हैदराबाद विश्वविद्यालय के पीएचडी के विद्यार्थी रोहित वेमुला की आत्महत्या से हुई मौत के मामले तेलंगाना पुलिस ने बीते हफ्ते क्लोजर रिपोर्ट पेश की है। रोहित वेमुला की आत्महत्या से हुई मौत के मामले में आई क्लोजर रिपोर्ट ने देशभर में गुस्सा भर दिया है। आठ साल बाद आई इस रिपोर्ट के लिए रोहित वेमुला के साथ हुए भेदभाव पर जांच करने की बजाय उनकी जाति को आधार बनाया है। रिपोर्ट में पुलिस के मुताबिक रोहित वेमुला ओबीसी थे, दलित नहीं थे। न ही उन पर किसी तरह का बाहरी दबाव रहा है उन्होंने अपनी जाति का पता चलने के डर से यह फैसला लिया था।
यह सुनने में जितना शर्मनाक है उतना ही संवेदनहीन भी है। यह हमारी न्यायिक और सामाजिक व्यवस्था का ‘कलेक्टिव फेलियर’ है। व्यवस्था को इतना लचर बनाया जा रहा है कि कोई सवाल करने की हिमाकत ही न करे। अगर भविष्य में किसी दलित छात्र के साथ इस तरह की घटना होती है तो वह न्याय की उम्मीद तक न करे। दरअसल 17 जनवरी 2016 को पीएचडी स्कॉलर 26 वर्षीय रोहित वेमुला की हैदराबाद यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में मानसिक प्रताड़ना के बाद आत्महत्या से मौत की ख़बर सामने आई थी। इसके कुछ दिन पहले ही उन्हें पाँच साथियों समेत हॉस्टल से बाहर निकाल दिया गया था।
अब इस मामले में लोकसभा चुनाव से महज कुछ समय पहले आरोपियों को क्लीनचिट देना जांच पर सवाल खड़े करता है। जिन्हें क्लीनचिट दी जा रही है वे काफी पावरफुल व्यक्ति हैं और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वे जांच को प्रभावित न कर रहे हों। इस फैसले का देशभर में जहां विरोध हो रहा है वहीं वेमुला के परिवार ने भी इसे सिरे से खारिज कर दिया है और न्याय की लड़ाई वे आगे लेकर जाएंगे। क्लोजर रिपोर्ट के सामने आने के बाद रोहित के परिवार माँ और भाई ने प्रदेश के मुख्यमंत्री और नेताओं से भी बात की है साथ ही यूनिवर्सिटी में भी प्रदर्शन हो रहा है।
पूरे मामले में कब, क्या और कैसे हुआ
आंध्रप्रदेश के गुंटूर में रोहित वेमुला का जन्म हुआ था। उनके पिता मणिकुमार वेमुला वड्डेरा समुदाय से थे, जो ओबीसी समुदाय में आता है और मां राधिका वेमुला अनुसूचित जाति में आने वाले माला समुदाय से हैं। रोहित की माँ राधिका अपने पति से अलग अपने तीनों बच्चों साथ लेकर रहती थी और अनुसूचित जाति की सभी परंपराओं का पालन किया। साल 2021 में एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर पिता या माँ में से कोई एक दलित है तो उनका बच्चा भी दलित माना जाएगा।
30 जुलाई 2015 किस तरह मामला शुरू हुआ
रोहित वेमुला हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पीएचडी स्कॉलर थे। साथ ही आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य थे। कैंपस में छात्रों के हक अधिकारों के लिए लड़ते रहते थे। द वॉयर में छपी जानकारी के अनुसार 30 जुलाई 2015 में आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एएसए) के द्वारा एक प्रोग्राम का हिस्सा लिया गया जिसका एबीवीपी के विद्यार्थियों ने विरोध किया। इसके बाद एबीवीपी के विरोध में और विश्वविद्यालयों के लोकतांत्रिक स्पेस को खत्म करने के विरोध में एएसए के सदस्यों द्वारा विरोध किया गया। इसके बाद एएसए और एबीवीपी के स्टूडेंड्स के भी झड़प और मार-पिटाई की बात सामने आई जिसमें एएसए के कुछ छात्रों को गिरफ्तार भी किया गया। बाद में एबीवीपी के कुछ स्टूडेंट के माता-पिता हाईकोर्ट भी गए। इसी बीच यूनिवर्सिटी में नए वाइस चांसलर की नियुक्ति हुई। साथ ही केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने मानव संसाधन मंत्रालय को चिट्टी में लिखा कि कैंपस को राष्ट्रविरोधी और जातिवादी समूह द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है। यह पत्र विश्वविद्यालय द्वारा एचआरडी मंत्रालय को भेजा गया।
दिसंबर 2015 और स्टूडेंट्स संस्पेड
