर ने छीन ली। उनके पट्टे की जमीन उन्हें आज तक न मिली। उनसे सवाल करने पर कि अब आप लोगों की सरकार है, तो आपकी सरकार आप लोगों की जमीन वापस क्यों नहीं दिलवाती। इस सवाल के जवाब में उनके पास एक हारी हुई मुस्कुराहट भर थी।
अलग-अलग वर्गों का चुनाव से उम्मीदें
लोकसभा चुनाव में महिलाओं के मतदान को लेकर महिला मतदाताओं में मध्यवर्गीय या निम्नमध्यवर्गीय घरेलू महिलाओं के मतदान के मुद्दे दोनों जगह पर समान दिखे। लेकिन शहरी महिला मजदूरों का मुद्दा अलग दिखा। मध्यवर्गीय या निम्नमध्यवर्गीय स्त्रियां घर-गृहस्थी के मुद्दे पर बात करती दिखीं। वे रसोई ईंधन, दालों, सब्जियां, सिलेंडर के साथ सुरक्षा और महिलाओं को मिलने वाले सभी अधिकारों के लिए सजग दिखीं। वहीं मजदूर महिलाओं के मुद्दे मजदूरी से लेकर बेरोजगारी, बच्चों के स्कूल की शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के मुद्दे पर मतदान की बात करती दिखीं। जाहिर सी बात है उनके संघर्ष अन्य महिलाओं से कहीं ज्यादा हैं। वे पानी से लेकर बिजली के मुद्दे पर बहुत साफगोई से बात करती हैं। इतनी महंगाई और कम मजदूरी में उनकी जरूरतें पूरी नहीं होतीं। वहीं नशाखोरी जैसी समाजिक समस्याओं से वे बेहद त्रस्त हैं।
महिला मजदूरों से बातचीत के क्रम में सबसे ज्वलंत दो मु्द्दे उठे जिसमें महंगाई और नशाखोरी शामिल थे। महिला श्रमिक पिंकी दिहाड़ी मजदूरी करती हैं। पिंकी कहती हैं, “हम औरतें मजदूरी करने के बाद साँझ को घर लौटने पर वो फिर से घर के काम में लग जाती हैं। वहीं घरों के पुरुष शाम को पीकर लौटते हैं। ज्यादातर घरों में महिलाओं के साथ हिंसा होती है।” पिंकी आगे कहती हैं, “गरीबी और नशाखोरी दोनों का कहर ज्यादा हम स्त्रियां ही झेलती आ रही हैं। इसलिए चुनाव में इन मुद्दों पर बात होनी चाहिए।”
ग्रामीण और शहरी महिलाओं के जरूरतें क्या पूरी होंगी
इस लोकसभा चुनाव में मतदान के मुद्दे पर बात करते हुए दिखा कि जैसा कि हमेशा से चुनाव के दौरान घरेलू मुद्दे महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करते थे। लेकिन इस बार महिलाएं शिक्षा और रोजगार को लेकर भी चिंतित हैं। विकास के मुद्दे पर भी वो मतदान कर रही हैं। गवईं निम्नवर्गीय व निम्नमध्यवर्गीय महिलाएं जहाँ सिलेंडर चूल्हा मिलने से खुश दिखीं, वहीं सिलेंडर के बढ़ते दाम से बहुत निराश भी दिखीं। शिक्षा ,स्वास्थ्य, सुरक्षा और घरेलू मुद्दे के सरोकारों की बहस महिलाओं के प्रमुख मुद्दे रहे। लेकिन इन सबके बीच पूरे सामाजिक परिवेश के दृश्य में जो मुद्दा सबसे ज्यादा उभर कर आया वो है बेरोजगारी। हर वर्ग की महिलाओं ने बेरोजगारी के मुद्दे पर बात की। वे मानती हैं कि महिला शिक्षा और सम्मान के मुद्दे पर बात करना महज मन को बहलाने वाली बात होगी जबतक रोजगार का मुद्दा हल नहीं होता।