हाईकोर्ट और मंत्रालय के दवाब में नए वाइस चांसलर ने कमेटी का गठन किया। दिसंबर 2015 के आखिरी सप्ताह में सब-कमेटी पांच स्टूडेंट्स को सजा दी। उन्हें हॉस्टल से निकाल दिया और साथ ही साथ ही छात्र समूहों की कुछ पब्लिक स्पेस में एंट्री पर भी रोक लगा दी थी। साथ ही इन स्टूडेंट्स को वार्षिक स्टूडेंट यूनियन के चुनाव में भाग लेने से भी अयोग्य करा दिया। ईसी के फैसले के खिलाफ दस स्टूडेंट्स ने एक ज्वाइंट एक्शन कमेटी का गठन किया। साथ ही संस्पेड स्टूडेंट्स ने ईसी के फैसले के बाद हाई कोर्ट का रूख किया।
17 जनवरी 2016 रोहित वेमुला की आत्महत्या से हुई मौत
17 जनवरी 2016 को यूनिवर्सिटी कैम्पस के हॉस्टल में रोहित वेमुला की आत्महत्या से मौत की ख़बर सामने आई। इसके बाद बंडारू दत्तात्रेय और वाइस चांसलर पी. अप्पाराव के ख़िलाफ़ अत्याचार निवारण (प्रिवेशन ऑफ एट्रोसिटीस) के तहत केस दर्ज किया गया। इसके बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए। वीसी के साथ-साथ दो एबीवीपी नेताओं पर एफआईआर दर्ज की गई थी।
जनवरी 2016 में मामले की जांच शुरू
मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) ने मामले की जांच के लिए ज्यूडिशियल कमीशन का गठन किया। अंतिम रिपोर्ट में पर्सनल फ्रस्ट्रेशन को उनकी आत्महत्या से मौत की वजह बताया। अगस्त 2017 में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने पाया कि हैदराबाद यूनिवर्सिटी प्रशासन ने रोहित वेमुला के साथ भेदभाव किया और उन्हें प्रताड़ित किया।
3 मई 2024 क्लोजर रिपोर्ट सामने आई
3 मार्च 2024 में तेलंगाना पुलिस ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की। रिपोर्ट ने कहा कि रोहित वेमुला दलित नहीं था और अपनी असली जाति का पता चलने के डर से उन्होंने यह कदम उठाया। 3 मई 2024 को तेलंगाना पुलिस की ओर से मामले की क्लोजर रिपोर्ट सामने आई।
4 मई 2024 फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू
रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला, उनके भाई राजा वेमुला और ‘जस्टिस फॉर रोहित वेमुला’ कैंपेन का हिस्सा रहे शिक्षकों और छात्र नेताओं ने तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी से मुलाकात की है। देशभर में हो रहे इस क्लोजर रिपोर्ट के विरोध और रोहित के परिवार की मांग पर तेलंगाना सरकार ने इस केस में दोबारा जांच करने का फैसला लिया। द प्रिंट में छपी जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और कांग्रेस के अन्य प्रतिनिधियों से रोहित की माँ राधिका वेमुला ने चार मई को मुलाकात की है। मुख्यमंत्री ने निष्पक्ष जांच के आदेश दिये हैं। साथ ही तेलंगाना के डीजीपी ने एक स्टेमेंट जारी करते हुए केस की दोबारा जांच के आदेश दिया है।
क्या है क्लोजर रिपोर्ट में
तेलंगाना पुलिस द्वारा जारी क्लोजर रिपोर्ट के बाद मुख्य तौर पर दो मुद्दे इसे विवादस्पद बनाते है। पहला रिपोर्ट में रोहित के दलित होने को मना किया गया है। दूसरा उन्हें सुसाइड के लिए किसी ने उकसाया नहीं है। क्लोजर रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रोहित वेमुला की आत्महत्या से हुई मौत के मामले में सबूतों की कमी है इसलिए अभियुक्त के ख़िलाफ़ कोई आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है। क्लोजर रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने 59 लोगों पर मुकदमा दर्ज किया है। क्लोजर रिपोर्ट में सिकंदराबाद के पूर्व बीजेपी सांसद और वर्तमान में हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, विधान परिषद सदस्य राम चंद्र राव, पूर्व कुलपति अप्पा राव और आरएसएस से संबंधित संगठन एबीवीपी नेताओं को निर्दोष बताया गया और क्लीन चिट दे दी गई।
तेलंगाना पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट के कुछ अहम बिंदु
•रोहित दलित नहीं था, वह ओबीसी समाज से आता था।
•उन्हें सुसाइड के लिए किसी ने नहीं उकसाया।
•रोहित वेमुला पर यूनिवर्सिटी में कोई गैर कानूनी कार्रवाई नहीं की गई।
•रोहित ने यूनिवर्सिटी प्रशासन पर कोई सवाल नहीं उठाए।
•सुसाइड नोट से लगता है कि वो काफी डिप्रेशन में था।
•एससी सर्टिफिकेट धोखाधड़ी से बनवाया गया है।
प्वाइंट जिन्हें पुलिस ने नजरंदाज किया
•रोहित ने मौत से पहले दो खत लिखे जिसमें यूनिवर्सिटी में भेदभाव के बारे में स्पष्ट लिखा है कि उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है
•सुप्रीम कोर्ट का साल 2012 का एक फैसला, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि माता या पिता में से कोई एक दलित है तो उनका बच्चा भी दलित माना जाएगा।
•बंडारू दत्तात्रेय ने पूर्व एमएचआरडी मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखकर कहा था कि इस यूनिवर्सिटी में देशद्रोह चल रहा है। मामले में हस्तक्षेप की मांग की गई थी। दत्तात्रेय पर आत्महत्या और एससीएसटी के तहत मामला दर्ज किया गया था।
•एमएचआरडी मंत्री ने यूनिवर्सिटी को पैनल के गठन के आदेश दिए थे और पैनल ने रोहित और 4 अन्य दलित छात्रों को निलंबित कर दिया था।
• रोहित सहित पांच छात्रों को हॉस्टल से निकाल दिया गया था। यूनिवर्सिटी ने अपनी प्रारंभिक जांच में पांचों छात्रों को क्लीनचिट दे दी थी, लेकिन बाद में अपने फैसले को पलट दिया था।
मामले को लेकर सियासत
बीसीसी से बातचीत में हैदराबाद विश्वविद्यालय के सामाजिक बहिष्करण और समावेशन नीति विभाग के प्रमुख प्रो. श्रीपति रामुडु बताते हैं कि यदि प्रोफेसर अप्पा राव कुलपति नहीं बनते तो रोहित जीवित होते। उनका सवाल है, “रोहित वेमुला ने हैदराबाद यूनिवर्सिटी के कुलपति अप्पा राव को पत्र लिखकर उन्हें फांसी देने या साइनाइड देने का अनुरोध किया था, लेकिन कुलपति ने कोई जवाब नहीं दिया। अगर वह इतने गंभीर पत्र का जवाब नहीं देते हैं तो क्या उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए?”
मामले को लेकर सियासत भी गरमाई हुई है। रोहित की मौत के समय तेलंगाना में कांग्रेस विपक्ष में थी और के. चंदरशेखर की सरकार थी। अब जब इस केस की रिपोर्ट सौंपी गई तो राज्य में कांग्रेस सत्ता में है। कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने वादा किया है कि सरकार बनने पर रोहित वेमुला अधिनियम पारित किया जाएगा। यह कानून सुनिश्चित करेगा कि किसी दलित, वंचित, आदिवासी छात्र को कैंपस में जातिगत और सांप्रदायिक भेदभाव का सामना न करना पड़े। रोहित की मां राधिका वेमुला ने मामले को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने कहा, “पुलिस ने केस को कैसे बंद कर दिया और पुलिस जाति कैसे पूछ सकती है? अगर मैं एक दलित हूं, तो क्या मेरी संतान दलित नहीं होगी?”
यह कोई एक मामला नहीं है इससे पहले भी पायल तड़वी जैसी मेडिकल स्टूडेंट्स को इतना प्रताड़ित किया गया कि उन्हें इस दुनिया से जाना ही आखिरी उपाय लगा। अब भी कभी जब कोई पायल तड़वी डॉक्टर बनकर इस समाज के सामने खड़ी होने का साहस करती है, कोई रोहित वेमुला यूनिवर्सिटी आकर कहता है कि मैं आंबेडकर का फॉलोवर हूं। तो उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है। जातिवादी मानसिकता की वजह से रोहित की सांस्थानिक हत्या कर दी जाती है और इस तरह की लचर न्याय व्यव्यस्था उनके साथ अन्याय करके उनकी दोबारा से हत्या करती है। पायल तड़वी के मामले में पुलिस ने उसे जातिवादी केस मानने से ही इंकार कर दिया था। जबकि पायल अपनी ही तीन सीनियर डॉक्टर की शिकायत कर चुकी थीं।
दरअसल पुलिस की आठ सालों की जांच महज रोहित की जाति के इर्द-गिर्द घूमती रही। मसला स्पष्ट था उन्हें एक दलित होने के चलते प्रताड़ित किया गया। इतना उकसाया कि उसकी संस्थानिक हत्या कर दी। इसके उलट पुलिस कह रही है कि वह तो दलित था ही नहीं। यानि दलित नहीं था तो वह भेदभाव भी नहीं हुआ होगा उसके साथ और केस को बंद कर दिया गया। और जब भेदभाव ही नहीं हुआ तो इस वजह से वह सुसाइड क्यों करेगा। यानि कोई अन्य कारण रहा होगा। नंबर कम आते थे, पढ़ता कम था। पीएचडी का काम ठीक नहीं चल रहा था, व्यक्तिगत हताशा, अपनी असली जाति का पता चल जाने का डर था और भी न जाने क्या-क्या बातें रिपोर्ट में कही गई है।
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